अचानक ही लोगों के मन में 2008 की यादें ताजा हो रही हैं, जब शायद ही किसी म्यूचुअल फंड की एनएवी गहरी डुबकियाँ लगाने से बच पायी हो। ऐसे में म्यूचुअल फंड के निवेशकों के मन में एक साथ डर और लालच दोनों तरह के भाव पैदा होते हैं।
डर इस बात का कि उनके अब तक के निवेश का क्या होगा। कहीं उनके फंड की एनएवी आगे और तो नहीं गिर जायेगी? लालच यह कि अभी अगर एनएवी घट गये हैं तो क्या कुछ रकम एकमुश्त लगा दी जाये?
उलझन केवल निवेशक की नहीं है। उससे कहीं ज्यादा बड़ी उलझन म्यूचुअल फंडों के के फंड मैनेजरों की है। ज्यादातर फंड मैनेजर अपने फंड के निवेश के बारे में पहले से तय दिशानिर्देशों से बँधे होते हैं। फंड में निवेशकों ने जितना भी पैसा लगाया होता है, उसका अधिकांश हिस्सा वे पहले से निवेश करके ही रखते हैं। वे फंड के पोर्टफोलिओ में कितनी ज्यादा नकदी ले कर चलें, इसकी भी एक सीमा होती है।
अगर वे शेयर बाजार में भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हों, तो भी एक सीमा से ज्यादा नकदी ले कर चलना उनके लिए मुश्किल होता है। ऐसे में अगर शेयर बाजार नीचे आये तो फंड की एनएवी पर असर पड़े बिना नहीं रह सकता। उनकी कोशिश मोटे तौर पर यही होती है कि अगर बाजार में तेजी है तो वे सूचकांक (इंडेक्स, जैसे सेंसेक्स, निफ्टी) से कहीं ज्यादा मुनाफा कमा कर अपने निवेशकों को दें और अगर बाजार में गिरावट आ रही है तो उनकी एनएवी में गिरावट सूचकांक की तुलना में कम-से-कम हो।
लेकिन यह उम्मीद रखना भी व्यावहारिक नहीं हो सकता कि पूरे बाजार में गिरावट के बीच कोई फंड शानदार मुनाफा कमा कर दे सके। ऐसा केवल कारोबारी (ट्रेडर) कर सकते हैं और एक म्यूचुअल फंड का ढाँचा और कामकाजी तौर-तरीका निवेशक का होता है।
अपनी इन सीमाओं के बीच भी फंड मैनेजर की कुशलता और भविष्य के बारे में सही आकलन करने की उसकी क्षमता से म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन पर काफी असर दिख सकता है। ऐसा नहीं होता तो हर फंड की एनएवी सूचकांक की बढ़त या गिरावट के अनुपात में ही बढ़ती या घटती। लिहाजा यह समझना जरूरी है कि मौजूदा हालात में म्यूचुअल फंडों के फंड मैनेजर किस दिशा में सोच रहे हैं और अपने निवेश पोर्टफोलिओ को सँभालने के लिए कैसी रणनीति बना रहे हैं।
फंड मैनेजरों के एक ताजा सर्वेक्षण से पता चलता है अभी उनमें से ज्यादातर लोग छोटी अवधि में भारतीय शेयर बाजार के साथ-साथ वैश्विक बाजारों के लिए भी उदासीन से नकारात्मक धारणा ले कर चल रहे हैं। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के इस सर्वेक्षण के मुताबिक फंड मैनेजरों ने कंपनियों की आमदनी के बारे में इस कारोबार साल और अगले कारोबारी साल दोनों के अनुमानों में कटौती की है। हालाँकि ज्यादातर फंड मैनेजर यह मान रहे हैं कि शेयर बाजारों के मूल्यांकन अब उचित स्तरों पर या उससे भी नीचे आ गये हैं। इसके बावजूद वे छोटी अवधि के लिए ज्यादा आश्वस्त महसूस नहीं कर रहे हैं।
फंड मैनेजरों का मानना है कि एक साल या इससे ज्यादा की अवधि के नजरिये से अब शेयरों में निवेश बढ़ाने का समय आ चुका है। लेकिन भारत में ब्याज दरें काफी ऊँची होने के कारण उनकी सोच यह है कि अगले 3-4 महीनों के लिए यहाँ ऋण (डेब्ट) का बाजार बेहतर विकल्प है। अगले छह महीनों के नजरिये से उनका झुकाव इन्कम फंड और जी-सेक फंड की ओर बढ़ा है, हालाँकि सबसे ज्यादा लोकप्रियता छोटी अवधि के फंडों की ही है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के इस सर्वेक्षण में 43% फंड मैनेजरों की राय यह है कि अगले छह महीनों के दौरान छोटी अवधि के फंड सबसे अच्छा फायदा देंगे। तीन महीने ऐसे ही सर्वेक्षण में 50% फंड मैनेजरों ने यह विकल्प चुना था। इन तीन महीनों में इन्कम फंड को सबसे अच्छा विकल्प मानने वाले फंड मैनेजरों की संख्या 6% से बढ़ कर 35% हो गयी है। वहीं पिछली बार किसी भी फंड मैनेजर ने जी-सेक फंड का विकल्प सबसे अच्छा नहीं माना था, जबकि इस बार 22% लोगों ने इस विकल्प को चुना। बेहद छोटी अवधि के फंड पिछली बार 44% फंड मैनेजरों की पसंद थे, लेकिन इस बार किसी ने इसका पक्ष नहीं लिया।
जहाँ तक इक्विटी यानी शेयरों में निवेश की रणनीति का सवाल है, अब 52% फंड मैनेजर शेयर बाजार में निवेश बढ़ाने की रणनीति को चुन रहे हैं। तीन महीने के सर्वेक्षण में यह रणनीति अपनाने वालों की संख्या केवल 13% थी। अपने निवेश के मौजूदा स्तर को ही बरकरार रखने की बात सोचने वाले फंड मैनेजरों की संख्या इन तीन महीनों में 75% से घट कर 48% पर आ गयी है। वहीं शेयर बाजार में निवेश का स्तर घटाने की बात कहने वाले फंड मैनेजर तीन महीने पहले 13% थे, इस बार किसी ने यह विकल्प नहीं चुना। मतलब यह कि इस समय किसी भी फंड मैनेजर के मन में मौजूदा निवेश बेच कर नकदी हाथ में रखने की बात नहीं है।
इसके बावजूद अगर यह पूछा जाये कि साल 2011 के बाकी बचे महीनों में वे किस संपत्ति-वर्ग (एसेट क्लास) में सबसे ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद रखते हैं तो ज्यादातर लोगों की नजर में ऋण बाजार ही सबसे आगे है। करीब 43% फंड मैनेजरों की राय में इस साल के आने वाले महीनों में भारतीय ऋण बाजार से मिलने वाला फायदा भारतीय इक्विटी, सोना, कृषि कमोडिटी और वैश्विक शेयर बाजारों से ज्यादा रहेगा। तीन महीने पहले केवल 19% फंड मैनेजर ऐसा सोच रहे थे। उस समय भारतीय इक्विटी पर सबसे ज्यादा 63% लोगों ने दाँव लगाया था, लेकिन इस बार भारतीय इक्विटी में सबसे ज्यादा फायदा देखने वालों की संख्या घट कर 22% रह गयी है। सोने की कीमतों में हाल में जबरदस्त तेजी के बावजूद केवल 22% फंड मैनेजर इसे बाकी बचे महीनों के दौरान सबसे तेज संपत्ति वर्ग मान रहे हैं। कृषि कमोडिटी में सबसे ज्यादा फायदा देखने वाले 19% से घट कर 9% रह गये हैं। वहीं वैश्विक शेयर बाजारों में सबसे अच्छी बढ़त पहले भी केवल 6% फंड मैनेजर देख रहे थे, इस बार यह संख्या शून्य रह गयी।
ज्यादातर फंड मैनेजरों का मानना है कि साल 2011 के अंत तक भारतीय शेयर बाजार मौजूदा स्तरों से 10% ऊपर और नीचे के दायरे के अंदर ही रहेगा। केवल 17% के मुताबिक सेंसेक्स साल के बाकी बचे महीनों के दौरान 10% से ज्यादा बढ़त हासिल कर सकता है। शून्य से 10% तक की बढ़त देखने वालों की संख्या 39% है, जबकि शून्य से 10% तक की गिरावट की संभावना 43% लोगों को लग रही है। केवल 4% मानते हैं कि इस साल आने वाले महीनों के दौरान भारतीय बाजार 10% से भी ज्यादा गिर सकता है। भारतीय शेयर बाजार ले कर वैश्विक फंड मैनेजर भारतीय फंड मैनेजरों की तुलना में ज्यादा नकारात्मक नजरिया रख कर चल रहे हैं।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने मई 2011 में जो सर्वेक्षण किया था, वहाँ से बाजार करीब 10% गिर चुका है। लिहाजा अब बाजार के मूल्यांकन के बारे में फंड मैनेजरों की राय बदली है। मई में केवल 6% फंड मैनेजर भारतीय बाजार को सस्ता (अंडरवैल्यूड) मान रहे थे, अब 35% इसे सस्ता कह रहे हैं। बाजार को उचित मूल्यांकन पर मानने वालों की संख्या 81% से घट कर 57% रह गयी है। इसी तरह भारतीय बाजार को महँगा बताने वाले भी 13% से घट कर 9% रह गये हैं। कुल मिला कर यही लगता है कि इतनी गिरावट के बावजूद भारतीय बाजार को एकदम सस्ता मानने वाले फंड मैनेजरों की संख्या ज्यादा नहीं है। बहुमत अब भी इसे उचित मूल्यांकन पर ही मान रहा है।
अगले तीन महीनों की छोटी अवधि में बाजार की दिशा को लेकर आशंकाएँ कायम हैं। केवल 13% फंड मैनेजर ही तीन महीनों की अवधि में बाजार का रुख तेज मान रहे हैं। हालाँकि पिछली बार तो ऐसा सोचने वालों की संख्या शून्य थी। बाजार की दिशा उदासीन (न्यूट्रल) मानने वालों की संख्या 63% से घट कर 57% हो गयी है। इस तरह बहुमत अब भी बाजार की दिशा उदासीन देख रहा है। हालाँकि इससे यह सच भी सामने आता है कि बीते तीन महीनों के दौरान भारतीय बाजार ने बहुमत फंड मैनेजरों को निराश किया है। अगले तीन महीनों में भारतीय बाजार को कमजोर बताने वालों की संख्या 38% से घट कर 30% पर आ गयी है। कुल मिला कर यूरोप के संकट, कच्चे तेल की ऊँची कीमतों और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार की धीमी रफ्तार के चलते अधिकांश फंड मैनेजर उदासीन या नकारात्मक नजरिया अपना रहे हैं।
जहाँ तक भारतीय बाजार के लिए सबसे गंभीर वैश्विक जोखिम की बात है, 65% फंड मैनेजरों ने यूरोप के कर्ज संकट को बड़ा जोखिम माना है। करीब 43% फंड मैनेजर कच्चे तेल के भावों को लेकर चिंता में हैं। करीब 22% की चिंता अमेरिका में धीमी रफ्तार को लेकर है। चीन में आर्थिक धीमापन और भूराजनयिक स्थितियाँ चिंताओं की सूची में शामिल जरूर हैं, लेकिन काफी हल्के स्तर पर। इस सवाल के जवाब में फंड मैनेजरों ने एक साथ कई विकल्प भी चुने हैं।
अगर दिग्गज शेयरों और मँझोले शेयरों की तुलना की जाये तो पहले फंड मैनेजरों का स्पष्ट झुकाव दिग्गजों की ओर था। लेकिन ताजा सर्वेक्षण में हालत बदली है। पिछली बार 63% ने एक साल के नजरिये से दिग्गज शेयरों को ज्यादा पसंद किया था। ताजा सर्वेक्षण में 57% का ही झुकाव दिग्गजों की ओर है। दूसरी ओर 43% अब मँझोले शेयरों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। पहले यह संख्या 38% थी। इस तरह पलड़ा कुछ हद तक बराबरी की ओर जा रहा है।
फंड मैनेजरों के पसंदीदा क्षेत्रों में बीएफएसआई क्षेत्र सबसे आगे है। इसके बाद दवा (फार्मा) और एफएमसीजी जैसे रक्षात्मक क्षेत्रों को पसंद किया जा रहा है। दिलचस्प पहलू यह है कि अब टेलीकॉम क्षेत्र पसंदीदा क्षेत्रों की सूची में चौथे स्थान पर आ गया है। इस क्षेत्र के बारे में लोगों की राय बीते तीन महीनों में काफी बदली है। धातु (मेटल), वाहन (ऑटो) और तेल-गैस क्षेत्रों के बारे में भी फंड मैनेजरों की राय पहले से कुछ सकारात्मक हुई है। लेकिन आईटी और बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) / पूँजीगत वस्तु (कैपिटल गुड्स) को पसंदीदा क्षेत्रों की सूची में नीचे जाना पड़ा है। आईटी क्षेत्र को लेकर फंड मैनेजरों की राय ज्यादा बदली है।
अगर हम हाल में इक्विटी म्यूचुअल फंडों के प्रदर्शन पर नजर डालें तो यह साफ दिखता है कि साल भर की अवधि में रक्षात्मक (डिफेंसिव) क्षेत्रों पर खास जोर देने वाली योजनाओं ने निवेशकों को अच्छा लाभ दिया है। लेकिन बीते एक साल के दौरान नकारात्मक लाभ देने वाली इक्विटी म्यूचुअल फंड योजनाओं की संख्या 259 है। इसकी तुलना में केवल 53 योजनाओं ने फायदा दिया है। इसी दौरान, यानी ३1 अगस्त 2010 के बंद स्तर 17,971 से 30 अगस्त 2011 के बीच सेंसेक्स से गिर कर 16,677 पर आ गया, यानी इसमें ७.२0% की गिरावट आयी। अगर इस लिहाज से तुलना करें तो 114 म्यूचुअल फंड योजनाओं ने सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन किया, मतलब या तो उन्होंने बाजार में गिरावट के बावजूद फायदा दिया या उनकी गिरावट सेंसेक्स से कम रही। वहीं सेंसेक्स की गिरावट से भी ज्यादा कमजोर प्रदर्शन करने वाली म्यूचुअल फंड योजनाओं की संख्या 198 रही।
अगर हम 30 अगस्त 2011 को समाप्त छह महीनों की अवधि देखें तो इस दौरान सेंसेक्स 17823 से गिर कर 16,677 पर आया, यानी इसने छह महीनों में 6.43% की गिरावट झेली। इन छह महीनों में सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन करने वाली म्यूचुअल फंड योजनाओं की संख्या 217 रही। दूसरी ओर सेंसेक्स से भी ज्यादा गिरावट दिखाने वाली योजनाओं की संख्या 95 रही।
अगर हम बीते साल भर और बीते छह महीनों के इस प्रदर्शन की तुलना करें, तो ऐसा लगता है कि म्यूचुअल फंडों ने बीते छह महीनों में अपने-आपको सँभाला है। सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन करने वाले म्यूचुअल फंडों की संख्या साल भर के मुकाबले छह महीनों की अवधि में काफी ज्यादा है।
यह बात बीते तीन महीनों की अवधि में और खुल कर दिखती है। इन तीन महीनों में सेंसेक्स ने 9.87% की गिरावट झेली है। इससे बेहतर प्रदर्शन करने वाले इक्विटी म्यूचुअल फंडों की संख्या 260 है और केवल 52 योजनाओं का प्रदर्शन इससे खराब रहा है।
इन तीन महीनों में 34 म्यूचुअल फंड योजनाओं ने बाजार की गिरावट के बावजूद अपने निवेशकों को फायदा दिया है। इस लिहाज से यह कहना गलत नहीं होगा कि म्यूचुअल फंड मैनेजरों ने जनवरी 2011 के थपेड़ों से डगमगाये अपने-अपने जहाजों को काफी हद तक सँभाल लिया है। लेकिन एक बार फिर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर मंदी के जो बादल मँडरा रहे हैं, वे नये सिरे से बाजार में तूफान आने की चेतावनी दे रहे हैं।
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)