देर-सवेर इस विवाद का पटाक्षेप भी हो जायेगा, लेकिन इससे टाटा समूह की छवि को जरूर कुछ आघात पहुँचा है। बहरहाल, अब आगे की रणनीति पर विचार हो रहा है। टाटा समूह को संचालित करने वाली टाटा संस में टाटा परिवार से जुड़े ट्रस्टों की लगभग 68% हिस्सेदारी है।
वहीं लगभग 18% हिस्सेदारी के साथ शापोरजी पालोनजी मिस्त्री परिवार इकलौता सबसे बड़ा हिस्सेदार है। साइरस मिस्त्री इसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। कारोबारी हलकों में ऐसी अटकलें चल रही हैं कि रतन टाटा मिस्त्री परिवार की हिस्सेदारी खरीदने के लिए अपने माकूल किसी खरीदार को तैयार करने में जुट गये हैं। इसमें टाटा अपने दम पर खरीदारी के साथ ही किसी निवेशक वाला विकल्प भी तलाश रहे हैं। हालाँकि मिस्त्री परिवार ने टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी बेचने का अभी तक कोई इरादा नहीं जताया है, लेकिन अगर यह बात बनती है तो मिस्त्री परिवार की हिस्सेदारी को खरीदने के लिए 16 अरब डॉलर तक खर्च करने पड़ सकते हैं।
जहाँ तक मिस्त्री के उत्तराधिकारी की बात है तो इसके लिए एक खोज समिति बना दी गयी है। अटकलों के बाजार में पेप्सिको की इंद्रा नूयी से लेकर टीसीएस के सीईओ एवं एमडी एन. चंद्रशेखरन और जेएलआर के सीईओ राल्फ स्फेट के अलावा टाटा परिवार के नोएल टाटा का नाम भी लिया जा रहा है।
चार साल पहले खुद रतन टाटा ने ही नोएल पर मिस्त्री को वरीयता दी थी। इस बार कहा जा रहा है कि वे टीसीएस के मुखिया पर दाँव लगाना चाहते हैं। अगर ऐसा होता है तो नटराज चंद्रशेखरन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि उन्होंने टीसीएस में एस. रामादुरै की जिस विरासत को बखूबी सँभाला, टाटा समूह के शीर्ष पद पर भी वह वही करिश्मा दोहरायें। कुल मिला कर यह टाटा संस के निदेशक मंडल के साथ-साथ इस खोज समिति का भी कड़ा इम्तिहान होगा, क्योंकि मिस्त्री का चयन भी ऐसी ही एक खोज समिति ने किया था। बहरहाल, सबसे बड़ा दाँव टाटा संस का ही लगा है क्योंकि कारोबारी भविष्य के साथ ही उसकी साख भी दाँव पर लगी है, जिसमें 148 वर्षों का गौरवशाली अतीत समाहित है।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)