डॉयशे बैंक के सीईओ अंशु जैन के लिए कांटों भरा ताज :
लॉड्र्स के मैदान में जब भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड से टेस्ट मैच में दुर्गति झेल रही थी, उसी दौरान डॉयशे बैंक ने पहली बार किसी गैर-यूरोपीय को सह-मुख्य कार्यकारी अधिकारी (को-सीईओ) नियुक्त किया। वह कोई और नहीं, भारतीय क्रिकेट टीम के एक बड़े प्रशंसक और राहुल द्रविड़ के मित्र अंशु जैन थे।
इंग्लैंड टेस्ट शृंखला के कारण भारतीय टीम के सितारे भले ही इन दिनों गर्दिश में चल रहे हों, लेकिन क्रिकेट प्रेमी 48 वर्षीय अंशु जैन की खुशकिस्मती की छाप उनके मित्र द्रविड़ पर भी रही। जयपुर में 26 मार्च 1963 को जन्मे अंशु जैन को पढ़ाने-लिखाने के लिए उनके पिता को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन आज उनका यही होनहार बेटा जर्मनी के सबसे बड़े बैंक का सबसे बड़ा अधिकारी है।
डॉयशे बैंक ने अंशु जैन को प्रबंधन बोर्ड के चेयरमैन जोसफ एकरमैन की जगह नियुक्त किया है, जो अगले साल मई में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। जर्मनी के इस बैंक की लंदन स्थित अत्यधिक सफल निवेश बैंकिंग शाखा का नेतृत्व कर रहे जैन प्रबंधन बोर्ड में अपने सहयोगी ज्यूरगन फित्शेन के साथ कारोबार का जिम्मा संभालेंगे। जैन और फित्शेन दोनों को एशिया और भारत का बड़ा निवेशक माना जाता है। दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स और यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाच्युसेट्स से पढ़ाई करने वाले जैन की नियुक्ति को भारतीय कारोबार तथा जर्मनी के इस बैंक के भारतीय अभियान दोनों के लिए अच्छा माना जा रहा है।
डॉयशे बैंक इंडिया की ज्यादातर आमदनी निवेश बैंकिंग से आती है, जो जैन के प्रभावशाली साम्राज्य का हिस्सा है। दुनिया भर में फैली अपनी तीन हजार से अधिक शाखाओं वाला यह बैंक विदेशी मुद्रा का सबसे बड़ा कारोबारी है।
अंशु जैन के बारे में कहा जाता है कि वे निवेश और प्रतिभूति बैंकिंग के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। पिछले वर्ष जब पश्चिमी जगत के तकरीबन सभी बड़े बैंक जब वित्तीय संकट से जूझ रहे थे तो अंशु जैन की मेहनत के दम पर डॉयशे बैंक ने कर अदायगी के बाद 2.33 अरब यूरो का लाभ अर्जित किया था। बैंक की ऐसी साख बनाने और लाभ दिलाने का 90% श्रेय अंशु जैन के विभाग को ही जाता है। पिछले पाँच वर्षों में उन्होंने बैंक को लगभग 16 अरब यूरो का शुद्ध लाभ दिलाया है। बैंक का प्रबंधन उनकी कार्यशैली से इतना खुश हुआ कि उसने जैन का वेतन बैंक के वर्तमान प्रमुख एकरमैन की आय से भी ज्यादा कर दिया। पिछले साल वेतन, बोनस आदि मिला कर उनकी कुल आय एक करोड़ 20 लाख यूरो (लगभग 80 करोड़ रुपये) थी, जबकि एकरमैन की आय सिर्फ 88 लाख यूरो ही है। जैन के पास बैंक के साढ़े तीन करोड़ यूरो के शेयर भी हैं और इनसे होने वाली आय उनके वेतन पैकेज का हिस्सा नहीं है।
जो व्यक्ति यूरोप का नहीं है और न ही जर्मन भाषा जानता है, उसे 130 साल पुराने इस सबसे बड़े बैंक का सर्वोच्च अधिकारी बनाना कई असरदार व्यक्तियों को पसंद नहीं था। सबसे पहले तो एकरमैन ने ही अंशु जैन को सीईओ बनाने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। वे अपनी जगह बंडेसबैंक सेंट्रल बैंक के पूर्व अध्यक्ष एक्सेल वेबर को लाना चाहते थे।
लेकिन प्रबंधन ने इसे खारिज कर दिया। एकरमैन और पर्यवेक्षक बोर्ड के चेयरमैन क्लेमेंस बोर्सिग के बीच वेबर को नहीं रखे जाने और इस शीर्ष पद पर किसी वैकल्पिक उम्मीदवार की नियुक्ति को लेकर विवाद भी हुआ। बैंक के प्रबंधन और पर्यवेक्षक बोर्ड के लिए एक उत्तराधिकारी को तैयार नहीं करने की विफलता से न सिर्फ बैंक को नुकसान का खतरा था बल्कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था भी गड़बड़ा सकती थी। वित्तीय संकट के इस दौर में डॉयशे बैंक का प्रमुख जर्मनी के कॉर्पोरेट प्रतिष्ठान का चेहरा होता है और सरकार के लिए समझौता करने वाला प्रमुख वार्ताकार माना जाता है। दूसरी तरफ, यह कहा गया कि दो-दो सीईओ की नियुक्ति जोखिम भरी होगी, क्योंकि इससे आंतरिक प्रतिद्वंद्विता की भावना और नीति-निर्माण की गति धीमी पड़ सकती है।
यह तर्क भी रखा गया कि जर्मनी के इस बैंक का को-सीईओ बनने के लिए कुछ बुनियादी योग्यताएँ होनी अंशु जैन में नहीं हैं, मसलन जैन न तो जर्मन बोलना जानते हैं और न ही बर्लिन और जर्मनी के कॉर्पोरेट सेक्टर में उनका कोई जरूरी संपर्क है। जर्मनों का राष्ट्रीय खेल फुटबॉल है, जबकि जैन क्रिकेट-प्रेमी हैं।
ऐसे में अंशु जैन का चुना जाना वाकई आश्चर्यजनक है। जर्मन शायद ही यह बात पचा पायें कि गरीबी और भ्रष्टाचार के बोलबाले वाले देश से आया एक बैंकर उन्हें बैंकों के प्रबंधन के गुर सिखायेगा। कई लोग यह भी कह सकते हैं कि बड़े बैंकों के शीर्ष पद पर दो को-सीईओ की नियुक्ति का पिछला अनुभव अच्छा नहीं रहा है। सैनफोर्ड विल और जॉन रीड वर्ष 1990 में सिटीग्रुप के शीर्ष पद पर थे, लेकिन रीड को जल्द ही अपदस्थ कर दिया गया था। बहरहाल, जैन इस बैंक के साथ 16 वर्षों से जुड़े हैं लेकिन इन सब कारकों को देखते हुए यह उनके लिए कांटों भरा ताज साबित हो सकता है। ठ्ठ
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)