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एसएंडपी की शह अमेरिकी साख पर सवाल

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Category: सितंबर 2011

आर.आर. वर्मा :

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की एएए रेटिंग को घटा कर एए प्लस करने का जो फैसला किया, उससे अचानक ही देशों की रेटिंग (साख) पर जबरदस्त चर्चा छिड़ गयी। आखिर अमेरिका की रेटिंग में कमी की नौबत क्यों आयी और इसका मतलब क्या है?

एक तरह से यह कहा जा सकता है कि अमेेरिकी अर्थव्यवस्था अभी पूरी तरह से कर्ज पर चल रही है। अमेरिकी सरकार पर कर्ज का बोझ 15 हजार अरब डॉलर तक पहुँच गया है, जिसमें करीब 4,500 अरब डॉलर विदेशी कर्ज है। अमेरिका को कर्ज देने वाले देशों में भारत का स्थान 14वाँ है। चीन ने इसे सबसे ज्यादा 1.15 अरब डॉलर का कर्ज दिया है। अमेरिका ने अपनी आर्थिक नीति के तहत कर्ज लेने की एक सीमा तय की थी, लेकिन खराब हालात में उसने मजबूरन इस सीमा को आगे बढ़ाने का फैसला करना पड़ा।
एसएंडपी ने अमेरिका से साफ कहा था कि उसे न सिर्फ कर्ज की सीमा बढ़ानी होगी, बल्कि अगले एक दशक में अपने खर्च में कम-से-कम 40 खरब डॉलर की कमी लाने की एक योजना पेश करनी होगी। एसएंडपी ने ऐसा नहीं होने पर अगले तीन महीनों में ही इसकी रेटिंग में और कटौती किये जाने की भी संभावना जतायी है। इस चेतावनी के बाद से ही अमेरिकी डॉलर का मूल्य कम होने लगा है।
दुनिया की तीन सबसे बड़ी रेटिंग एजेंसियों में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, फिच और मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विसेज का नाम लिया जाता है। मूडीज ने 1909 में, एसएंडपी ने 1923 में और फिच ने 1927 में कारोबार शुरू किया था। अमेरिका में इन तीन रेटिंग एजेंसियों से पुरानी केवल एक एजेंसी ए.एम. बेस्ट है, जो केवल बीमा कंपनियों की रेटिंग करती है।
हालाँकि स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की नींव 1923 से भी काफी पहले 1860 में हेनरी पुअर ने रखी थी। पुअर ने अमेरिका में नहर और रेल नेटवर्क के विकास का इतिहास लिखा था। इसने 1923 में कॉर्पोरेट बांडों और नगरपालिकाओं के प्रपत्रों (म्युनिसिपल सिक्योरिटीज) की रेटिंग शुरू की। बाद में कंपनियों की वित्तीय जाँच करने वाले स्टैंडर्ड स्टैटस्टिक ब्यूरो का 1940 में विलय होने से इस एजेंसी का नाम स्टैंडर्ड एंड पुअर्स पड़ा। विश्व के रेटिंग कारोबार का करीब 40% हिस्सा स्टैंडर्ड एंड पुअर्स और मूडीज के पास ही है।
एसएंडपी के ताजा आकलन से अमेरिकी निवेशकों को गहरा झटका लगा। जब भी कंपनियों और देशों की रेटिंग कम होती है तो निवेशक वहाँ से हाथ खींचना शुरू कर देते हैं। इन एजेंसियों का काम किसी कर्जदार देश या कंपनी की कर्ज चुकाने की क्षमता का मूल्यांकन करना और द्वितीयक (सेकेंडरी) बाजार में कर्ज अनुबंधों का कारोबार करने वालों को मदद करना है।
ये एजेंसियाँ निश्चित प्रकार के कर्ज जारी करने वाली संस्थाओं और ऋण-पत्रों (डेब्ट इंस्ट्रुमेंट) की रेटिंग या साख का निर्धारण करती हैं। क्रेडिट रेटिंग संस्थाएँ निवेशकों को यह बताती हैं कि कहाँ निवेश करना उनके लिए ज्यादा सुरक्षित है और कहाँ उन्हें ज्यादा जोखिम उठाना पड़ सकता है। इससे आम तौर पर बाजार की कुशलता बढ़ जाती है। साथ ही उधार लेने और देने वाले, दोनों के लिए लागत घट जाती है। उन्हें वही सारी खोजबीन से खुद नहीं गुजरना पड़ता, जिसके बाद एजेंसियाँ रेटिंग जारी करती हैं। 
क्या है किसी रेटिंग का मतलब
हालाँकि विभिन्न रेटिंग एजेंसियों के पैमाने अलग-अलग होते हैं। लेकिन तीनों ही प्रमुख रेटिंग एजेंसियों की सर्वोत्तम रेटिंग एएए है। सिके ठीक बाद की रेटिंग एसएंडपी और फिच के मुताबिक एए प्लस है, जबकि मूडीज अपनी उसी स्तर की रेटिंग को एए1 कहती है। एए प्लस से ठीक नीचे एए रेटिंग और उसके नीचे एए माइनस रेटिंग दी जाती है। हालाँकि एए प्लस से एए माइनस तक की रेटिंग को उच्च रेटिंग ही माना जाता है। 
इसके बाद ए प्लस, ए और ए माइनस को उच्च-मध्यम रेटिंग माना जाता है। निम्न मध्यम रेटिंग में बीबीबी प्लस, बीबीबी और बीबीबी माइनस को गिना जाता है। अगर रेटिंग में केवल दो ही बार बी लिखा हो तो रेटिंग और नीचे चली जाती है। बीबी प्लस और बीबी रेटिंग को निवेश लायक नहीं माना जाता, जबकि बीबी माइनस को सटोरिया श्रेणी में रखा जाता है, जिसका मतलब यह है कि उसमें निवेश करना सट्टा लगाने के बराबर है। अगर जोखिम और ज्यादा हो गया, तो रेटिंग से एक और बी कट जाता है। अगर रेटिंग सी से शुरू हो रही है, फिर तो इसका सीधा मतलब यह निकलता है कि ऐसी जगह निवेश करना बेहद जोखिम भरा हो सकता है।
क्रेडिट रेटिंग के पैमाने पर प्रमुख देश
तकरीबन सभी रेटिंग एजेंसियाँ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को काफी मजबूत मान कर उसे एएए रेटिंग देती रही हैं। अब भी तीनों बड़ी एजेंसियों में केवल एसएंडपी ने ही अमेरिका की रेटिंग घटा कर एए प्लस की है, मूडीज और फिच ने अमेरिका की एएए रेटिंग कायम रखी है। एए प्लस की रेटिंग भी अपने-आप में काफी अच्छी ही है, लेकिन हाँ इसके साथ सर्वोत्तम का तमगा नहीं है।
अपने गंभीर आर्थिक संकट के बावजूद यूरोप के कई देशों को अब तक एएए रेटिंग मिली हुई है। यूके, जर्मनी और फ्रांस तीनों ही देशों को तीनों बड़ी रेटिंग एजेंसियों ने एएए रेटिंग ही दे रखी है। इटली की अर्थव्यवस्था यूरोप में तीसरी सबसे बड़ी है। हाल में ऐसी खबरें आती रही हैं कि इटली अब यूरोप के कर्ज संकट के केंद्र में आ चुका है। इसके बावजूद इटली की मूडीज रेटिंग एए2 यानी उच्च स्तर की है। फिच ने इसे थोड़ा नीचे, लेकि उच्च स्तर की ही एए माइनस रेटिंग दे रखी है। एसएंडपी ने इसे ए प्लस रेटिंग दी है, जो उच्च मध्यम श्रेणी में है।
भारत के मामले में तीनों ही बड़ी एजेंसियाँ काफी कंजूस रही हैं। भारत को एसएंडपी और फिच ने बीबीबी माइनस रेटिंग दी है, जो निम्न मध्यम श्रेणी में भी सबसे निचली रेटिंग है। मूडीज ने भी भारत को उसी के बराबर बीएए3 रेटिंग दी है।
कर्ज संकट में गले तक डूबे स्पेन और पुर्तगाल तक की रेटिंग भारत से बेहतर है। स्पेन को फिच ने एए प्लस यानी उच्च स्तर की रेटिंग दी है। इसे एसएंडपी की ओर से भी एए यानी उच्च स्तर की ही रेटिंग मिली है। मूडीज ने स्पेन को उच्च मध्यम स्तर की ए2 रेटिंग दी है, लेकिन उसकी रेटिंग में भी भारत स्पेन से चार पायदान नीचे है। 
एसएंडपी ने चीन को भी एए माइनस रेटिंग दे कर स्पेन से एक पायदान नीचे रखा है। फिच की रेटिंग में भी चीन ए प्लस दर्जे के साथ स्पेन से तीन पायदान नीचे है।
साख की पहेली
रेटिंग निर्धारण
एएए           सबसे मजबूत और लंबे समय तक वायदे पूरे करने में सक्षम
एए             प्लस जल्दी ही स्थिति में सुधार होने की संभावना और वायदों को पूरा करने में सक्षम
ए              वायदे पूरे करने में सक्षम, लेकिन प्रतिकूल हालात में आर्थिक स्थिति प्रभावित होने की संभावना
बीबीबी       वायदों को पूरा करने की क्षमता, लेकिन प्रतिकूल परिस्थितियों में आर्थिक हालात नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की ज्यादा संभावना
सीसी         वर्तमान में आर्थिक रूप से बेहद कमजोर, अर्थव्यवस्था पर संकट
डी             उधार लौटाने में असफल, अर्थव्यवस्था नाकाम
(निवेश मंथन, सितंबर 2011)

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