भारत के विकास की रफ्तार कुछ अटकती दिख रही है। जुलाई-सितंबर 2011 की तिमाही में विकास दर (जीडीपी वृद्धि) पहले ही 6.9% पर आ गयी थी। अब ताजा आँकड़ों के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2011 की तिमाही में विकास दर और भी घट कर 6.1% रह गयी है।
साल भर पहले अक्टूबर-दिसंबर 2010 में विकास दर 8.2% थी। जानकारों को पहले से विकास दर में कमी का अंदाजा था। लेकिन यह इतनी घट जायेगी, ऐसा भी लोगों ने नहीं सोचा था। यह विकास दर बीती 11 तिमाहियों, यानी लगभग तीन सालों में सबसे कम है। इस बार लगातार सातवीं तिमाही में विकास दर पिछली तिमाही से कम रही है। साल 2007-08 के समय भारत की विकास दर कभी-कभी 10% के ऊपर भी रही और उस समय बीते तीन सालों की औसत वृद्धि 9.5% के आसपास चल रही थी। मगर इस कारोबारी साल में विकास दर 7% के भी नीचे रह जाने का अंदेशा बन चुका है। गौरतलब है कि इस कारोबारी साल के लिए विकास दर का शुरुआती अनुमान 9% का था।
अप्रैल-जून 2011 यानी इस कारोबारी साल की पहली तिमाही में 7.7% विकास दर रहने के बाद दूसरी और तीसरी दोनों तिमाहियों में विकास दर काफी घट गयी है। आने वाली तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2012 के लिए भी आसार कुछ अच्छे नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि आठ मूलभूत क्षेत्रों (कोर सेक्टर) की वृद्धि दर दिसंबर 2011 के 3.1% से घट कर जनवरी 2012 में केवल 0.5% रह गयी। इन आठ मूलभूत क्षेत्रों में बिजली, कोयला, सीमेंट, इस्पात और कच्चा तेल शामिल हैं।
हालाँकि 29 फरवरी को जीडीपी के ताजा आँकड़ों के सामने आने के तुरंत बाद तो शेयर बाजार में कोई खास घबराहट नहीं दिखी, लेकिन धीरे-धीरे बाजार की तेजी घटने लगी। उस दिन सुबह करीब डेढ़ प्रतिशत की बढ़त दिखाने के बाद एनएसई का निफ्टी जीडीपी के आँकड़े आने से पहले लगभग 0.5% से करीब 1% तक की बढ़त के साथ चल रहा था। कमजोर जीडीपी आँकड़ों से यह बढ़त हल्की पड़ी। दोपहर 1.15 बजे निफ्टी 5400 के नीचे आ गया और 1.45 बजे तक यह लाल निशान में दिखने लगा। यह दबाव अगले कारोबारी सत्रों में भी जारी रहा।
एस्कॉट्र्स सिक्योरिटीज के प्रमुख अशोक अग्रवाल का मानना है कि विकास दर में इस गिरावट के बाद 15 मार्च को नयी कर्ज नीति में ब्याज दर घटने की संभावना बढ़ जायेगी, क्योंकि अब विकास दर पर असर दिखने लगा है। लेकिन आरबीआई को इस बात का भी ध्यान रखना है कि विधानसभा चुनावों के बाद डीजल और पेट्रोल की कीमतें बढऩी लगभग तय हैं। महँगाई दर हाल में कुछ नीचे आयी है, डीजल और पेट्रोल के दाम बढऩे का इस पर सीधा असर होगा।
हालाँकि अशोक अग्रवाल यह भी जिक्र करते हैं कि वैश्विक बाजारों में काफी नकदी बैंकिंग व्यवस्था से निकल कर अन्य संपत्तियों में जा रही है। एलटीआरओ से 450-500 अरब यूरो तक की नयी नकदी बाजार में आने वाली है। इतनी बड़ी रकम बाजार में आने से वैश्विक निवेशक उभरती अर्थव्यवस्थाओं में अपना निवेश बढ़ायेंगे और यह नकदी पूरी दुनिया में शेयर बाजारों का रुझान ऊपर बनाये रख सकती है। जब तक वैश्विक बाजारों में तेजी है, तब तक भारतीय बाजार में भी कोई बड़ी गिरावट नहीं आयेगी।
उद्योग जगत को अभी एक तरफ ऊँची ब्याज दरों का सामना करना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ कच्चे माल की कीमतें बढ़ी हैं। आरबीआई ने महँगाई दर पर काबू पाने के इरादे से लगातार 20 महीनों तक ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा, जिससे उसकी रेपो दर कुल 3.5% अंक बढ़ कर 8.5% पर पहुँच गयी। इस समय यह दर 8.5% पर ही है। कयास हैं कि मार्च में अपनी नयी कर्ज नीति में या फिर अप्रैल में आरबीआई इस दर में कटौती कर सकता है।
ऊँची ब्याज दरों और महँगे कच्चे माल का सबसे तीखा असर उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र पर दिखा, जिसने अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में पिछले साल समान अवधि की तुलना में केवल 0.4% की बढ़त दिखायी। सरकारी फैसलों में देरी की वजह से भी बड़ी सरकारी परियोजनाओं पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों में धीमापन दिखने लगा है। औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर 7.6% से घट कर 2.6% पर आ गयी। इन सबसे पूँजीगत निवेश के माहौल पर बुरा असर पड़ा है। अक्टूबर-दिसंबर 2011 की तिमाही में कुल स्थायी पूँजी निर्माण (ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन) में पिछले साल की समान अवधि से 1.2% की गिरावट आयी। इस तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2.7% की रही। अक्टूबर-दिसंबर 2010 में इस क्षेत्र में 11% की तेज उछाल दिखी थी। खनन क्षेत्र की बढ़त 6.1% से लगभग आधी रह कर 3.1% पर आ गयी। सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) ने जरूर अपनी चाल कुछ तेज की है। इसने पिछले कारोबारी साल की तीसरी तिमाही के 7.7% की तुलना में इस बार 8.9% बढ़त दर्ज की। निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र में 7.2% की बढ़त रही। ट्रेड और होटल क्षेत्र ने 9.2% की अच्छी बढ़त दिखायी।
(निवेश मंथन, मार्च 2012)