संजय सिन्हा, संस्थापक, साइट्रस एडवाइजर्स :
बाजार की सबसे पहली अपेक्षा इस साल के केंद्रीय बजट से यह है कि इसमें सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर नियंत्रण पाने की कोशिश की जायेगी। बाजार चाहता है कि सरकार अपने घाटे को काबू में लाये, साथ ही साथ उद्योग जगत यह भी उम्मीद कर रहा है कि सरकार करों की दरें इन स्तरों से अब ऊपर न बढ़ाये।
सरकार के लिए इन दोनों उम्मीदों को पूरा करना शायद कठिन होगा। इसलिए संभव है कि वह एक मिला-जुला बजट ले कर आयेगी, जिसमें वह वर्ष 2012 की तुलना में 2013 के सरकारी घाटे को कम रखने की कोशिश करेगी। लेकिन साथ ही यह भी संभव है कि सेवा कर (सर्विस टैक्स) और उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) की दरें 2008 के स्तर पर वापस लायी जा सकती हैं। यानी सरकार ने वैश्विक मंदी के चलते उस समय जो प्रोत्साहन दिये थे, उन्हें वापस लिया जा सकता है। इसलिए छोटी अवधि में बाजार की प्रतिक्रिया इन प्रस्तावों के कारण नकारात्मक हो सकती है। पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों का भी आगामी बजट पर प्रभाव रहेगा। यूपीए सरकार या उसके गठबंधन के दलों को मुख्य राज्यों में बढ़त न मिलने की स्थिति में लोकलुभावन किस्म का बजट लाने की कोशिश हो सकती है।
शेयर बाजार के कामकाज के बारे में यह उम्मीद की जा रही कि सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) को हटा दिया जायेगा। मेरे ख्याल से इसे कुछ घटाने के बदले हटा दिया जाये, इसकी उम्मीद ज्यादा है।
अगर उत्पाद शुल्क और सेवा कर में बढ़ोतरी हुई तो बाजार की पहली प्रतिक्रिया नकारात्मक हो सकती है। मुझे यही लग रहा है कि इनकी दरें बढ़ायी जायेंगी। कुछ नयी सेवाएँ को इस बार सेवा कर के दायरे में लाया जायेगा, जैसे कि फिल्म निर्माण वगैरह। लेकिन बाजार की प्रतिक्रिया शायद केवल किसी एक पहलू पर ज्यादा ध्यान दे कर न हो।
अगर उसके सामने कुछ ऐसे पहलू भी आयें जिनका प्रभाव सकारात्मक हो, जैसे एसटीटी हटाना, विनिवेश का लक्ष्य, आय कर की छूट की सीमा में बढ़ोतरी और इसके दायरे (स्लैब) ज्यादा तार्किक बना कर डीटीसी के और करीब लाना, तो बाजार इन सकारात्मक बातों को भी ध्यान में रख कर अपनी प्रतिक्रिया देगा।
मेरा अंदाजा है कि प्रत्यक्ष कर संहिता या डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) पर इस बजट में कुछ तो घोषणा होनी चाहिए। अगर इस बजट में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) और डीटीसी के बारे में चर्चा न हो और इन पर आगे की कार्ययोजना सामने न रखी जाये तो इससे बाजार को काफी निराशा होगी।
जहाँ तक आम लोगों की बात है, अब पाँच लाख रुपये तक की वार्षिक आय पर रिटर्न दाखिल करना अनिवार्य नहीं होगा। कर मुक्त (टैक्स फ्री) बांडों में निवेश की सीमा 20,000 रुपये से बढ़ा कर संभवत: 50,000 रुपये या एक लाख रुपये कर दी जायेगी। आय कर में छूट की सीमा भी कुछ बढ़ायी जायेगी।
साथ ही बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के कुछ प्रस्ताव भी बजट में शामिल हो सकते हैं। यह काम तीन तरीकों से संभव है। एक तो बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में पूँजी जुटाने पर कर छूट दे कर प्रोत्साहन दिया जायेगा। दूसरे, कुछ प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की रूपरेखा की घोषणा हो सकती है। तीसरे, मौजूदा परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए भी प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
इन सब बातों को ध्यान में रख कर बाजार छोटी अवधि और लंबी अवधि के फायदे-नुकसान को देखने की कोशिश करेगा।
एक संभावना बनती है कि बजट साहसिक (बोल्ड) रहे, उसमें सरकारी घाटे को लेकर मजबूत कदम उठाये जायें और इसके लिए छोटी अवधि के लिहाज से कुछ अलोकप्रिय कदम उठाये जायें, जैसे कि करों की दरें बढ़ाना। ऐसी स्थिति में भले ही छोटी अवधि में बाजार की प्रतिक्रिया नकारात्मक हो, लेकिन मध्यम से लंबी अवधि में ऐसा करना बाजार के लिए सकारात्मक ही रहेगा।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)