चाहे बैंक में खाता खोलना हो या शेयरों की खरीद करनी हो, केवाईसी एक जरूरी प्रक्रिया है। मोटे तौर पर कहें तो ग्राहक की पहचान और पते की जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया को केवाईसी कहा जाता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि वित्तीय सेवा उचित व्यक्ति को दी जा रही है और इसका बेजा इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
लेकिन इस व्यवस्था में दिक्कत यह है कि ग्राहक को अलग-अलग वित्तीय संस्थाओं के साथ जुडऩे के लिए बार-बार इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। ऐसे में आईआरडीए, सेबी, पीएफआरडीएसहित वित्तीय बाजार के विभिन्न नियामकों ने मिल कर एक समाधान लागू किया है जो इस प्रक्रिया के दोहराव को समाप्त कर देगा और केवाईसी की पूरी व्यवस्था को केंद्रीकृत एवं एकीकृत कर देगा। यह समाधान है सीकेवाईसी यानी सेंट्रल नो योर क्लाइंट। इसे एकल केवाईसी भी कहा जा रहा है। सीकेवाईसी रजिस्ट्री ग्राहकों के आईडी प्रूफ की प्रामाणिकता की जाँच के लिए उनके आधार और पैन का इस्तेमाल करेगी।
सेंट्रल रजिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटाइजेशन एसेट रीकंस्ट्रक्शन एंड सिक्योरिटी इंट्रेस्ट ऑफ इंडिया (सीईआरएसएआई) को सीकेवाईसी रजिस्ट्री की देखरेख की जिम्मेदारी दी गयी है, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के समूह की कंपनी डॉटेक्स इंटरनेशनल को सेवा प्रदाता और हेल्प-डेस्क का काम दिया गया है।
वित्तीय सेवा देने वाली विभिन्न संस्थाओं ने जुलाई-अगस्त 2016 से इस प्रक्रिया को अपनाना शुरू कर दिया है। अब चाहे बैंक में खाता खोलना हो या फिर म्यूचुअल फंड में निवेश करना हो या बीमा योजना की खरीद करनी हो, यह अनिवार्य होगा।
सीकेवाईसी के लाभ
एकल केवाईसी अपनाने से वित्तीय क्षेत्र में सेवा देने वाली संस्थाओं और इनसे जुडऩे वाले ग्राहकों, दोनों को लाभ होगा। ग्राहकों को अब बैंक, म्यूचुअल फंड कंपनी, बीमा कंपनी के साथ अलग-अलग केवाईसी प्रक्रिया नहीं पूरी करनी होगी। इन सभी के लिए एक ही केवाईसी प्रक्रिया अपनाये जाने से इन संस्थाओं का खर्च बचेगा और ग्राहकों को बार-बार ऐसा करने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। एकल केवाईसी का खर्च वित्तीय संस्थाएँ उठायेंगी और ग्राहक को इसका खर्च नहीं उठाना होगा।
यह उन ग्राहकों के लिए भी लाभदायक होगा, जिनको बार-बार अपना शहर बदलना पड़ता है। सीकेवाईसी रजिस्ट्री में अगर ग्राहक किसी दूसरे शहर में जाता है तो वह बिना किसी प्रमाण के अपने पत्र-व्यवहार का पता बदल सकता है। इसके बाद इसकी सूचना सभी वित्तीय संस्थाओं को खुद पहुँच जायेगी।
नये ग्राहकों के लिए
यह एक बार पूरी की जाने वाली प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के तहत ग्राहक को अपनी पहचान और पते से संबंधित दस्तावेज किसी एक वित्तीय संस्था के पास जमा कर देने होते हैं। जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो उसके बाद उस ग्राहक को एक सीकेवाईसी नंबर दे दिया जाता है। ग्राहक को ई-मेल और एसएमएस के माध्यम से इसकी सूचना दी जाती है। इसके अलावा वह वित्तीय संस्था भी आपको इस बारे में जानकारी देती है।
अब जब वह ग्राहक कोई दूसरी वित्तीय सेवा देने वाली संस्था का ग्राहक बनने जाता है, तो उसे फिर से ये सारे दस्तावेज नहीं देने होते। उसे वहाँ केवल अपना वह सीकेवाईसी नंबर उस संस्था को बता देना होता है। यानी एक बार सीकेवाईसी नंबर हासिल कर लेने के बाद वह चाहे बैंक में खाता खोले या म्यूचुअल फंड में निवेश करे या एनपीएस में पैसे लगाये या शेयरों की खरीदारी करे या फिर बीमा योजना खरीदे, उसे केवल वह नंबर बताना होगा और उसका काम आसानी से हो जायेगा।
पुराने ग्राहकों का क्या होगा
अभी यह प्रक्रिया नये ग्राहकों के लिए शुरू की गयी है। अगले चरण में विभिन्न वित्तीय संस्थाओं के पहले से पुराने ग्राहकों के केवाईसी दस्तावेजों को सीकेवाईसी रजिस्ट्री में अपलोड किया जायेगा। ऐसा करते समय अगर पुराने ग्राहक के अतिरिक्त विवरण की आवश्यकता होगी, तो ऐसे में संबंधित वित्तीय संस्था उस ग्राहक से संपर्क स्थापित कर वह जानकारी हासिल करेगी।
अनुत्तरित हैं कुछ प्रश्न
लेकिन इन सबके बीच इस बात का जवाब नहीं मिल रहा कि इलेक्ट्रॉनिक केवाईसी (ई-केवाईसी) प्रक्रिया का क्या होगा, जो केवल आधार संख्या पर आधारित है। क्या ये दोनों एक साथ चलते रहेंगे या फिर ई-केवाईसी को ठंडे बस्ते में डाल दिया जायेगा? एक प्रश्न यह भी है कि क्या पुराने ग्राहक नये ग्राहक बन कर सीकेवाईसी रजिस्ट्री के साथ जुड़ कर अपना सीकेवाईसी करा सकते हैं? सवाल यह भी है कि क्या विभिन्न वित्तीय संस्थाएँ ग्राहकों के विवरण लगातार अपडेट करते रहने में रुचि दिखायेंगी? क्या वे अपने मानव संसाधनों का इस काम के लिए इस्तेमाल करेंगी?
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)