देवेन शर्मा :
अगर यह कहा जाये कि झारखंड की जमीन से जुड़ी दो शख्सियतों ने हाल में पूरी दुनिया को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। दोनों अलग-अलग क्षेत्रों के माहिर हैं। एक क्रिकेट में तो दूसरा अर्थ जगत में।
भारतीय क्रिकेटटीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने 36 साल बाद भारत को ताज दिलाने में अहम योगदान किया, तो देवेन शर्मा ने दुनिया पर राज करने वाली विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटा कर उसका मानो ताज छीन लिया। हालाँकि अब एक तरफ धोनी भी मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं और दूसरी तरफ देवेन शर्मा को भी अपने साहसिक फैसले के बाद पद छोडऩा पड़ा है।
जब अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग एएए से घटा कर एए प्लस करने का फैसला किया, उस समय देवेन शर्मा ही इसके प्रेसिडेंट थे। उनके इस फैसले से जहाँ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में भूचाल आ गया, वहीं अमेरिकी प्रशासन की नींदें उड़ गयीं। एसएंडपी के इस फैसले के बाद अमेरिकी सरकार ने काफी नाराजगी दिखायी। देवेन शर्मा की हर तरफ आलोचना होने लगी, लेकिन वे अपने फैसले पर अटल रहे। इसका खमियाजा उन्हें तीन हफ्ते के अंदर ही भुगतना पड़ा।
उन्हें एसएंडपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालाँकि स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की मूल कंपनी मैकग्रा-हिल की रणनीतिक समीक्षा में सहयोग के लिए वे इस वर्ष के अंत तक मैकग्रा-हिल में बने रहेंगे। शर्मा की जगह सिटीबैंक के सीओओ डगलस पीटरसन को कंपनी का नया प्रेसिडेंट अध्यक्ष बनाया गया है।
इससे पहले स्टैंडर्ड एंड पुअर्स सहित अन्य के्रडिट रेटिंग एजेंसियों को आलोचनाएँ झेलनी पड़ी थीं, जब वर्ष 2008 में सबप्राइम संकट में इनकी भूमिका पर अंगुलियाँ उठी थीं। इसके बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कड़े शब्दों में चेतावनी दी थी कि अमेरिका को मंदी से उबरने की राह में कोई व्यवधान नहीं डाल सकता है। लेकिन देवेन शर्मा या तो इस चेतावनी को समझ नहीं पाये या इसे उन्होंने खास तवज्जो नहीं दी। रेटिंग घटाने के बाद अमेरिका के वित्त मंत्रालय (ट्रेजरी विभाग) ने आरोप लगाया कि एसएंडपी ने अमेरिका के दूरगामी प्रभाव को कम करके आंका और इसीलिए उसने ऋण में 2 खरब डॉलर की कमी लाने की बात कही।
एसएंडपी ने जब अमेरिकी रेटिंग घटायी तो दुनिया के तमाम शेयर बाजार गोते लगाने लगे और कच्चे तेल की कीमत लगातार गिरने लगी। लोग शेयरों में निवेश के बजाय सोने को निवेश का सुरक्षित जरिया मानने लगे, जिससे सोने की कीमत में भी जबरदस्त तेजी आ गया। इसके बावजूद शर्मा ने अपने विश्लेषकों का ही साथ दिया।
झारखंड में काले हीरे यानी कोयले के लिए प्रसिद्ध शहर धनबाद में वर्ष 1956 में जन्मे देवेन शर्मा की स्कूली शिक्षा धनबाद, रांची और जमशेदपुर में हुई। इसके बाद उन्होंने 1977 में बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा (रांची) से स्नातक और फिर यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉनसिन से मास्टर डिग्री ली। देवेन शर्मा के पिता आर. एन. शर्मा कोल इंडिया की सहयोगी कंपनी सीसीएल के अधिकारी थे। उच्च शिक्षा पाने की लगन और कड़ी मेहनत से उन्होंने वर्ष 1987 में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट की डॉक्टर डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के प्रेसिडेंट पद पर उनका कार्यकाल करीब चार साल चला। इससे पहले उन्होंने कई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों, भारत की बड़ी क्रेडिट रेटिंग कंपनी क्रिसिल, ड्रेसर इंडस्ट्रीज और एंडरसन स्ट्रेथक्लाइड में भी अपनी सेवाएँ दी। बूज एलेन हेमिल्टन में उन्होंने 14 वर्षों तक काम किया और अपनी रणनीति, संचालन क्षमता, सेल्स-मार्केटिंग में अपनी दक्षता का लोहा मनवाया।
एसएंडपी के वाइस-प्रेसिडेंट बनने से पहले जनवरी 2002 से अक्तूबर 2006 तक वह इसकी मूल कंपनी मैकग्रा-हिल कंपनीज इंक. के एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट रहे। अगस्त 2007 में उन्हें एसएंडपी का प्रेसिडेंट नामित किया गया। शर्मा विश्व के दिग्गज वित्तीय संस्थानों में प्रमुख पद संभालने वाली भारतीय मूल की हस्तियों की उस श्रृंखला का ही एक प्रमुख कड़ी हैं जिसमें विक्रम पंडित, अंशु जैन आदि नाम शामिल हैं।
हालाँकि देवेन शर्मा के फैसले से अमेरिकी अर्थव्यवस्था और स्टैंडर्ड एंड पुअर्स दोनों की साख दाँव पर लग गयी है। शर्मा एसएंडपी के विश्लेषण को सही ठहराते हुए ही यह मानते हैं कि अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया जायज है, क्योंकि रेटिंग घटने के बाद किसी भी देश या कंपनी की प्रतिक्रिया इसी तरह की हो सकती है।
शर्मा ने याद दिलाया कि जब एसएंडपी ने जापान की रेटिंग घटायी थी तो उस समय वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। आज जापान पर उसके कुल जीडीपी का दोगुना कर्ज है। शर्मा को भरोसा है कि अमेरिका के बारे में भी उनकी रेटिंग आने वाले वक्त में सही साबित होगी। उनका दावा रहा है कि एसएंडपी की क्रेडिट रेटिंग दूरदर्शी है और इसे निवेशकों के हित के लिए ही दूरदर्शी बनाया जाता है ताकि वे भविष्य के जोखिमों को परख सकें।
दूसरी तरफ अमेरिकी प्रशासन ने इस रेटिंग को खारिज करते हुए कहा है कि इससे पहले भी कई क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की भविष्यवाणियाँ गलत साबित हुई हैं। इन एजेंसियों ने 2008 में जिन कंपनियों की रेटिंग में सुधार दिखाया, वैसी कई कंपनियाँ डूब गयीं और जिनकी रेटिंग घटायी गयी थी, वैसी कई कंपनियाँ आज अच्छा-खासा मुनाफा कमा कर बाजार में जम कर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं।
बहरहाल, अमेरिका की रेटिंग घटाकर शर्मा ने जहाँ अमेरिकी अर्थव्यवस्था की साख पर सवालिया निशान लगा दिया, वहीं निवेशकों का चैन इससे छिन गया। बेशक इस रेटिंग का असर लंबी अवधि के निवेश पर पड़ता है। लेकिन छोटी अवधि के निवेशक भी इससे काफी हताश हुए क्योंकि पिछले 5 अगस्त को सामने आये इस फैसले के बाद दुनिया भर के शेयर बाजार लगातार गिरते नजर आये।
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)