राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक
टेलीकॉम घोटाले में अदालती निर्णयों से एक अरसे से छायी धुंध छँट गयी है। ऐसा लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को कारोबारी जगत ने सकारात्मक ढंग से ही लिया है। कम-से-कम शेयर बाजार की प्रतिक्रिया से यही लगता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुए फर्जीवाड़े का देश के सामने रहस्योद्घाटन तो हो गया, लेकिन कई अनुत्तरित सवाल भी रह गये।
जैसे, पहले आओ पहले पाओ की नीति के आधार पर पूर्व में मिले लाइसेंस विधिसम्मत हैं या नहीं? इक्विटी बेचना क्या अनैतिक है और क्या यह न्यायसंगत प्रक्रिया नहीं है? असल में इक्विटी बेचना और मुनाफाखोरी दो अलग-अलग चीजें हैं। सट्टेबाजी, जमाखोरी, कालाबाजारी से हुई आमदनी को मुनाफाखोरी कहा जाता है। लेकिन राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों से इन दोनों का घालमेल बिना-वजह एक भ्रम पैदा कर रहा है, जो अंतत: कारोबार के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकता है। 2जी घोटाले पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और अन्य तमाम पहलुओं पर केंद्रित है हमारी आमुख कथा। विश्वास है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
इस समय पूरा देश मार्च महीने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। पाँच विधानसभा चुनावों के परिणाम छह मार्च तक आने हैं और बजट सत्र 12 मार्च से शुरू हो रहा है। आम बजट 16 मार्च को आना है। इन विधानसभा चुनावों के परिणामों का बजट और कारोबारी माहौल पर सीधा असर पड़ेगा।
राजकोषीय घाटा हद पार कर चुका है। सरकारी कमाई बजट अनुमानों से कम है।पूँजीगतनिवेशगिररहाहै। रुपये के गिरते मूल्य, अक्षम प्रणाली, वित्तीय रिसाव, प्रशासनिक अपारदर्शिता आदि कारणों के चलते सरकारी सहायता (सब्सिडी) का बढ़ता बिल अर्थव्यवस्था को अशक्त कर रहा है। विभिन्न सरकारी मंचों से आ रही आवाजों से यह साफ संकेत मिलते हैं कि राजकोषीय घाटे पर अपेक्षित नियंत्रण पाने के लिए बजट में करों और शुल्कों में चौतरफा बढ़ोतरी अपरिहार्य है। वहीं कारोबारी जगत का कहना है कि करों और शुल्कों में वृद्धि अवांछनीय है, क्योंकि मुद्रास्फीति के चलते कठोर मौद्रिक नीतियों के कारण विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है। बेहतर यह है कि अधिक कर लगाने की बजाय सरकार अनुत्पादक खर्चों को घटा कर राजकोषीय संतुलन लाये।कारोबारीजगतकामतलबसाफहैकिसरकारअपनीफिजूलखर्चीपरअंकुशलगाये।यहाँएकऔरयक्षप्रश्नलोगोंकोमथरहाहै।दुनियाभरमेंधनिकोंपरअधिककरलगानेकीमाँगचलरहीहै।अमेरिकाने हाल ही में ऐसा किया भी है। क्या वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी यहाँ भी धनिकों पर अधिक कर लगाने की पहल कर पायेंगे?
बजट एक ऐसा अवसर होता है, जब वित्त मंत्री इसके माध्यम से कारोबारी माहौल बदल सकते हैं। अभी अर्थव्यवस्था की विकास दर पिछले तीन सालों में न्यूनतम स्तर पर है।कारोबारीविश्वासडिगाहुआहै।घोटालोंकेकारणयूपीएसरकारकीक्षमताओंकोलेकरआमसेखासलोगोंकेदिलो-दिमागमेंतमामप्रश्नचिह्नहैं।राजनीतिकमजबूरियोंकेकारणयूपीएसरकारअपनेपसंदीदाआर्थिकसुधारनहींकरपारहीहै।इनमेंमल्टीब्रांडखुदराकारोबार और विमानसेवा क्षेत्र में 49% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का मुद्दा प्रमुख है। डीजल की कीमतों को नियंत्रणमुक्त करने के बारे में भी यूपीए सरकार चाह कर भी निर्णय नहीं कर पा रही है।
इसलिए पाँच विधानसभा के चुनाव-परिणामों पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। यदि चुनाव परिणाम कांग्रेस के अनुकूल होते हैं, तो आर्थिक सुधारों के हिमायतियों का मानना है कि कारोबारी जगत में नये विश्वास का संचार होगा। आगामी बजट यदि सरकार के हिसाब-किताब का लेखा भर बनने की बजाय एक नीतिगत दस्तावेज बन कर उभरता है तो हताशा और निराशा से सरकार को ही नहीं, बल्कि कारोबारी जगत को भी छुटकारा मिल सकता है।
(निवेश मंथन, फरवरी 2012)