राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) लागू करने के यूपीए-2 सरकार के निर्णय को वापस लेने के लिए संसद में विपक्ष के प्रस्ताव पर मत विभाजन में सरकार को जीत मिल गयी है।
इससे शेयर बाजार निवेशक और बड़े कारोबारी गदगद हैं। वैसे देश और शेयर बाजार पहले से ही आश्वस्त था कि सरकार आवश्यक संख्या-बल जुटा लेगी। अब कारोबारी जगत का विश्वास है कि आर्थिक हालात पर काबू पाने में सरकार की सक्रियता बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में मजबूती आयेगी।
खुदरा व्यापार में एफडीआई पर संसद में बहस और मत विभाजन से विपक्ष को क्या लाभ हुआ, इसका आकलन फिलहाल मुश्किल है। लेकिन सरकार को इसका भरपूर लाभ मिला। देश का ध्यान घोटालों से फौरी तौर पर भटक गया और सरकार को आर्थिक सुधारों के गुणगान करने का बेवजह स्वर्णिम मौका मिल गया। इस घटनाक्रम ने फिर सिद्ध कर दिया है कि राजनीति असीम संभावनाओं का खेल है। मायावती और मुलायम सिंह के अजब-गजब रंग इसके जीते-जागते प्रमाण हैं।
खुदरा व्यापार में एफडीआई के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन ङ्क्षसह हमेशा अपनी सरकार को न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं, जैसा उन्होंने यूपीए-1 सरकार के परमाणु समझौते के वक्त किया था। पर यक्ष प्रश्न यह है कि खुदरा व्यापार में एफडीआई का लाभ यूपीए सरकार को मिल पायेगा या नहीं। सरकार को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में विदेशी निवेश आने से देश का व्यापार घाटा काबू करने में मदद मिलेगी। लेकिन हकीकत यह है कि इस सरकार के कार्यकाल यानी २०१४ तक इस क्षेत्र में कोई खास विदेशी निवेश आने वाला नहीं है, जिसकी बिना पर वह मतदाताओं को रिझा सके। राजनीतिक अस्थिरता के दु:स्वप्न से विदेशी निवेशक अभी उबर नहीं पाये हैं। यूपीए सरकार खुदरा व्यापार में एफडीआई से होने वाले फायदों का जो ढिंढोरा पीट रही है, उनका 2014 तक जमीनी स्तर पर शक्ल लेना मुश्किल ही नहीं असंभव है। अगले लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को भुनाने का मौका विपक्षी दलों को तो मिलेगा, लेकिन कांग्रेस को गुनाह बेलज्जत ही होना है।
इस बीच यूपीए सरकार ने सब्सिडी यानी सरकारी सहायता के बदले नकदी की योजना के क्रियान्वयन की तारीख घोषित कर दी है। शुरुआती दौर में यह योजना देश के 51 जिलों में 1 जनवरी 2013 से शुरू होनी है। सरकारी दावा है कि 2014 तक (यानी लोकसभा चुनाव से पहले) यह योजना पूरे देश में लागू हो जायेगी। केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को विश्वास है कि इससे खेल बदल जायेगा। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का मानना है कि इससे राजनीतिक क्रांति हो जायेगी।
अभी 43 सहायता योजनाओं में से 29 योजनाएँ इसमें शामिल की गयी हैं। फिलहाल उर्वरक और खाद्यान्न सब्सिडी योजनाएँ इसमें शामिल नहीं हैं। अभी इसमें मूलत: वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्तियाँ, स्वास्थ्य, बाल और महिला विकास की सहायता योजनाएँ ही इसमें शामिल की गयी हैं। इस योजना के तहत सहायता राशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में डाल जायेगी। विपक्ष ने इस पहल को वोटरों को घूस देना बताया है। लेकिन विपक्ष के इस आरोप में कोई दम नहीं है। चुनावों के घोषणा-पत्र में नयी कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएँ प्राय: की जाती हैं। सस्ते या मुफ्त मकान, टीवी, लैपटॉप, सोना, साइकिल वगैरह देने के वायदे करना आम बात है। क्या यह घूस नहीं है?
सब्सिडी के बदले नकदी की योजना कागज पर काफी मजबूत और लाभकारी दिखती है। इससे न केवल कागजी काम और समय की बचत होगी, बल्कि लाभार्थी घूस की मार से भी बचेंगे। अभी 200 रुपये की वृद्धावस्था पेंशन लेने में दफ्तरों के चक्कर काटने और घूस देने में लोगों के 50-100 रुपये खर्च हो जाते हैं। इसमें एलपीजी, केरोसिन, खाद्यान्न और उर्वरक सहायता भी शामिल की जानी है। अलवर के कोट कासिम गाँव में दिसंबर 2011 तेल मंत्रालय ने नकद केरोसिन सहायता शुरू की थी। लाभार्थियों को आज तक कोई नकद सहायता नहीं मिली, पर अब उन्हें 50 रुपये प्रति लीटर के बाजार भाव पर केरोसिन खरीदना पड़ रहा है। यूपीए सरकार चुनावी लाभ के चक्कर में इस योजना को तेजी से लागू करना चाहती है, जो इस योजना के लिए सबसे बड़ा खतरा है। सरकार चौबे से छब्बे बनने चली है, डर है कि कहीं दुबे बन कर न रह जाये। इस योजना की विफलता भारी असंतोष को जन्म दे सकती है, जैसा कोट कासिम में हुआ है। यह आशंका भी निराधार नहीं है कि खाद्यान्न पर सब्सिडी के बदले दी गयी नकदी कहीं अनाज खरीदने के बजाय दारू की भेंट न चढ़ जाये।
यूपीए ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिए खुदरा व्यापार में एफडीआई और नकद सहायता के पाँसे फेंके हैं। ये पाँसे सीधे पड़ेंगे या उल्टे, इसका पता तो लोकसभा चुनावों के बाद ही लगेगा।
(निवेश मंथन, दिसबंर 2012)