शिवानी भास्कर
म्यूचुअल फंड
शेयर बाज़ार में निवेश के संबंध में दो एकदम विरोधाभासी बातें प्रचलित हैं। पहली बात यह कि यहाँ सही समय में अपने निवेश का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है। दूसरी बात यह कि शेयर बाजार में बिल्कुल सही समय कभी नहीं पकड़ा जा सकता, यानी शेयर बाजार को तेजी और मंदी के हर चक्र के बिल्कुल निचले हिस्से में पकडऩा और ऊपरी हिस्से में छोडऩा नामुमकिन है। चाहे दुनिया के सबसे सफल निवेशक वारेन बफेट हों या भारत के सबसे मशहूर निवेशक राकेश झुनझुनवाला, सबने अनगिनत बार यही बात कही है।
लेकिन यह शायद युधिष्ठिर से किये गये यक्ष के एक सवाल की तरह ही है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था - किम् आश्चर्यम् - मतलब आश्चर्य क्या है? शेयर बाजार का सबसे बड़ा आश्चर्य तो यही है कि जो काम बफेट और झुनझुनवाला जैसे दिग्गजों को भी असंभव लगती है, वही काम करने की कोशिश ज्यादातर निवेशक करते हैं। आश्चर्य यही है कि इस कोशिश में सफल न होने के बावजूद यह कोशिश बार-बार की जाती है।
लेकिन असली सवाल यह है कि क्या असंभव बता देने भर से किसी निवेश के सबसे मूलभूत सिद्धांत की तिलांजलि दी जा सकती है। अगर हम बाजार के सबसे ऊँचे स्तर पर निवेश करेंगे तो हमारे नुकसान को कोई टाल नहीं सकता। जब हम बाज़ार के सबसे निचले स्तर पर अपने निवेश से बाहर निकलेंगे, तो उस समय भी यही हाल होगा।
तो सही तरीका क्या है? अगर बाजार में सबसे सही समय चुनने की कोशिश व्यर्थ है, तो क्या दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि बाजार में फायदा सुनिश्चित कर पाना भी संभव नहीं है? फिर तो यह सट्टेबाज़ी ही हुई कि आप आँखें बंद कर किसी घोड़े पर दाँव लगायें और फिर उसके जीतने की दुआएं मांगे। क्या सचमुच शेयर बाजार में निवेश महज सट्टेबाजी है?
ऐसा नहीं है। बेंजामिन ग्राहम, वारेन बफेट, मेरिल लिंच, चार्ली मंगेर जैसे दिग्गजों का निवेश दर्शन बेकार नहीं है। वैल्यू इन्वेस्टिंग यानी सस्ती कीमत पर निवेश और मार्जिन ऑफ सेफ्टी यानी सुरक्षित फासला रखने जैसे सिद्धांत केवल मन को बहलाने के ज़ुमले नहीं हैं। इन निवेश सिद्धांतों को अपनी प्रासंगिकता साबित करने की ज़रूरत नहीं है। यह तो निवेशक का काम है कि वह इन सिद्धांतों को ठीक से समझे और पूरे अनुशासन के साथ इनका पालन करे। लेकिन अपनी पारिवारिक और पेशेवर जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ इस जटिल काम को करना आसान भी तो नहीं। ऐसे में करोड़ों निवेशकों के सामने शेयर बाजार के तिलिस्म से अपने हिस्से का मुनाफा निकालने के लिए म्यूचुअल फंडों का बाजार एक अच्छा जरिया बनता है।
लेकिन सही समय का मसला यहाँ भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस उलझन से बचने का केवल एक ही रास्ता है- एक निश्चित अंतराल पर एक निश्चित निवेश। यह अंतराल एक हफ्ता, एक महीना या एक तिमाही - कुछ भी हो सकता है। बाजार की भाषा में इसे कहते हैं नियमित निवेश योजना या सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी)। ऐसी योजनाओं के लिए ज्यादा चलन मासिक निवेश का है।
अगर आप हर महीने की 1 तारीख को बाजार में 1000 रुपये का निवेश करने का फैसला कर लें, तो उसके बाद आप यह नहीं देखें कि किसी खास महीने की एक तारीख को सेंसेक्स या निफ्टी का स्तर क्या है। अगर आप लंबी अवधि तक एसआईपी के जरिए निवेश करने की रणनीति अपना रहे हैं तो समझ लें कि आपने एक असंभव को संभव बनाने की कला सीख ली है। यह असंभव बात है शेयर बाजार से फायदे की गारंटी हासिल कर लेना। एसआईपी के जरिये आप बाजार की तेजी और मंदी दोनों का फायदा उठाते हैं। है न लाजवाब बात।
लेकिन इस योजना की इसी सबसे महत्वपूर्ण बात को नहीं समझने के कारण आमतौर पर निवेशक सबसे बड़ी गलती कर बैठते हैं। जब बाजार में गिरावट का दौर आता है, तब वे डर कर सोचते हैं कि मंदी के बाजार से बाहर रहना में ही समझदारी है। ऐसे में वे अपना एसआईपी रोक देते हैं। यह न केवल नासमझी है, बल्कि बेवकूफी भी है। एसआईपी का फायदा आपको तभी मिल सकता है जब आप मंदी के दौर में भी लगातार निवेश करते रहें।
बाजार के ऊपरी स्तरों पर एकमुश्त निवेश करने वालों के लिए मंदी या सुस्ती का दौर निराशा और अवसाद वाला होता है। लेकिन एसआईपी के निवेशक के लिए यह भविष्य में एक जोरदार फायदे उम्मीद बढ़ाने वाला समय होता है।
इसे एक उदाहरण से समझिए। मान लीजिए कि एक जनवरी को आपने म्यूचुअल फंड की एसआईपी में 1,000 रुपये का निवेश किया और उस समय उस स्कीम ए का एनएवी 10 रुपये था। एनएवी यानी नेट एसेट वैल्यू वह भाव है, जिस पर आप यूनिट खरीदते-बेचते हैं। अब आपके खाते में 100 यूनिट जमा हो गये। एक महीने बाद एक फरवरी तक बाजार 10% गिर गया और उस दिन फिर आपने 1,000 रुपये अपनी एसआईपी में जमा किये। आपकी स्कीम का एनएवी उस दिन बाजार की गिरावट के हिसाब से 10% गिर कर नौ रुपये पर आ चुका है। इसलिए आपको नौ रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से इस महीने 111.11 यूनिट मिलेंगी। ऐसे ही अगर एक मार्च तक बाजार में और 10% की गिरावट आ गयी तो आपकी स्कीम का एनएवी उस दिन होगा 8.10 रुपये। लिहाजा एक मार्च को आपके 1,000 रुपये के निवेश पर आपको मिलेंगी 123.45 यूनिट। अब मान लीजिए मार्च में बाजार में 20' की जबरदस्त बढ़त आयी। यानी आपकी स्कीम का एनएवी एक अप्रैल को वापस आ गया 10 रुपये पर। लेकिन आपके खाते में तीन महीनों के निवेश से कुल 334.56 (100+111.11+123.45) यूनिट जमा हैं, जिनकी कुल कीमत 10 रुपये के हिसाब से होगी 3,345.60 रुपये। यानी बीते तीन महीनों में आपके 3,000 रुपये के निवेश पर आपको 11.5% का रिटर्न मिल चुका है, जबकि बाजार शून्य बढ़त के साथ वापस तीन महीने पहले के स्तर पर ही है।
कोई बाजार हमेशा चढ़ता नहीं रह सकता, न ही वह हमेशा गिरता रहेगा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि शेयर बाजार में मुनाफा कमाने के लिए एसआईपी को चुनना तुलनात्मक रूप से ज्यादा सुरक्षित है। लेकिन यह याद रखें कि इस रणनीति का फायदा तभी मिलता है, जब निचले स्तरों पर आप नियमित रूप से निवेश करते रहें।
डर और लालच एक निवेशक के सबसे बड़े दुश्मन हैं। एसआईपी की रणनीति आपको इन दोनों दुश्मनों से बचाती है और बाजार का सफल खिलाड़ी बना देती है। लेकिन यह उन्हीं के लिए संभव है, जो इसे पूरे अनुशासन के साथ बदस्तूर जारी रखने का साहस दिखायें, चाहे वे शेयर बाजार के गुलाबी दिन हों या फिर तूफानी डरावनी रातें।
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)