2जी घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का दूरगामी असर पडऩे की उम्मीद जतायी जा रही है। इस फैसले से ग्राहकों, कंपनियों और उनके कर्मचारियों के साथ भारत में विदेशी निवेश पर भी असर पडऩे की बात की जा रही है। आइये देखते हैं कि इस फैसले का किस पर कितना असर पड़ सकता है।
ग्राहकों पर असर
इस फैसले से 7 करोड़ से ज्यादा ग्राहकों पर सीधा असर पड़ेगा। सेवाएँ बंद होने पर इन सभी ग्राहकों को मुश्किल होगी।
विकल्प : सुप्रीम कोर्ट का फैसला 4 महीने बाद लागू होना है। संभव है कि सरकार इस दौरान नये लाइसेंसों की नीलामी प्रक्रिया पूरी कर ले। अगर कंपनियाँ अपने नेटवर्क को बचाने के लिए नयी नीलामी में लाइसेंस हासिल कर लें तो उनकी सेवाएँ जारी रह सकेंगी। इसलिए ग्राहक चाहें तो थोड़ा इंतजार कर सकते हैं। लेकिन अगर कोई अनिश्चितता से बचना चाहे तो वह नंबर पोर्टेबिलिटी के माध्यम से दूसरा ऑपरेटर चुन सकता है। ऐसा करने पर उन्हें अपना नंबर बदलने की जरूरत नहीं होगी, लेकिन उन्हें पुरानी कंपनी से मिल रही सुविधाओं या कॉल दरों पर समझौता करना पड़ सकता है।
कंपनियों पर असर
यूनिनॉर को सबसे ज्यादा 22, लूप को 21, सिस्टेमा श्याम को 21, वीडियोकॉन को 21, एतिसालात डीबी को 15, आइडिया को 13, एस-टेल को 6 और टाटा टेली को 3 लाइसेंस से हाथ धोना पड़ा है। लेकिन इनमें नेटवर्क विस्तार और ग्राहकों की संख्या के हिसाब से सबसे बड़ा झटका यूनिनॉर और सिस्टेमा श्याम के लिए ही है। यूनिनॉर के 3.6 करोड़ और सिस्टेमा श्याम (एमटीएस) के 1.5 करोड़ ग्राहक हैं। इसके अलावा वीडियोकॉन के करीब 54 लाखऔरएस-टेलकेकरीब 50 लाखग्राहकहैं।एतिसालातडीबीकेवल 10-12 लाखग्राहकहीहैं।टाटाटेलीऔरआइडियाकोरद्दहोनेवालेलाइसेंसोंकेसर्किलगँवाने पड़ जायेंगे।
जिन कंपनियों ने 2जी स्पेक्ट्रम हासिल करने के बाद अपनी सेवाएँ शुरू करने में भारी निवेश किया है, उन्हें बड़ा झटका लगा है। यूनिनॉर में विदेशी साझेदार नार्वे की टेलीनॉर और सिस्टेमा श्याम में हिस्सेदार रूस की सिस्टेमा ने गहरी निराशा जतायी है। दोनों ने सर्वोच्च न्यायालय फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का संकेत दिया है, लेकिन अंतिम रूप से कुछ नहीं कहा है। उनका दावा है कि उन्होंने भारत सरकार के नियमों के मुताबिक ही काम किया है।
सिस्टेमा श्याम ने भारत में अपनी सेवाओं के लिए कुल करीब 12,500 करोड़ रुपये का निवेश किया है। यूनिनॉर में टेलीनॉर इक्विटी के माध्यम से 6,100 करोड़ रुपये और कॉर्पोरेट गारंटी के तौर पर 8,000 करोड़ रुपये का निवेश कर चुकी है। इस फैसले से उसका यह निवेश खतरे में पड़ गया है। दूसरी बात यह है कि अदालत ने लाइसेंस फीस के रुपये लौटाने के मसले पर भी कुछ नहीं कहा है। ऐसे में यह साफ नहीं है कि उन्हें लाइसेंस शुल्क के तौर पर दी गयी रकम वापस मिलेगी या नहीं।
दूसरी ओर पुराने ऑपरेटरों को इस फैसले से फायदा मिल सकता है। उन्हें नीलामी में हिस्सा लेकर ज्यादा स्पेक्ट्रम हासिल करने का मौक मिलेगा। जिन कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए हैं, उनके ग्राहकों को पुराने ऑपरेटर अपनी ओर खींच सकते हैं। कुछ पुराने ऑपरेटरों ने तो अदालत का फैसला आते ही ग्राहकों को तोडऩे के लिए विज्ञापनों की मुहिम ही शुरू कर दी है। यूनिनॉर और सिस्टेमा का आरोप है कि पुराने ऑपरेटर उनके ग्राहकों को भ्रामक एसएमएस भेज कर तोडऩे की कोशिश कर रहे हैं।
विकल्प : इस फैसले से प्रभावित सभी कंपनियों के पास सर्वोच्च न्यायालय में समीक्षा याचिका दायर करने का विकल्प है। दूसरा विकल्प यह है कि ऐसी कंपनियाँ नयी नीलामी में हिस्सा लेकर वापस लाइसेंस और स्पेक्ट्रम हासिल कर सकती हैं। लेकिन नीलामी से दोबारा स्पेक्ट्रम लेना पहले की तुलना में महँगा पड़ सकता है। टेलीनॉर और सिस्टेमा जैसी विदेशी कंपनियाँ अपने भारतीय साझेदारों से क्षतिपूर्ति का दावा भी कर सकती हैं। इन कंपनियों का कहना होगा कि लाइसेंस की वैधता के आधार पर ही उन्होंने भारतीय कंपनियों में निवेश किया था।
बैंकों पर असर
बैंकों ने 2जी घोटाले पर प्रभावित कंपनियों को कुल 14,345 करोड़ रुपये का भारी कर्ज दे रखा है, जिनके डूबने की आशंका है। इसमें से 2,888 करोड़ रुपये असुरक्षित कर्ज की श्रेणी में हैं। सबसे ज्यादा करीब 4,500 करोड़ रुपये भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने दिये हैं।
विकल्प : बैंक अपने काफी हद तक अपने कर्ज की भरपाई सिक्योरिटी भुना कर कर सकते हैं। बैंक सरकार से भी नुकसान की भरपाई करने की मांग कर सकते हैं। एसबीआई ने तो कहा है कि उसने सरकार के लाइसेंस की गारंटी पर ही दूरसंचार कंपनियों को कर्ज दिया था। ऐसे में सरकार को उनके नुकसान की भरपाई करनी चाहिए।
आईटी कंपनियाँ
कई आईटी कंपनियाँ भी 2जी घोटाले पर इस फैसले से मुश्किल में पड़ गयी हैं। दरअसल नये ऑपरेटरों के साथ आईटी कंपनियों ने काफी बड़े आउटसोर्सिंग समझौते किये थे जो अब अधर में लटक सकते हैं।
मसलन 2009 में विप्रो ने यूनिनॉर के साथ 50-60 करोड़ डॉलर का आउटसोर्सिंग करार किया था। इसी तरह टेक महिंद्रा ने एतिसालात डीबी के साथ 40 से 60 करोड़ डॉलर का करार किया था। आईबीएम ने भी वीडियोकॉन की डॉटाकॉम के साथ 20 करोड़ डॉलर का समझौता किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इन समझौतों का भविष्य अधर में लटक गया है। इससे आईटी कंपनियों के मुनाफे पर भी असर पडऩा तय है।
कर्मचारी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस फैसले से प्रभावित टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों पर सीधा असर पड़ेगा। माना जा रहा है इस फैसले से कम-से-कम 20,000 से 25,000 कर्मचारियों के भविष्य पर असर पड़ सकता है। यह भी आशंका जतायी जा रही है कि कंपनियाँ भारी पैमाने पर छँटनी कर सकती हैं। हालाँकि यूनिनॉर ने बयान जारी करके कहा है कि वह छँटनी या कर्मचारियों के वेतन में कटौती नहीं करेगी। लेकिन अगर इन कंपनियों को कारोबार ही बंद करना पड़ता है तो इनके कर्मचारियों के सामने कहीं और नौकरी तलाशने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहेगा।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)