उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर शेयर बाजार ने मन में लड्डू बाँधने शुरू कर दिये हैं। बाजार में एक आम धारणा बन रही है कि इस बार सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा। बसपा घटेगी और सपा कुछ बढ़ कर कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाने की हालत में आ जायेगी।
ग्लोब कैपिटल के कवी कुमार कहते हैं, ’मुझे यह समीकरण बनता दिख रहा है कि 125-135 सीटें मुलायम सिंह ले जायेंगे। इसके बाद राष्ट्रीय लोकदल और कांग्रेस के पास 70-90 सीटें आ जायेंगी। वैसे इसमें कांग्रेस अपनी सुविधा भी देखेगी। सपा और बसपा में जिसकी भी ज्यादा सीटें आयेंगी, वह उसके साथ चली जायेगी।‘ इससे कांग्रेस को ममता बनर्जी का विकल्प मिल जायेगा। कवी मान रहे हैं कि इस बार कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश में अच्छी संभावनाएँ रहेंगी, क्योंकि राहुल गाँधी ने राज्य में लगातार अभियान चलाया है। उनके मुताबिक कांग्रेस को अपने पक्ष में सकारात्मक मतदान से ज्यादा रणनीतिक मतदान का फायदा मिलेगा। जहाँ भी भाजपा के मतदाताओं को लगेगा कि भाजपा कमजोर पड़ रही है, वहाँ वे कांग्रेस के साथ चले जायेंगे।
ट्रस्टलाइन के निदेशक विनय गुप्ता कहते हैं कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए खोने के कम और पाने के मौके ज्यादा हैं। गोवा और मणिपुर छोटे राज्य हैं और वहाँ कांग्रेस की पकड़ है। पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस विपक्ष में है। इनमें से कोई भी राज्य उसके हाथ आ जाये और उत्तर प्रदेश में उसके समर्थन से सरकार बने तो कांग्रेस फायदे में ही मानी जायेगी। कहानी का दूसरा पहलू यह है कि अगर सपा सरकार बनाने की हालत में नहीं भी आ सकी तो बसपा को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के समर्थन की जरूरत पड़ ही जायेगी। सपा नहीं तो बसपा ही सही। कांग्रेस को एक नया साथी तो मिलेगा ही।
विनय गुप्ता उत्तर प्रदेश में बसपा के लिए ही 60% उम्मीदें मान रहे हैं। उन्हें लगता है कि बसपा की सीटें इस बार कम तो होंगी, मगर बहुत नहीं घटेंगी। वैसे में कांग्रेस और बसपा एक-दूसरे को राज्य और केंद्र में समर्थन देने का समझौता कर सकते हैं।
लेकिन बाजार इन संभावनाओं से इतना खुश क्यों हो रहा है? ब्रोकिंग फर्म भारत भूषण एंड कंपनी के निदेशक विजय भूषण कहते हैं कि ‘वैसी हालत में कांग्रेस ममता बनर्जी की ज्यादा चिंता किये बिना कुछ सुधारों को आगे बढ़ा सकेगी। दरअसल कांग्रेस के पास अगले लोकसभा चुनावों से पहले केवल यही बजट होगा, जिसमें वह कुछ गंभीर कदम उठा सके। अगर मुलायम सिंह के बदले मायावती की ही सरकार कांग्रेस के समर्थन से बने तो इसमें भी कांग्रेस फायदे में ही रहेगी।‘
कवी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के नये समीकरणों का असर केंद्र में होगा। राहुल गाँधी एक नेता के रूप में ज्यादा स्वीकार्य हो जायेंगे। वे एक और संभावना का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘कुछ महीनों बाद ही जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव भी होने हैं। मनमोहन सिंह राष्ट्रपति बनने के लिए बड़े उपयुक्त हैं। इसलिए यह संभावना बन सकती है कि मनमोहन सिंह राष्ट्रपति बन जायें और राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन जायें। संभव है कि मनमोहन सिंह जाते-जाते एफडीआई और पेंशन के दो महत्वपूर्ण सुधारों को पूरा कर जायें। इसलिए उत्तर प्रदेश चुनावों के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं।'
लेकिन बाजार ने इन संभावनाओं को किस हद तक भुना लिया है? कवी मानते हैं कि बाजार इस संभावना को पहले से जरूर भुनाने लग गया है। हालाँकि विनय गुप्ता कहते हैं कि बाजार में अभी जो उछाल है, वह मुख्य रूप से विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की खरीदारी की वजह से है। लिहाजा चुनावों के बाद नयी उछाल की गुंजाइश बाकी है।
बाजार विश्लेषक पशुपति सुब्रमण्यम को भी लगता है कि बाजार की मौजूदा तेजी चुनावी नतीजों से जुड़ी उम्मीदों पर नहीं टिकी है। बाजार यह जोखिम भी देख रहा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहने पर सुधारों की पूरी प्रक्रिया अटक जायेगी। हालाँकि इसके विपरीत शायद प्रधानमंत्री सोचें कि अब खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए सुधारों की रफ्तार एकदम तेज कर दें। लिहाजा एक ही घटना के दो एकदम अलग परिणाम भी हो सकते हैं।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)