करीब 100 से अधिक कंपनियों और 100 अरब डॉलर से अधिक राजस्व वाले देश के सबसे बड़े और विविधीकृत कारोबारी समूह टाटा संस में विरासत और अधिकारों को लेकर जंग छिड़ गई है। आखिर क्यों बने ऐसे हालात और कैसे बनेगी बिगड़ी बात?
प्रणव
उस दिन सबकी निगाहें देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी परिवार में मची रार पर लगी थीं, लेकिन अचानक ही खबर आयी कि देश के सबसे बड़े कारोबारी समूह टाटा समूह के मुखिया को आनन-फानन में उनके पद से हटा दिया गया। हालाँकि सोशल मीडिया पर मौज लेने वालों के लिए तो यह बोनस की तरह था कि उन्हें सपा के कुनबे में चल रही खींचतान के बाद टाटा में शुरू हुई तनातनी पर लतीफे बनाने का मौका मिल गया, लेकिन इसने टाटा समूह पर उस भरोसे को जरूर हिलाकर रख दिया, जो तकरीबन 150 सालों की बुनियाद पर टिका है। हालाँकि लखनऊ से लेकर मुंबई तक सियासी हलकों से लेकर कारोबारी गलियारों में चल रही इस खींचतान में एक बात समान थी कि दोनों जगह लड़ाई विरासत को लेकर ही हो रही थी।
देश के सबसे बड़े और विविधीकृत कारोबारी समूह में चेयरमैन की ऐसी औचक विदाई से तमाम तरह की अटकलें फैलने लगीं। अमूमन शीर्ष पदों पर काबिज लोगों को इस तरह हटाने का चलन नहीं देखने को मिलता है, लेकिन टाटा में ऐसा ही हुआ। वैसे मीडिया में आयी खबरों के अनुसार रतन टाटा और टाटा संस के निदेशक मंडल में उनके एक करीबी ने साइरस मिस्त्री को इस्तीफा देने के लिए मनाने की कोशिश की थी। जब मिस्त्री ने यह मानने से इन्कार कर दिया तो फिर टाटा को वीटो करने पर मजबूर होना पड़ा।
अब सवाल यही उठता है कि अपने विशिष्ट कारोबारी मूल्यों और कार्य-संस्कृति के लिए खास पहचान रखने वाले टाटा समूह में ऐसे हालात क्यों बने? इस राज पर अभी तमाम पर्दे पड़े हुए हैं, लेकिन टाटा समूह का संचालन करने वाली टाटा संस ने मिस्त्री की बर्खास्तगी के पीछे आधिकारिक तौर पर यही वजह बतायी है कि वे निदेशक मंडल का भरोसा खो चुके थे। दूसरी ओर मिस्त्री इसे गैरजरूरी और गैरकानूनी कार्रवाई करार दे रहे हैं। वे निदेशक मंडल पर तमाम आरोप लगा रहे हैं, जिस पर टाटा संस ने भी कड़ा जवाब दिया है।
दिग्गजों का टकराव
कुछ जानकार इसे शख्सियतों और विचारों का टकराव करार दे रहे हैं। देश के इस दिग्गज समूह को वैश्विक पहचान देने वाले 78 वर्षीय रतन नवल टाटा और 48 साल के मिस्त्री के कारोबारी नजरियों में खासा फर्क बताया जा रहा है। मिसाल के तौर पर मिस्त्री ने समूह को आगे ले जाने के लिए जिस विजन-2025 का खाका निदेशक मंडल के सामने रखा, उसे नकार दिया गया। मिस्त्री के इस मॉडल में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) जैसी समूह की कामधेनु साबित हो रही कंपनियों को ही और अधिक मजबूत बनाकर कमाई बढ़ाने का खाका तैयार किया था और उसमें समूह की उन अन्य ध्वजवाहक कंपनियों की अनदेखी की गयी, जो स्वर्णिम अतीत का हिस्सा रहीं लेकिन फिलहाल मुश्किल वक्त में हिचकोले खा रही हैं। साथ ही टाटा संस से टाटा परिवार के ट्रस्टों को मिलने वाले लाभांश को लेकर भी तकरार की खबरें सामने आयी हैं। ये ट्रस्ट देश-विदेश में परोपकार के तमाम कार्यों का संचालन करते हैं।
दूसरी ओर मिस्त्री ने पलटवार करते हुए टाटा के वाहन और विमानन के अलावा आतिथ्य सत्कार कारोबार को लेकर सवाल उठाये। इनमें टाटा की सबसे महत्वाकांक्षी लखटकिया कार के तौर पर पेश की गयी नैनो, विमानन में एयर एशिया के साथ जुगलबंदी और होटल कारोबार से जुड़े कुछ सौदों पर निशाना साधा गया और मुंद्रा में अल्ट्रा मेगा पावर परियोजना (यूएमपीपी) के लिए टाटा पावर द्वारा कीमतों के लिहाज से लगायी गयी आक्रामक बोली को सवालों के घेरे में खड़ा किया।
वार पलटवार
टाटा संस निदेशक मंडल की इस कार्रवाई के बाद मिस्त्री आसानी से हथियार डालते नजर नहीं आये। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय से लेकर कंपनी कानून बोर्ड तक टाटा संस के सूरमाओं को घेरने की तैयारी की। लेकिन कानूनी मोर्चे पर वे अभी तक अनिश्चय की स्थिति में हैं, क्योंकि टाटा खेमा भी इस पैमाने पर खासा चाकचौबंद है। ऐसे में मिस्त्री ने समूह के कर्मचारियों से संवाद स्थापित करने की राह चुनी और सहानुभूति बटोरने के लिए खुद को ऐसे मुखिया के तौर पर पेश किया, जिसे अपने हिसाब से काम करने की आजादी नहीं मिली। उन्होंने कहा कि उन्हें भारी कर्ज के बोझ से दबी कंपनियाँ विरासत में मिलीं, जिन्हें पटरी पर लाना किसी भी लिहाज से आसान काम नहीं था। मिस्त्री ने यह खुलासा भी किया कि टाटा संस की प्रमुख कंपनियों की हैसियत में 18 अरब डॉलर की कमी आयी है। इस पर तल्ख प्रतिक्रिया देते हुए टाटा संस ने कहा कि पद से हटाने के बाद मिस्त्री ऐसी उलूल-जुलूल बातें कर रहे हैं और खुद को निरीह साबित करने पर तुले हैं। कंपनियों की हैसियत के सवाल पर समूह ने कहा कि सभी कंपनियाँ आदर्श लेखा मानकों और कॉर्पोरेट गवर्नेंस का अनुपालन करती हैं और सही समय और पर सही मंच पर उनसे जुड़ी सभी जानकारियाँ साझा की जायेंगी। उधर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और कंपनी कानून बोर्ड (सीएलबी) भी पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाये हुए हैं।
विवाद से नुकसान
इस विवाद की कीमत टाटा समूह की कंपनियों को भी चुकानी पड़ी है। यह काफी स्वाभाविक भी था और मिस्त्री के कुछ खुलासों ने इन आशंकाओं को और बढ़ा दिया। विवाद के तीन दिनों के भीतर ही समूह के बाजार पूँजीकरण को लगभग 27,500 करोड़ रुपये की चपत लगी। यहाँ तक कि एशिया की सबसे बड़ी सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी टीसीएस भी इस विवाद से प्रभावित हुए बिना नहीं रही और उसके शेयर में अस्थिरता देखी गई। इसी तरह टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टाटा कम्युनिकेशंस, इंडियन होटल्स, टाटा पावर और टाटा ग्लोबल बेवरेजेस में भी खासा उतार-चढ़ाव देखा गया। समूह में भविष्य के नेतृत्व को लेकर जब तक कोई ठोस फैसला नहीं होता, तब तक अस्थिरता का यह दौर जारी रह सकता है। हालाँकि समूह के सिरमौर रतन टाटा ने अपने स्तर पर निवेशकों को आश्वस्त करने की कोशिश की है। जिस दिन यह विवाद हुआ, उसी रात उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रबंधन में शीर्ष स्तर पर फेरबदल की जानकारी दी। इस बीच वे सबसे बड़ी घरेलू संस्थागत निवेशक कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के प्रमुख से भी मिले हैं और उन्हें समूह में सब कुछ ठीक होने को लेकर आश्वस्त किया।
रतन की विरासत
भारत रत्न से सम्मानित इकलौते कारोबारी जेआरडी टाटा से वर्ष 1991 में समूह की कमान संभालने वाले रतन टाटा अपने नेतृत्व में समूह को नये क्षितिज पर ले गये। जब उन्होंने टाटा समूह की बागडोर संभाली थी, उस समय इसका बाजार पूँजीकरण महज 8,000 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2012 तक बढ़ कर तकरीबन 4.62 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस लिहाज से टाटा के नेतृत्व में समूह का बाजार पूँजीकरण लगभग 57 गुना बढ़ा। दूसरी ओर मिस्त्री के 4 वर्षों के संक्षिप्त कार्यकाल में समूह के बाजार पूँजीकरण में दोगुने का इजाफा हुआ। मौजूदा दौर में समूह की सबसे बड़ी कमाऊ कंपनी टीसीएस को रतन टाटा ने ही जन्म दिया और उसे इस मुकाम तक पहुँचाया। टाटा की अगुआई में ही समूह ने टेटली, जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) और कोरस स्टील जैसे बड़े वैश्विक अधिग्रहण किये। उन्होंने न केवल जेएलआर का अधिग्रहण किया, बल्कि उसका भी कायाकल्प कर दिया। आलीशान वाहन बाजार की शान समझे जाने वाले जेएलआर का एक भारतीय कंपनी द्वारा किये जा रहे अधिग्रहण पर ब्रिटेन में कमोबेश वैसी ही प्रतिक्रिया हो रही थी, जैसा अमेरिका में आईबीएम के चीनी कंपनी लेनेवो का अधिग्रहण करने के दौरान देखी जा रही थी।
हालाँकि टाटा ने इन सौदों को अंजाम देकर ही दम लिया, मगर समूह को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी। समूह की कंपनियों पर मिस्त्री जिस भारी कर्ज की बात करते हैं, वह कर्ज भी इन अधिग्रहणों के लिए ही लिया गया। जेएलआर अधिग्रहण के लिए टाटा मोटर्स और कोरस के लिए टाटा स्टील को बाजार से कर्ज उठाना पड़ा और इनके खाते में अभी भी लगभग 50-50 हजार करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज दर्ज हैं। जहाँ रतन टाटा के नाम पर वैश्विक स्तर पर इतनी उपलब्धियाँ दर्ज हैं, वहीं मिस्त्री इस दौरान जूझते ही रहे। हालाँकि इस समूह पर नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि जब टाटा ने जेआरडी की विरासत को सँभाला था तो उनके अनुभवहीन होने को लेकर तमाम लोग उन्हें निशाने पर ले रहे थे, लेकिन फिर भी टाटा संस के निदेशक मंडल ने उन्हें लेकर धैर्य का परिचय दिया और उन्हें खुद को साबित करने का मौका दिया। इस मामले में मिस्त्री उतने खुशकिस्मत नहीं रहे।
टाटा की अहमियत
भारतीय कारोबारी परिदृश्य में टाटा समूह की अहमियत का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि यह चाय और नमक से लेकर सॉफ्टवेयर और विमानन जैसे तमाम अलग-अलग कारोबारों में सक्रिय है। इस समूह की 100 से भी ज्यादा कंपनियाँ हैं, जिन्होंने पिछले वित्त वर्ष में 103.5 अरब डॉलर (लगभग 6,77,556 करोड़ रुपये) की आय अर्जित की। इसमें भी 67.3% की कमाई वैश्विक परिचालन से हुई, जो इसे भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी का खिताब देने के लिए काफी है। एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज बीएसई के कुल बाजार पूँजीकरण में लगभग 7.4% हिस्सेदारी टाटा समूह की कंपनियों की है। यह समूह तकरीबन 6 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है, जो इसे निजी क्षेत्र में सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता बनाता है।
(निवेश मंथन, नवंबर 2016)