पी एन विजय
बाजार में इस समय काफी घबराहट है, लोग किसी बड़ी गिरावट की आशंका से सहमे हुए हैं। क्या आप ऐसी किसी बड़ी गिरावट का अंदेशा महसूस कर रहे हैं?
—मैं बाजार के इस डर से सहमत हूँ कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने इस समय कई बड़े मुद्दे हैं। लेकिन मैं इस डर से सहमत नहीं हूँ कि बाजार यहाँ से काफी
ज्यादा गिर सकता है।
काफी ज्यादा से आपका क्या मतलब है?
—इस समय निफ्टी 5300 के आसपास के स्तरों पर है। पिछले साल नवंबर में यह 6300 के कुछ ऊपर तक गया था। वहाँ से यह करीब 1000 अंक यानी लगभग
16% गिर चुका है। यह गिरावट अपने-आप में काफी बड़ी है। अब यह और 1-2% गिर सकता है, इससे ज्यादा नहीं। इसका कारण यह है कि दिसंबर 2010 के अंत
से अब तक अमेरिका का एसएंडपी 500 सूचकांक करीब 10% बढ़ चुका है, जबकि हमारा बाजार 15% नीचे जा चुका है।
इस तरह अमेरिकी बाजार की तुलना में भारतीय बाजार पहले ही काफी कमजोरी दिखा चुका है। इस तुलनात्मक कमजोरी का कारण ऊँची महँगाई दर, उसके कारण
ऊँची ब्याज दरें, उसके कारण विकास दर में धीमापन और कंपनियों के मुनाफे में कमी का डर है। लोग इस चक्र से डर रहे हैं। लेकिन यह चक्र लगभग पूरा हो चुका
है। जो नुकसान होना था, वह बीती तिमाही में हो चुका है।
लेकिन जो नकारात्मक बातें भारतीय अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचा रही थीं, उनका असर बाजार के मौजूदा स्तरों में पहले से ही दिख रहा है। आगे चल कर भारत फिर
से (विश्व के दूसरे बाजारों की तुलना में) बेहतर प्रदर्शन करना शुरू करेगा। अगर 8% विकास दर मान कर चलें तो यह दर काफी अच्छी है।
यानी आपके हिसाब से 1-2% से ज्यादा और गिरावट की आशंका नहीं है।
—मैं निफ्टी को 5200-5250 से ज्यादा नीचे फिसलते नहीं देख रहा।
कई जानकार ऐसी ही बात कह रहे हैं। लेकिन अगर उनसे पूछें कि क्या आप इन स्तरों पर खरीदारी के लिए तैयार हैं, तो वे कहते हैं कि यह माहौल खरीदारी शुरू
करने लायक नहीं है। अगर केवल 1-2% और गिरावट का ही डर है, तो लोग खरीदारी से हिचक क्यों रहे हैं?
—वे गलत हैं, वे लंबे समय का नजरिया नहीं ले रहे हैं। शेयर बाजार में निवेश करना कारोबारी सौदे करने से अलग है। निवेश करते समय आपका मकसद अपने
लिए संपदा (वेल्थ) बनाना होता है। यह काम कैसे होगा? पहले आप एक अच्छी संपत्ति पहचानते हैं, फिर उसे एक उचित भाव पर खरीदते हैं और फिर उसे आप
अपने पास कुछ समय तक रखे रहते हैं। जमीन खरीदने में भी ऐसा ही होता है, और बाकी संपत्तियों में भी यही बात सच है। लेकिन कारोबारी सौदों में आप केवल
यह सोचते हैं कि अगले कुछ दिनों में क्या होने वाला है।
अगर आप एक निवेशक हैं तो आप बड़े मुनाफे की बात सोचते हैं। बड़े मुनाफे का मतलब यह है कि आपका पैसा 3 साल में दोगुना हो जाये। ऐसे निवेशक के लिए
खरीद भाव में 1-2% का फर्क मायने नहीं रखता।
आप यह देखें कि बाजार काफी गिरा है और कुछ शेयर उससे भी कहीं ज्यादा गिरे हैं। आपको ऐसे शेयर चुनने होंगे, जिनमें गिरावट इतनी ज्यादा हो चुकी है कि वे
आकर्षक मूल्यांकन पर मिल रहे हैं। आखिरकार आप बाजार नहीं खरीदते हैं, आप शेयर खरीदते हैं। हमने अपना पैमाना बना रखा है। हम ऐसे शेयरों पर नजर डालते
हैं, जिनका मुनाफा अगले 3 साल तक कम-से-कम 15-20% बढऩे वाला हो। हम बुनियादी रूप से मजबूत ऐसे शेयर खरीदते हैं, जिनकी काफी पिटाई हो गयी हो।
अभी आपका अनुमान यह है कि निफ्टी को 5200 के नीचे नहीं जाना चाहिए। लेकिन अगर यह इसके नीचे चला जाये, तो क्या आप यह सोचेंगे कि कहीं कुछ
गड़बड़ है जो अभी सामने नहीं दिख रहा?
—मैं इतनी जल्दी कोई नतीजा नहीं निकालना चाहूँगा। बाजार में दो शक्तियाँ काम करती हैं। पहली शक्ति है बुनियादी बातें, जिसमें लोग अर्थव्यवस्था पर नजर डालते
हैं, मूल्यांकन देखते हैं और तय करते हैं कि उचित मूल्यांकन क्या है। मान लें कि किसी शेयर का उचित मूल्यांकन 100 है। लेकिन बाजार में भावनाएँ भी काम
करती हैं, जिनके चलते उत्साह की स्थिति में यह 120 पर भी जा सकता है और निराशा की हालत में 80 पर भी।
अभी बुनियादी रूप से भारतीय बाजार आकर्षक हो गया है। जितनी भी नकारात्मक बातें हैं, वह सब इसके मौजूदा भावों में आ चुकी हैं। यह संभव है कि भावनाओं
के कारण, एफआईआई की बिकवाली के कारण या बड़े स्तर पर बिकवाली (शॉर्ट सेलिंग) सौदों के कारण 5200 तक गिरावट हो सकती है। लेकिन इसके नीचे जाने
के लिए कोई बुनियादी कारण होना चाहिए और अभी मैं इस तरह का कोई बुनियादी कारण नहीं देख रहा।
लेकिन अगर ऐसा हो जाता है तो क्या आप अपनी रणनीति और बुनियादी पहलुओं के अपने विश्लेषण पर दोबारा सोचना पड़ेगा?
—मेरे हिसाब से 5200 के स्तर पर सारी नकारात्मक बातें बाजार भावों में शामिल होंगी और वहाँ से इसे वापस उछलना चाहिए। लेकिन अगर निफ्टी इसके नीचे
चला जाये, तो क्या होगा? मैं एक बुनियादी विश्लेषक हूँ और दो बातों पर विचार करता हूँ। पहला यह कि घरेलू कारक क्या-क्या हैं। तो मैं यह सोचूँगा कि क्या घरेलू
स्थितियाँ और बिगडऩे जा रही हैं? क्या विकास दर 7.5% से भी नीचे जाने की संभावना बन रही है?
दूसरे, मैं यह सवाल करूँगा कि क्या मैं विश्व अर्थव्यवस्था की नकारात्मक बातों को पूरा महत्व नहीं दे रहा हूँ? क्या ऐसी संभावना बन रही है कि अब इटली की भी
रेटिंग घटे, या ब्रिटेन के बैंकों की रेटिंग घटायी जाये, या अमेरिका में दोहरी मंदी (डबल डिप रिसेशन) आ जाये। हमें देखना पड़ेगा कि अब तक स्थितियों का जो
आकलन हमने किया था, उसमें कोई चूक तो नहीं है।
लेकिन इस समय अनुमान में थोड़ी-बहुत गलती की संभावना को अगर छोड़ दें, तो मोटे तौर पर बाजार ने सारी नकारात्मक बातों का असर देख लिया है। शेयरों के
मूल्यांकन ऐसे आकर्षक स्तर पर आ चुके हैं कि सस्ते शेयरों को चुना जाये।
क्या मौजूदा समय की तुलना जनवरी-मार्च 2009 से की जा सकती है? उस समय भी बाजार में इसी तरह से एकदम नकारात्मक धारणा बनी हुई थी। ज्यादातर
लोग तब भी कह रहे थे कि यह नयी खरीदारी के लिए ठीक समय नहीं है, लेकिन हम सब जानते हैं कि उसके बाद बाजार कितनी तेजी से आगे बढ़ा। क्या बाजार
उसी इतिहास को दोहरा सकता है?
—बाजार इतिहास को वैसी ही तेजी के साथ नहीं दोहरायेगा, क्योंकि इससे पहले की गिरावट उस समय के जैसी नहीं रही है। आज अनुमान है कि 2011-12 में
सेंसेक्स की प्रति शेयर आय (ईपीएस) 1400-1450 के आसपास होगी। मतलब हम अभी एक साल आगे के अनुमानों से 13-14 के पीई अनुपात पर चल रहे हैं।
लेकिन मार्च 2009 में हम 10.5-11 के पीई पर आ गये थे। वह सचमुच ललचाने वाली स्थिति थी।
स्थितियाँ कुछ हद तक एक जैसी हैं, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था उस समय की तुलना में काफी बेहतर हालत में है। मार्च 2009 में अमेरिका और यूरोप की
अर्थव्यवस्थाएँ एकदम टूटी-फूटी हालत में थीं। लेकिन आज देशों की वित्तीय स्थिति पहले से काफी बेहतर है।
बेशक, यह राहत देने वाली बात है कि विश्व अर्थव्यवस्था में आज काफी स्थिरता आ गयी है। लेकिन कई लोग इसी बात से डर रहे हैं। उन्हें अंदेशा है कि अगर विश्व
अर्थव्यवस्था सुधर रही है तो विदेशी निवेशक भारत से अपना निवेश निकाल कर उसे अमेरिका और यूरोप जैसी जगहों पर लगायेंगे।
—ऐसा होता हुआ पहले से ही दिख रहा है। भारत और चीन जैसे उभरते बाजारों में 2010 के दौरान बहुत साफ तरीके से तेज विकास दिख रहा था। संदेह था तो
केवल इतना कि हम 8% बढ़ेंगे या 9% की दर से। उभरते बाजारों की ओर काफी निवेश आया, क्योंकि विकास दर अच्छी थी और मुद्रा (करंसी) बाजार स्थिर था।
अब लोगों को भरोसा है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) में भी स्थिति सँभल रही है। लिहाजा अब निवेश की धारा उल्टी हो गयी है। ऐसा नहीं है कि लोग
उभरते बाजारों को पसंद नहीं कर रहे। लेकिन खुद अपने बाजारों में उनका निवेश काफी हल्का हो गया है।
एमएससीआई के वैश्विक सूचकांक को देखें तो उसमें उभरते बाजारों की हिस्सेदारी लगभग 30% बैठती है। अगर वैश्विक निवेशक इस 30% निवेश में से 5% हिस्सा
भी उभरते बाजारों से हटा कर दूसरे बाजारों में ले जायें, यह 30% घट कर 25% रह जाये, तो उसका हमारे ऊपर काफी बड़ा असर होता है।
उभरते बाजारों से निवेश निकलता हुआ हम देख चुके हैं। खास कर दिसंबर 2010 के बाद जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर काफी अच्छी आयी, जब जर्मनी
में औद्योगिक उत्पादन के अच्छे आँकड़े आये तो यह हुआ।
लेकिन अब स्थिति फिर से बदल रही है। अमेरिकी-यूरोपीय बाजारों में फिर से झटके लगने लगे हैं। वहीं भारत ब्याज दरें बढ़ाने के चक्र के अंतिम दौर में है। यहाँ
महँगाई दर का ग्राफ अब सपाट होने लगा है और धीरे-धीरे नीचे आ रहा है। हालाँकि यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या विकास दर उतनी अच्छी रह सकेगी
जितना अनुमान पहले लगाया जा रहा था। इन सब बातों को ध्यान में रख कर वैश्विक निवेशक पोर्टफोलिओ में फेरबदल कर रहे हैं।
अगर बाकी सारी स्थितियाँ आज की तरह ही रहें, लेकिन वैश्विक निवेशक उभरते बाजारों से पैसा निकाल कर अमेरिकी-यूरोपीय बाजारों में ले जाना 4-6 महीनों तक
जारी रखें, तो भारतीय बाजार को इससे कितना नुकसान हो सकता है?
—इससे काफी नुकसान हो सकता है। भारतीय बाजार में नकदी की उपलब्धता (लिक्वडिटी) काफी हद तक विदेशी निवेशकों पर निर्भर करती है। घरेलू संस्थाएँ और
म्यूचुअल फंड बाजार को ज्यादा सहारा नहीं दे रहे हैं, चाहे उसका जो भी कारण हो। यूलिप में आये बदलावों के बाद बीमा कंपनियाँ भी खरीदारी करने वाली बड़ी
ताकत नहीं रह गयी हैं। उनकी 2010-11 में कुल खरीदारी 2009-10 की तुलना में काफी कम रही है। इसलिए एफआईआई की खरीदारी या बिकवाली का असर
भारतीय बाजार पर पहले से ज्यादा हो रहा है। उसका (बाकी लोगों पर) मनोवैज्ञानिक असर तो होता ही है। इसलिए अगर उभरती अर्थव्यस्थाओं (इमर्जिंग मार्केट्स)
के शेयर बाजारों से पैसा निकाल कर उसे विकसित देशों के शेयर बाजारों में ले जाने का रुझान जारी रहा तो भारत पर इसका असर जरूर होगा।
भारतीय बाजार में एफआईआई जल्दी खरीदार नहीं बने तो और कितना नुकसान हो सकता है?
—यह अनुमान तकनीकी विश्लेषक ज्यादा बेहतर तरीके से लगा सकते हैं।
लेकिन क्या यह एक पर्याप्त कारण होगा निफ्टी के 4800 के आसपास तक फिसलने के लिए?
—बिल्कुल। अगर अगले 5-6 महीनों तक एफआईआई बिकवाली करते रहे तो निफ्टी के वहाँ तक गिरने में मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।
लेकिन मेरा तर्क यह है कि अगर मैं एक एफआईआई हूँ तो मेरा किसी देश-स्थान या शेयर से खास लगाव नहीं है, मुझे केवल यह देखना है कि कहाँ कितना फायदा
मिलेगा। तो मैं भारत की तुलना करूँगा। यहाँ अगर 7-8% महँगाई दर और 8-8.5% विकास दर है तो इसका मतलब 15-16% की कुल बढ़ोतरी है। यह बढ़त विश्व में
सबसे ज्यादा है, चीन से भी ज्यादा। चीन में विकास दर 10% है तो महँगाई दर 4% है। तो अगर मेरे सामने एक ऐसा बाजार है जहाँ अर्थव्यवस्था 15-16% की दर
से बढ़ रही है तो मैं उसे छोड़ कर क्यों जाऊँगा? मैं कोई बेवकूफ नहीं हूँ! मैं वहीं जाना चाहूँगा जहाँ विकास दिखता है। पैसे का कोई रंग नहीं होता, उसका कोई
विचार नहीं होता, उसे बस अपनी जगह खोजनी होती है।
मेरा मानना है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे और मजबूत होती है, चाहे वह महँगाई पर नियंत्रण की बात हो या विकास दर की या कंपनियों के मुनाफे
की, तो वैसी हालत में एफआईआई का पैसा बाहर नहीं जायेगा। मेरा अनुभव यह बताता है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक रुझान बना रहता है तो वे
ऋण (डेट) और इक्विटी में से इक्विटी में अधिक पैसा लगायेंगे। वे इन्फोसिस बेच कर माइक्रोसॉफ्ट खरीदने का काम नहीं करेंगे। अगर इन्फोसिस अच्छा प्रदर्शन कर
रही है, तो वे अमेरिकी ट्रेजरी निवेश बेच कर माइक्रोसॉफ्ट खरीदेंगे, और इन्फोसिस रखे रहेंगे।
हम भी फंड मैनेजर का काम करते हैं। हम फंड मैनेजर केवल इक्विटी यानी शेयर बाजार में निवेश नहीं करते हैं। हमारे सामने कमोडिटी और ऋण (डेट) के भी
विकल्प रहते हैं। अगर हम लंबी अवधि के निवेशक हैं तो हम कभी ऐसे किसी बाजार को छोड़ नहीं देते, जहाँ अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही हो।
आप यह मान रहे हैं कि एफआईआई की बिकवाली जारी रही तो निफ्टी 4800 तक फिसलने में आपको अचरज नहीं होगा। लेकिन आप यह भी कह रहे हैं कि
निफ्टी के 5200 के नीचे जाने की संभावना नहीं लग रही है। तो क्या आप यह मान रहे हैं कि निकट भविष्य में एफआईआई की खरीदारी फिर शुरू हो जायेगी?
—हाँ। मुझे निफ्टी 5200 के नीचे नहीं जाने का भरोसा मूल्यांकन की वजह से है। आखिरकार आप कोई शेयर तब खरीदते हैं, जब वह आकर्षक मूल्यांकन पर मिल
रहा हो। सारा बुनियादी और तकनीकी विश्लेषण आखिरकार मूल्यांकन पर आ कर टिक जाता है।
इन स्तरों पर अगर भारतीय अर्थव्यवस्था सुधार के लक्षण दिखाये, यह कुछ परेशानियों से बाहर निकलती दिखे और करीब आधी कंपनियाँ भी अच्छा प्रदर्शन करती
रहें तो वे बाहर नहीं जायेंगे। शायद वे बड़े स्तर पर खरीदारी न करें, लेकिन वे बेचेंगे भी नहीं। बुनियादी रूप से इतना ही काफी होगा। निफ्टी 5200 के नीचे नहीं
जाने का मेरा भरोसा मूल्यांकन पर ही टिका है। जब भी बाजार इस तरह से पिटता है, जैसे अभी पिटा हुआ है, तो यह खरीदारों को लुभाता है। यह ठीक वैसे ही है,
जैसे पानी अपना स्तर तलाश लेता है।
चौथी तिमाही के लगभग सारे प्रमुख नतीजे आ चुके हैं। बाजार इन नतीजों से खुश नहीं दिखा। आप कैसे देख रहे हैं इन नतीजों को?
—चौथी तिमाही (हाल के समय में) भारतीय उद्योग जगत के लिए सबसे बुरी तिमाही रही है। कंपनियों को 2 कारणों से झटका लगा। कमोडिटी के भाव काफी ऊँचे हो
गये। भारत कमोडिटी का आयात करने वाला देश है, चाहे बेस मेटल हो या कच्चा तेल या कोई और कमोडिटी। इसलिए जो कंपनियाँ कमोडिटी का उपयोग करके
घरेलू बाजार के लिए अपने सामान बनाती हैं, उन पर असर पड़ा। साथ-साथ ऊँची महँगाई की वजह से याज दरें बढ़ गयीं। इसके चलते जो भी क्षेत्र कर्ज के आधार
पर पैदा मांग की वजह से बढ़ रहे थे, उन पर असर पड़ा।
मुझे लगता है कि यह दोहरी मार अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है। ऐसा नहीं है कि कंपनियों को अपने उत्पादों के लिए ज्यादा कीमत मिलने लगी है। लेकिन
कमोडिटी के भावों और ब्याज दरों का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है। बाजार में हमेशा एक चक्र होता है। जब कमोडिटी के भाव बढऩे लगते हैं तो कमोडिटी का
उत्पादन करने वाले देशों को फायदा होता है, और कमोडिटी खरीदने वाले देशों पर बुरा असर पड़ता है। यह असर ऐसे स्तर तक चला जाता है कि कमोडिटी की मांग
घटनी शुरू हो जाती है। तब कमोडिटी के भाव फिर से टूटते हैं। उस दौर में कमोडिटी खरीदने वाले फायदे में रहते हैं। मेरे विचार से हम अब ऐसे दौर में हैं, जहाँ
कमोडिटी की कीमतें नरम पड़ रही हैं।
मई की शुरुआत में आपको यह उम्मीद थी कि महीने के अंत तक निफ्टी को 5650-5700 के स्तरों तक जाना चाहिए। लेकिन बाजार ने इससे अलग चाल पकड़
ली। इस गिरावट के दौरान आपकी रणनीति क्या रही, आपने अपने पोर्टफोलिओ में किस तरह के बदलाव किये?
—हमने इस दौरान हर गिरावट पर खरीदारी की। हमने ऐसे शेयरों पर ध्यान दिया, जहाँ कंपनी के प्रदर्शन पर बाजार ने हद से ज्यादा नकारात्मक प्रतिक्रिया दी। यह
महीना इस मायने में कुछ असामान्य रहा कि इस दौरान बाजार ने नतीजों पर काफी जोर से प्रतिक्रिया दी। अगर किसी कंपनी के नतीजे बाजार की उम्मीद से जरा
भी कम रहे तो वह शेयर 20% टूट गया। अगर नतीजे अनुमान से थोड़े बेहतर रहे तो शेयर उछल गया। हमने इसमें अपने लिए मौके देखे। जैसे कुछ बैंक या ऑटो
शेयरों की बात करें तो जितनी बड़ी गिरावट आयी वह उचित नहीं कही जा सकती। भले ही निफ्टी 5200 के ऊपर रह जाये, लेकिन शेयरों में तो कहीं ज्यादा गिरावट
आ चुकी है।
हम यह देख रहे हैं कि एक शेयर कितना गिरा है और क्या उसका मूल्यांकन आकर्षक हो गया है? हम निफ्टी का स्तर देख कर शेयर नहीं खरीदते हैं, हम उस
शेयर का भाव देखते हैं।
क्या आप पहले एक क्षेत्र चुनते हैं और उसके अंदर शेयर तलाशना शुरू करते हैं, या फिर सीधे-सीधे चुनिंदा शेयरों पर ही नजर डालते हैं?
—हम अभी कुछ क्षेत्रों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जैसे रियल एस्टेट और धातु (मेटल)। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें हम अगले 10-12 महीनों में बढ़त की गुंजाइश नहीं
देख रहे हैं। धातुओं की कीमतें घटने की संभावना है, कम-से-कम उनकी कीमतें बढ़ेंगी नहीं। रियल एस्टेट क्षेत्र पर कई मुद्दे असर डाल रहे हैं, जैसे ऊँची ब्याज दरें,
अनबिके भवनों की बड़ी संख्या, परियोजना को समय पर पूरा करने में नाकामी वगैरह।
दूसरी तरफ बैंक क्षेत्र को लें। इसमें छोटी अवधि की बातों, जैसे जमा (डिपॉजिट) पर ऊँची ब्याज दर के चलते मार्जिन घटा है। लेकिन यह कुछ समय में ठीक हो
जायेगा।
हम दूसरों के पैसे को सँभालते हैं, इसलिए हम जोखिम से थोड़ा बचते हैं। लिहाजा हम कुछ ऐसे क्षेत्रों पर भी ध्यान देते हैं जिन पर ब्याज दरों का असर कम होगा,
जैसे एफएमसीजी और फार्मा। अगर यह असर कम होने की उम्मीद है तो हम उस क्षेत्र में निवेश बढ़ा देते हैं। ऐसा इसलिए नहीं करते कि उस क्षेत्र से हमें ज्यादा
फायदे की उम्मीद है, बल्कि इसलिए कि हम इससे जोखिम कुछ कम कर लेते हैं। हमें इस तरह से अपने पोर्टफोलिओ में संतुलन बनाना होता है।
बैंकिंग के अलावा और किन क्षेत्रों को लेकर आप सकारात्मक हैं?
—टाइटन जैसी उपभोक्ता-संबंधी कंपनियाँ हमें पसंद हैं। आईटीसी में हमारा निवेश है। हमने कुछ मँझोली दवा कंपनियों जैसे ल्युपिन, कैडिला वगैरह को चुना है,
जिनमें आय बढऩे की रफ्तार अच्छी है और जिनका कारोबारी मॉडल अच्छा है। हम ऐसी कंपनियों को चुनते हैं, जिनके पास नकदी की अच्छी मात्रा हो। इससे
जोखिम कम होता है। हमने शानदार प्रदर्शन और अच्छे मूल्यांकन के चलते एलएंडटी को खरीदा है। हमारे पोर्टफोलिओ में 30-40% ऐसे शेयर हैं, जिनमें जोखिम
कम रहता है। हमें पता है कि उनमें फायदा काफी ज्यादा नहीं होगा, लेकिन उनमें जोखिम कम है।
चौथी तिमाही में कई क्षेत्रों को लेकर बड़े उलझाने वाले नतीजे मिले। आईटी को लें तो इसकी दो दिग्गज कंपनियों, इन्फोसिस और टीसीएस के संकेत एकदम
अलग-अलग रहे। अगर हाल में कैपिटल गुड्स के नतीजे देखें तो एलएंडटी और बीएचईएल ने एकदम अलग संकेत दिये। इस बात को कैसे समझा जाये?
—आपने यह अच्छा और बड़ा मुश्किल सवाल पूछा है। किसी कंपनी का अच्छे क्षेत्र में होना उसके शेयर खरीदने की जरूरी शर्त है, लेकिन यह अपने-आप में पर्याप्त
नहीं है। जैसे आईटी अच्छा क्षेत्र है। इस पर ब्याज दरों का ज्यादा असर नहीं है, इस क्षेत्र की कंपनियाँ अच्छी हैं, उनका प्रबंधन अच्छा है। लेकिन आईटी में भी ऐसे
कई उदाहरण हैं, जिनका प्रदर्शन एकदम निराश करने वाला रहा। इसीलिए हमें कंपनियों का विश्लेषण करके उनके कामकाज के बारे में अनुमान लगाना पड़ता है।
हमारा नजरिया यह है कि कुछ क्षेत्रों को नकारात्मक सूची में रखें और कुछ ऐसे क्षेत्र चुनें जो हमें पसंद हैं। फिर पसंदीदा क्षेत्रों में से अच्छे शेयरों को चुना जाये।
आपको नकारात्मक आश्चर्य कभी भी मिल सकते हैं। जैसे इन्फोसिस मुझे पसंद रहा है और मुझे आश्चर्य है कि यह 2900 के नीचे चला गया। हो सकता है कि फंडों
की बिकवाली के चलते ऐसा हुआ हो। लेकिन आपने जो पूछा वह एक मुश्किल सवाल है। किसी एक क्षेत्र के अंदर आप कैसे समझेंगे कि कौन-सी कंपनी अच्छा
करेगी और कौन अच्छा नहीं करेगी। इसके लिए काफी विश्लेषण करना पड़ता है और उसमें गलतियाँ भी होती हैं!
इन्फोसिस के लिए यह तर्क दिया जा सकता है कि उसके कामकाज में कमजोरी नहीं आयी है। बाजार केवल प्रबंधन से जुड़े मुद्दों के चलते भविष्य को लेकर डरा
हुआ है। बीएचईएल को देखें तो एकाउंटिंग के नियमों में बदलाव का असर दिखा। तो क्या इन मामलों में बाजार की प्रतिक्रिया एक हद तक अनुचित थी?
—दरअसल लोग अपनी उम्मीदें काफी बढ़ा लेते हैं। लोग इन्फोसिस इसलिए नहीं बेच रहे कि वे नतीजों से बहुत नाखुश हैं। वे इसलिए बेच रहे हैं कि उन्होंने एक
लंबी उछाल की उम्मीद लगा कर इसे खरीदा था। लोग एक उम्मीद में खरीदारी करते हैं, और जब उन्हें लगता है कि उन्हें तुरंत फायदा नहीं मिलने वाला है तो वे
एकदम से बेच देते हैं। हो सकता है कि उन्होंने मार्जिन फंडिंग ले रखी हो, या उनके वायदा (डेरिवेटिव) बाजार में सौदे हों।
बैंकिंग का उदाहरण लेते हैं। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने बीती तिमाही में जो ऊँचे प्रावधान (प्रोविजनिंग) किये, उन्हें समझदारी भरा कदम ही कहा जा सकता
है। लेकिन बाजार की प्रतिक्रिया इतनी नकारात्मक क्यों रही?
—यह बेशक काफी समझदारी भरा कदम है। लेकिन लोगों के लिए यह अचानक लगा झटका था। बाजार इस वजह से चौंका कि नये चेयरमैन ने इन प्रावधानों को
समय-सीमा से काफी पहले कर दिया। एक तो उन्होंने 70% का मानक प्रावधान (स्टैंडर्ड प्रोविजनिंग) किया, जिसके लिए रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने कुछ और
तिमाहियों का समय दे रखा है, लेकिन उन्होंने यह अभी ही कर दिया। दूसरे, उन्होंने पेंशन और ग्रेच्युटी के जो प्रावधान किये, उसके लिए उनके हाथ में 5 साल का
समय था। एसबीआई ने इसे अभी ही कर देने का साहस दिखाया।
लेकिन इसके चलते बैंक की पूंजी पर्याप्तता (कैपिटल एडिक्वेशी) घट कर 7.8% रह गयी। दूसरी ओर राइट इश्यू के मामले में सरकार अपने कदम पीछे खींचती दिखी।
बाजार इन सारी बातों से एकदम घबरा गया। लेकिन उसके कामकाज में कहीं कोई दिक्कत नहीं है।
तो क्या आप एसबीआई के बारे में इस नकारात्मक माहौल को एक मौके की तरह देख रहे हैं?
—बिल्कुल। दुनिया के सबसे अमीर निवेशक वारेन बफेट की एक बात काफी प्रसिद्ध है कि जब दूसरे लोग लालच दिखाते हैं तो मैं डर जाता हूँ, और जब दूसरे लोग
डर रहे होते हैं तो मैं लालची बन जाता हूँ। एसबीआई और उसके सहायक (सब्सीडियरी) बैंकों का मूल्यांकन देखें तो 2200 रुपये के आसपास के भाव पर यह शेयर
01 साल के नजरिये से खरीदारी के लिए काफी अच्छा कहा जा सकता है।
आप एक पोर्टफोलिओ मैनेजर हैं। अगर कोई आम निवेशक है, जिसे थोड़ा कम जोखिम ले कर चलना है, तो उसके लिए एक नया संतुलित पोर्टफोलिओ बनाते समय
आप किन-किन शेयरों को चुनेंगे?
—ऐसे किसी निवेशक के लिए मैं टीसीएस, आईटीसी, टाइटन, एलआईसी हाउसिंग, बैंक ऑफ बड़ौदा, ल्युपिन, महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसे कुछ नाम पसंद करूँगा।
तो आखिर आपने भी इन्फोसिस के ऊपर टीसीएस को और एसबीआई के ऊपर बैंक ऑफ बड़ौदा को पसंद किया!
—यह चुनाव एक आम निवेशक के पोर्टफोलिओ के लिए है, जिसे कम जोखिम लेना है। इसलिए मुझे यह देखना होगा कि यह एक मुश्किल समय है। लोग हर झाड़ी
को देख कर शेर का डर पाल रहे हैं। इस समय इन्फोसिस और एसबीआई को लेकर लोगों की धारणा काफी कमजोर है। ज्यादातर लोगों की इनके बारे में
नकारात्मक राय बन गयी है। इसलिए मुझे पता नहीं कि जब भी बाजार में ऊपर की चाल बनेगी तो ये दोनों शेयर उसमें कितनी जल्दी हिस्सा ले सकेंगे। लोग इन
शेयरों को हर बढ़त पर बेचने के इंतजार में बैठे हुए हैं। इसलिए कुछ समय तक इन शेयरों को निचले स्तरों पर जमना (कंसोलिडेट) पड़ेगा।
लेकिन टीसीएस और बैंक ऑफ बड़ौदा के सामने इस तरह की दिकतें नहीं हैं। इसलिए अगर अगले 6 महीनों की सोचें तो टीसीएस और बैंक ऑफ बड़ौदा का
प्रदर्शन ज्यादा बेहतर रहेगा। मगर 2-3 साल की सोचें तो उनके प्रदर्शन में ज्यादा फर्क नहीं रहेगा।
अगर निवेशक का पैमाना थोड़ा बदल दें, ऐसे निवेशक की बात करें जो 3-5 साल का धैर्य रख सकता है और थोड़ा जोखिम भी ले सकता है। ऐसे निवेशक के लिए
आप कैसा पोर्टफोलिओ बनायेंगे?
—तब मैं पोर्टफोलिओ में कुछ ज्यादा मँझोले शेयरों को रखूँगा। अभी मैंने जिन शेयरों की बात की थी, वे बाजार से कहीं बेहतर फायदा देंगे लेकिन उनका भाव कई
गुना नहीं हो जायेगा। जोखिम उठा सकने और लंबी अवधि की सोचने वाले निवेशक के लिए मैं कुछ और गहराई में जाऊँगा। मैं उसके पोर्टफोलिओ में 70-80%
मँझोले शेयरों को रखूँगा, जैसे आईटी क्षेत्र में सीएमसी जो २ साल में दोगुना हो सकता है। मैं नकारात्मक खबर के बाद (पिटे हुए) अरबिंदो फार्मा को लूँगा जो 160
रुपये के भाव पर मिल रहा है। मैं 81 के भाव पर रिलायंस कम्युनिकेशंस भी खरीदना चाहूँगा, योंकि इस कारोबार में अपना एक दम तो है ही।
यहाँ मैं एक अलग तरह का निवेशक बन जाऊँगा। जहाँ शेयर का हाल बुरा है, लेकिन कारोबारी मॉडल बढिय़ा है, वहाँ मैं खरीदारी करूँगा। क्या फर्क पड़ता है अगर
यह 80 से गिर कर 70 पर आ जाय। तीन साल की अवधि लें तो आपको भारत पर भरोसा करना होगा, कंपनी पर भरोसा करना होगा। मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ
जिन्होंने सेसा गोवा में अपने निवेश पर कई गुना फायदा कमाया। उन्होंने कंपनी के कारोबार पर भरोसा किया। नकारात्मक बातों का असर समय के साथ खत्म
होने लगता है।
बीते 2 सालों से रिलायंस इंडस्ट्रीज एक दायरे में अटका हुआ है। क्या ऐसे निवेशक के पोर्टफोलिओ में आप रिलायंस को शामिल करेंगे?
—अगर निवेशक के पास 3 साल का समय है तो मैं इसे पोर्टफोलिओ में रखूँगा, 1 साल के लिए नहीं। लोगों ने गैस उत्पादन के बारे में काफी उम्मीदें लगा लीं। गैस
का योगदान उतना नहीं है जितना रिफाइनिंग और पेट्रोकेम का है। लेकिन लोगों ने मान लिया कि इस शेयर में जितनी भी बढ़त दिखेगी वह गैस की वजह से
आयेगी।
लोगों ने जितना सोचा था, उतना गैस उत्पादन नहीं हो रहा है, बल्कि यह उत्पादन और कम होने का खतरा दिख रहा है। लेकिन यह कुछ समय की बात है। उन्होंने
ब्रिटिश पेट्रोलियम को साथ लिया है, जो तेल-गैस क्षेत्र की सबसे सधी हुई कंपनियों में से एक है। अभी यह अच्छे मूल्यांकन पर है। कंपनी सरकार के साथ कुछ
मुद्दों पर उलझी है, लेकिन यह सब बातें 1 साल में सुलझ जायेंगी। मैं गैस उत्पादन के बारे में कुछ नहीं कह सकता, लेकिन उनके पास दुनिया की सबसे बेहतरीन
रिफाइनरियों में से एक है। उनका पेट्रोकेम कारोबार काफी अच्छा है। इसलिए कंपनी की बढ़त को लेकर मैं ज्यादा चिंता नहीं कर रहा। इस शेयर को 900 के स्तर से
1300-1400 के स्तर पर ले जाने के लिए गैस के कारोबार से अच्छी खबरें मिलनी जरूरी हैं। उसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन अगर आप 3 साल की
बात करें तो मुझे भरोसा है।
भारत इस समय अवसरों का देश है। आप चाहे जितने भी शेयर चुन सकते हैं, आपको बस ज्यादा खोजबीन करनी होगी। अगर रिलायंस या इन्फोसिस की बात करें
तो इनके बारे में सबको सारी जानकारी है।
आपसे जिन शेयरों पर बात हुई, उनके बारे में आपका अपना खुलासा (डिस्क्लोजर) क्या है?
—मैंने जितने भी शेयरों के बारे में खरीदारी की सलाह दी है, उनमें से ज्यादातर शेयर हमारे पोर्टफोलिओ में शामिल हैं। हम इनमें लंबी अवधि के निवेशक हैं।
(निवेश मंथन अगस्त 2011)