केवल 15% फंड मैनेजर इस साल के अंत तक 5% से ज्यादा गिरावट की संभावना देख रहे हैं। उनके मुकाबले 85% फंड मैनेजर मान रहे हैं कि बाजार दिसंबर 2012 तक या तो केवल 5% ऊपर या नीचे के दायरे में रहेगा, या इससे ऊपर जायेगा।
भारतीय शेयर बाजार को लेकर घरेलू संस्थागत निवेशकों, खास कर म्यूचुअल फंडों का रुख हाल में ठंडा ही रहा है, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि केवल 15% फंड मैनेजर इस साल के अंत तक 5% से ज्यादा गिरावट की संभावना देख रहे हैं। उनके मुकाबले 85% फंड मैनेजर मान रहे हैं कि बाजार दिसंबर 2012 तक या तो केवल 5% ऊपर या नीचे के दायरे में रहेगा, या इससे ऊपर जायेगा। यह निष्कर्ष आईसीआईसीआई डायरेक्ट के अगस्त 2012 में किये गये तिमाही फंड मैनेजर सर्वेक्षण का है। इसके मुताबिक 46% फंड मैनेजर दिसंबर 2012 तक सेंसेक्स को 16800 से 18500 के बीच देख रहे हैं। वहीं 23% की राय में सेंसेक्स दिसंबर तक 18500-19500 के दायरे में होगा, जबकि 8% फंड मैनेजर इसे 19,500 के ऊपर जाता देख रहे हैं। केवल 15% यह मान रहे हैं कि सेंसेक्स दिसंबर तक 15900-16800 के बीच कहीं होगा।
हालाँकि बहुमत की राय में मौजूदा स्तरों पर भारतीय बाजार एक उचित मूल्यांकन के आसपास ही है। मई में भारतीय बाजार को 65% फंड मैनेजर सस्ता और 24% फंड मैनेजर उचित मूल्यांकन पर मान रहे थे। अगस्त के सर्वेक्षण में केवल 15% ने इसे सस्ता और 77% ने उचित मूल्यांकन पर माना। लिहाजा छोटी अवधि के लिए फंड मैनेजर भारतीय शेयर बाजार को लेकर मोटे तौर पर उदासीन रवैया अपना रहे हैं। पर भारतीय बाजार को महँगा बताने वाले पिछली बार भी केवल 12% थे, इस बार और घट कर केवल 8% रह गये।
अगर केवल अगले तीन महीनों की बात करें तो 92% फंड मैनेजर बाजार को लेकर उदासीन रुख जता रहे हैं। मई के सर्वेक्षण में उदासीन रुख वाले फंड मैनेजरों की संख्या 59% थी। पिछली बार तेजी और मंदी दोनों तरह का नजरिया रखने वालों की संख्या 18-18% थी। इस बार तेजी देखने वाले घट कर 8% रह गये, जबकि अगले तीन महीनों में मंदी की बात कोई फंड मैनेजर नहीं सोच रहा।
इसने तीन महीने पहले मई 2012 में किये सर्वेक्षण की तुलना में फंड मैनेजरों का उत्साह घटा है। उस वक्त निचले भावों की वजह से अच्छे मूल्यांकन ने उनका उत्साह बढ़ा रखा था। अब उत्साह थोड़ा घटने के बावजूद अलग-अलग संपत्ति-वर्गों में से शेयर बाजार ही उनका पसंदीदा संपत्ति वर्ग है और इसमें वे 2012 के दौरान बाकी सबसे ज्यादा फायदा देख रहे हैं। बेशक, ऋण बाजार को लेकर उनका रुझान बढ़ा है, लेकिन अभी यह शेयर बाजार से पीछे ही है। वहीं सोने की कीमत ने हाल में अपना रिकॉर्ड स्तर छू लिया है, लेकिन सर्वेक्षण में शामिल सभी फंड मैनेजर साल 2012 के बाकी बचे महीनों में इसका प्रदर्शन बाकी संपत्ति वर्गों से कमजोर रहने की संभावना जता रहे हैं।
जहाँ तक शेयर बाजार के विभिन्न क्षेत्रों की बात है, फंड मैनेजरों की पसंदीदा सूची में दवा, आईटी और बैंक क्षेत्र आगे हैं। लेकिन हाल में दवा और आईटी की ओर उनका रुझान बढ़ा है, जबकि बैंक क्षेत्र कुछ पीछे छूट रहा है। पिछले सर्वेक्षण की तुलना में इस बार ऑटो, एफएमसीजी और धातु क्षेत्रों को पसंद करने वाले फंड मैनेजरों की संख्या कम रही।
भारत के कॉर्पोरेट जगत की आय में वृद्धि को लेकर फंड मैनेजरों का नजरिया ज्यादा नहीं बदला है। मई में 59% फंड मैनेजर 2012-13 के दौरान कॉर्पोरेट आय केवल 5-10% बढऩे का अनुमान जता रहे थे। इस बार भी यह संख्या उसके आसपास ही 62% पर है। लेकिन अगले कारोबारी साल 2013-14 के लिए 53% फंड मैनेजर आय में 10-15% की वृद्धि का अनुमान लगा रहे हैं।
दिग्गज शेयरों की ओर फंड मैनेजरों का झुकाव पहले की तरह कायम है। मई में 53% फंड मैनेजरों ने एक साल के निवेश के नजरिये से दिग्गज शेयरों को ही ज्यादा पसंद किया था। इस बार भी यह संख्या 54% यानी करीब उतनी ही है। वहीं मँझोले शेयरों को पसंद करने वाले फंड मैनेजरों की संख्या पिछली बार के 47% की तुलना में इस बार 46% है।
पिछले कुछ समय से कच्चे तेल की चढ़ती कीमत को अब भारतीय बाजार के लिए सबसे प्रमुख वैश्विक जोखिम माना जा रहा है। ऐसा सोचने वाले फंड मैनेजरों की संख्या पिछली बार के 29% से बढ़ कर 69% हो गयी है। वहीं यूरोप के संकट को सबसे बड़ा वैश्विक जोखिम बताने वालों की संख्या 53% से घट कर 38% पर आ गयी है। यानी चिंता थोड़ी घटी है, लेकिन अब भी इसे एक महत्वपूर्ण चिंता कहा जा सकता है। पिछले सर्वेक्षण में रुपये की गिरती कीमत को 41% फंड मैनेजरों ने सबसे बड़ी चिंता माना था, लेकिन इस बार यह संख्या काफी घट कर केवल 8% रह गयी है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के धीमापन पिछली बार केवल 6% ने सबसे बड़ा जोखिम माना था। इस बार यह संख्या थोड़ी बढ़ी, लेकिन फिर भी केवल 8% के स्तर पर है।
(निवेश मंथन, सितंबर 2012)