सुनील मिंगलानी, तकनीकी विश्लेषक
पैसे की पाठशाला
अक्सर लोग शेयर बाजार से डरते हैं, लेकिन वास्तव में हर वह काम खतरनाक है जिसे आपको करना नहीं आता। अगर आपने कार चलाना नहीं सीखा और कार चलाने लगे तो क्या होगा? जब आप किसी भी ऐसे कारोबार में पैसा लगाते हैं, जिसकी आपको अच्छी जानकारी नहीं है, तो आप अपनी सारी पूँजी गँवा सकते हैं।
अक्सर लोग शेयर बाजार को एक निवेश या कारोबार मानते ही नहीं, वे इसे सट्टा बाजार की तरह देखते हैं। अगर आप इसे सट्टा बाजार मान कर सौदे करेंगे तो उसके परिणाम भी सट्टे की तरह ही आयेंगे। बिना जानकारी के हर कारोबार एक सट्टा ही है। लोग कुछ सीखे बिना, समय दिये बिना 100% कमाई की इच्छा रखते हैं। यह कैसे मुमकिन है? जब नजरिया ही गलत हो तो नुकसान होगा ही। लेकिन लोग इस नुकसान का दोष शेयर बाजार को देते हैं।
कैसे समझें किसी शेयर या कमोडिटी को?
किसी शेयर या कमोडिटी में निवेश और सौदे करने के लिए दो तरह से विश्लेषण किया जाता है - बुनियादी बातों (फंडामेंटल) और तकनीकी विश्लेषण (टेक्निकल एनालिसिस) के आधार पर। तकनीकी विश्लेषण किसी शेयर या कमोडिटी में आने वाली मांग और आपूर्ति को को समझने का तरीका है। जब भी किसी शेयर में एक सौदा होता है तो उसमें एक लेने वाला और एक बेचने वाला होता है। तकनीकी विश्लेषण खरीदारों और बेचने वालों की संख्या और उससे मूल्य पर होने वाले असर को समझने का तरीका है। हम सब जानते हैं कि जब मांग ज्यादा होती है तो मूल्य उपर जाता है और जब आपूर्ति ज्यादा होती है तो मूल्य नीचे आता है।
तकनीकी विश्लेषण का मनोविज्ञान
तकनीकी विश्लेषण में मनोविज्ञान की खास भूमिका है। हम जब बुनियादी तरीके से किसी कंपनी का आकलन करते हैं तो उसकी आर्थिक स्थिति, उसके कारोबार और लाभ-हानि वगैरह को देखा जाता है। लेकिन तकनीकी विश्लेषण में शेयर या कमोडिटी के केवल मूल्य के व्यवहार को देखा जाता है। इसमें यह माना जाता है कि किसी भी कंपनी के बारे में जो भी जानकारियाँ उपलब्ध हैं, उनका असर उसके शेयर के मूल्य में पहले ही आ चुका है। मतलब यह कि एक शेयर का मूल्य हर उपलब्ध जानकारी को पहले ही दर्शा रहा है।
किसी भी शेयर के मूल्य में उतार-चढ़ाव के तमाम बुनियादी कारण होते हैं, जैसे उस कंपनी की आमदनी, विश्व अर्थव्यवस्था की हालत, घरेलू अर्थव्यवस्था की हालत, ब्याज दरें, मौसम, राजनीति, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, शेयर बाजार में आने-जाने वाली नकदी (लिक्विडिटी) की हालत वगैरह। इन सब कारणों से बाजार में काम करने वाले निवेशकों और कारोबारियों के उत्साह पर असर होता है और इसी वजह से शेयरों के मूल्य में छोटी अवधि में भी लगातार उतार-चढ़ाव चलता रहता है। छोटी अवधि में शेयरों के मूल्य पर बुनियादी बातों से कहीं ज्यादा असर धारणा और उत्साह का होता है।
लोगों के मन पर जो धारणाएँ सबसे ज्यादा असर डालती हैं, वे हैं डर और लालच। किसी भी चीज को लेने वाले के मन में लालच यह रहता है कि सस्ता मिल रहा है और डर यह रहता है कि कल यह इतना सस्ता नहीं मिलेगा। उसी समय बेचने वाले में लालच यह रहता है कि आज महंगा बिक रहा है और डर यह रहता है कि कल इस भाव पर नहीं बिकेगा। दोनों में ये भावनाएँ एक साथ काम करती हैं, जिससे एक सौदा हो जाता है। दोनों में से एक में भी डर या लालच नहीं हो तो वह सौदा नहीं हो सकता। इस सौदे के होने से भाव में उपर या नीचे की ओर जो भी बदलाव आता है, उसी के उतार चड़ाव को तकनीकी विश्लेषण में समझा जाता है। सीधे-सीधे यह किसी चीज के भाव के व्यवहार का विश्लेषण है।
कैसे काम करता है तकनीकी विश्लेषण?
सवाल है कि जो भाव निकल चुका है, उसका विश्लेषण करके क्या मिलेगा? दरअसल तकनीकी विश्लेषण इस सोच पर टिका है कि इतिहास अपने आपको दोहराता है। बाजार में भाव ऊपर-नीचे होने से भाव की कुछ खास तरह की संरचनाएँ (प्राइस पैटर्न) बनती हैं और ये संरचनाएँ बार-बार अपने आप को दोहराती हैं। अगर कभी कोई खास संरचना बनने पर भाव गिर जाता है तो अगली बार किसी और शेयर में वैसी ही संरचना बनने पर उसका भी भाव गिर जाने की काफी संभावना होती है।
आप किसी किसान से पूछें कि बारिश आने वाली है या नहीं तो वह सरल तरीके से आसमान में देखेगा और बादलों को देख कर, या हवा में नमी को महसूस करके आपको लगभग सही-सही बता देगा कि बारिश आने वाली है या नहीं। वह किसान भी एक तरह से तकनीकी विश्लेषण का इस्तेमाल कर रहा है, भले ही उसे इसका नाम तक नहीं पता। उस किसान का अनुभव उसे बताता है कि बारिश होने से पहले बादल कैसे होते हैं, हवा की गति कैसी होती है, हवा में नमी कैसी होती है। वह अनुभव उसे मिलता है सालों से बार-बार बारिश के पहले की संरचनाओं को समझ कर।
ऐसे ही आप किसी तकनीकी विश्लेषक से किसी शेयर के बारे में पूछेंगे तो वह उसकी कीमत का चार्ट देखेगा और उसमें बनती संरचनाओं के आधार पर आगे का अनुमान लगायेगा। मतलब यह है कि तकनीकी विश्लेषण किसी शेयर या कमोडिटी की कीमतों के पिछले व्यवहार को पैमाना बना कर भविष्य का अंदाजा लगाने के एक सुविचारित अध्ययन का नाम है।
जिंदगी में हर जगह है तकनीकी विश्लेषण
यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका आपका इस्तेमाल न करते हों। सिर्फ आपको इसका नाम नहीं पता। एक पति अपनी पत्नी के ऐतिहासिक व्यवहार को पैमाना बना कर ही उससे आज व्यवहार करता है। वह जानता है कि पिछली बार किसी खास परिस्थिति में किसी बात का परिणाम क्या हुआ था। अगर वैसी ही परिस्थिति आज फिर आयी है तो अपने पुराने अनुभव से वह जानता है कि आज क्या करना है! वह भी ऐतिहासिक व्यवहार को आधार बना कर भविष्य का अनुमान लगा रहा है, यानी एक तरह से तकनीकी विश्लेषण का ही सहारा ले रहा है।
बच्चे अपने माँ-बाप के साथ, अधिकारी अपने अधीन काम करने वालों के साथ, प्रेमी प्रेमिका के साथ, गुरु शिष्य के साथ, खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी के साथ, हर समय इसी का इस्तेमाल करते हैं। वे एक-दूसरे के ऐतिहासिक व्यवहार का विश्लेषण करके भविष्य की संभावनाओं का अंदाजा लगाते हैं। समय के साथ उनका विश्लेषण सटीक होता जाता और उसके साथ ही उनका अंदाजा सही होने लगता है। कभी-कभी आपकी सोची हुई संभावना के हिसाब से काम नहीं होता। तब आपको लगता है कि आपका अंदाजा गलत हो गया और आप उसके हिसाब से अपना व्यवहार बदल लेते हैं। तकनीकी विश्लेषण में यही बात घाटा काटने के स्तर (स्टॉप लॉस) की तरह से दिखती है।
चतुर पैसे के पैरों की छाप
यह मान कर चलें कि जिस समय आप बाजार में खरीद-बिक्री कर रहे होते हैं, बिल्कुल उसी समय आपसे कहीं ज्यादा चतुर और ज्यादा बड़ी पूँजी ले कर चलने वाला निवेशक भी इस बाजार में मौजूद होता है। उस चतुर निवेशक या चतुर पैसे (स्मार्ट मनी) की जानकारी, सूचनाओं और पूँजी का स्तर आपसे कहीं ज्यादा है। उस चतुर पैसे का आकर इतना बड़ा होता है कि उसकी आने और जाने के पदचिह्न देखे जा सकते हैं। अगर आप उसके पैरों की छाप को पहचानते हैं तो उस चतुर पैसे का भावों पर असर साफ देख सकते हैं। आप कई बार देखते हैं कि जब किसी कंपनी के नतीजे अच्छे नहीं आते तो उसके शेयर का भाव नतीजे आने से पहले ही गिर चुका होता है। चतुर पैसे को पहले से यह अहसास होता है कि नतीजे अच्छे नहीं आने वाले, इसलिए वह उस शेयर से पहले ही बाहर निकल जाता है।
तकनीकी विश्लेषण की मदद से आप जान सकते हैं कि वह चतुर पैसा किधर जा रहा है और कहाँ से बाहर हो रहा है। अगर आप उस चतुर पैसे के पीछे चलेंगे तो नुकसान का जोखिम कम होगा।
उस चतुर पैसे का कोई नाम नहीं है। वह कोई म्यूचुअल फंड, कोई बैंक, कोई बीमा कंपनी, कोई हेज फंड, कोई बड़ा निवेशक, कोई विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) - कोई भी हो सकता है। तकनीकी विश्लेषण में उसका नाम जानने की जरूरत भी नहीं है। लेकिन उसका काम दिखाई देता है।
उस चतुर पैसे के बहाव की दिशा को देख कर आप बाजार की चाल का अंदाजा लगा सकते हैं। वह चतुर पैसा जब किसी शेयर में निवेश करता है या उससे बाहर निकलता है तो उस शेयर के भाव पर एक बड़ा असर छोड़ जाता है। उस भाव का विश्लेषण करके एक तकनीकी विश्लेषक उस शेयर को खरीदने या बेचने का फैसला कर सकता है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2011)