आईसीआईसीआई डायरेक्ट का मानना है कि अगले 12-18 महीनों में दीर्घकालिक निवेशकों के लिए उत्कृष्ट निवेश अवसर मिलने की संभावना है। ब्रोकिंग फर्म की सलाह है कि निवेशकों को मौजूदा अस्थिरता के कारण हताश नहीं होना चाहिए और बाजार में मौजूदा कमजोरी से लाभान्वित होने के लिए एसआईपी या नियमित निवेश शुरू कर देना चाहिए।
आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने नवंबर के चौथे सप्ताह में म्यूचुअल फंड उद्योग पर जारी अपनी रिपोर्ट में इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड, इक्विटी इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, इक्विटी एफएमसीजी, इक्विटी फार्मा फंड और बैलेंस्ड फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए सकारात्मक सलाह दी है। इन्कम फंड के लिए भी अल्पकाल एवं दीर्घकाल में सकारात्मक सलाह है, लेकिन अतिअल्पकाल में उदासीन सलाह है। इक्विटी बैंकिंग फंड के लिए अल्पकाल में सकारात्मक और दीर्घकाल में उदासीन सलाह है, जबकि मंथली इन्कम प्लान्स (एमआईपी) के लिए अल्पकाल में उदासीन और दीर्घकाल में सकारात्मक सलाह है। ब्रोकिंग फर्म ने इक्विटी टेक्नोलॉजी फंड, आर्बिट्राज फंड, लिक्विड फंड एवं गिल्ट फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए उदासीन सलाह दी है।
इक्विटी बाजार
नवंबर माह में भारतीय पूँजी बाजार दो अप्रत्याशित ऐतिहासिक, एक घरेलू एवं एक वैश्विक घटनाक्रमों के साक्षी रहे हैं। भारत सरकार ने काला धन रोकने के लिए 500 रुपये एवं 1,000 रुपये के मौजूदा नोटों को रद्द करने की घोषणा की, जबकि डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुन लिये गये। ब्रोक्रिंग कंपनी को भरोसा है कि अमेरिका के नये राष्ट्रपति के चुनाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अत्यंत सीमित प्रभाव पडऩे की संभावना है। यह कुल मिला कर सकारात्मक है, क्योंकि इस घटना का ज्वार अब थम गया है। डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित जीत पर शुरू में नकारात्मक प्रतिक्रिया देने के बाद वैश्विक बाजारों ने नयी घटना से आगे बढ़ते हुए लगभग पूरी तरह वापसी कर ली।
यद्यपि निकट भविष्य में विकास पर घरेलू मुद्रा घटनाक्रम का नकारात्मक असर पडऩे की संभावना है, लेकिन ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि दीर्घकालीन विकास में संरचनात्मक सुधार के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका दूरगामी संरचनात्मक सकारात्मक असर पड़ सकता है। इस कदम का नकद लेन-देन पर निर्भर उद्योगों पर अल्पकालिक असर पड़ सकता है। निर्माण, रियल एस्टेट, होटल व्यवसाय, स्व-स्वामित्व के व्यवसाय, सर्राफा एवं आभूषण, खनन आदि उद्योगों में इस कदम का असर महसूस किये जाने की संभावना है। भारी नकद लेन-लेन करने वाले मँझोले और लघु उद्योग भी इससे प्रभावित होंगे। हालाँकि दीर्घकाल में इस कदम से विकास को समर्थन मिलेगा और समावेशी विकास, काला धन एवं भ्रष्टाचार पर प्रहार, दक्षता बढऩा और औपचारिक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन इसके सकारात्मक बिंदु होंगे। मध्यम काल की दृष्टि से यह कदम सकारात्मक है।
विमुद्रीकरण का यह कदम महँगाई घटाने में मदद करेगा। प्रचलन में मुद्रा की भारी मात्रा (खास कर भ्रष्ट साधनों से प्रचलन में आयी मुद्रा) का महँगाई से निकट संबंध है और यह कीमतों मे तेज वृद्धि करती है। रियल एस्टेट जैसे उद्योगों में कीमतों में तीखी गिरावट की संभावना है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खास कर कृषि संबंधी कार्यों में नकद का अत्यधिक उपयोग होने के कारण खाद्य कीमतों के भी काफी कम होने की संभावना है।
ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि विमुद्रीकरण व्यवस्था में तरलता को सुधारेगा। पुराने करेंसी नोटों के बैंकों में जमा होने से बैंक जमाओं की वृद्धि में तेजी आने की उम्मीद है, जबकि करेंसी के प्रचलन में नरमी आ सकती है। बैंकिंग क्षेत्र के लिए तरलता में सुधार होगा। इस कदम से सरकार की राजकोषीय स्थिति में भी सुधार होगा। काला धन के खिलाफ कड़े उपायों से कर अनुपालन बढ़ेगा और यह मध्यम काल में राजकोषीय अंकगणित के लिए मददगार होगा। इसके बाद जीएसटी भी लागू हो जाने पर यह कदम राजस्व को और बढ़ायेगा।
परिदृश्य
विमुद्रीकरण के कदम से औपचारिक अर्थव्यवस्था को होने वाले दीर्घकालिक संरचनात्मक फायदे काफी महत्वपूर्ण हैं। दीर्घकालिक वृद्धि में संरचनात्मक सुधार, निम्न मुद्रास्फीति और तरलता और सरकार की राजकोषीय स्थिति में सुधार के कारण निम्न ब्याज दर के रूप में मध्यम काल में ये फायदे सामने आयेंगे। सरकार द्वारा किये जा रहे अन्य संरचनात्मक सुधारों के साथ इस कदम द्वारा टिकाऊ दीर्घकालिक वृद्धि दिखने की संभावना है। पिछले दो से तीन साल में पूँजी बाजारों में रही तेजी के मद्देनजर निकट भविष्य में बाजारों में मुनाफावसूली का कुछ दबाव बना रह सकता है।
फिलहाल अल्पकालिक वृद्धि पर असर के बारे में अनिश्चितता है, जो निवेशकों की धारणा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है। इससे भारतीय बाजारों में भी उच्च स्तर पर उतार-चढ़ाव बने रहने की संभावना है। ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि अगले 12-18 महीनों में दीर्घकालिक निवेशकों के लिए उत्कृष्ट निवेश अवसर मिलने की संभावना है। ब्रोकिंग फर्म की सलाह है कि निवेशकों को मौजूदा अस्थिरता के कारण हताश नहीं होना चाहिए और बाजार में मौजूदा कमजोरी से लाभान्वित होने के लिए एसआईपी या नियमित निवेश शुरू कर देना चाहिए।
म्यूचुअल फंड सार
2016-17 के पहले सात महीनों में भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग में 2,66,898 करोड़ रुपये का निवेश आया। कुल निवेश में से 31,627 करोड़ रुपये इक्विटी और ईएलएसएस फंडों में आये। इस अवधि में इन्कम फंडों में 1,52,304 करोड़ रुपये का निवेश हुआ। अक्टूबर 2016 के अंत में प्रबंधन अधीन कुल संपदा (एयूएम) 16,28,976 करोड़ रुपये थी, जो सालाना आधार पर 23% ज्यादा है। इसमें से 46% इन्कम फंडों और 30% इक्विटी फंडों के पास है।
(निवेश मंथन, दिसंबर 2016)