सुशांत
छोटे और मँझोले उद्योग भारतीय उद्योग की रीढ़ माने जाते हैं। देश के कुल निर्यात में 40% योगदान इसी क्षेत्र का है। एक अनुमान के मुताबिक छोटे और मँझोले उद्योग 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं। लेकिन इस क्षेत्र में ज्यादातर उद्योग असंगठित हैं और इससे इन्हें कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है।
सरकार ने एसएमई क्षेत्र की समस्याओं से निपटने के लिए 2006 में अतिलघु, लघु और मध्यम उद्योग विकास अधिनियम (एमएसएमईडी ऐट) पारित किया था। इस अधिनियम के तहत पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) कराने से छोटी औद्योगिक इकाइयों को बड़ी राहत मिल सकती है। एसएमई पंजीकरण उत्पादन (मैन्युफैचरिंग) और सेवा (सर्विस) दोनों क्षेत्रों की इकाइयां करा सकती हैं। पंजीकरण की प्रक्रिया बहुत मुश्किल नहीं है और इसमें कोई खर्च भी नहीं होता है।
किस श्रेणी में है आपकी इकाई
एमएसएमईडी एक्ट के तहत सरकार ने अति लघु, लघु और मँझोले उद्योगों के लिए मानक तय कर रखे हैं।
इन शर्तों को पूरा करने वाली हर कंपनी या औद्योगिक इकाई एमएसएमईडी एक्ट के तहत पंजीकरण करा सकती है, चाहे वह मालिकाना (प्रोप्राइटरी) फर्म, साझेदारी (पार्टनरशिप) फर्म, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, पब्लिक लिमिटेड कंपनी या एचयूएफ ही क्यों न हो। केवल मँझोली कंपनियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य है। मगर इसके फायदों को देखते हुए सभी छोटी इकाइयों को अपना पंजीकरण कराना चाहिए।
पंजीकरण के फायदे
एमएसएमईडी ऐक्ट 2006 के तहत पंजीकरण के बाद अतिलघु, लघु और मँझोले उद्योगों को बैंकों से कर्ज मिलना आसान हो जाता है। पंजीकरण के बाद बैंक ऐसी इकाइयों को बिना जमानत के कर्ज देते हैं। बैंकों को करीब 40% कर्ज प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को देना होता है। एसएमई क्षेत्र को प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में शामिल किया गया है।
पंजीकरण के बाद अतिलघु और लघु उद्योगों को खरीदार कंपनियों से भुगतान में देरी की हालत में सुरक्षा मिलती है। अगर भुगतान में 45 दिन या पहले से तय समय से ज्यादा की देरी होती है तो उन्हें बकाया रकम पर ब्याज पाने का अधिकार मिल जाता है। यह ब्याज दर बैंक दर से तिगुनी होती है। पंजीकरण के बाद उत्पाद या सेवाएँ लेने वाली कंपनियाँ स्रोत पर कर कटौती यानी टीडीएस भी नहीं काटतीं। सरकारी विभागों में खरीद का कुछ हिस्सा भी अतिलघु, लघु और मँझोले उद्योगों के लिए आरक्षित होता है। साथ ही खरीदार से विवाद की स्थिति में एक तय समय के भीतर विवाद का निपटारा होता है।
अति लघु और लघु उद्योगों को स्टांप ड्यूटी और ऑस्ट्राई में भी छूट मिलती है। सरकार इन्हें बिजली बिल में भी रियायत देती है। ऐसा कंपनियां अगर आईएसओ प्रमाण-पत्र लें तो सरकार इसके पूरे खर्च की भरपाई करती है।
अतिलघु, लघु और मँझोले उद्योगों को पंजीकरण से बेहतर रेटिंग में मदद मिलती है। कई रेटिंग एजेंसियां इन दिनों एसएमई क्षेत्र की कंपनियों का आकलन करके उन्हें रेटिंग देती हैं।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) एसएमई एसचेंज शुरू करने पर विचार कर रहा है। ऐसा होने पर इस क्षेत्र की कंपनियाँ एसएमई एक्सचेंज में सूचीबद्ध होकर शेयर बाजार से रकम जुटा सकेंगी।
क्या है एसएमई पंजीकरण की प्रक्रिया
एसएमई पंजीकरण जिला औद्योगिक केंद्र (डीआईसी) में होता है। इसके लिए पंजीकरण फार्म इंटरनेट से ले कर भी भरा जा सकता है। अगर इंटरनेट पर ऑनलाइन फार्म भरना हो तो इसे www.laghu-udyog.com या www.smallindustryindia.com से लिया जा सकता है। हालाँकि ऑनलाइन फार्म भरने पर भी आपको डीआईसी जाना ही होगा। आपको कंपनी में निवेश के दस्तावेज, प्लांट की जमीन से जुडे दस्तावेज, पार्टनरशिप डीड या अगर लिमिटेड कंपनी है तो मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन की प्रति जमा करानी होगी।
उद्योग मैन्युफैक्चरिंग सेवा क्षेत्र
(प्लांट और मशीनरी में निवेश) (उपकरणों में निवेश)
अतिलघु 25 लाख रुपये से ज्यादा नहीं 10 लाख रुपये से ज्यादा नहीं
लघु 25 लाख रुपये से ज्यादा 10 लाख रुपये से ज्यादा लेकिन
लेकिन 5 करोड़ रुपये से कम 2 करोड़ रुपये से कम
मध्यम 5 करोड़ रुपये से ज्यादा 2 करोड़ रुपये से ज्यादा लेकिन
लेकिन 10 करोड़ रुपये से कम 5 करोड़ रुपये से कम
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)