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आपके सवाल, पी.एन. विजय के जवाब
मुझे जुबिलैंट फूडवक्र्स में काफी नुकसान झेलना पड़ा है। क्या मुझे इससे निकल जाना चाहिए या इसमें निवेश बनाये रखना चाहिए?
- विकास अग्रवाल (ईमेल)
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दीवाली के मौके पर निवेश का महत्व समझाने के लिए ही शेयर बाजारों में मुहूर्त कारोबार की परंपरा है, जहाँ आम तौर पर निवेशक और कारोबारी शगुन के तौर पर ज्यादा शरीक होते हैं। हालाँकि यह दीवाली शेयर बाजार के लिहाज से कुछ डरावनी सी है। एक तरफ जर्मनी के नेतृत्व में यूरोपीय संघ ग्रीस यानी यूनान को डिफॉल्ट से बचाने की जीतोड़ कोशिश कर रहा है, तो दूसरी ओर अन्स्र्ट एंड यंग ने अपनी रिपोर्ट में यह ऐलान कर दिया है कि ग्रीस का डिफॉल्ट तय है। मार्क फेबर जैसे निवेश गुरु का मानना है कि अमेरिका पहले ही दोहरी मंदी (डबल डिप रिसेशन) के दौर में प्रवेश कर चुका है। विदेशी संस्थागत निवेशक हालाँकि अब तक भारतीय शेयर बाजार से पूरी तरह मायूस नहीं हुए हैं, लेकिन नीतिगत मोर्चे पर यूपीए-2 के निराशाजनक प्रदर्शन और आये दिन सामने आ रहे नये-नये घोटालों से उन्होंने भारत के विकास की कहानी की समीक्षा करनी शुरू कर दी है। यह सारी पृष्ठभू्मि एक ऐसा माहौल तैयार कर रही है, जिसमें एक ओर तो यह शेयर बाजार में निवेश के लिए बिलकुल आदर्श समय मालूम पड़ता है, वहीं दूसरी ओर कई वर्षों की मंदी में फिसल जाने की भयानक कल्पना भी डराती है। ऐसे में इस त्योहार में शेयर बाजार को लेकर किस तरह की रणनीति बनानी चाहिए?
ग्रीस और उसके बाद इटली, स्पेन और पुर्तगाल जैसे देश जब तक डिफॉल्ट के कगार पर बैठे हैं, तब तक इस जोखिम से पूरी तरह निजात मिलना मुश्किल ही दिख रहा है। ऐसे में शेयर बाजार के निवेशकों को कुछ खास सावधानियों के साथ अपनी निवेश रणनीति तैयार करनी चाहिए। सबसे पहले तो उन्हें अपनी सारी रकम एक साथ बाजार में नहीं डालनी चाहिए। कुल निवेश योग्य रकम को पांच बराबर हिस्सों में बाँटकर मोटे तौर पर बाजार में हर 5-6% की गिरावट या बढ़त पर निवेश करना चाहिए। इस तरह सुनियोजित ढंग से निवेश करने पर बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
इस बारे में दूसरी खास सावधानी यह रखने की जरूरत है कि निवेश का फैसला भावनाओं के आधार पर या कही-सुनी बातों के आधार पर न लिया जाये। केवल बुनियादी तौर पर मजबूत शेयर चुने जायें। इस समय दिग्गज शेयरों की ओर ज्यादा झुकाव रखना ज्यादा सुरक्षित होगा। जब भी बाजार में वापस तेजी आयेगी, तो ज्यादा पिटे हुए बहुत-से छोटे-मँझोले शेयरों में प्रतिशत के लिहाज से ज्यादा तगड़ी उछाल आ सकती है। लेकिन ऐसे शेयरों में तेजी या मंदी का चक्र बाजार से थोड़ा अलग चलता है, लिहाजा यह जरूरी नहीं है कि बाजार के प्रमुख सूचकांकों के हिसाब से तय की गयी रणनीति उन शेयरों पर सटीक बैठे। मुमकिन है कि सेंसेक्स और निफ्टी के वापस सँभलने के बाद भी ऐसे काफी छोटे-मँझोले शेयरों में गिरावट जारी रहे या उनके वापस सँभलने में दिग्गज शेयरों के मुकाबले काफी ज्यादा समय लगे। लिहाजा लोभ में ऐसे किसी छोटे या मँझोले सेयर पर दांव नहीं लगायें, जिनके प्रबंधन और कारोबारी मॉडल के बारे में ज्यादा जानकारी न हो। दिग्गज शेयरों के बारे में भी यह समझना होगा कि किसी शेयर में किस भाव पर निवेश करना उचित रहेगा। अलग-अलग क्षेत्र के दिग्गज शेयर भी अपनी गिरावट के दौर से पलट कर अपनी दिशा बदलने के कुछ साफ संकेत देंगे। इन संकेतों का इंतजार करें, न कि एकदम ही अपना सारा पैसा लगा दें।
ऐसी कई बातें हैं जो मौजूदा समय को निवेश का एक अच्छा मौका बनाती हैं। जिन अंतरराष्ट्रीय और घरेलू चिंताओं की बातें बाजार में चल रही हैं, वे अब नयी नहीं हैं। अगर लंबे समय से इन बातों की चर्चा हो रही है और इसके साथ-साथ दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट भी आयी है, तो यह साफ है कि इन नकारात्मक बातों का असर बाजार ने झेल लिया है। एक खास पहलू यह है कि समस्या का केंद्र विकसित विश्व में, पश्चिमी देशों में है। एक तरफ अमेरिका की विकास दर साल 2010 के 3.0% से घट कर 2011 में 1.4% और 2012 में 1.2% रह जाने की आशंका है। दूसरी ओर भारत की विकास दर 2010 में 8.5% रही है और जे पी मॉर्गन के एक आकलन के मुताबिक यह 2011 में घट कर 7.6% रहेगी, मगर फिर से 2012 में 8.5% हो जायेगी। सिटीग्रुप ने 2012 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान 8.2% रखा है। जब तक भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे इस तेज विकास पर खतरा नहीं मँडराता, तब तक भारतीय शेयर बाजार में आने वाली किसी बड़ी गिरावट को खरीदारी के एक शानदार मौके की तरह ही देखा जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अब यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारी विकास दर पहले से थोड़ी धीमी पड़ रही है। इस बात को महसूस करके ही सबसे अपने अनुमान घटाये हैं। लेकिन घटे हुए अनुमान के मुताबिक भी अगर साल 2011-12 के दौरान 7.6% विकास दर रहने की उम्मीद दिखती है, तो इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती का ही नतीजा समझना चाहिए। विकास दर में यह धीमापन आने के जो सबसे बड़े कारण रहे हैं - उनमें पहला कारण तो अमेरिकी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं का डगमगाना ही है। इसके अलावा, तेज महँगाई दर और उसके चलते भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से आक्रामक ढंग से ब्याज दरों को बढ़ाना भी इस धीमेपन के लिए जिम्मेदार है। उद्योग जगत ने इसीलिए त्राहिमाम करना शुरू कर दिया है और पिछले कई मौकों पर आरबीआई से इसने पुरजोर गुजारिश की है कि अब ब्याज दरों को और न बढ़ाया जाये।
यह बात अब अर्थशाी महसूस करने लगे हैं कि महँगाई दर अगले एक साल में नीचे आने लगेगी और इसी दौरान ब्याज दरों के ऊपर जाने का चक्र भी थम जायेगा। लेकिन किसी के लिए भी यह कहना मुश्किल होगा कि अगले तीन महीनों में यह होने लग जायेगा या इसमें थोड़ा ज्यादा वक्त लगेगा। इस उलझन के बावजूद अगर यह दिखता है कि महँगाई और ब्याज दरों का चक्र अपने चरम के बेहद पास पहुँच चुका है तो जाहिर है कि इसके बाद यह चक्र वापस पलटेगा। जापान के एक प्रमुख ब्रोकिंग फर्म नोमुरा की भारतीय इकाई ने हाल में अपनी एक रिपोर्ट में बैंक और रियल एस्टेट में निवेश बढ़ाने (ओवरवेट) की सलाह दी। इसने इस सलाह के लिए यही कारण बताया कि अभी महँगाई और ब्याज दरों का चक्र अपने चरम पर पहुँचने का फायदा उठाना चाहिए।
भारतीय बाजार के लिए इस समय सबसे बड़ा सहारा इसका आकर्षक हो चुका मूल्यांकन ही है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने हाल में दो बार सेंसेक्स की अनुमानित प्रति शेयर आय (ईपीएस) में कटौती की। पहले इसका सेंसेक्स ईपीएस का अनुमान 2011-12 के लिए 1,235 रुपये का था, जिसे घटा कर इसने पहले 1,209 रुपये और उसके बाद घटा कर 1,164 रुपये किया। अगले कारोबारी साल यानी 2012-13 के लिए इसने सेंसेक्स ईपीएस का अनुमान 1,414 रुपये से घटा कर 1,346 रुपये किया है। घटी हुई ईपीएस के आधार पर भी सेंसेक्स 16,000 के आसपास के स्तरों पर 2011-12 की अनुमानित ईपीएस के हिसाब से लगभग 14 के पीई अनुपात पर है। हाल में 2008 के अमेरिकी संकट के दौरान सेंसेक्स पीई अनुपात 10-11 तक सिकुड़ गया था, जो इसका निम्नतम स्तर था। यानी अब इन स्तरों से बाजार के नीचे जाने की संभावना काफी कम है।
किसी अचानक आये संकट, जिसे अर्थशा या शेयर बाजार की भाषा में ब्लैक स्वान घटना कहते हैं, की हालत में यह जरूर अचानक तीखी गिरावट दर्ज कर सकता है। ऐसी स्थिति यूरो क्षेत्र में बैंकों के डूबने के चलते पैदा हो सकती है, या अगर कुछ सरकारें डिफॉल्ट कर जायें यानी अपने कर्ज चुकाने में नाकाम रहें तो यह हालत बन सकती है। कच्चे तेल के बाजार में अचानक कोई बड़ा झटका लगने या घरेलू राजनीति में कोई उथल-पुथल मच जाये, तब भी ऐसा हो सकता है। लेकिन इस तरह के अनजाने जोखिम शेयर बाजार में हमेशा रहते हैं। भारतीय बाजार में 1992 का हर्षद मेहता घोटाला या 1999-2000 का केतन पारिख घोटाला ऐसी ही घटनाएँ हैं।
लेकिन इन घटनाओं का कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। ऐसी घटनाएँ होने से पहले कहीं नगाड़ा नहीं बजता। और इन घटनाओं के अंदेशे से शेयर बाजार से हमेशा दूर नहीं रहा जा सकता, क्योंकि इस तरह के जोखिम को झेलने के बाद भी शेयर बाजार में समझदारी से किया गया निवेश लंबे समय में सबसे ज्यादा फायदा देता है। यह बात भी गांठ बाँधने वाली है कि शेयर बाजार में निवेश के सबसे शानदार मौके तभी मिलते हैं, जब बाजार हर तरफ से चिंता में घिरा हो। इसके लिए ज्यादा पीछे लौटने की जरूरत नहीं, अक्टूबर 2008 की हालत याद की जा सकती है।
बाजार में यह बात भी सभी जानते हैं कि बिल्कुल तलहटी पर निवेश करना या एकदम शिखर पर अपना निवेश बेच कर मुनाफा निकाल लेना संभव नहीं होता। आप बाजार में जब भी निवेश करें, वहाँ से कुछ और गिरावट का जोखिम रहता ही है। लेकिन अगर यह लगे कि 5-10% गिरावट की संभावना के मुकाबले अगले 2-3 सालों में एक अच्छा फायदा मिलने की उम्मीद है, तो यह जोखिम उठा कर निवेश करना ही मुनासिब होता है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर हमने आपके लिए कुछ ऐसे नाम चुने हैं, जिनमें निवेश करने पर अगले कुछ सालों में आपकी दीवाली ज्यादा जगमग हो सके।
शेयर को चुनने की कसौटी यही है कि वह कंपनी अपने धंधे की मजबूत खिलाड़ी हो और शेयर की कीमत अभी अच्छी लग रही हो। हो सकता है कि कुछ शेयरों में ऐसी अच्छी कीमत अभी न हो बल्कि कुछ समय बाद आये। ऐसे अच्छे मौके का थोड़ा इंतजार कर लेना भी बुरा नहीं रहेगा। शुभ दीपावली!
रिलायंस इंडस्ट्रीज
शायद यह नाम देख कर आप चौंकें, थोड़े खीझ भी जायें। आखिर इस शेयर पिछले कई सालों से निवेशकों को लगातार निराश ही किया है। इसका शेयर भाव लगातार फिसलता गया है। यह कंपनी लगातार कुछ गलत वजहों से ही सुर्खियों में रही है। इन सब बातों के बावजूद हमें यह याद रखना चाहिए कि जब भी इसके दिन फिरेंगे, तब यह शेयर जबरदस्त छलांग लगायेगा। अगर हम अपने चयन की बुनियादी कसौटी देखें, तो इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि रिलायंस अपने धंधे की मजबूत खिलाड़ी है।
यह बात भी बिल्कुल सही है कि हाल की गिरावट के बाद यह शेयर काफी सस्ते भावों पर आ चुका है। सवाल यह है कि क्या इसमें और बड़ी गिरावट का खतरा बाकी है, या अब यह इन स्तरों पर थमेगा और वापस पलटने की शुरुआत करेगा? हमारा मानना है कि अगर कंपनी का शीर्ष प्रबंधन किसी कानूनी पचड़े में न फंसे, तो कारोबारी लिहाज से हर तरह की बुरी खबरों का असर इसके भावों में पहले ही दिख चुका है। लिहाजा अभी तक की उपलब्ध जानकारियों के लिहाज से इस शेयर में बड़ी गिरावट की संभावना कम रहेगी। लिहाजा अब इसे निचले भावों पर चुनते रहने की रणनीति अपनाना बेहतर होगा। इस शेयर में निवेश करने के बाद संभव है कि आपको बाकी शेयरों की तुलना में ज्यादा धैर्य रखना पड़े, लेकिन आखिरकार यह धैर्य आपको मीठा फल देगा। दूसरी ओर अगर अभी आप इस शेयर से दूर रहें तो संभव है कि अचानक कभी किसी सकारात्मक खबर के असर से यह ऐसे मुकाम पर चला जाये, जहाँ आपको इसके पिछले भाव एक गँवा दिये मौके की तरह मुँह चिढ़ाते नजर आयें।
हाल में केजी बेसिन में गैस उत्पादन पिछले अनुमानों से काफी कम रहने के चलते निवेशकों को काफी निराशा हुई है। रिलायंस का शेयर भाव काफी नीचे आने का यह एक बड़ा कारण रहा है। लेकिन शेयर भावों में आयी भारी गिरावट के चलते एनाम सिक्योरिटीज ने रिलायंस पर जारी एक ताजा रिपोर्ट में कहा कि अब इसका तेल-गैस का खनन और उत्पादन (एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन या ईएंडपी) कारोबार तो मुफ्त ही मिल रहा है! एनाम के हिसाब से रिलायंस के बाकी कारोबारों का ही उचित मूल्यांकन 810 रुपये बैठता है, और मौजूदा शेयर भाव इसके आसपास ही हैं। एनाम ने रिलायंस के शेयर का लक्ष्य भाव 1,100 रुपये रखा है।
इसी तरह आईडीएफसी ने भी रिलायंस के अलग-अलग व्यवसायों का मूल्यांकन करके कंपनी के शेयर का उचित मूल्य 1,109 रुपये रखा है। इसने अपने पिछले आकलन से यह उचित मूल्य 50 रुपये घटाया है, इसके बावजूद यह मूल्यांकन मौजूदा बाजार भाव से काफी आगे है। इस कंपनी के बारे में सीएजी की रिपोर्ट में खास कर केजी बेसिन में अपने तेल-गैस ब्लॉक में पूँजीगत खर्च शुरुआती अनुमान से काफी ज्यादा करने पर ऐतराज जताया गया है। लेकिन तेल-गैस बेहद पेंचीदा क्षेत्र है और हर पहलू पर विशेषज्ञ जानकारी की माँग करता है। तेल-गैस क्षेत्र के ज्यादातर विशेषज्ञ मीडिया से बातचीत में सीएजी की रिपोर्ट के बदले रिलायंस के पक्ष में ही ज्यादा नजर आये हैं।
रिलायंस ने यह तर्क भी बार-बार सामने रखा है कि लागत बढ़ाने के बारे में पेट्रोलियम मंत्रालय को अंधेरे में नहीं रखा गया, उसे इस बात की पूरी जानकारी थी। रिलायंस का यह तर्क भी गौरतलब है कि लागत बढऩे से खुद उसे कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि इससे संबंधित लगभग सारा काम दूसरी कंपनियों से ठेके पर कराया गया।
एक नजर डालते हैं कि कंपनी किन-किन व्यवसायों में है। कंपनी का सबसे बड़ा काम रिफाइनिंग यानी तेलशोधन है। इसका दूसरा बड़ा कारोबार पेट्रोकेमिकल्स का है। कंपनी के ये दोनों बड़े धंधे मजबूत चल रहे हैं।
खनन और उत्पादन (ईएंडपी) की हिस्सेदारी इसके कुल कारोबार में तुलनात्मक रूप से छोटी है, हालाँकि भविष्य के नजरिये से इस कारोबार में ही ज्यादा बड़ी संभावनाएँ दिख रही थीं। अब इस कारोबार से जुड़ी नकारात्मक खबरों ने ही कंपनी के शेयर भाव पर सबसे ज्यादा भावनात्मक असर डाला है। इसके अलावा कंपनी खुदरा (रीटेल ) कारोबार में भी है। इसने संचार (टेलीकॉम) क्षेत्र में भी ब्रॉडबैंड वायरलेस ऐक्सेस लाइसेंस के जरिये फिर से कदम रखा है। यह बीमा और वित्तीय सेवाओं के कारोबार में भी उतरी है।
रिलायंस का शेयर तकनीकी रूप से कमजोर लगता है, लेकिन एक महत्वपूर्ण समर्थन स्तर के पास होने के कारण इन स्तरों से वापस सँभलने की उम्मीद भी बनती है। साल 2008 की तलहटी 465 से साल 2009 के शिखर 1,268 तक की उछाल की 61.8% वापसी 772 पर है। अगर यह इस समर्थन स्तर को निर्णायक ढंग से तोड़ दे तो 626 रुपये तक फिसलने की संभावना बन जायेगी। लेकिन फिलहाल यह इस स्तर से सहारा लेता दिख रहा है। हालाँकि 2010 और 2011 की कुछ तलहटियों को मिलाती रुझान रेखा पर इसे बाधा मिल रही है। इस बाधा के पार होने पर यह वापस 866, 961 और 1,078 के स्तरों की ओर बढ़ सकता है।
क्यों करें निवेश
आईडीएफसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रिलायंस का मौजूदा बाजार भाव बहुत सारी बुरी खबरों से प्रभावित है और यह कीमत ठीक नहीं है। कंपनी के रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल कारोबार की मात्रा अच्छी बनी हुई है। खनन और उत्पादन (ईएंडपी) खंड में जरूर कंपनी ने निराश किया है, लेकिन वह निराशा शेयर भावों पर पहले ही असर डाल चुकी है। कंपनी का उचित मूल्यांकन मौजूदा भावों से करीब 40% तक की बढ़त की गुंजाइश दिखाता है। कंपनी के पास काफी ज्यादा नकदी भी है और अब कंपनी ने भारत में उपभोक्ताओं से जुड़े क्षेत्रों में अपना कारोबार फैला कर जोखिम घटाने की रणनीति अपनायी है। कंपनी जिन नये व्यवसायों में प्रवेश कर रही है, उनमें काफी संभावनाएँ हैं। हालाँकि इन क्षेत्रों में सफलता अच्छे प्रबंधन पर निर्भर होगी।
एनाम सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में यह कयास लगाया है कि कंपनी जल्दी ही किसी बड़े अधिग्रहण का फैसला कर सकती है। अनुमान है कि बीपी के साथ हुआ 7.2 अरब डॉलर का सौदा पूरा हो जाने पर कंपनी के पास करीब 16 अरब डॉलर की नकदी होगी। साथ ही कंपनी के पास हर साल अपने कारोबारों से करीब 6-7 अरब डॉलर की नकदी आती है। हाल में विश्लेषकों के बीच यह एक बड़ा सवाल रहा है कि रिलायंस इतनी नकदी को किस तरह से इस्तेमाल करेगी। एनाम का आकलन है कि आक्रामक ढंग से विकास की रणनीति रखने के चलते कंपनी शेयरों की वापस खरीद (बायबैक) या लाभांश (डिविडेंड) दे कर इस नकदी को निवेशकों के बीच बाँटने का रक्षात्मक तरीका नहीं अपनायेगी। इसके बदले यह विदेशों में अधिग्रहण पर ही जोर देगी। पहले भी कंपनी ने अमेरिका में चट्टानी (शेल) गैस क्षेत्रों को खरीदा है। लेकिन एनाम का आकलन है कि कंपनी के अगले अधिग्रहण पेट्रोकेमिकल कारोबार में होने की संभावना ज्यादा रहेगी। इस तरह के अधिग्रहणों से इस शेयर के प्रति बाजार में नया उत्साह जग सकता है।
पीटीसी इंडिया
पावर एक्सचेंज के जरिये बिजली की खरीद-बिक्री अब भारत में जोर पकड़ रही है। साल 2000-01 में बिजली की खुली खरीद-बिक्री (पावर ट्रेडिंग) शुरू होने के बाद से ही पीटीसी इंडिया ने इसमें अपना अव्वल स्थान बनाये रखा है। सीईआरसी के ताजा आँकड़ों के मुताबिक छोटी अवधि के बिजली खरीद-बिक्री सौदों में पीटीसी इंडिया की हिस्सेदारी जुलाई 2011 में 33% थी। देश के पहले राष्ट्रीय पावर एक्सचेंज इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (आईईएक्स) में इसने अपनी सहायक कंपनी पीएफएस के जरिये 26% हिस्सेदारी ली है।
पीटीसी इंडिया के कारोबार और मुनाफे में लगातार अच्छी बढ़त दिख रही है। साल 2011-12 की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून 2011 के दौरान इसका मुनाफा 27.80 करोड़ रुपये से 63% बढ़ कर 45.23 करोड़ रुपये हो गया। इस अवधि में कंपनी ने 6726 मिलियन यूनिट बिजली की खरीद-बिक्री की, जो पिछले साल की समान अवधि से 17% ज्यादा है।
अगर कारोबारी साल 2010-11 के प्रदर्शन पर गौर करें तो इसका कंसोलिडेटेड मुनाफा 107.26 करोड़ रुपये से 5४.७८% बढ़ कर १६६.०२ करोड़ रुपये हो गया। इसकी सालाना आमदनी 7,839 करोड़ रुपये से 17.29% बढ़ कर 9,195 करोड़ रुपये पर पहुँची। पूरे कारोबारी साल के दौरान इसने 24,481 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी-बेची। पिछले कारोबारी साल से यह ३४.२५% ज्यादा थी। इसका ट्रेडिंग मार्जिन 2009-10 के 3.6 पैसे प्रति यूनिट से बढ़ कर 2010-11 में 4.4 पैसे प्रति यूनिट हो गया। कंपनी का कामकाज मजबूत रहने के बावजूद बीते कुछ महीनों में इसके शेयर भाव में काफी कमी आयी है। यह 02 नवंबर 2010 के 145.20 रुपये से फिसल कर 19 अगस्त 2011 को 66 रुपये के निचले स्तर तक फिसल गया, जो इसका 52 हफ्तों का निचला स्तर है। इस समय यह 52 हफ्तों के निचले स्तर के पास ही है।
शेयरखान ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में इस कंपनी का मूल्यांकन 98 रुपये प्रति शेयर रखा है। इस आधार पर यह 2010-11 की अपनी बुक वैल्यू के भी नीचे के भाव पर मिल रहा है और इसका मूल्य - बुक वैल्यू (पी/बीवी) अनुपात 0.9 पर है। इस लिहाज से यह काफी आकर्षक मूल्यांकन पर मिल रहा है।
कंपनी के स्टैंडअलोन आँकड़ों के हिसाब से शेयरखान ने 2011-12 में इसका मुनाफा केवल 8.2% बढऩे का अनुमान जताया है, लेकिन 2012-13 में मुनाफा 27.6% बढऩे की उम्मीद है। अभी इसका पीई अनुपात 2011-12 की अनुमानित आय के आधार पर 13.4 और 2012-13 के आधार पर 10.5 पर है।
शेयरखान ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जतायी है कि राज्य बिजली बोर्डों से मिलने वाले भुगतान में देरी की वजह से कंपनी की कामकाजी पूँजी (वर्किंग कैपिटल) पर दबाव आ रहा है। लेकिन यह देरी मुख्य रूप से केवल तमिलनाडु और कर्नाटक के राज्य बिजली बोर्डों की ओर से है। लेकिन कंपनी को उम्मीद है कि तमिलनाडु राज्य बिजली बोर्ड के भुगतान में देरी की समस्या जल्द सुलझ सकती है।
यह शेयर बाजार में किसी उतार-चढ़ाव के दौरान आपके पोर्टफोलिओ में रक्षात्मक भूमिका निभा सकता है, जबकि बाजार में तेजी आने पर यह अच्छी बढ़त भी देने की क्षमता रखता है। शेयरखान का 98 रुपये का लक्ष्य भाव इसके मौजूदा स्तर से ४०% से भी ज्यादा बढ़त की संभावना दिखाता है।
इन्फोसिस : उम्मीद से आगे
इन्फोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के बीच चुनाव करना हमेशा ही एक मुश्किल काम है। हालाँकि कुछ समय पहले तक दोनों कंपनियों के मूल्यांकन के बीच एक फर्क दिखता था, क्योंकि बाजार को टीसीएस की तुलना में इन्फोसिस का शेयर परंपरागत रूप से ज्यादा पसंद रहा है। लेकिन हाल में यह फर्क मिट गया। कामकाजी स्तर पर दोनों कंपनियों के बीच चुनाव इस समय भी मुश्किल ही है, लेकिन ऊपरी स्तरों से ज्यादा गिरावट के कारण अभी इन्फोसिस पर दाँव लगाना बेहतर होगा।
जब 12 अक्टूबर की सुबह नतीजे आये तो बाजार खुलते ही इसमें 5% से ज्यादा की उछाल दिखी और पूरे दिन इसने और ऊपर चढऩा जारी रखा। जुलाई-सितंबर 2011 यानी इस कारोबारी साल की दूसरी तिमाही में कंपनी की आमदनी 8,099 करोड़ रुपये रही। यह आमदनी पिछले साल की समान तिमाही से 16.6% ज्यादा और ठीक पिछली तिमाही से 8.2% ज्यादा है। दूसरी तिमाही में इसका मुनाफा 1,906 करोड़ रुपये रहा, जो सालाना आधार पर 9.7% और तिमाही-दर-तिमाही 10.7% बढ़ा। बीती तिमाही के दौरान इसने 45 नये ग्राहक बनाये और शुद्ध रूप से 8,262 नये कर्मचारी भर्ती किये। कंपनी के ये नतीजे बाजार के अनुमानों के मुताबिक, या कुछ हद तक उससे बेहतर ही थे।
बाजार को आशंका यह थी कि कंपनी सालाना आय के अनुमानों में कटौती कर सकती है। लेकिन कंपनी ने रुपये में अपनी सालाना आमदनी और प्रति शेयर आय (ईपीएस) के अनुमानों को बढ़ा दिया। हालाँकि इसमें बड़ा योगदान डॉलर महँगा होने का है, जिससे रुपये में कंपनी की आय ज्यादा हो जाती है। इन्फोसिस ने इस साल अप्रैल में अपने सालाना नतीजे पेश करते समय 2011-12 की ईपीएस का अनुमान 126.05-128.21 रुपये रखा था। पिछले तिमाही नतीजों के समय जुलाई में इसे बढ़ा कर 128.20-130.08 रुपये कर दिया गया। अब यह अनुमान और बढ़ा कर 143.02-145.26 रुपये कर दिया गया है।
अगर हम 2012-13 में कंपनी की ईपीएस में 20% बढ़त का अनुमान रखें तो करीब 170-175 रुपये के ईपीएस की उम्मीद बनती है। इस पर 20 का पीई अनुपात लें तो अगले 12-15 महीनों का लक्ष्य भाव 3400-3500 रुपये तक होता है। मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने इन नतीजों के बाद इन्फोसिस का लक्ष्य 3170 रुपये रखा है। इसने 2012-13 में 158.60 रुपये के ईपीएस पर 20 की पीई का मूल्यांकन माना है।
इन्फोसिस का शेयर इस साल जनवरी के शिखर 3,499 से गिर कर अगस्त में 2,161 रुपये के भाव तक लुढ़का। इस गिरावट की 38.2% वापसी 2,672 पर है, जिसे इसने नतीजों के बाद आयी उछाल में छू लिया है। इस साल जुलाई के बाद पहली बार यह 100 दिनों के सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) के ऊपर लौटा है, जो अभी 2,624 पर दिख रहा है। अगर यह इसके ऊपर टिक सका तो इस शेयर में मध्यम अवधि के लिहाज से दिख रही कमजोरी खत्म हो सकती है और यह 200 दिनों के एसएमए की ओर बढ़ सकता है, जो अभी 2,868 पर है। यह स्तर पार होने पर करीब 3,000 इसका स्वाभाविक लक्ष्य बन जायेगा। इस साल जनवरी में यह 3,024 के ऊपरी स्तर से फिसला था।
मुनाफावसूली का दबाव इसे वापस 2,500 के पास ला सकता है। उन स्तरों पर खरीदारी से लाभ-जोखिम का अनुपात आपके पक्ष में रहेगा। हालाँकि 2,477 के नीचे फिसलने पर हाल की तलहटी 2,161 तक गिरने का खतरा रहेगा। लेकिन अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई एकदम ही बड़ी उथलपुथल न मचे तो इन्फोसिस में इससे ज्यादा बड़ी गिरावट की आशंका नहीं है। लिहाजा 2100-2200 के भाव अगर मिल जायें तो वहाँ और खरीदारी करके इसमें निवेश बढ़ा लेना ही अच्छा रहेगा।
सीईएससी
आरपी संजीव गोयनका समूह की यह कंपनी कोलकाता और हावड़ा के करीब 25 लाख घरों और औद्योगिक परिसरों में बिजली आपूर्ति करने वाली इकलौती कंपनी है। यह बिजली उत्पादन भी करती है और साथ ही खुदरा (रीटेल) क्षेत्र में भी स्पेंसर नाम से सक्रिय है। इसके अलावा यह कुछ हद तक रियल एस्टेट कारोबार में भी है।
इसके चार बिजली संयंत्र हैं, जिनकी कुल क्षमता 1,225 मेगावाट की है। यह चंद्रपुर, महाराष्ट्र में 600 मेगावाट का संयंत्र लगा रही है, जो 2013 में चालू होने की उम्मीद है। इसके अलावा यह पश्चिम बंगाल के हल्दिया में 600 मेगावाट, उड़ीसा के ढेंकानाल में 1000 मेगावाट, झारखंड के दुमका में 600 मेगावाट, पश्चिम बंगाल के बेलागढ़ में 1320 मेगावाट और बिहार के पीरपैंती (भागलपुर जिला) में 2000 मेगावाट के संयंत्र लगा रही है। ये परियोजनाएं 2014 से 2017 तक पूरी करने का लक्ष्य है। अपने बिजली संयंत्रों के लिए कोयला जुटाने के लिए खनन का काम भी करती है और अपनी जरूरत का करीब 50% कोयला अपनी खानों से ही हासिल करती है। बिजली उत्पादन करने वाली ज्यादातर कंपनियों के लिए इस समय ईंधन की आपूर्ति एक बड़ी चिंता है और आने वाले समय में इनके लिए ईंधन की कमी बढऩे की ही आशंका है। शेयरखान ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में कहा है कि ऐसे माहौल में कोयले की 80% जरूरत के लिए कंपनी के पास पक्का आश्वासन है, जो लंबी अवधि के नजरिये से इसे मजबूती देता है।
शेयरखान का मानना है कि बिजली वितरण के क्षेत्र में सीईएससी अभी सबसे सस्ते शेयरों में से एक है और 2011-12 की बुक वैल्यू के केवल 0.6 गुना मूल्यांकन पर उपलब्ध है। हालाँकि इस सस्ते मूल्यांकन का एक कारण यह है कि उसकी खुदरा (रीटेल) इकाई स्पेंसर घाटे में चलती रही है। लेकिन अब स्पेंसर की वित्तीय हालत में सुधार दिख रहा है। साल 2010-11 में स्पेंसर स्टोर स्तर पर मुनाफा दिखाया है और कंपनी के प्रबंधन ने अगले दो सालों में इसे मुनाफे में ले आने का इरादा जताया है।
शेयरखान ने इस बात पर भी जोर दिया है कि आने वाले वर्षों में कंपनी के बिजली उत्पादन की क्षमता में काफी बढ़ोतरी होगी। इससे कंपनी के कुल कारोबार में बिजली उत्पादन का हिस्सा काफी बढ़ जायेगा, जबकि खुदरा कारोबार से होने वाले घाटा कंपनी की समूची बैलेंस शीट का केवल एक छोटा हिस्सा रह जायेगा। शेयरखान का मानना है कि बाजार ने इस कंपनी के कामकाज में आ रहे बदलाव को नजरअंदाज किया है और नकारात्मक बातों पर हद से ज्यादा ध्यान दिया है। शेयरखान ने सीईएससी का उचित मूल्यांकन 413 रुपये माना है, जो मौजूदा भाव से ५०% से भी ज्यादा बढ़त की गुंजाइश दिखाता है। हालाँकि 2011-12 की पहली तिमाही में कंपनी के नतीजे चमकदार नहीं थे।
कंपनी की कुल आमदनी 1,096 करोड़ रुपये से बढ़ कर 1,183 करोड़ रुपये रही थी। इस तरह तिमाही आमदनी में साल-दर-साल 7.94% की बढ़त दर्ज की गयी। इसका मुनाफा 110 करोड़ रुपये की तुलना में 111 करोड़ रुपये रहा। ऊँची ब्याज दरों और मूल्यह्रास (डेप्रिशिएशन) की वजह से यह मुनाफा सपाट रहा था, जिसे एंजेल ब्रोकिंग ने अनुमान से कमजोर बताया था। एंजेल ब्रोकिंग ने अपनी 04 अगस्त 2011 की रिपोर्ट में इसका लक्ष्य भाव 383 रुपये आँका था।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में इन नतीजों को अनुमान के मुताबिक माना था। इसने अपनी 29 जुलाई 2011 की रिपोर्ट में सीईएससी का लक्ष्य भाव 474 रुपये बताया था, हालाँकि उस समय इस शेयर का भाव 338 रुपये पर था। बाजार में गिरावट के साथ-साथ यह शेयर भी बीते कुछ महीनों में कमजोर हुआ है। हाल की गिरावट ने सीईएससी को आकर्षक मूल्यांकन पर ला दिया है, जहाँ इसमें और गिरावट की संभावना सीमित रहेगी, जबकि बाजार के वापस सँभलने पर अच्छी बढ़त मिलने की उम्मीद रहेगी। मल्टीब्रांड रीटेल में विदेशी निवेश की सीमा 51% करने की नीति लागू होने की स्थिति में इस शेयर पर भी काफी अच्छा असर होने की उम्मीद रहेगी।
हीरो मोटोकॉर्प : अकेला सफर
आपका हीरो होंडा अब है हीरो मोटोकॉर्प। एक छोटे से वाक्य में समा गये इस संदेश को शेयर बाजार ने किसी आम ग्राहक की तुलना में महीनों या सालों पहले ही सुन लिया था। होंडा के अलग होने के बाद भी बीते कुछ महीनों में कंपनी की बिक्री पर कोई असर नहीं दिखा है, हालाँकि यह देखना होगा कि नाम में बदलाव के बाद ग्राहकों की प्रतिक्रिया अगले कुछ महीनों में कैसी रहेगी। लेकिन शेयर बाजार के लिए तो इस संदेश की आहट ही खतरे का एक संकेत बन गयी थी। इस अलगाव से जुड़ी खबरों ने हीरो होंडा के शेयर भाव पर काफी नकारात्मक असर डाला था।
इडेलवाइज सिक्योरिटीज ने अगस्त में जारी अपनी एक रिपोर्ट में हीरो होंडा का लक्ष्य भाव 1,770 रुपये बताया था और इसे होल्ड रेटिंग दी थी, यानी जिनके पास पहले से यह शेयर हो वे रखे रहें, लेकिन नयी खरीदारी न करें। क्रिसिल की 20 सिंतबर की एक रिपोर्ट में इसका उचित मूल्यांकन 1,797 रुपये बताया गया। हालाँकि इंडिया इन्फोलाइन की एक ताजा रिपोर्ट में हीरो होंडा का 12 महीने का लक्ष्य भाव 2,430 रुपये रखा गया है। मगर आम तौर पर हीरो मोटोकॉर्प के लिए ब्रोकिंग फर्मों के लक्ष्य भाव मौजूदा बाजार भावों से नीचे हैं, और इनके हिसाब से हीरो मोटोकॉर्प में नयी खरीदारी नहीं बनती। लेकिन आम राय से थोड़ा अलग जा कर इस शेयर को खरीदना लंबी अवधि में आपके लिए फायदेमंद होगा। बेशक इस खरीदारी के लिए बाजार के किसी उतार-चढ़ाव में निचले भावों के आने का इंतजार किया जा सकता है। किसी गिरावट में इसमें खरीदारी करने पर आपका जोखिम कम हो जायेगा और लाभ का प्रतिशत बढ़ जायेगा।
होंडा से अलग होने का कितना असर?
हीरो और होंडा की साझेदारी से बने हीरो होंडा ने न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में दोपहिया बाजार पर राज किया। यह साझेदारी 26 सालों तक सफल ढंग से चली और पिछले 10 सालों से हीरो होंडा दुनिया की सबसे बड़ी दोपहिया निर्माता कंपनी बनी रही। लेकिन बाजार में पिछले कुछ समय से लगातार यह सवाल बना रहा कि साझेदारी टूटने का इस कंपनी पर क्या असर होगा? हीरो मोटोकॉर्प को अब घरेलू बाजार में होंडा मोटरसाइकल एंड स्कूटर्स इंडिया (एचएमएसआई) की प्रतिस्पर्धा झेलनी होगी, जो भारत में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए काफी उत्सुक है। लेकिन यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि एचएमएसआई भारतीय बाजार में कई सालों से मौजूद है और अब तक हीरो होंडा भी एचएमएसआई की प्रतिस्पर्धा का सामना करती रही है।
होंडा से अलगाव के चलते अब हीरो मोटोकॉर्प के लिए निर्यात बाजार पूरी तरह खुल जायेगा। होंडा से साझेदारी के दौर में कंपनी के लिए निर्यात पर काफी प्रतिबंध थे, क्योंकि इससे होंडा के अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर पड़ता। गौरतलब है कि बजाज ऑटो ने 2010-11 के दौरान करीब 12 लाख वाहनों का निर्यात किया था और इसका लक्ष्य अगले 3-4 सालों में 20 लाख मोटरसाइकलों के सालाना निर्यात का है। इस लिहाज से हीरो मोटोकॉर्प ने अगले कुछ सालों में सालाना 10 लाख वाहनों के निर्यात का जो लक्ष्य रखा है, उसे ज्यादा मुश्किल नहीं कहा जा सकता।
हाल में कंपनी ने नये लोगो के साथ अपनी नयी वैश्विक ब्रांड पहचान सामने रखी। साथ ही इसने एक करोड़ मोटरसाइकलों की बिक्री करने लक्ष्य भी सामने रखा। कंपनी ने यह उम्मीद जतायी है कि अगले 5-6 सालों में वह अपनी बिक्री का 10% हिस्सा निर्यात से हासिल कर सकेगी। इसने दो नये मॉडल भी बाजार में उतारे। इसने जल्दी ही तकनीक के लिए किसी प्रमुख विदेशी कंपनी से साझेदारी के संकेत भी दिये हैं। इन सारी बातों के बावजूद ऐसा लगता है कि शेयर बाजार में हीरो को ले कर एक असमंजस बना हुआ है। लेकिन बाजार का यही असमंजस इस शेयर में खरीदारी का एक मौका दे रहा है।
बिक्री की तेज रफ्तार जारी
हीरो मोटोकॉर्प ने सिंतबर 2011 के महीने में 5,49,625 लाख वाहन बेचे, जो इसकी अब तक का सबसे ज्यादा मासिक बिक्री का रिकॉर्ड है। यह बिक्री सितंबर 2010 के 4,33,641 वाहनों से 26.75% ज्यादा है। इस साल अगस्त में कंपनी ने 5,03,654 वाहन बेचे थे। इस तरह ठीक पिछले महीने की तुलना में सिंतबर में कंपनी ने 9.13% बढ़त दर्ज की है। इससे पहले जुलाई महीने में कंपनी की बिक्री 4,91,036 वाहनों की थी। इन आँकड़ों से जाहिर है कि होंडा से अलगाव का कोई असर पिछले कुछ महीनों की बिक्री में नहीं दिख रहा है।
ऊँची ब्याज दरों के असर का डर
कई विश्लेषक ऊँची ब्याज दरों को इस कंपनी के लिए एक जोखिम मानते रहे हैं। लेकिन अब ऊँची ब्याज दरों का यह दौर एक तरह से अपने अंतिम चरण के पास है। पिछले कुछ समय से ऊँची ब्याज दरों के बावजूद कंपनी ने रिकॉर्ड बिक्री जारी रखी है।
यहाँ हमें इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि एक मोटरसाइकल खरीदार के लिए ब्याज दरें 1-2% बढऩे से कर्ज पर मासिक किस्त में होने वाली बढ़ोतरी ज्यादा बड़ी नहीं होती। कोई व्यक्ति मासिक किस्त 100-200 रुपये बढ़ जाने के चलते मोटरसाइकल खरीदने का फैसला टाल दे, इसकी संभावना कम ही होगी।
लेकिन दूसरी ओर यह भी संभव है कि कार खरीदने की सोचने वाले कई ग्राहक ऊँची ब्याज दरों के चलते कार के बदले मोटरसाइकल से ही संतोष करना बेहतर समझें। खास कर पेट्रोल की ऊँची कीमत के मद्देनजर ऐसा होना ज्यादा स्वाभाविक होगा। लिहाजा अगर हम ऊँची ब्याज दरों और पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमत का कुल असर देखें तो यह मोटरसाइकल निर्माताओं के पक्ष में ही जाता है।
लागत बढ़ने से मार्जिन पर दबाव
यह आशंका जतायी जाती रही है कि ऊँची लागत के चलते तकरीबन सभी ऑटो कंपनियों को लागत बढऩे का दबाव झेलना पड़ेगा, जिसके चलते उनके मार्जिन में कमी आ सकती है। यह बात हीरो मोटोकॉर्प के पिछले नतीजों में दिखती भी है, क्योंकि इसका एबिट मार्जिन 10 सालों के निचले स्तरों पर आ चुका है। लेकिन इंडिया इन्फोलाइन ने अपनी रिपोर्ट में उम्मीद जतायी है कि अगले तीन कारोबारी सालों में 2011-12 से 2014-15 के दौरान इसका एबिट मार्जिन 4% अंक यानी 400 आधार अंक तक बढ़ सकता है। इसका आकलन है कि 2012-13 से कंपनी ईपीएस में तेज बढ़त के नये दौर में प्रवेश कर सकती है और अगले तीन कारोबारी सालों तक इसकी प्रति शेयर आय (ईपीएस) में सालाना औसतन 24% की वृद्धि हो सकती है।
1908 पर है मजबूत सहारा
तकनीकी नजरिये से देखें तो यह शेयर इस साल मार्च से तेजी के दौर में है, जबकि इस दौरान बाकी शेयर बाजार लगातार कमजोर रहा है। फरवरी के निचले स्तर 1,376 से चढ़ कर सितंबर में 2,237 के शिखर तक गया। इस दौरान यह लगातार ऊपरी शिखर और ऊपरी तलहटी बनाता रहा है। अगर 1,376-2,237 की उछाल की वापसी के स्तर देखें तो 38.2% वापसी 1,908 पर है।
लिहाजा किसी भी उतार-चढ़ाव में 1,908 के आसपास हीरो मोटोकॉर्प को मजबूत सहारा मिलने की उम्मीद रहेगी। इसका 100 दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) भी इस स्तर के पास ही है। जब भी यह शेयर 1,376-2,237 की 23.6% वापसी के स्तर 2,034 को पार कर इसके ऊपर टिक पायेगा, तो उसके बाद यह वापस अपने पिछले शिखर 2,237 को छूने की कोशिश करेगा, जबकि 2,237 के ऊपर जाना इसमें एक नयी तेजी का संकेत होगा।
लेकिन पूरे बाजार में कमजोरी या अगर किसी अन्य वजह से यह शेयर 1,376-2,237 की 61.8% वापसी के स्तर 1,705 को तोड़ दे, तो यह कमजोरी का संकेत होगा। वैसी हालत में इसे बेच कर नयी खरीदारी के लिए निचले भावों का इंतजार करने की रणनीति ज्यादा अच्छी होगी।
जागरण प्रकाशन : चुनावी आहट
जागरण प्रकाशन के मार्जिन और मुनाफे पर कुछ समय से दबाव दिख रहा है, लेकिन त्योहारी मौसम और उसके बाद उत्तर प्रदेश के चुनावों के मद्देनजर ज्यादा विज्ञापन मिलने की उम्मीद के चलते कई ब्रोकिंग फर्मों ने हाल में इस शेयर को खरीदने की सलाह दी है। प्रभुदास लीलाधर के साहिल देसाई ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है कि पहली तिमाही में कंपनी जागरण प्रकाशन की विज्ञापन आय केवल 8% की हल्की दर से बढ़ सकी। एक तो देश में विज्ञापन पर होने वाले खर्च में कमी रही, दूसरी तरफ शिक्षा क्षेत्र के विज्ञापनों में देरी हुई। इसके अलावा हाल में जागरण की विज्ञापन दरें बढऩे के चलते विज्ञापनों की मात्रा बढऩे की रफ्तार भी हल्की हो गयी। दूसरी ओर अखबारी कागज की कीमतें बढऩे और ज्यादा संख्या में अखबार छपने की वजह से लागत बढ़ कर आमदनी का 32% हो गयी। पिछले कारोबारी साल की समान तिमाही में लागत आमदनी का केवल 28% हिस्सा थी। इससे जागरण का एबिटा मार्जिन भी 33.4% से घट कर 26.9% पर आ गया। जागरण को अपने पंजाबी भाषा के संस्करण पर बीती तिमाही में 2.0 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा। साथ ही इसने उर्दू दैनिक इंकिलाब के 11 नये संस्करण भी शुरू किये हैं, जिनसे उत्तर प्रदेश में इसकी पैठ और मजबूत होने की उम्मीद है। इसने पिछले दिनों मिड डे को भी खरीदा है।
नजर त्योहारी मौसम और चुनाव पर
हाल का प्रदर्शन फीका रहने के बावजूद प्रभुदास लीलाधर ने जागरण प्रकाशन को खरीदने की सलाह दी है, क्योंकि साल के बाकी महीनों में इसकी आय बढऩे की उम्मीद है। त्योहारी मौसम में जागरण को ज्यादा विज्ञापन मिलने की संभावना जतायी गयी है। उत्तर प्रदेश में चुनावों के मद्देनजर भी इसे अतिरिक्त विज्ञापन मिलने की उम्मीद रहेगी। लिहाजा सामान्य तौर पर विज्ञापनों का बाजार सुस्त रहने के बावजूद प्रभुदास लीलाधर का मानना है कि जागरण का मुनाफा दमदार रह सकता है। इसने 145 रुपये के लक्ष्य भाव के साथ इसे खरीदने की सलाह दी है। इडेलवाइज सिक्योरिटीज का भी मानना है कि दूसरी छमाही में इसकी विज्ञापन आय बढऩे की उम्मीद रहेगी। इसने लंबी अवधि के लिए जागरण प्रकाशन को खरीदने लायक माना है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने भी हाल में इसकी रेटिंग बढ़ा कर इसे 133 रुपये के लक्ष्य के साथ खरीदने की सलाह दी।
111 पार करने पर तेजी की उम्मीद
अगर जागरण प्रकाशन का भाव 157-96 तक की गिरावट की 23.6% वापसी के स्तर 111 को पार कर ले, तो इसमें तेजी की उम्मीद बनेगी। हालाँकि इसे 111-120 के दायरे में कुछ बाधा झेलनी पड़ेगी। इसी दायरे में अभी 100 और 200 दिनों के एसएमए भी हैं। लेकिन इस दायरे को पार करने के बाद इसमें अच्छी तेजी आ सकती है।
भारती एयरटेल : अफ्रीकी संगीत
भारती एयरटेल ने जब अफ्रीका में कदम रखने का फैसला किया था तो बाजार में काफी विश्लेषकों ने इसे एक जोखिम भरे कदम के तौर पर देखा था। लेकिन यह जोखिम उठाने के फायदे अब कुछ हद तक दिखने लगे हैं। अभी इसे अफ्रीका में एक लंबा सफर तय करना है। लेकिन उम्मीद यही है कि भारत में इसने जो कारोबारी मॉडल सफलता से चलाया है, उसे वह अफ्रीका में भी अच्छी तरह दोहरा सकेगी। दूसरी ओर घरेलू बाजार में लगातार कॉल दरों के गिरने का सिलसिला थमा है और एक तरह से पहली बार भारतीय टेलीकॉम बाजार में दरें बढऩे की खबरें सुनने को मिली हैं।
इंडिया इन्फोलाइन की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई-अगस्त में कंपनी ने अपनी कॉल दरों में जो बढ़ोतरी की है, उसका असर तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर-दिसंबर 2011 से दिखना शुरू होगा। इसका आकलन है कि दूसरी तिमाही में भारती की एबिटा आय पिछली तिमाही से 5.9% ज्यादा रहेगी। लेकिन दूसरी तिमाही में कंपनी को डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आयी गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा विनिमय का नुकसान (फॉरेक्स लॉस) झेलना पड़ेगा, जो 760 करोड़ रुपये का एक बड़ा नुकसान हो सकता है।
इसके चलते इंडिया इन्फोलाइन का आकलन है कि दूसरी तिमाही में भारती का मुनाफा पिछली तिमाही से 28% घट सकता है। इसने कंपनी का ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन (ओपीएम) 0.50% अंक सुधर कर 34.1% हो जाने का अनुमान रखा है।
मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज ने भी तिमाही नतीजों के पूर्वानुमानों पर अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी तिमाही में भारती को मुनाफे में 37% की गिरावट झेलनी पड़ेगी। इसने कंपनी की एबिटा आय 14% बढऩे का अनुमान जताया है। इसका कहना है कि घरेलू बाजार में कॉल दरों के बढऩे और अफ्रीकी कारोबार में मार्जिन में सुधार होने की वजह से इस कारोबारी साल की दूसरी छमाही में भारती का प्रदर्शन अच्छा रह सकता है। हालाँकि बाजार को इस बात का अंदेशा पहले से है कि दूसरी तिमाही में कंपनी को विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर झटका लगेगा और इसके चलते मुनाफा घटेगा, लेकिन यह खबर आने पर संभव है कि बाजार में एक नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखे। उस नकारात्मक प्रतिक्रिया में भारती एयरटेल को निचले भावों पर खरीद कर लंबी अवधि के लिए अपने पोर्टफोलिओ का हिस्सा बनाना एक अच्छी रणनीति होगी।
अफ्रीकी धुन
कारोबारी साल 2011-12 की पहली तिमाही में अफ्रीका में कंपनी की आमदनी ठीक पिछली तिमाही से 6% बढ़ कर 97.9 करोड़ डॉलर रही थी। इंडिया इन्फोलाइन का मानना है कि भारती के अफ्रीकी कारोबार में मार्जिन में सुधार जारी रहेगा। हालाँकि अब वहाँ भी प्रतिस्पर्धा बढऩे के चलते कॉल दरों को घटाने का सिलसिला शुरू हो चुका है। लेकिन इस तरह के माहौल में काम करने का भारती को अच्छा अनुभव है।
इंडिया इन्फोलाइन ने अनुमान लगाया है कि दूसरी तिमाही में दक्षिण अफ्रीका में कंपनी की आमदनी पिछली तिमाही के मुकाबले 2.2% ज्यादा रहेगी। भारती ने पिछले साल जेन टेलीकॉम का अफ्रीकी कारोबार 10.70 अरब डॉलर में खरीदा था। हाल ही में भारती ने यह उम्मीद जतायी है कि मई 2013 तक अफ्रीकी कारोबार से उसकी आमदनी 5 अरब डॉलर और एबिटा आय 2 अरब डॉलर पर पहुँच जायेगी।
पहली तिमाही में दबाव
इस कारोबारी साल 2011-12 की पहली तिमाही में कंपनी ने कामकाजी स्तर पर तो निराश नहीं किया था, लेकिन इसका मुनाफा बाजार के अनुमानों से पीछे रह गया था। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ब्याज लागत अनुमान से ज्यादा रहने और कर देनदारी ज्यादा हो जाने के चलते कंपनी के मुनाफे पर असर पड़ा। इसके अलावा 3जी लाइसेंस शुल्क के एमॉर्टाइजेशन और 3जी नेटवर्क पर निवेश की वजह से भी मुनाफे पर दबाव पड़ा।
पहली तिमाही में इसका मुनाफा 1,215 करोड़ रुपये रहा, जो 2010-11 की पहली तिमाही के 1,682 करोड़ रुपये से 27.8% कम है। हालाँकि इसके नेटवर्क पर बातचीत के कुल मिनट 2010-11 की चौथी तिमाही से 5% बढ़ कर 252 अरब मिनट हो गये थे। कंपनी की कुल तिमाही आमदनी सालाना आधार पर 38.6% बढ़ कर 16,975 करोड़ रुपये रही थी। इसकी कंसोलिडेटेड एबिटा आय पिछले साल की समान तिमाही से 28.3% बढ़ कर 5,706 करोड़ रुपये रही थी।
ब्रोकिंग फर्मों के लक्ष्य भाव
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने अपनी 04 अगस्त की रिपोर्ट में भारती के लिए 422 रुपये का लक्ष्य रखते हुए कंपनी के मौजूदा निवेशकों को इसे रखे रहने की सलाह दी थी। इंडिया इन्फोलाइन की 12 अगस्त की रिपोर्ट में इसका लक्ष्य भाव 461 रुपये आँका गया था। आनंद राठी सिक्योरिटीज ने 04 अगस्त को अपनी रिपोर्ट में इसका लक्ष्य 500 रुपये बताया था। हालाँकि यहाँ ध्यान रखने की बात है कि उस समय भारती का शेयर भाव 423 रुपये पर था। हाल में इसका भाव नीचे आ गया है। एनाम सिक्योरिटीज ने अपनी 25 अगस्त की रिपोर्ट में इसका लक्ष्य 490 रुपये बताया है। इडेलवाइज सिक्योरिटीज ने 28 सितंबर को जारी अपनी रिपोर्ट में इसे खरीदने की सलाह दी है।
एनटीपी 2011
राष्ट्रीय दूरसंचार नीति (एनटीपी) 2011 में लाइसेंस और स्पेक्ट्रम से जुड़े अन्य मुद्दों का टेलीकॉम कंपनियों के बही-खातों पर सीधा असर कैसा रहेगा, इस बारे में जानकार अभी साफ राय नहीं बना सके हैं। लेकिन मोटे तौर पर इस मसौदे को टेलीकॉम क्षेत्र के लिए सकारात्मक माना जा रहा है। इस मसौदे में आय को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला एक प्रमुख मसला रोमिंग का है। इस समय जीएसएम ऑपरेटरों की आमदनी का 8% हिस्सा रोमिंग से आता है, और इसका आधा हिस्सा यानी कुल आमदनी का 4% हिस्सा राष्ट्रीय रोमिंग का है। अगर एनटीपी 2011 के तहत राष्ट्रीय रोमिंग शुल्क खत्म कर दिया गया, तो मोबाइल ऑपरेटरों को इस कमाई से हाथ धोना पड़ेगा।
लेकिन इसका दूसरा पहलू यह है कि रोमिंग शुल्क खत्म होने पर ग्राहक दूसरे शहरों में यात्रा के दौरान भी आम दिनों की तरह मोबाइल से बातचीत जारी रखेंगे, जिससे कुल मात्रा में बढ़ोतरी हो सकती है।
तकनीकी राय
पिछले साल मई से ही भारती एयरटेल के शेयर में एक अच्छी चाल दिखी। नवंबर 2011 से बाजार में चल रही गिरावट के बावजूद इस शेयर ने अपनी मजबूती कायम रखी और हाल में इसने 448 रुपये का ऊपरी स्तर छुआ। अगर हम मार्च 2011 की तलहटी 309 रुपये से 448 रुपये तक की उछाल को देखें तो इसकी 61.8% वापसी 362 रुपये पर है। लिहाजा इसे किसी उतार-चढ़ाव में 362 के स्तर पर एक अच्छा सहारा मिलने की उम्मीद रहेगी।
इसके पास ही 200 दिनों का सिंपल मूविंग एवरेज (एसएमए) भी है। इसके नीचे ही कुछ पुरानी तलहटियों को मिलाती एक लाल रुझान रेखा दिख रही है। जब तक भारती का शेयर इस रेखा के ऊपर रहे, तब तक इसमें निचले भावों पर खरीदारी की रणनीति पर अमल करना ज्यादा फायदेमंद रहेगा। लेकिन हाल में इस शेयर में जो दबाव दिखा था, वह खत्म होने की उम्मीद तभी दिखेगी, जब यह 309-448 की 38.2% वापसी के स्र 395 को पार कर ले। इसी स्तर के पास अभी 100 दिनों का एसएमए भी है। इसके पार होने के बाद यह शेयर फिर से तेजी की चाल पकड़ सकता है। मोटे तौर पर यह समझ लें कि जब भी भारती का शेयर भाव 400 के ऊपर जाये तो इसमें 415 और 448 रुपये के लक्ष्य रखे जा सकते हैं। वहीं 448 रुपये का भाव पार होने पर इसमें एक नयी उछाल आ सकती है। लेकिन वैसी उछाल के लिए जरूरी होगा कि इसे नये सिरे से कुछ अच्छी खबरों का दमखम मिले।
सुजलॉन एनर्जी : दिखेगी चमक
सुजलॉन एनर्जी का शेयर इस समय अपने ऐतिहासिक निचले स्तरों के पास चल रहा है और निवेशकों ने इससे एकदम किनारा कर रखा है। हालाँकि कारोबारी मोर्चे पर सुजलॉन ने बीती कुछ तिमाहियों में काफी सुधार दिखाया है। इस सुधार के बावजूद इस शेयर को लेकर निवेशकों की बेरुखी इसमें खरीदारी का एक शानदार मौका दे रही है।
मूल्य बस रीपावर का, सुजलॉन मुफ्त!
जुलाई में एंटिक स्टॉक ब्रोकिंग ने इसका 69 रुपये का लक्ष्य भाव रखा था, जिसमें से 36 रुपये तो केवल रीपावर में सुजलॉन की हिस्सेदारी की वजह से थे। अभी इस कीमत में आपको समूची सुजलॉन मिल रही है - रीपावर की हिस्सेदारी समेत! जर्मनी की पवन ऊर्जा कंपनी रीपावर में सुजलॉन का हिस्सा करीब 95% है। सुजलॉन ने अब रीपावर की बाकी 5% हिस्सेदारी भी खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एनाम सिक्योरिटीज ने भी अपनी एक अगस्त की रिपोर्ट में इसका लक्ष्य भाव 64 रुपये बताया था।
रीपावर की मौजूदा बाजार पूँजी अभी करीब 1.31 यूरो यानी लगभग 8०८0 करोड़ रुपये की है। अगर हम इसका 95% हिस्सा देखें तो रीपावर में सुजलॉन की हिस्सेदारी की कीमत करीब 7675 करोड़ रुपये होती है। लेकिन इस समय खुद सुजलॉन की बाजार पूँजी घट कर ७००० रुपये से भी नीचे चली गयी है। मतलब सुजलॉन का शेयर खरीदते समय आप केवल रीपावर की कीमत चुका रहे हैं, वह भी थोड़ी छूट पर और सुजलॉन का अपना कारोबार मुफ्त में मिल रहा है!
सुधरा है सुजलॉन का अपना कारोबार
सुजलॉन के स्टैंडअलोन आँकड़े देखें तो इसने 2011-12 की पहली तिमाही में 1156.91 करोड़ रुपये की आमदनी पर 110.07 करोड़ रुपये का फायदा कमाया, जबकि पिछले साल समान तिमाही में इसे 407.63 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।
अब यहाँ से पलटना ही स्वाभाविक
सुजलॉन ने 33 से 146 तक की उछाल की पूरी वापसी कर ली। इन स्तरों से सुजलॉन में और गिरावट के बदले इसके यहाँ से पलटने की संभावना ही ज्यादा है। तकनीकी नजरिये से 56 और 76 रुपये इसके अगले स्वाभाविक लक्ष्य हो सकते हैं।
एसबीआई : ललचाती कीमत
भारत के सबसे बड़े कारोबारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने इस साल 17 मई को जब जनवरी-मार्च 2011 का अपना तिमाही नतीजा पेश किया था तो बाजार एकदम से सदमे में आ गया था। उस दिन एसबीआई का शेयर भाव सीधे 216 रुपये या 8.3% लुढ़क गया था। आखिर क्यों? इसलिए कि एसबीआई का तिमाही मुनाफा तब 1,866.60 करोड़ रुपये से घट कर केवल 20.88 करोड़ रुपये रह गया था। तब से शेयर बाजार में इसकी दिशा नीचे ही रही है।
लेकिन जरा गौर करें कि मुनाफे में इतनी कमी क्यों आयी थी? इसने जनवरी-मार्च की तिमाही में अपने प्रावधान (प्रोविजनिंग) 2,349 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 4,157 करोड़ रुपये कर दिये थे। प्रावधान करने का मतलब है सावधानी बरतते हुए कुछ रकम अलग रख देना। ये पैसे कहीं गये नहीं, एसबीआई के पास ही हैं। जब प्रावधान करने की वजह खत्म हो जायेगी, तो ये पैसे वापस उसके मुनाफे में जुड़ जायेंगे। लेकिन जानकारों ने सवाल उठाये कि चेयरमैन बदलते ही इतने ज्यादा प्रावधान करने की जरूरत क्यों पड़ी? बाजार ने एसबीआई को इस बात की सजा दी और वह सजा अब तक जारी है।
दरअसल अप्रैल-जून 2011 यानी इस कारोबारी साल की पहली तिमाही के नतीजों ने भी बाजार को कोई खास राहत नहीं दी। इस अवधि में इसका मुनाफा पिछले साल की समान तिमाही से 4५.७% घट कर 1,584 करोड़ रुपये रह गया। हालाँकि इस तिमाही में बैंक का शुद्ध ब्याज मार्जिन 3.6% रहा, जो ठीक पिछली तिमाही के 3.1% और पिछले साल की समान तिमाही के 3.2% से बेहतर था। इसके बावजूद फिर से ऊँचे प्रावधानों की वजह से बैंक का मुनाफा दब गया और सँभलने की कोशिश कर रहा यह शेयर फिर से टूट गया।
लेकिन यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चलेगा। जल्दी ही बैंक प्रावधानों के मामले में सामान्य स्थिति की ओर लौटेगा। मार्जिन में मजबूती से साफ है कि कोई कामकाजी दिक्कत नहीं है। जब भी ब्याज दरें थमने का संकेत मिलेगा, तब इस क्षेत्र के शेयरों में नयी चाल आयेगी।
आकर्षक कीमत पर हावी डर
एसबीआई 08 नवंबर 2010 के शिखर 3,515 से हाल में १८०० के भी नीचे फिसल गया, यानी इसकी कीमत शिखर से आधी रह गयी। इसके बावजूद अब तक इसे कहीं कोई मजबूत सहारा मिलता नहीं दिखा है। हालाँकि 892 से 3,515 तक की उछाल की 61.8% वापसी 1,894 पर है, लेकिन जब यह वापस पलटने का संकेत नहीं देता, तब तक इसमें खरीदारी खतरनाक होगी। अगर यह सितंबर 2011 के ऊपरी स्तर 2,048 को पक्के तौर पर पार करता दिखे, तो इसमें खरीदारी शुरू की जा सकती है। दूसरी ओर अगर यह करीब 1,400 तक फिसल जाये, तो वहाँ खरीदारी का काफी अच्छा मौका होगा, क्योंकि वहाँ से इसका भाव और नीचे जाने की संभावना कम ही होगी।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)
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म्यूचुअल फंड
अक्सर यह कहा जाता है कि किसी म्यूचुअल फंड योजना का पिछला प्रदर्शन उसके भविष्य के प्रदर्शन की गारंटी नहीं देता। लेकिन दूसरी ओर यह भी सच है कि अच्छी म्यूचुअल फंड योजनाओं को चुनने का यही सबसे बड़ा पैमाना भी है। मगर आप इस बात पर जरूर गौर करें कि उस योजना में केवल पिछली किसी खास अवधि में ज्यादा लाभ मिला है, या उसके प्रदर्शन में एक निरंतरता है। कभी हीरो और कभी जीरो रहने वाली योजनाओं में आपके लिए ज्यादा जोखिम होगा। इसके अलावा, आप यह भी देखें कि वह योजना जिस सोच पर तैयार की गयी है, वह सोच आगे चल कर कितनी कारगर रहने वाली है।
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मोहम्मद असलम, सीओओ (आवासीय सेवाएँ), जोंस लैंग लसाले इंडिया :
किसी भी आवासीय संपत्ति में निवेश का बुनियादी लक्ष्य कैपिटल गेन के साथ-साथ निवेश पर लाभ रिटर्न (यील्ड) को अधिकतम करते हुए जोखिम को न्यूनतम स्तर पर लाना होना चाहिए। उदाहरण के लिए, किसी संपत्ति को सजा-सँवार कर और बेहतर बना कर उसका किराया बढ़ाया जा सकता है, जिसका मतलब होगा लाभ में और बढ़ोतरी करना।
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उद्यम
अब मैं मोबाइल के धंधे में आ गया। मैंने मोबाइल ऑपरेटरों से कहा कि कुछ और करें आपके लिए? उन्होंने (मजाक में) कहा कि अच्छा, अब डायरेक्टरी नहीं बनानी है आपको! मैंने उनसे कहा कि क्रिकेट पर कुछ करता हूँ आपके लिए। इंटरनेट के अनुभव से मुझे पता था कि क्रिकेट बहुत चलता है और खबरें बहुत चलती हैं। उस समय मैंने यह भी समझा कि एसएमएस सेवा कम चलती है, आवाज संबंधी सेवाएँ ज्यादा चलती हैं।
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विजय भंबवानी एक नयी मुसीबत में हैं। कुछ समय पहले उन्होंने माताजी को सलाह दे डाली कि वे रसोई में खाना पकाने के तेल कुछ ज्यादा इकट्ठा करके रख लें, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि डॉलर के दाम बढऩे से इन चीजों की कीमतें बढ़ेंगी। इनकी कीमतें बढ़ भी गयीं। लेकिन अब माताजी कह रही हैं कि वे सब्जी, फल, दूध, अनाज और मसालों के बारे में भी बतायें। हो गयी ना मुसीबत! अब तो भंबवानी साहब को भगवान ही बचायें। ठीक ही है, उन्होंने भगवान से ही मदद मांगी है! वैसे उनके फेसबुक मित्र भी कम नहीं हैं।
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अगर किसी ने अब तक 2500 करोड़ डॉलर से ज्यादा के विलय-अधिग्रहण और पूँजी जुटाने के सौदे कराये हों, तो उसके लिए 20 करोड़ डॉलर का सौदा कितना खास होगा? शायद एक छोटा सौदा, कुछ खास नहीं। सुमंत सिन्हा ने भले ही आदित्य बिड़ला समूह के सीएफओ के रूप में नोवेलिस की खरीद के लिए 600 करोड़ डॉलर का सौदा किया हो, लेकिन उससे बेहद छोटा, केवल 20 करोड़ डॉलर यानी लगभग 1000 करोड़ रुपये का एक ताजा सौदा उनके लिए बेहद खास है।
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स्कोडा ऑटो इंडिया ने अपनी कार लॉरा का नया रूप बाजार में उतारा है। लॉरा आरएस में 1.8 लीटर पेट्रोल इंजन है। दावा है कि यह 13.4 किलोमीटर प्रति लीटर चलेगी। दिल्ली में इसकी शोरूम कीमत 15.49 लाख रुपये है। कंपनी का कहना है कि उसने यह नया रूप लॉरा के प्रशंसकों के लिए पेश किया है, इसलिए उसे बिक्री के लिहाज से ज्यादा अपेक्षाएँ नहीं हैं।
सैमसंग ने पेश किए तीन थ्री जी हैंडसेट
सैमसंग ने तीन थ्रीजी मोबाइल हैंडसेट बाजार में लांच किए हैं। कंपनी के चैंप 3.5 जी हैंडसेट पेश किया है। इसकी कीमत 5,590 रुपये है। इसमें 7.5 सेमी टच स्क्रीन, 2 मेगापिक्सल कैमरा और 30 एमबी इंटरनल मेमोरी है, जिसे बढ़ाकर 16 जीबी तक किया जा सकता है। इसके अलावा 5,930 रुपये की कीमत वाला चैट 527 हैंडसेट और 6,590 रुपये की कीमत वाला प्राइमो हैंडसेट बाजार में उतारा है। ये हैंडसेट टच, क्वर्टी और बार टाइप फॉर्मेट वाले हैं।
टोयोटा का इटियॉस सेडान व लिवा का डीजल संस्करण लांच
जापान की वाहन निर्माता कंपनी टोयोटा ने इटियॉस सेडान तथा इटियॉस लिवा का डीजल संस्करण भारतीय बाजार में पेश किया है। दोनों डीजल संस्करणों में 1.4 लीटर का इंजन लगा है। कंपनी का दावा है कि ये कार एक लीटर डीजल में 23.59 किलोमीटर तक दौड़ेगी। दिल्ली में एक्स शोरूम इटियॉस सेडान डीजल कार का दाम 6.44 लाख रुपये से 7.87 लाख रुपये है। इसी तरह इटियॉस लिवा डीजल संस्करण का दाम 5.54 लाख रुपये से 5.89 लाख रुपये के बीच है।
ब्लैकबेरी टार्च 9860 स्मार्टफोन लांच
कनाडा की कंपनी रिसर्च इन मोशन (रिम) ने ब्लैकबेरी टार्च 9860 स्मार्टफोन भारतीय बाजार में पेश किया है। इस स्मार्टफोन में नयी ब्लैकबेरी 7 ऑपरेटिंग प्रणाली लगी है। इसमें 3.7 इंच का टचस्क्रीन के साथ इस स्मार्टफोन में लिक्विड ग्राफिक्स टेक्नोलॉजी की सुविधा भी उपलब्ध है। इसमें 5 मेगापिक्सल का कैमरा और 4 जीबी इंटरनल मेमोरी है इसमें हाई परफार्मेंस ग्राफिक्स सहित फास्ट सीपीयू है। इसकी कीमत 28,490 रुपये है।
सलोरा का मल्टी ऑपरेटर डेटा कार्ड
सलोरा इंटरनेशनल ने मल्टी ऑपरेटर थ्रीजी डेटा कार्ड सेलोरा जैपर को बाजार में उतारा है। यह डेटा कार्ड किसी भी जीएसएम मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी के कनेक्शन के प्रयोग किया जा सकता है।
इस डेटा कार्ड के जरिए ग्राहक किसी भी कंपनी के सिम कार्ड का इस्तेमाल करते हुए 3.6 एमबीपीएस स्पीड पर वीडियो डाउनलोड करने के साथ चैटिंग भी कर सकता है। डेटा कार्ड की मेमोरी 32 जीबी है। यह कार्ड विडोंज 7, एक्सपी, विस्टा, एसपी2, मैक्स ओएसएक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर प्रयोग में लाया जा सकता है।
स्टार सिटी का लिमिटेड एडीशन पेश
दोपहिया वाहन निर्माता कंपनी टीवीएस मोटर ने अपनी बाइक स्टार सिटी का लिमिटेड एडीशन बाजार में पेश किया है। इस पर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के हस्ताक्षर हैं। नये ग्राफिक्स और रंगों के साथ इस बाइक पर पाँच साल की वारंटी भी मिल रही है। इसे त्योहारी मौसम में नये विज्ञापन के साथ लांच किया जा रहा है। इस विज्ञापन में धोनी और उनकी पत्नी साक्षी एक साथ नजर आयेंगे।
(निवेश मंथन, अक्तूबर 2011)
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- Category: अगस्त 2011
आखिर निवेशकों के हितों की हमेशा दुहाई देने वाले भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) का अपना खर्च निवेशकों की शिक्षा पर कितना होता है? एक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके सेबी से यह जानकारी मांगी।
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- Category: सितंबर 2011
राजेश रपरिया, सलाहकार संपादक :
साख का आकलन करने की विश्व की तीन प्रमुख एजेंसियों में एक स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के अमेरिका के क्रेडिट रेटिंग एएए से एए प्लस करते ही दुनिया भर के बाजारों में भूकंप आ गया। अमेरिका में 2008 के सबप्राइम संकट के बाद एक बार फिर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अनिश्चितता और मंदी का साया गहराने लगा है। नतीजतन दुनिया की बहुत बड़ी आबादी के सामने बेरोजगारी और भुखमरी के हालात पैदा हो गये हैं। तमाम देशों के आर्थिक विकास पर मंदी का शिकंजा कसता जा रहा है। भारत का आर्थिक परिदृश्य भी इससे ज्यादा अलग नहीं है।
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- Category: सितंबर 2011
सुशांत शेखर :
भारतीय रिजर्व बैंक ने नये बैंक लाइसेंस पर दिशानिर्देशों का मसौदा जारी करके कुछ नये बैंक खुलने का रास्ता साफ कर दिया है। लेकिन इस मसौदे में ऐसे कई प्रस्ताव हैं जो लाइसेंस के दावेदारों को ठीक नहीं लग रहे हैं।
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- Category: सितंबर 2011
आर.आर.वर्मा :
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जुलाई महीने में जब अपनी ब्याज दरें लगातार ग्यारहवीं बार बढ़ाने की घोषणा की तो उद्योग जगत में इसकी तीव्र आलोचना हुई थी। बहुत से जानकारों ने ऊँची ब्याज दरों का असर आर्थिक विकास दर पर होने की आशंका जतायी थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के नतीजे सामने आने पर यह आशंका सही साबित हुई।
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