आलोक द्विवेदी :
इसमें किसी को कोई शक नहीं है कि नैनो कार का विचार क्रांतिकारी था।
जब इस विचार को अमली जामा पहनाने की बारी आयी तो टाटा मोटर्स ने विश्व-स्तरीय खासियतों के साथ शानदार डिजाइन प्रस्तुत किया। यही नहीं, ईंधन की खपत, कार में उपलब्ध जगह और लागत के लिहाज से टाटा मोटर्स ने बेहतरीन संयोजन पेश किया। लेकिन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कुशलता दिखाने वाली टाटा मोटर्स मार्केटिंग के क्षेत्र में ऐसा नहीं कर पायी।
नैनो का उत्पादन पश्चिम बंगाल के सिंगूर में किया जाना था। लेकिन वहाँ बात न बन पाने की वजह से नैनो के उत्पादन संयंत्र को गुजरात स्थानांतरित करना पड़ा। इसकी वजह से नैनो का उत्पादन शुरू करने और बाजार में उतारने में भी देरी हुई। शुरुआत में नैनो की माँग खासी अधिक थी, लेकिन टाटा मोटर्स के पास उतनी क्षमता नहीं थी कि यह उस माँग को पूरा कर सके। इस वजह से भी टाटा मोटर्स को नुकसान हुआ।
एंजेल ब्रोकिंग के ऑटोमोबाइल विशेषज्ञ यारेश कोठारी के अनुसार, ‘कार की लांचिंग के समय प्रतीक्षा अवधि काफी अधिक थी, जिसने इसके खिलाफ काम किया।' आरंभ में भारी माँग को देखते हुए ग्राहकों को चुनने के लिए लॉटरी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन ग्राहकों की माँग को पूरा करने में टाटा मोटर्स की ओर से हुई देरी की वजह से काफी लोगों ने अपनी बुकिंग निरस्त कर दी।
टाटा मोटर्स को उम्मीद थी कि नैनो के बारे में शुरुआत से बने माहौल और टाटा मोटर्स के साथ जुड़े इसके नाम की वजह से यह बाजार में स्थापित हो जायेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। और जब यह असफलता दिखी, तो भी स्थिति सुधारने के लिए टाटा मोटर्स ने जरूरी कदम नहीं उठाये।
तकनीकी दिक्कतों और सुरक्षा से संबंधित मसलों की वजह से भी नैनो की बात बिगड़ी। कोठारी का मानना है कि %शुरुआती दिनों में नैनो में आग लगने की कुछ घटनाओं ने इस मॉडल की बिक्री पर नकारात्मक असर डाला।Ó
परफेक्ट रिलेशंस के सह-संस्थापक दिलीप चेरियन जिक्र करते हैं कि ‘इसके आने के तुरंत बाद ही सुरक्षा का मुद्दा उठ गया था, जिसका पूरा समाधान अभी हुआ नहीं है। इसका पूरा समाधान शायद मुश्किल हो, लेकिन इसके बारे में बात करना कंपनी के लिए जरूरी भी है।' इसके अलावा एयर बैग्स का अभाव, कम बूट स्पेस, छोटा फ्यूल टैंक आदि भी इसके खिलाफ गये।
ये सब बातें अपनी जगह, लेकिन नैनो की असफलता के पीछे मार्केटिंग के मोर्चे पर टाटा मोटर्स की गलती का योगदान भी कम नहीं रहा। चेरियन के अनुसार, ‘नैनो की ब्रांडिंग में गलतियाँ तो काफी कुछ हुई हैं। बाजार में आने के बाद नैनो का असर बहुत हल्का रहा है। गरीब की गाड़ी वाला संदेश किसी भी गाड़ी के लिए अच्छा नहीं है। उन्हें इस बात पर इतना जोर नहीं डालना चाहिए था।'
ब्रांड गुरू जगदीप कपूर का मानना है,’नैनो अगर उम्मीदों पर खरी न उतर सकी तो इसके पीछे वजह थी पोजिशनिंग के मोर्चे पर कंपनी की रणनीतिक गलती। उनके अनुसार कंपनी ने कीमत के ऊपर पोजिशनिंग करते हुए गलती की। इसकी पोजिशनिंग लागत के ऊपर न करते हुए प्राप्त मूल्य (पर्सीव्ड वैल्यू) के ऊपर की जानी चाहिए थी।' कोठारी भी कपूर की इस बात से सहमत दिखते हैं। वह कहते हैं, ‘दुनिया की सबसे सस्ती कार के तौर पर नैनो का प्रचार इसकी असफलता की प्रमुख वजहों में से एक था।'
ब्रांड गुरू कपूर का मानना है कि ‘टाटा मोटर्स ने नैनो की मार्केटिंग करते समय उपभोक्ताओं की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान नहीं दिया। भारतीय बाजार में नैनो की असफलता की एक वजह यह भी रही कि भारत में उपभोक्ता किसी वैल्यू चेन में ऊपर की ओर चढऩा चाहते हैं, नीचे नहीं उतरना चाहते।' रतन टाटा ने इस कार का सपना दोपहिया पर चलने वाले उन परिवारों के लिए देखा था जिन्हें काफी असुविधा और जोखिम का सामना करना पड़ता है। लेकिन कंपनी की मार्केटिंग रणनीति अपने इन लक्ष्यित ग्राहकों तक इस संदेश को पहुँचा नहीं पायी।
ध्यान रहे कि कई लोगों ने नैनो को दूसरी कार के तौर पर खरीदा, जो कंपनी की पोजिशनिंग के भटकाव की स्थिति को दर्शाता है। गौरतलब है कि नैनो मूलत: उन लोगों की कार के तौर पर पेश की गयी थी जो दोपहिये से चौपहिये की ओर बढऩा चाहते हैं।
चेरियन कहते हैं, ‘इसके शहरी उपयोग और पार्किंग में सहूलियत वाले पहलू पर भी कंपनी ने कम चर्चा की है। उन्हें यह बात रखनी चाहिए थी कि भीड़-भाड़ वाले जिन इलाकों में पार्किंग की जगह कम है, उनके लिए नैनो अच्छी है। उन्हें अपने संवाद से इस बाजार में पैठ बनानी चाहिए थी, जो नहीं हुआ।'
भले ही रतन टाटा ने अपनी स्वीकारोक्ति में नैनो की ब्रांडिंग में हुई गलती को माना हो, लेकिन टाटा मोटर्स इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। आखिर नैनो उन उम्मीदों क्यों खरी नहीं उतर सकी और किस बिंदु पर कंपनी से रणनीतिक गलती हुई?
इस सवाल के जवाब में टाटा मोटर्स के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमें आपको यह सूचित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि इंडियाज मोस्ट एट्रैक्टिव ब्रांड्स- 2013 रिपोर्ट के अनुसार ब्रांड टाटा नैनो को कार-हैचबैक (टीआरए) की श्रेणी में पहला स्थान हासिल हुआ है और यह सभी कारों में सबसे आकर्षक ब्रांड है। द ब्रांड ट्रस्ट रिपोर्ट, इंडिया स्टडी 2013 के अनुसार कार-हैचबैक (टीआरए) श्रेणी में ब्रांड टाटा नैनो को सर्वाधिक विश्वसनीय ब्रांड माना गया है। ग्राहकों के बीच नैनो के प्रति ग्राहक संतुष्टि स्तर 90% से ऊपर रहा है और इन रिपोर्टों ने नैनो के मजबूत ब्रांड वैल्यू में और योगदान किया है। ऐसे में हमें नहीं लगता कि हमारी रणनीति गलत रही है। दरअसल हम सही राह पर चल रहे हैं।'
कंपनी प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने नैनो के नये प्रचार अभियान और स्वयं नैनो के लिए मजबूत और सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी है। नैनो की खुदरा बिक्री में वृद्धि दिखने की शुरुआत हो चुकी है।' हालाँकि नैनो की बिक्री के ताजा आँकड़े इस बात की गवाही देते नजर नहीं आते।
इनका क्या है कहना
मुझे हमेशा यह लगता है कि इसे सबसे सस्ती कार के तौर पर नहीं, बल्कि दोपहिया मालिकों के लिए सभी मौसम में आवागमन के सुरक्षित विकल्प के तौर पर पेश किया जाना चाहिए था।
रतन टाटा, चेयरमैन एमिरेटस, टाटा समूह
भारतीय बाजार में नैनो की असफलता की एक वजह यह भी रही कि भारत में उपभोक्ता किसी वैल्यू चेन में ऊपर की ओर चढऩा चाहते हैं, नीचे नहीं उतरना चाहते।
जगदीप कपूर, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, समसिका मार्केटिंग कंसल्टेंट्स
गरीब की गाड़ी वाला संदेश किसी भी गाड़ी के लिए अच्छा नहीं है। उन्हें इस बात पर इतना जोर नहीं डालना चाहिए था।
दिलीप चेरियन, सह-संस्थापक, परफेक्ट रिलेशंस
शुरुआती दिनों में नैनो में आग लगने की कुछ घटनाओं ने भी इस मॉडल की बिक्री पर नकारात्मक असर डाला।
यारेश कोठारी, ऑटोमोबाइल विशेषज्ञ, एंजेल ब्रोकिंग
हमें नहीं लगता कि हमारी रणनीति गलत रही है। दरअसल हम सही राह पर चल रहे हैं।
प्रवक्ता, टाटा मोटर्स
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)