अंबरीश बालिगा, सीओओ, वे टू वेल्थ
एसकेएस माइक्रोफाइनेंस
पिछले आधे साल से एसकेएस माइक्रोफाइनेंस के शेयर भाव में काफी गिरावट आयी है। आंध्र प्रदेश में कंपनी के कामकाज पर आया संकट इसका प्रमुख कारण है, क्योंकि इसे वहाँ अपने काफी कर्ज बट्टे खाते में डालने पड़े। लेकिन इसकी कीमत में आयी गिरावट सबसे बुरी संभावनाओं को भी पार कर चुकी है। माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के लिए एमएफआईडीआर विधेयक के कानून बन जाने पर यह इस बारे में राज्य सरकारों के कानूनों के ऊपर होगा।
इससे आंध्र प्रदेश में 2010 में बने कानून से बुरी तरह प्रभावित होने वाले माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र को राहत मिलेगी। इस बीच आरबीआई बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट को एक साथ कई बैंकों के लिए काम करने की अनुमति देने पर सिद्धांत रूप में सहमत हो गया है। इस कदम से बैंकों और उनके ग्राहकों के साथ-साथ बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट की भूमिका निभाने वाली माइक्रोफाइनेंस कंपनियों को भी फायदा मिलेगा। बीते छह महीनों में एसकेएस का कामकाज भी सुधरा है, क्योंकि इसके ऋण पोर्टफोलिओ में आंध्र प्रदेश का हिस्सा काफी घटा है। इस राज्य के इसके ज्यादातर कर्ज बट्टे खाते में डाले जा चुके हैं। कंपनी 500 करोड़ रुपये की पूँजी जुटाने वाली है, जिससे इसके बही-खाते फिर से मजबूत हो सकेंगे। अभी एसकेएस आंध्र प्रदेश में दिये गये सारे कर्जों को बट्टे खाते में डालने के बाद की 2012-13 की अनुमानित बुक वैल्यू के 1.3 गुना मूल्यांकन पर है। लेकिन अगर आंध्र प्रदेश से कुछ कर्ज वसूली होने और बैंकों से पूँजी मिलने की संभावना को देखें तो मूल्यांकन की तस्वीर कहीं ज्यादा अच्छी लगेगी।
लार्सन एंड टुब्रो
भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र से जुड़ी उम्मीदों का फायदा उठाने के लिए यह सबसे अच्छा शेयर है। इसके कामकाज में काफी विविधता है। इसके ऑर्डर बुक में 40% हिस्सा बुनियादी ढाँचा योजनाओं का, 29% बिजली परियोजनाओं का, 15% प्रोसेस संबंधी, 11% हाइड्रोकार्बन योजनाओं का और 5% अन्य क्षेत्रों का है। इसका ऑर्डर बुक 2011-12 की तीसरी तिमाही के अंत में 145,768 करोड़ रुपये का है, जो बीते 12 महीनों की इसकी आमदनी का तिगुना है। तीसरी तिमाही में इसने आमदनी में अच्छी बढ़त दर्ज के चलते मजबूत नतीजे पेश किये। तिमाही के दौरान इसे मिले नये ठेके 28.2% बढ़ कर 17,129 करोड़ रुपये के रहे। बुनियादी रूप से काफी मजबूत होने और अपने बाजार में अग्रणी स्थिति रखने की वजह यह मुझे पसंद है। मौजूदा भाव पर यह शेयर आकर्षक लग रहा है।
आईआरबी इन्फ्रा
इस कंपनी का कामकाज राजमार्गों पर होने वाले खर्च से सीधे तौर पर जुड़ा है। यह शुद्ध रूप से केवल राजमार्गों के विकास के काम में लगी है। इसके पास अभी 16 बीओटी सड़क परियोजनाएँ हैं, जिनमें से 11 परियोजनाएँ चालू हैं। जिन पाँच परियोजनाओं में अभी निर्माण जारी है, उनमें अहमदाबाद-वड़ोदरा परियोजना को छोड़ कर बाकी परियोजनाएँ 2013-14 तक चालू हो जायेंगी। अभी इसकी आमदनी में 63% हिस्सा ईपीसी परियोजनाओं का है। अगले 2-3 सालों तक कंपनी की आमदनी में बढ़त मुख्य रूप से ईपीसी कारोबार की वजह से ही आयेगी। लेकिन जयपुर-टोंक-देवली, अमृतसर-पठानकोट, तालेगाँव-अमरावती वगैरह की बीओटी परियोजनाओं के पूरा होने के बाद कुल आमदनी में बीओटी गतिविधियों की हिस्सेदारी काफी बढ़ जायेगी। कंपनी के पास कारोबारी तौर पर अच्छी संभावनाओं वाली कई परियोजनाएँ हैं, जैसे मुंबई-पुणे, दहिसर-सूरत, भरूच-सूरत वगैरह। प्रमुख बीओटी परियोजनाओं के चालू होने पर टोल संग्रह से औसत दैनिक आमदनी में बढ़ोतरी होगी। कंपनी का ऑर्डर बुक दिसंबर 2011 के अंत में 9,130 करोड़ रुपये का था, जिनका काम अगले 3-4 सालों में पूरा होगा। ईपीसी से 2010-11 के दौरान कंपनी की आमदनी की तुलना में ऑर्डर बुक लगभग छह गुना है, जिससे अगले कई सालों के लिए कंपनी की आमदनी अच्छी रहने की संभावना साफ दिखती है। एनएचएआई ने सड़क परियोजनाएँ आवंटित करने की अपनी रफ्तार तेज करने का भी संकेत दिया है। इसने 2011-12 के दौरान 7,300 किलोमीटर की परियोजनाओं के आवंटन और 2,500 किलोमीटर के निर्माण का लक्ष्य रखा है। अपने आकार, कामकाज के पैमाने और बेहतर कार्यक्षमता के मद्देनजर कंपनी एनएचएआई की परियोजनाओं के आवंटन का फायदा उठाने के लिए मजबूत स्थिति में दिखती है। मौजूदा भावों पर यह शेयर 2011-12 में 14.7 रुपये की अनुमानित ईपीएस के आधार पर 12.4 गुना पीई अनुपात पर है।
जाइडस वेलनेस
यह प्रमुख भारतीय दवा कंपनियों में से एक कैडिला हेल्थकेयर की 73% हिस्सेदारी वाली सहायक (सब्सीडियरी) कंपनी है। यह न्यूट्रालाइट (कृत्रिम मक्खन या मार्जरीन), शुगर फ्री (कम कैलोरी की मीठी गोली), एवरयूथ (त्वचा की देखभाल के उत्पाद) जैसे ब्रांडों के साथ बाजार में है। इन ब्रांडों की बाजार में अच्छी पैठ है। चीनी के विकल्प के बाजार में शुगर फ्री की हिस्सेदारी 86% है। न्यूट्रालाइट की प्रीमियम ब्रांड की छवि है और इसकी बाजार हिस्सेदारी 75% है। जाइडस के वितरण नेटवर्क में 5 लाख खुदरा दुकानें शामिल हैं। साथ ही कैडिला हेल्थकेयर का वितरण नेटवर्क भी जाइडस के उत्पादों को बाजार में आगे बढ़ाने में सहायक होगा। यह कंपनी कर्ज मुक्त है। साल 2010-11 में इसके पास 86.45 करोड़ रुपये की नकदी या नकद-जैसी संपत्तियाँ थीं। इससे कंपनी को अपना कारोबार आगे बढ़ाने के लिए विस्तार योजनाओं पर अमल में आसानी होगी। इस नकदी का इस्तेमाल किसी अधिग्रहण में भी हो सकता है। अभी यह शेयर 2012-13 की अनुमानित ईपीएस के आधार पर 15.8 के पीई अनुपात पर है। लंबी अवधि में कंपनी की संभावनाओं को देखते हुए इसे खरीदा जा
सकता है।
बैंक ऑफ बड़ौदा
इसका कामकाजी प्रदर्शन लगातार अच्छा रहा है। ब्याज दरों के हर तरह के दौर में इसने अपने रिटर्न अनुपातों को सुधारा है। औद्योगिक रूप से आगे चल रहे राज्यों, जैसे गुजरात और महाराष्ट्र में इसकी पैठ अच्छी है, जिससे इस बैंक की ओर से जारी कर्ज में अच्छी बढ़त जारी रहने की उम्मीद बनती है। अभी इसकी टियर-1 पूँजी 9.3% के ऊँचे स्तर पर है। इसलिए अगले 2 सालों तक यह बैंक बिना नयी इक्विटी पूँजी लिये ही तेज रफ्तार से आगे बढ़ सकता है। मौजूदा भाव पर यह शेयर 2011-12 की 630 रुपये की अनुमानित बुक वैल्यू के हिसाब से 1.2 के प्राइस बुक वैल्यू अनुपात पर है।
(निवेश मंथन, अप्रैल 2012)