राकेश झुनझुनवाला के नाम से एक फर्जी ब्लॉग अगर काफी नहीं था तो अब शंकर शर्मा के नाम से एक फर्जी फेसबुक प्रोफाइल भी बन कर तैयार है। ब्रोकिंग फर्म फस्र्ट ग्लोबल के शंकर शर्मा तो बताते हैं कि उन्होंने कभी फेसबुक नाम की वेबसाइट का चेहरा भी नहीं देखा है।
हो सकता है कि शायद अपनी फर्जी प्रोफाइल पर नजर डालने के लिए ही अब उन्हें फेसबुक पर आना पड़े! वैसे अपनी फर्जी प्रोफाइल के बारे में बताने पर उनका कहना तो यही था - जाने दो यार, मैं फेसबुक जैसी चीजों के लिए काफी बूढ़ा हो चुका हूँ! (शंकर शर्मा के लिए यह खुद को बूढ़ा कहने की उम्र तो नहीं। फिर क्या सरकार और सेबी से बार-बार की जंग ने थका दिया!) वैसे इस फर्जी प्रोफाइल पर शायद एक फोटो असली हो। डीएनएस, ग्रेड 3, 1973 शीर्षक से दी गयी यह फोटो दरअसल इस फर्जी प्रोफाइल के फेसबुक मित्रों में से एक ने अपने एलबम में डाली और उसमें शंकर शर्मा का नाम टैग किया। अब अगर शंकर शर्मा फेसबुक पर जा कर देखें तो शायद इस फोटो की असलियत का पता चले। हो सकता है उन्हें यह भी समझ में आ जाये कि किस लंगोटिया यार ने शरारत की है!
दीपक मोहनी का फेसबुक डिस्क्लोजर
कनाडा की रिसर्च फर्म वेरिटास इन्वेस्टमेंट रिसर्च ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और रिलायंस कम्युनिकेशंस पर जुलाई में काफी तीखी रिपोर्ट निकाली थी। तकनीकी विश्लेषक दीपक मोहनी ने इस रिपोर्ट का लिंक अपने फेसबुक प्रोफाइल पर डाला और रिलायंस के बारे में लिखा, ‘मुझे संदेह है कि इसका शेयर पर कोई खास असर होगा। मुझे विश्वास है कि बहुत सी दूसरी सूचीबद्ध कंपनियों में कहीं ज्यादा बुरे कारोबारी तौर-तरीके अपनाये जा रहे हैं।‘
उन्होंने रिलायंस के एक निवेशक को भरोसा दिलाया कि यह रिपोर्ट उनके निवेश को ज्यादा जोखिम में नहीं डालेगी। लेकिन साथ में उनका कहना था, ‘अगर आप किसी दमदार दिग्गज शेयर में निवेश करना चाहते हैं तो एचडीएफसी बैंक, इन्फोसिस, टीसीएस और यहाँ तक कि टाटा मोटर्स कहीं बेहतर विकल्प हैं।‘ खैर, ये जुलाई की बात थी। दीपक ने 19 अगस्त को रिलायंस के बारे में इकोनॉमिस्ट की एक सकारात्मक रिपोर्ट का लिंक अपने प्रोफाइल पर डाला और कहा, ‘उस समय यह शेयर 875 पर था, अब 730 पर है। आज की गिरावट में मैंने इसमें निवेश का फैसला किया, इस उम्मीद में कि सेंसेक्स के 16,000 के करीब आने पर एफआईआई दिग्गज सूचकांक (सेंसेक्स-निफ्टी) के शेयरों में खरीदारी शुरू करेंगे।‘
इस पर उनके एक मित्र ने पूछ ही डाला कि भला आप कंपनी और प्रमोटर दोनों के बारे में नकारात्मक राय रखने के बावजूद उस शेयर में कैसे निवेश कर सकते हैं! पूछने वाले मित्र चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं। दीपक का जवाब था, ‘मैं अपने निवेश पर फायदे की उम्मीद कर रहा हूँ और यह शेयर सस्ता लग रहा है। ...आम तौर पर मैं अपने सौदों और निवेश के बारे में सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करता। लेकिन चूँकि मैंने पहले रिलायंस के बारे में पहले एक नकारात्मक खबर अपनी प्रोफाइल पर डाली थी, इसलिए यह ठीक नहीं होगा कि मैं वही शेयर खरीदूँ और (फेसबुक के) उन पाठकों को इसके बारे में न बताऊँ।‘
लेकिन उससे ज्यादा ईमानदार टिप्पणी तो आगे है, ‘चार्ट के बारे में मेरी जितनी थोड़ी-बहुत समझ है, उससे मुझे यही लगता है कि शेयरों के चाल की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। समर्थन स्तर, बाधा स्तर, जमना (कंसोलिडेशन) वगैरह शब्द कोई मतलब नहीं रखते, बिल्कुल हस्तरेखा शा या ज्योतिष की तरह। चार्ट आपको केवल मौजूदा रुझान के बारे में बताते हैं और चार्ट के आधार पर सौदे करने का मतलब यह है कि आप उस रुझान के जारी रहने पर दाँव लगा रहे हैं। अगर आप गलत हो गये तो आपके घाटे की सीमा स्टॉप लॉस से तय होती है।‘ यह तकनीकी विश्लेषण का नया दर्शन शा है, और दर्शन आम लोगों के सिर से ऊपर निकल जाता है। आप भी सोच में पड़ गये ना कि फेसबुक वाले दीपक मोहनी और टीवी पर सलाह देने वाले दीपक मोहनी में कोई फर्क तो नहीं!
विजय भंबवानी का मेढ़क
शेयर बाजार में मंदी की हालत देख कर तकनीकी विश्लेषक विजय भंबवानी ने साथ में जंतु विज्ञान की कक्षा में पढ़ाना शुरू कर दिया है। उनकी इस नयी कक्षा का एक पाठ प्रस्तुत है। वे बता रहे हैं, अगर आप मेढ़क को उबलते गर्म पानी में डाल दें तो वह छलांग लगा कर बाहर भाग जायेगा। लेकिन आप उसी मेढ़क को ठंडे पानी में डाले और धीरे से उस पानी को गर्म करना शुरू करें तो उस मेढ़क को पता भी नहीं चलेगा कि वह कब उबल कर मर गया। अरे, विजय जी ने तो अब उस मेढ़क की जगह निवेशक को रख दिया और वापस बाजार की सीख देने लगे। कह रहे हैं कि गिरते बाजार में चुपचाप बैठे रहना और झूठी उम्मीदें बाँधे रखना वित्तीय आत्महत्या का सबसे बढिय़ा तरीका है। विजय जी, एम्स से कुछ लोग आये हैं। कह रहे हैं उनका मेढ़क खो गया है। आपने कहीं देखा क्या?
लोकपाल ने हरि साडू का नाम बदला
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)