सुशांत शेखर :
भारतीय रिजर्व बैंक ने 24 जनवरी को हुई तीसरी तिमाही की समीक्षा बैठक में नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर में 0.5% अंक की कटौती कर दी। इस कटौती के बाद सीआरआर 5.5% हो गया है। आरबीआई ने अप्रैल 2010 के बाद पहली बार सीआरआर में बदलाव किया है।
हालाँकि रिजर्व बैंक ने रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। रेपो दर अभी भी 8.5% और रिवर्स रेपो दर 7.5% पर बरकरार है।
सीआरआर में कटौती के बाद बैंकों के पास कर्ज देने के लिए ज्यादा रकम रहेगी। इस कटौती से बैंकिंग प्रणाली में 32,000 करोड़ रुपये की नकदी बढ़ेगी। सीआरआर वह दर है जिसके हिसाब से बैंकों को रिजर्व बैंक के पास पैसा सुरक्षित रखना पड़ता है। सीआरआर कटौती के बाद बैंकों को अपनी कुल पूँजी के 6% के बजाय केवल 5.5% रकम आरबीआई के पास सुरक्षित रखनी होगी।
रिजर्व बैंक ने इससे पिछली समीक्षा बैठक में ही ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं करके संकेत दे दिया था कि ब्याज दरें अपने चरम पर हैं। हालाँकि ब्याज दरों में कटौती कब शुरू होगी, इस पर रिजर्व बैंक ने अभी साफ तौर पर कुछ नहीं कहा है। माना जा रहा है कि आरबीआई मार्च से ब्याज दरें घटाने का सिलसिला शुरू कर सकता है।
अब वापस विकास दर पर ध्यान
रिजर्व बैक ने महँगाई पर लगाम लगाने के लिए अप्रैल 2010 से अक्टूबर 2011 के बीच 13 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की। आरबीआई गवर्नर ने ब्याज दरें बढ़ाते समय कहा था कि वह महँगाई पर काबू पाने के लिए विकास दर से समझौता करने को भी तैयार हैं।
हुआ भी ऐसा ही। महँगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने लगातार ब्याज बढ़ाया और महँगे कर्ज से उद्योग जगत की हालत खस्ता होती चली गयी। उधर यूरोप और अमेरिका के कर्ज संकट से विदेशों में भी माँग सुस्त पड़ गयी। हालत यह हो गयी कि मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 6.9% रह गयी है। विश्व बैंक का अनुमान है कि मौजूदा वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी विकास दर 6.8% रहेगी। 2008 की मंदी के समय भी भारत की जीडीपी विकास दर 6.8% तक गिर गयी थी।
महँगाई पर काबू पाने के लिए विकास से समझौता करने के लिए तैयार आरबीआई गवर्नर डी. सुब्बाराव के सुर इस समीक्षा बैठक में पूरी तरह बदल गये। सुब्बाराव ने साफ कहा कि अब आरबीआई की चिंता के केंद्र में विकास दर आ गयी है। आरबीआई ने माना है कि जीडीपी विकास दर में कमी अनुमान से ज्यादा तीखी रही है। यही नहीं, आगे विकास दर में और कमी आने की आशंका है। आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी विकास दर अनुमान भी 7.6% से घटा कर 7% कर दिया है।
वहीं महँगाई के मोर्चे पर आरबीआई ने अभी राहत की सांस नहीं ली है। आरबीआई का कहना है कि खाने पीने के सामानों की कीमतों में तेज गिरावट से पिछले कुछ महीनों महँगाई दर में तेजी से कमी आयी है। लेकिन अभी बने-बनाये सामानों और ईंधन के दाम काफी ज्यादा है। यही नहीं, महँगाई में कमी का एक बड़ा कारण पिछले साल का ऊँचा आधार है। इसका असर खत्म होते ही महँगाई दर फिर तेज हो सकती है। हालाँकि रिजर्व बैंक ने उम्मीद जताई है कि मार्च तक महँगाई दर 7% के आसपास आ जायेगी।
भले ही आरबीआई गवर्नर कह रहे हों कि उनकी चिंता के केंद्र में महँगाई के बजाय अब विकास है, लेकिन महँगाई की चिंता अभी उनका पीछा नहीं छोड़ रही है। यही वजह है कि वे ब्याज दरों में कटौती के समय को लेकर अभी साफ तौर पर कुछ कहने से बच रहे हैं। शायद आरबीआई गवर्नर पूरी तरह यकीन कर लेना चाहते हैं कि महँगाई दर इतनी कम हो गयी है कि ब्याज दरें घटाने से इसमें तेजी से बढ़ोतरी नहीं होगी।
महँगाई और विकास के बीच आरबीआई के इस तरह झूलने के बीच कई बड़े सवाल खड़े हैं। पहला यह कि महँगाई और विकास दर में क्या संतुलन बनाना नहीं जरूरी था। क्या महज ब्याज दरों में बढ़ोतरी के जरिये माँग कम करके ही महँगाई काबू में लायी जा सकती है।
सरकार और आरबीआई दोनों कहीं-न-कहीं मानते हैं कि खाने-पीने के सामानों की महँगाई का संबंध मुख्यत: आपूर्ति से जुड़ा है। यही वजह है कि आरबीआई ने अप्रैल 2010 से अक्टूबर 2011 के बीच भले ही लगातार 13 बार ब्याज दरें बढ़ायी, लेकिन महँगाई दर लगातार 8-9% के आसपास बनी रही। मॉनसून के बाद आपूर्ति सुधरने से खाने-पीने के सामानों की महँगाई दर में अच्छी कमी आयी और यह शून्य से भी नीचे फिसल गयी। वहीं दिसंबर में कुल महँगाई भी 7.47% हो गयी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब ब्याज दरें बढ़ाने से महँगाई पर काबू पाना सँभव नहीं था तो ब्याज दरें इतनी क्यों बढ़ायी गयीं? ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी के बाद महँगे हुए कर्ज से भारतीय उद्योग जगत की हालत लगातार खस्ता होती गयी। जब पानी सिर के ऊपर चला गया है तो आरबीआई गवर्नर कह रहे हैं कि उनकी चिंता के केंद्र में विकास आ गया है।
अधूरी राहत है सीआरआर कटौती
प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई ने आरबीआई के सीआरआर घटाने के फैसले का समर्थन किया है। सीआईआई को उम्मीद है कि आरबीआई जल्द ही रेपो दर में भी कटौती शुरू करेगा, ताकि निवेश बढ़े। वहीं फिक्की के महासचिव राजीव कुमार के मुताबिक बढ़ते वित्तीय घाटे और महँगाई को देखते हुए रेपो दर में कटौती की उम्मीद नहीं थी। लेकिन, आगे दरें नहीं बढऩे के भरोसे से उद्योग को थोड़ी राहत जरूर मिली है।
जमीन-जायदाद (रियल एस्टेट) क्षेत्र के संगठन क्रेडाई ने ब्याज दरें नहीं घटने पर निराशा जतायी है। इसके मुताबिक 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद सीआरआर कटौती की मामूली राहत पर्याप्त नहीं है, क्योंकि इससे माँग नहीं बढ़ेगी। इलेक्ट्रॉनिक उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों और ऑटो कंपनियों ने भी सीआरआर कटौती से राहत की सांस ली है। उन्हें उम्मीद है कि सीआरआर कटौती के बाद आरबीआई मार्च से ब्याज दरों में भी कमी शुरू करेगा। अगर आगे रेपो दरों में कमी आती है तो इससे कंपनियाँ अपना पूँजीगत खर्च बढ़ाने के लिए उत्साहित होंगी।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)