क्या सरकार संविधान में शामिल समानता के बुनियादी हक के अनुरूप कोई उचित और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाये बिना प्राकृतिक संसाधन या राष्ट्रीय संपत्ति किसी को देने या बाँटने का अधिकार रखती है?
- सरकार लोगों के ट्रस्टी के रूप में प्राकृतिक संसाधनों की स्वामी है। सरकार को इन्हें बाँटने का हक है, लेकिन बाँटने की यह प्रक्रिया संवैधानिक सिद्धांतों पर चलनी चाहिए, जिनमें समानता का सिद्धांत और व्यापक जनहित भी शामिल हैं।
-टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (टीआरएआई) ने 28 अगस्त 2007 को 2जी स्पेक्ट्रम के साथ यूनिफाइड ऐक्सेस सर्विस (यूएएस) लाइसेंस 2001 में तय कीमत पर ही दे देने की सिफारिश की थी। क्या यह सिफारिश केंद्रीय मंत्रिमंडल के 31.10.2003 के फैसले के खिलाफ थी?
- टीआरएआई ने 28 अगस्त 2007 की सिफारिशें देते समय खुद ही कहा था कि स्पेक्ट्रम दुर्लभ वस्तु है, लेकिन इसने बराबरी के व्यवहार (लेवल प्लेइंग फील्ड) के सिद्धांत के आधार पर 2जी स्पेक्ट्रम 2001 की कीमतों के आधार पर देने की सलाह दी ज्यादा न भी कहा जाये तो टीआरएआई का नजरिया एक ओर झुका हुआ था और यह मंत्रिमंडल के फैसले के खिलाफ था। टीआरएआई की ये सिफारिशें संचार मंत्री (ए. राजा) और दूरसंचार विभाग के अधिकारियों के लिए औजार (हैंडल) बन गयीं, जिन्होंने प्रधानमंत्री, वित्त मंत्रालय और खुद अपने कुछ अधिकारियों की आपत्तियों को जानते-बूझते दरकिनार करके महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति बेहद सस्ती कीमत पर उपहार में दे दी। यह इस बात से स्पष्ट है कि लाइसेंस पाने के तुरंत बाद विदेशी कंपनियों को शेयर हस्तांतरण या नयी शेयर पूँजी लाने के नाम पर कुछ लाभान्वितों ने अपनी हिस्सेदारी दूसरों को बेच दी।
हम अपना यह नजरिया दर्ज करना जरूरी समझते हैं कि टीआरएआई को स्टार्ट अप स्पेक्ट्रम के साथ लाइसेंस देने के लिए 2001 में तय प्रवेश को आज की गतिशीलता और संचार क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि के मद्देनजर पूरी तरह अवास्त विककरार देना चाहिए था।हम टीआरएआई के इस तर्क को दमदार नहीं मानते कि बराबरी का व्यवहार बनाये रखने का विचार प्रवेश शुल्क पर फिर से यथार्थपरक आकलन करने में बाधक बना।
क्या टीआरएआई की सिफारिशों को आधार बना कर दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने सितंबर 2007 से मार्च 2008 तक निजी कंपनियों को यूएएस लाइसेंस देते समय में मनमानी और दोषपूर्ण प्रक्रिया अपनायी, जो जनहित के खिलाफ थी? दूरसंचार विभाग ने लाइसेंस देने के लिए पहले आओ पहले पाओ की जो नीति अपनायी, क्या वह संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध है? क्या संचार और सूचना तकनीक मंत्री (ए. राजा) ने कुछ आवेदकों को फायदा दिलाने के लिए टीआरएआई से सलाह लिये बिना इस नीति को बदल दिया?
- पहले आओ पहले पाओ की नीति में बुनियादी खोट है, क्योंकि इसमें शुद्ध संयोग या दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है। ठेके या लाइसेंस देने या सरकारी संपत्ति के इस्तेमाल की अनुमति देने में पहले आओ पहले पाओ की नीति खतरनाक हो सकती है। जो भी व्यक्ति सत्ता के गलियारों में सबसे ऊपरी या सबसे निचले स्तर पर पहुँच रखता है, वह सरकारी फाइलों से ऐसी सूचनाएँ पा सकता है कि कोई खास सरकारी संपत्ति बाँटी जाने वाली है या कोई ठेका, लाइसेंस या अनुमति दी जाने वाली है। ऐसा व्यक्ति तुरंत आवेदन दाखिल करके कतार में सबसे पहले खड़ा हो जा सकता है। इस बात का खामिया जा ऐसे लोगों को भुगतना पड़ सकता है, जिनका दावा शायद ज्यादा मजबूत हो।
हमारा मानना है कि ऐसे काम को पूरा करने के लिए अच्छी तरह प्रचारित की गयी उचित और निष्पक्ष नीलामी ही सबसे अच्छा तरीका है। अगर प्राकृतिक संसाधनों या सरकारी संपत्तियों को बाँटने के लिए पहले आओ पहले पाओ जैसे तरीके चुने जायेंगे तो संवैधानिक मर्यादाओं और मूल्यों की परवाह किये बिना केवल अधिक-से-अधिक वित्तीय लाभ चाहने वाले अनैतिक लोगों को इनके दुरुपयोग का मौका मिल जायेगा। प्राकृतिक संसाधनों को देते समय सरकार का यह कर्तव्य है कि वह नीलामी की प्रक्रिया चुने और इसका पूरा प्रचार करे, ताकि सभी योग्य पात्रों को इस प्रक्रिया में भाग लेने का मौका मिले।
किसके कितने लाइसेंस रद्द
सर्वोच्च न्यायालय ने जिन 122 लाइसेंसों को रद्द किया है, उनके विवरण के बारे में बाजार में कुछ भ्रम देखा गया। एक प्रमुख अंग्रेजी वेबसाइट पर लिखा गया, "क्रद्गद्यद्बड्डठ्ठष्द्ग ष्टशद्वद्वह्वठ्ठद्बष्ड्डह्लद्बशठ्ठह्य स्रह्म्शश्चश्चद्गस्र ४त्न ड्डद्घह्लद्गह्म् द्बह्लह्य १३ द्यद्बष्द्गठ्ठह्यद्गह्य 2द्गह्म्द्ग ष्ड्डठ्ठष्द्गद्यद्यद्गस्र." लेकिन कंपनी ने तुरंत ही इसका खंडन करके स्थिति साफ की और बताया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस के सभी लाइसेंस 2001 या इससे भी पहले के हैं। कंपनी ने स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश से रिलायंस कम्युनिकेशंस के लाइसेंसों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
सबसे ज्यादा 22 लाइसेंस यूनिनॉर के रद्द हुए हैं। भारत को संचार के लिहाज से 22 सर्किलों में बाँटा गया है और किसी कंपनी को हर सर्किल में सेवाओं के लिए अलग लाइसेंस लेना होता है। लूप के मुंबई को छोड़ कर बाकी सभी सर्किलों के 21 लाइसेंस रद्द किये गये हैं। मुंबई में लूप की सेवाएँ जनवरी 2008 से पहले से चल रही हैं। इसी तरह सिस्टेमा श्याम के 21 लाइसेंस रद्द किये गये हैं। राजस्थान में उसका लाइसेंस जनवरी 2008 से पहले का होने की वजह से रद्द होने वाले लाइसेंसों की सूची से बाहर है।
आइडिया के बारे में प्रमुख अंग्रेजी वेबसाइट में लिखा गया, "ढ्ढस्रद्गड्ड ष्टद्गद्यद्यह्वद्यड्डह्म् द्घद्गद्यद्य २.६त्न ड्डह्य स्ष्ट ष्ड्डठ्ठष्द्गद्यद्यद्गस्र 21 द्यद्बष्द्गठ्ठह्यद्गह्य शद्घ ह्लद्धद्ग ष्शद्वश्चड्डठ्ठ4." लेकिन वास्तव में आइडिया के केवल 13 लाइसेंस प्रभावित हुए हैं। इनमें से 9 लाइसेंस सीधे आइडिया को मिले थे, जबकि 4 लाइसेंस उसे स्पाइस के अधिग्रहण के जरिये हासिल हुए थे।
वीडियोकॉन के 21 सर्किलों (पंजाब छोड़ कर बाकी सभी सर्किल) के लाइसेंस निरस्त हो गये हैं। एतिसालात डीबी के 15 और एस-टेल के 6 लाइसेंस रद्द हुए हैं। टाटा टेली के बारे में कई जगहों पर 13 लाइसेंस रद्द होने की खबर दिखी, लेकिन वास्तव में इसके 3 लाइसेंस रद्द किये गये हैं जो असम, उत्तर-पूर्व और जम्मू-कश्मीर के हैं।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)