शिवानी भास्कर :
बजट का समय आते ही बड़े-बड़े उद्योग घरानों से लेकर हर तरह के दबाव समूह से सक्रिय हो जाते हैं, चाहे वे किसानों से जुड़े हों, मजदूरों से या फिर नौकरीपेशा वर्ग से। उद्योग जगत के लिए मिनिमम अल्टरनेट टैक्स (मैट), उत्पाद (एक्साइज) शुल्क, अलग-अलग तरह के अन्य शुल्क और सेस वगैरह महत्वपूर्ण मसले होते हैं। शेयर बाजार का खास ध्यान लंबी अवधि और छोटी अवधि के पूँजीगत प्राप्ति कर (कैपिटल गेन टैक्स) और सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) वगैरह पर होता है।
लेकिन इन तमाम हलचलों से अलग, देश के नौकरीपेशा वर्ग की नजरें केवल इस बात अटकी रहती हैं कि निजी आय कर (इन्कम टैक्स) की दरों में कुछ बदलाव होगा या नहीं और करों में कोई नयी छूट मिलेगी या नहीं। इस वेतनभोगी वर्ग के लिए बजट दूसरे तमाम वर्गों से शायद ज़्यादा संवेदनशील भी होता है और ज़्यादा असरकारक भी। ऐसा इसलिए कि उद्योग जगत पर लगने वाले तमाम तरह के दूसरे कर और शुल्क तो साल के बीच में भी बदलते रहते हैं, लेकिन आय कर से जुड़े बदलावों के लिए साल का बस यही एक समय होता है। अहम बात यह भी है कि किसानों, मजदूरों और उद्योगों की आवाज उठाने के लिए तो सरकारी गलियारों में काफी टोलियाँ घूमती रहती हैं, लेकिन वेतनभोगियों की समस्याएँ उठाने के लिए शायद ही कोई लॉबी है।
इस पृष्ठभूमि में कारोबारी साल 2012-13 का बजट कुछ इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि सरकार ने इसी साल से प्रत्यक्ष कर संहिता यानी डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) लागू करने का लक्ष्य बना रखा है। डीटीसी एक ऐतिहासिक कदम होगा, क्योंकि इससे पिछले कई दशकों से चले आ रहे आय कर संबंधित सारे नियम-कानून बदल जायेंगे। आय कर भरने वाला हर व्यक्ति डीटीसी के दायरे में आयेगा और उसकी कर देनदारी पर इसका काफी असर पड़ेगा।
डीटीसी के मूल मसौदे में अब तक बहुत से बदलाव हो चुके हैं। इन बदलावों के बावजूद यह अब भी एक ऐतिहासिक कदम होने की सारी खूबियाँ रखता है। डीटीसी के मौजूदा मसौदे के मुताबिक करमुक्त (टैक्स फ्री) आय की सीमा को 1.80 लाख रुपये से बढ़ा कर दो लाख रुपये किया जाना है। साथ ही 80सी के तहत अधिकतम निवेश की रकम में भी बदलाव होगा। फिलहाल 80सी के तहत एक लाख रुपये तक के निवेश को कर योग्य आय से घटाया जाता है। इसके लिए आप कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ), पीपीएफ, न्यू पेंशन फंड, पाँच साल के मियादी जमा (एफडी), राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (एनएससी), टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड और यूनिट लिंक्ड इन्श्योरेंस प्लान (यूलिप) वगैरह में किये गये निवेश को शामिल कर सकते हैं। इसके अलावा जीवन बीमा प्रीमियम और बच्चों की ट्यूशन फीस पर खर्च हुई रकम को भी एक लाख रुपये के इस निवेश में शामिल किया जाता है। इसके ऊपर बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्डों) में 20,000 रुपये तक के अतिरिक्त निवेश को भी कर योग्य आमदनी से अलग रखा जाता है।
मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक 80डी के तहत 15 हजार रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम और 20 हजार रुपये तक के वरिष्ठ नागरिक कैटेगरी में माता-पिता के स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को भी आय कर योग्य आमदनी से बाहर रखा गया है। यानी 80सी और बुनियादी ढाँचा बांडों के 1.20 लाख रुपये में स्वास्थ्य बीमा की राशि जोड़ दी जाये, तो कुल 1.55 लाख रुपये तक का निवेश करके आप उस पर आय कर से छूट पा सकते हैं।
लेकिन नयी व्यवस्था में आय कर बचाने के लिए इस निवेश के योग्य विकल्पों में काफी कटौती की गयी है। डीटीसी के मौजूदा मसौदे के तहत केवल ईपीएफ, पीपीएफ और एनपीएस जैसे लंबी अवधि की रिटायरमेंट सेविंग उत्पादों को ही रखा गया है, जिनमें निवेश करके आप एक लाख रुपये तक की आय पर कर छूट पा सकते हैं। इसके अलावा 50,000 रुपये तक की छूट जीवन बीमा के टर्म प्लान और स्वास्थ्य बीमा योजना के सालाना प्रीमियम पर भी देने का प्रस्ताव है।
इस छूट में इसमें बच्चों की ट्यूशन फीस भी शामिल है। प्योर लाइफ इन्श्योरेंस की शर्त यह है कि इसका सम एश्योर्ड यानी बीमा राशि सालाना प्रीमियम की कम-से-कम 20 गुणा होना चाहिए और ट्यूशन फीस की छूट में केवल 2 ही बच्चों की फीस शामिल होगी।
डीटीसी के मौजूदा मसौदे में आय कर की दरों के दायरे (टैक्स स्लैब) में भी बदलाव का प्रस्ताव हैं। इसके तहत 2 लाख से 5 लाख रुपये तक की आमदनी पर 10% का कर लगेगा, जबकि अभी यह दायरा 1.8 लाख रुपये से 5 लाख रुपये तक का है। अभी 5 से 8 लाख रुपये तक की आय पर 20% आय कर लगता है, जबकि नयी व्यवस्था में 5 से 10 लाख रुपये तक की आमदनी पर 20% आय कर लगेगा। अभी 8 लाख रुपये से ज्यादा की आय पर 30% का टैक्स लगता है, जबकि डीटीसी के तहत यह दर 10 लाख रुपये से ऊपर की आमदनी पर लागू होगी।
अगर आपकी सालाना आय 12 लाख रुपये है। इस आपकी कर देनदारी 2-5 लाख रुपये की आमदनी के लिए 30,000 रुपये (तीन लाख रुपये का 10%), पाँच से 10 लाख रुपये की आमदनी के लिए एक लाख रुपये (पाँच लाख रुपये का 20%) और 10 से 12 लाख रुपये के बीच की आमदनी के लिए 60,000 रुपये (दो लाख रुपये का 30%) यानी कुल 1.90 लाख रुपये होगी। मौजूदा दरों के लिहाज से यह देनदारी 2.12 लाख रुपये (1.8 लाख से 5 लाख के बीच 32,000, 5 लाख से 8 लाख के बीच 60,000 और 8 लाख रुपये से 12 लाख रुपये के बीच 1,20,000) है। मतलब एक लाख रुपये के कर योग्य मासिक आयपर आप डीटीसी व्यवस्था में सालाना 22,000 रुपये बचा पाएंगे।
डीटीसी में एक और बड़ा बदलाव घर खरीदने के लिए कर्ज लेने वालों से संबंधित है। मौजूदा व्यवस्था में लिये गये घर कर्ज (होम लोन) में मूलधन (प्रिंसिपल) की वापसी पर सालाना एक लाख रुपये तक और ब्याज भुगतान पर सालान 1.5 लाख रुपये तक कर छूट ली जा सकती है। लेकिन डीटीसी के मसौदे के मुताबिक मूलधन की वापसी पर कर छूट खत्म हो जायेगा। हालाँकि 1.5 लाख रुपये तक के ब्याज पर कर छूट की व्यवस्था जारी रहेगी।
हालाँकि यहाँ ध्यान रखने की बात है कि डीटीसी का मौजूदा मसौदा अंतिम नहीं है। वित्त मामलों पर गठित संसद की स्थायी समिति ने इस पर विचार करके सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी हैं। इस समिति के अध्यक्ष पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा हैं। समिति ने सालाना 3 लाख रुपये तक की आमदनी को आयकर से मुक्त रखने की सिफारिश की है।
इसके अलावा इसने आय कर से छूट वाली निवेश की रकम को बढ़ा कर ३.२0 लाख रुपये करने की सिफारिश भी की है। इन सिफारिशों को 12 मार्च से शुरू होने जा रहे संसद के बजट सत्र में पेश किया जायेगा। लिहाजा सबकी नजरें इस बात पर होंगी कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी आगामी साल के बजट में इस समिति की कितनी सिफारिशों को किस हद तक शामिल करेंगे। इन सिफारिशों पर चाहे जितना भी अमल हो, लेकिन इतना तो तय है कि डीटीसी देश में छह दशकों से चली आ रही कर प्रणाली को पूरी तरह बदल कर एक नये युग का सूत्रपात करेगा।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)