अगर कोई चाहे तो खुश हो सकता है कि 2013-14 में भारत की आर्थिक विकास पिछले साल से थोड़ी सुधरी है।
लेकिन हकीकत यह है कि बीत दो कारोबारी साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पिछले 25 वर्षों में सबसे धीमी बढ़त वाले साल रहे हैं। लगातार दो सालों से देश की विकास दर (जीडीपी) 5% से नीचे बनी हुई है। केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) के ताजा आँकड़ों के मुताबिक साल 2013-14 में देश की जीडीपी 4.7% बढ़ी है, जबकि 2012-13 में 4.5% विकास दर दर्ज की गयी थी।
इस तरह लगातार दो वर्षों से देश की विकास दर गर्त में है। इससे बुरी स्थिति वर्ष 2003 में देखने को मिली थी, जब विकास दर 4.3% पर आ गयी थी। लेकिन इससे पहले लगातार दो या अधिक वर्षों तक 5% से कम विकास दर १९८४-८५ से १९८७-८८ के दौरान ही देखने को मिली थी। इस तरह लगभग 25 साल के अंतराल के बाद देश की विकास दर लगातार दूसरे साल 5% से नीचे रही। यूपीए-2 की नाकामियों के बीच उत्पादन और खनन में गिरावट से देश की विकास दर पर बुरा असर पड़ा।
अलग-अलग क्षेत्रों की हालत देखें तो साल 2013-14 में उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र की विकास दर घट कर पिछले साल के 1.1 % से घट कर 0.7% रही। खनन क्षेत्र का उत्पादन पिछले साल की 2.2% वृद्धि की तुलना में धीमा पड़ कर 1.4% वृद्धि पर आ गया। हालाँकि कृषि क्षेत्र की विकास दर बढ़ कर 4.7% पर पहुँच गयी, जो पिछले साल 1.4% रही थी।
इस दौरान सेवा (सर्विस) क्षेत्र की विकास दर बढ़ कर 12.9% रही, जो पिछले साल 10.9% रही थी। बिजली, गैस और जलापूर्ति क्षेत्र में 2012-13 की 2.3% वृद्धि की तुलना में 2013-14 के दौरान 5.9% बढ़ोतरी हुई। साल 2013-14 के दौरान प्रति व्यक्ति आय 2.7% बढ़ी, जबकि 2012-13 में यह 2.1% बढ़ी थी।
हालाँकि साल 2013-14 में सरकारी घाटे (फिस्कल डेफिसिट) में सुधार देखने को मिला। देश का सरकारी घाटा पिछले साल के 4.9% से घट कर 2013-14 में 4.5% रहा। चालू खाता घाटा (करंट एकाउंट डेफिसिट या सीएडी) में भी अच्छी कमी आयी है। जीडीपी की तुलना में यह 2012-13 के 4.7 % से घट कर 2013-14 में 1.7 % रह गयी।
पिछले साल सीएडी अपने उच्चतम स्तर पर था, जिसके चलते रुपये में काफी कमजोरी आयी थी और यह डॉलर की तुलना में अपने रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था। बीते वित्त-वर्ष के दौरान सकल स्थायी पूँजी निर्माण (जीएफसीएफ) 32.11 लाख करोड़ रुपये का रहा, जो पिछले साल 30.72 लाख करोड़ रुपये दर्ज हुआ था। जीएफसीएफ मौजूदा भावों पर निवेश का मापदंड है।
बीती आठ में से सात तिमाहियों के दौरान विकास दर 5% के नीचे ही बनी रही है। बीते कारोबार साल के अंत तक भी स्थिति सँभलती नजर नहीं आयी, क्योंकि 2013-14 की चौथी तिमाही में विकास दर 4.6% रही। इस तिमाही में उत्पादन क्षेत्र में 1.4% की गिरावट दर्ज की गयी, जबकि कृषि क्षेत्र 6% बढ़ा।
आगे बेहतर भविष्य की उम्मीदें
लगातार दो वर्षों तक 5% से कम विकास दर के बाद अब यह उम्मीदें लगायी जा रही हैं कि 2014-15 में विकास दर सुधरनी शुरू हो जायेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस साल अप्रैल में यह अनुमान सामने रखा था कि 2014-15 में विकास दर 5.5 % होगी। जून के आरंभ में भी इसने अपनी मौद्रिक नीति में इसी अनुमान को दोहराया। इसने कहा कि निर्णायक चुनावी नतीजों के साथ बढ़े हुए उत्साह के कारण ऐसा अनुकूल माहौल बना है, जिसमें व्यापक नीतिगत कदम उठाये जा सकते हैं और सकल माँग को बढ़ाते हुए इस साल के दौरान विकास दर को क्रमश: तेज किया जा सकता है।
लेकिन मोदी सरकार बनने से उद्योग जगत ज्यादा उत्साहित है। प्रमुख उद्योग संगठन सीआईआई ने 2014-15 में 6.5 % विकास दर रहने की उम्मीद जता दी है। सीआईआई के अध्यक्ष अजय श्रीराम ने चुनावी नतीजों के बाद अपने बयान में कहा कि राजनीतिक स्थिरता के कारण आर्थिक सुधारों का कार्यक्रम आगे बढ़ाया जा सकेगा। उन्होंने उम्मीद जतायी कि नयी सरकार आर्थिक विकास दर तेज करने के लिए जरूरी कड़े फैसले तुरंत ले सकेगी।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने भी 2014-15 के विकास दर के अनुमान को बढ़ा कर 6% कर दिया है, लेकिन साथ ही सावधान किया है कि मॉनसून कमजोर रहने पर विकास दर 5.2 % पर अटक सकती है। मानसून की ताजा स्थिति इस आशंका पर मुहर लगा रही है, यानी मोदी सरकार के सामने एक चुनौती खड़ी हो चुकी है।
(निवेश मंथन, जून 2014)