राजीव रंजन झा :
बाजार वक्त से आगे चलने का आभास देता है, लेकिन हर बार वाकई ऐसा होना जरूरी नहीं है। कई बार बाजार किसी बड़े रुझान को देखने में काफी समय लगा देता है और जब बाजार की नजर उस रुझान पर पड़ती है, तब तक संभव है कि उस रुझान का पेंडुलम वापस पलट चुका हो।
आज टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) बनाम इन्फोसिस की बहस में यह सवाल लाजिमी लग रहा है। आज आईटी के बाजार में इन्फोसिस की स्थिति टीसीएस से काफी कमजोर लग रही है, जिसका असर उसके शेयर भावों पर नजर आ रहा है। लेकिन क्या इस कमजोर माहौल में इसे सस्ते भावों पर खरीदने का यह उचित समय नहीं है?
कमजोर वैश्विक माहौल में भी टीसीएस ने अपने शानदार प्रदर्शन से साबित किया है कि वह आईटी क्षेत्र का नेतृत्व करने की क्षमता रखती है। वहीं इन्फोसिस के तिमाही नतीजों को लेकर बाजार ज्यादा उम्मीद नहीं कर रहा था, मगर इसके नतीजे कमजोर अनुमानों से भी कमजोर रहे। पिछली तिमाही के नतीजों के बाद ही शेयर बाजार में इन्फोसिस के मुकाबले टीसीएस का पलड़ा भारी होने लगा था। अब 2012-13 की पहली तिमाही के दोनों कंपनियों के नतीजे देखने के बाद बाजार में इन्फोसिस के शेयर से भगदड़ चालू हो गयी और टीसीएस के पक्ष में आम राय बन गयी है। लेकिन क्या वाकई आईटी क्षेत्र की इन दोनों दिग्गज कंपनियों के प्रदर्शन को आँकने में शेयर बाजार का समय सटीक रहा? मुझे लगता है कि पहले तो टीसीएस के सही दमखम को आँकने में बाजार ने देरी की, और अब इन्फोसिस को एकदम खारिज करने की भेड़चाल बनती दिख रही है।
2-3 साल पहले था टीसीएस चुनने का सही समय
एक समय था जब शेयर बाजार में टीसीएस के बदले इन्फोसिस की तूती बोलती थी। यह बाजार का दुलारा शेयर था। इन्फोसिस के प्रति बाजार के इस लगाव की वजह से ही आईटी बाजार में अव्वल रहने वाली टीसीएस शेयर बाजार में इन्फोसिस के पीछे दूसरे पायदान पर अटकी रहती थी। उस वक्त और माहौल में में मैंने कहना शुरू किया था कि आगे इन्फोसिस के मुकाबले टीसीएस का प्रदर्शन बेहतर रहेगा। जनवरी 2010 में मैंने सवाल उठाया था कि ‘इन्फोसिस को ज्यादा मूल्यांकन क्यों? या दूसरे ढंग से देखें तो टीसीएस को कम मूल्यांकन क्यों?’
जनवरी 2010 में दोनों कंपनियों की बाजार पूँजी (मार्केट कैप) लगभग बराबर थी, टीसीएस की 1573 अरब रुपये और इन्फोसिस की 1533 अरब रुपये। इस समय टीसीएस की बाजार पूँजी 2,500 अरब रुपये के स्तर को छूने की ओर बढ़ती दिख रही है, जबकि इन्फोसिस की बाजार पूँजी 1,300 अरब रुपये से भी कम हो गयी है। कहाँ पहले दोनों लगभग बराबरी पर थे, और कहाँ अब दोनों की बाजार पूँजी के बीच 1100 अरब रुपये से अधिक फर्क आ गया है।
जनवरी 2010 में सामने आये नतीजों के बाद से पूरे कैलेंडर वर्ष 2010 के दौरान इन्फोसिस के शेयर भाव में करीब 26% बढ़त आयी, जबकि इस दौरान टीसीएस में 44% उछाल दिखी। हालाँकि 2010 में बेहतर चाल दिखाने के बावजूद टीसीएस का मूल्यांकन इन्फोसिस से नीचे ही था। पिछले साल जनवरी 2011 में मैंने लिखा कि अगली कुछ तिमाहियों के दौरान अगर इन्फोसिस और टीसीएस के मूल्यांकन का फर्क अगर मिट जाये तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।
इसके अगले छह महीनों में ऐसा ही होता दिखा और निवेश मंथन के अगस्त 2011 के अंक में मैंने जिक्र किया कि अब दोनों शेयरों के मूल्यांकन का फर्क घटने का दौर लगभग पूरा हो चला है। उसके बाद से भी अब तक साल भर बीत चुके हैं। बीते साल भर में मूल्यांकन का पलड़ा स्पष्ट रूप से टीसीएस की ओर झुक गया है। इसीलिए मुझे लगता है कि इस समय पेंडुलम टीसीएस की ओर ज्यादा भाग गया है।
अगर हम टीसीएस और इन्फोसिस के 2005 से अब तक के चार्ट को साथ रख कर देखें तो पता चलता है कि 2005 से 2007 तक टीसीएस ने इन्फोसिस से अपने मूल्यांकन के फर्क को घटाने की कोशिश की, लेकिन इसके बाद 2009 तक की गिरावट में इसे इन्फोसिस की तुलना में ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा। मगर 2009 के बाद से दोनों शेयरों में जो नयी चाल शुरू हुई, वह टीसीएस में अब तक कायम है, जबकि इन्फोसिस के लिए वह चाल 2011 की शुरुआत में ही टूट गयी। इस तरह बीते तीन साढ़े तीन सालों के दौरान टीसीएस ने न केवल इन्फोसिस से अपने मूल्यांकन में कमी को पाटा, बल्कि अब उससे कहीं ज्यादा मूल्यांकन पर चल रहा है।
कब फिरेंगे इन्फोसिस के दिन
अभी इन्फोसिस संक्रमण के दौर से गुजर रही है। न केवल कंपनी के प्रबंधन में कई बड़े बदलाव आये, बल्कि इसने अपनी कारोबारी रणनीति में अहम फेरबदल किया है। इन सब बातों से फौरी तौर पर कंपनी के कामकाज पर दबाव दिख रहा है। वैश्विक बाजार की परिस्थतियाँ तो विपरीत हैं ही। लेकिन अभी यह मानने का कोई कारण नहीं दिखता कि इन्फोसिस जैसी कंपनी इन समस्याओं से उबरेगी ही नहीं। देर-सबेर परिस्थितियाँ भी अनुकूल होंगी और यह अपनी नयी कारोबारी रणनीति को भी जमा पायेगी। इसलिए मूल्यांकन के पैमाने पर इन्फोसिस का शेयर धीरे-धीरे टीसीएस के बराबर लौटने की कोशिश करेगा। लंबी अवधि में इन्फोसिस और टीसीएस के बीच ज्यादा फासला नहीं रहेगा और दोनों को लगभग साथ-साथ चलना होगा। पर संभव है कि दोनों के मूल्यांकन वापस एक जैसे स्तरों पर आने में अगले 2-3 सालों का समय लग जाये।
निश्चित रूप से 2012-13 की पहली तिमाही में इन्फोसिस के नतीजों से सबको निराश किया है। उसका असर इसके शेयर भाव पर दिख रहा है। इससे पिछली तिमाही के नतीजों के बाद भी जब यह टूटा था तो करीब 2200 तक फिसल गया था। अब यह वापस 2200 के करीब तक आ चुका है और निचले स्तरों से सँभलने का भी कोई संकेत नहीं दे रहा। अगर यह 2200 के नीचे फिसला तो शायद इसे करीब 10% और नुकसान झेलना पड़े। पर ध्यान रखें कि 2012-13 की सालाना आमदनी के अनुमानों के कटौती के बाद भी कंपनी ने 166.5 रुपये की सालाना ईपीएस रहने का अनुमान जताया है। लगभग 2200-2250 के मौजूदा भाव पर यह 2012-13 की 166.5 रुपये की सालाना अनुमानित ईपीएस के आधार पर 13.2-13.5 के पीई पर है और 2000 रुपये के भाव पर इसका पीई केवल 12 रह जायेगा। वहाँ इसका मूल्यांकन काफी आकर्षक होगा, पर लगातार बड़े झटके झेलने वाले निवेशक आसानी से इसकी ओर नहीं लौटेंगे। इसलिए इन्फोसिस का शेयर अभी कुछ समय तक हल्की कमजोरी या सपाट रुझान के साथ चल सकता है।
लक्ष्य भाव तो इन्फोसिस का ही ऊँचा
हालाँकि अगर इन तिमाही नतीजों के बाद विभिन्न ब्रोकिंग फर्मों की रिपोर्ट देखें तो एक दिलचस्प तथ्य उभर रहा है। विश्लेषकों की टिप्पणियों में भले ही इन्फोसिस को छोड़ कर टीसीएस की ओर जाने की बातें हों, लेकिन इन नतीजों के तुरंत बाद 11 ब्रोकिंग फर्मों ने जो संशोधित लक्ष्य भाव रखे हैं, उनका औसत निकालें तो टीसीएस का 12 महीनों का लक्ष्य भाव 1310 रुपये बनता है, जो 1236 रुपये के मौजूदा भाव से केवल 6.0% ऊपर है। वहीं इन्फोसिस का लक्ष्य भाव 2571 रुपये है, जो 2265 रुपये के मौजूदा भाव से 13.5% ऊपर है। अब इस हिसाब से अगर किसी को आज नया निवेश करना हो तो इनमें से किस शेयर को चुनना चाहिए?
(निवेश मंथन, अगस्त 2012)