अगर लोक सभा चुनाव के नतीजे बाजार की उम्मीदों के अनुरूप रहे तो साल 2014 में निफ्टी 7000 तक या 7500 तक भी जा सकता है,
यह कहना है निवेश सलाहकार गुल टेकचंदानी का। लेकिन उनका कहना है कि निवेशकों को इन अटकलबाजियों में न पड़ कर बेहतर शेयर चुनने चाहिए। इस लेख में वे बता रहे हैं भारतीय अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार के मौजूदा हालात में आपके लिए उचित रणनीति।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास दर में सुधार को देखते हुए उसके बारे में उनके जानकार कह रहे हैं कि थोड़ी स्थिरता आयी है। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ। अमेरिका में आंतरिक रूप से बहुत समस्याएँ हैं। फिर भी बेन बर्नान्के ने दिखाने के लिए 10 अरब डॉलर की टैपरिंग तो कर ही दी है। फेडरल रिजर्व की टैपरिंग से हमारे ऊपर कोई खास असर नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि हमारे बाजार में पैसा आना बंद हो जायेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर (जीडीपी) 5% से बढ़ कर 6% भी हो जाये, तो यह कोई छोटी बात नहीं होगी, क्योंकि इसका मतलब है विकास दर में 20% का सुधार। यह कोई छोटा देश नहीं है। इसमें तेजी से बदलाव संभव नहीं है। चालू खाते के घाटे को नियंत्रित किया गया है, जो अच्छी बात है। वित्तीय घाटा कम करना होगा और निर्यात बढ़ाने होंगे। तेल आयात और गलत नीतियों के कारण यह घाटा बढ़ा है। अब सरकार उन गलतियों को दूर करने में लगी है। सोना इसके लिए आंशिक तौर पर जिम्मेदार अवश्य था, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं था।
बाजार के सामने इस समय सबसे प्रमुख चिंता है महँगाई। अगर महँगाई दर नीचे नहीं आयेगी तो ब्याज दरें बढ़ानी ही होंगी। उस स्थिति में हमारे सामने कोई विकल्प नहीं होगा। सरकार अगर चार साल पहले या कम-से-कम दो साल पहले इसके बारे में सोचती तो हालात आज जैसे नहीं होते। महँगाई एक ज्वलंत मुद्दा है। चाहे यह आरबीआई का मसला हो या सरकार का, इसका विश्लेषण करना होगा और इसे सुलझाना होगा। टैपरिंग हो गयी है, अब अगर महँगाई भी थोड़ी-बहुत नियंत्रित हो जाये तो ब्याज दर में बढ़ोतरी भी शायद नहीं होगी।
लोक सभा चुनाव और बाजार
लोक सभा चुनाव के लिहाज से कुछ भी बताना मुश्किल है। अगर कहीं संप्रग की वापसी हो गयी या त्रिशंकु लोक सभा बन गयी तो बाजार में निराशा आ सकती है। अगर लोक सभा चुनाव में भाजपा को 200 सीटें मिलती हैं तो इनकी सरकार बन सकती है। लेकिन अगर भाजपा को 140-150 सीटें ही मिलीं तो तीसरे मोर्चे की संभावना बढ़ जायेगी। आपको मई में चुनावी नतीजे आने के बाद ही स्थिति का आकलन करना चाहिए। अभी अटकलें लगाना निरर्थक है।
समाज में बदलाव आ रहा है। नरेंद्र मोदी इस लहर को समझ गये हैं, इसलिए समाज से जुड़ रहे हैं। मोदी अच्छे वक्ता हैं, काम की बात करते हैं। देश के लिए अच्छा होगा यदि वह प्रधानमंत्री बनते हैं। लेकिन अगर चुनाव के बाद मोदी प्रधानमंत्री नहीं बन सके तो? जब लोग कह रहे हैं कि मोदी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए, तो यह उनकी इच्छा है। लेकिन उनकी यह इच्छा और मोदी का प्रधानमंत्री बनना अलग-अलग बातें हैं।
वैसे अगर भाजपा जीत गयी तो मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। अगर कहीं लालकृष्ण आडवाणी प्रधानमंत्री बने तो लोग सोचेंगे कि भाजपा को वोट दे कर फँस गये। अगर चुनाव के बाद मोदी प्रधान मंत्री नहीं बने तो बाजार गिरेगा। ऊपर जिन बातों की चर्चा की गयी, उन वजहों से बाजार में जोखिम है और मैं सजग रहने की बात कर रहा हूँ। मेरी सोच यही है कि जरा ठहर कर चुनाव हो जाने दें, फिर आगे की रणनीति सोचें।
बाजार की दिशा
आगे बाजार दो कारकों के ऊपर चलेगा। पहला है मनोभाव, जो इस समय काफी बेहतर है। दूसरा कारक होगा आर्थिक व्यवस्था में वास्तविक सुधार। बाजार में तेजी के लिए जमीनी स्तर पर दो चीजें होनी चाहिए - चुनाव भाजपा के पक्ष में चले जाये और अर्थव्यवस्था में वास्तविक रूप से विकास हो। बाजार की दिशा के बारे में जून 2014 तक कुछ नहीं बोला जा सकता। आने वाले चुनाव बाजार के लिए काफी बड़ी घटना हैं, इसलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। अगर चुनावी नतीजे बाजार की उम्मीदों के अनुरूप रहे तो निफ्टी 7000 तक या 7500 तक भी जा सकता है, लेकिन आपके लिए चुनिंदा शेयरों पर ध्यान देना ही ठीक है।
निवेश रणनीति
दरअसल अर्थव्यवस्था में सुधार भी शुरू हो चुका है। लोग सूचकांक पर बहुत ध्यान देते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। जिस तरह से इस सूचकांक को बाजार का प्रतिनिधित्व करना चाहिए, उस तरह से वह करता नहीं है। समूह बी के शेयरों में बहुत अवसर है।
संक्षेप में कहूँ तो मैं बाजार के प्रति सकारात्मक रहूँगा। अगर चुनाव का झटका लगता है तो मैं उस समय खरीदारी करूँगा, क्योंकि कोई भी दल सत्ता में आये उसे काम तो देश के हित में ही करना पड़ेगा। अगर चुनाव के नतीजे के बाद बाजार काफी गिरता है तो खरीदारी करनी चाहिए। अगर यह लगता है कि भाजपा सत्ता में आयेगी तो कुछ सोचने की जरूरत नहीं है। बैठे रहना चाहिए और बेचना नहीं चाहिए।
चुनाव से पहले मैं इंतजार करो और देखो की रणनीति अपनाऊँगा। मैं बाजार के बारे में अटकलें नहीं लगाता। मैं कंपनियों के बारे में अनुमान लगाता हूँ कि उनका प्रदर्शन कैसा रहेगा। आज तक मैंने अपने पोर्टफोलिओ की एफएमसीजी कंपनियों के शेयरों को बेचा नहीं है, न बेचूँगा। बैंकिंग क्षेत्र के बारे में मेरा रुख सकारात्मक है। मैं कैपिटल गुड्स कंपनियों में खरीदारी पर नजर रखे हुए हूँ। अगर आगे चल कर अर्थव्यवस्था में सुधार आता है तो इन कंपनियों में तेजी आ सकती है।
अंतत: अर्थव्यवस्था में तो सुधार आना ही है। बाजार के बारे में अनुमान लगाने की जरूरत नहीं है। एक बेहतर निवेशक बनने की जरूरत है, इसलिए अच्छे शेयर चुनें। अगर आप अभी अच्छे शेयर चुन कर उनमें बने रहते हैं और उन्हें थोड़ा समय देते हैं तो आपकी पूँजी कई गुना हो सकती है। इन बातों में पडऩे की जरूरत नहीं है कि किस घटना की वजह से बाजार पर किस तरह का असर पड़ेगा। हमने भारत की ही नहीं, वैश्विक स्तर की समस्याओं को देखा है। चाहे कैसी भी परिस्थिति आये, बाजार रुकने वाला नहीं है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2014)