गजेंद्र नागपाल, सीईओ, यूनिकॉन इन्वेस्टमेंट :
बाजार काफी समय से इस बात को लेकर चिंतित है कि सरकार की तरफ से नीतियों के मोर्चे पर कुछ नया नहीं हो रहा है और नीतिगत सुधार ठप पड़ा है। बाजार की चिंता यह है कि सरकार के इस तरह अटक जाने से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है।
इसी वजह से बाजार ने पिछली कुछ तिमाही में जो रुख दिखाया, उसके बारे में हम सब जानते हैं। दरअसल नीतियों पर गाड़ी आगे नहीं बढऩे की वजह से बाजार हताशा का माहौल था। लेकिन जैसे-जैसे बजट का सत्र नजदीक आता जा रहा है, बाजार यह बात महसूस कर रहा है कि इन विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद आगे कोई अगला चुनाव नहीं हैं। बाजार को यह भी उम्मीद लग रही है कि उत्तर प्रदेश में जो भी नयी सरकार बनेगी, उसमें कांग्रेस की काफी दखल होगी। अगर ऐसा कुछ होता है तो यूपीए सरकार के हाथ मजबूत होंगे और अपने रुख में काफी उतार-चढ़ाव दिखाने वाली ममता बनर्जी पर कांग्रेस की निर्भरता कम होगी।
इसलिए एक तो यह बात है कि आगे इन्हें नीतिगत सुधार करने ही हैं, क्योंकि अब तुरंत कोई चुनाव आने वाला नहीं होगा। दूसरे यह कि अगर इन चुनावों में अच्छा जनादेश मिला तो उनकी स्थिति मजबूत हो जायेगी। मेरे विचार से ये दोनों समाचार बाजार के लिए अच्छे साबित हो सकते हैं। इन दोनों बातों की वजह से बाजार अपेक्षा रखेगा कि लंबी अवधि के लिए जो हमारे कठिन निर्णय थे, उन पर आगे बात बनेगी। बाजार की नजर जिन फैसलों पर है, उनमें से एक है एफडीआई रिटेल।
इसके अलावा हवाई सेवा क्षेत्र को 49% प्रतिशत विदेशी साझेदारी के लिए खोलें या प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्स कोड या डीटीसी) की बात करें या जो दूसरे मुश्किल सुधार हैं, उनके बारे में बात हो। बजट एक ऐसा उचित मौका है, जिसमें इन सारी बातों की घोषणा हो सकती है। ये बात अलग है कि शायद ये सारे कदम इस बजट में नहीं उठाये जा सकें। लेकिन बजट से सरकार का आगे का रुख तय हो जाता है। इसलिए इस बजट से यह समझ में आना चाहिए कि सरकार का रुख सही दिशा में है या नहीं। बाजार इसी बात को समझना चाहेगा।
जहाँ तक सवाल है विभिन्न उद्योगों पर बजट के असर का, तो यह अब बजट की यह भूमिका घटती जा रही है। हालाँकि बाजार की यह आदत है कि बजट से पहले एक उत्साह का माहौल बन जाता है और यह मीडिया के रूप में भी दिखता है। हम सब जानते हैं कि बजट सरकार के बही खातों का लेखा जोखा है।
लेकिन इसमें बतायी गयी प्राथमिकताओं से यह समझ में आता है कि सरकार का रुझान किस तरफ रहने वाला है। किन उद्योगों की ओर सरकार का झुकाव बढ़ेगा और किनके प्रति ऐसा नहीं होगा।
बजट में हमें सरकारी घाटे के आँकड़ों का पता चलेगा। उससे यह समझ में आयेगा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आगे किस तरह की नीतियों पर चल सकता है। उदाहरण के लिए अगर बजट में यह कहा जाता है कि विकास दर को बढ़ाने के लिए हमें ब्याज दरों को नीचे लाना पड़ेगा क्योंकि वास्तविक ब्याज दरें अब भी काफी ऊँची हैं। अभी बड़ी-बड़ी कंपनियाँ और बड़े-बड़े वित्तीय संस्थान लंबी अवधि में पूरी होने वाली परियोजनाओं के लिए पैसा मुहैया कराने को तैयार नहीं हैं। प्रमोटर अपने परियोजनाओं में बड़े निवेश की प्रतिबद्धता देने के लिए तैयार नहीं हैं। लिहाजा बजट में हमें यह संकेत मिलेगा कि बुनियादी ढाँचे को लेकर क्या रुख होने वाला है। यह पता चलेगा कि बिजली क्षेत्र को लेकर जो चिंताएँ हैं, खास कर ईंधन की आपूर्ति को लेकर, उस बारे में क्या होने वाला है। कच्चे तेल की कीमतें जिस ढंग से चल रही हैं, अगर उसी तरह से चलता रहा तो सरकार क्या तेल कंपनियों को इसकी मार झेलने के लिए छोड़ देगी या सरकार के पास कोई मजबूत योजना है?
अगर सरकार का कर संग्रह ठीक-ठाक रहता है तो सरकार के पास शायद यह विकल्प होगा कि तेल के दाम बढऩे का बोझ पूरी तरह से लोगों के ऊपर डाल दे या सीमित रूप में ही डाले। लेकिन अगर कर संग्रह भी कम रहा तो जाहिर है कि सरकार को कुछ कठिन कदम उठाने पड़ेंगे। बाजार यह भी देखेगा कि अगर करों में कोई कटौती होती है तो उससे अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त पैसा आयेगा या नहीं।
सीधे-सीधे शेयर बाजार के कामकाज पर असर डालने वाली जो बाते हैं, जैसे सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) वगैरह, उनको लेकर हमारे संगठन ने वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के सामने अपना पक्ष रखा है। इन मुद्दों पर उनका रुख सकारात्मक भी था, क्योंकि इससे कोई बहुत बड़ी राशि सरकार के खजाने में नहीं जा रही है। लेकिन दूसरी तरफ बाजार में सौदों पर लगने वाले शुल्क इतने ज्यादा हैं कि उससे कारोबारी तबका बाजार से थोड़ा अलग रहता है। इसलिए अगर सरकार इस पर कुछ राहत देती है, तो यह शेयर बाजार के लिए जरूर एक अच्छी खबर होगी और इससे बाजार में कारोबार की मात्रा बढ़ेगी।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)