पिछले 12 महीनों में भारत की विकास दर लगातार काफी नीचे आयी है। इस कारोबारी साल के बारे में आपका अनुमान क्या है?
- हम लोग अनुमान नहीं लगाते हैं। मैं कोई अनुमान नहीं देना चाहूँगा। लेकिन सीआईआई ने निश्चय किया है कि इस साल हम लोग विकास बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान देंगे। यह काम दो तरह से करेंगे। एक तो सुधारों की प्रक्रिया आगे बढऩी चाहिए और दूसरे प्रशासन (गवर्नेंस) में सुधार होना चाहिए। इस विषय में हम केंद्र और राज्य सरकारों का सहयोग करने के साथ विपक्षी दलों से भी मुलाकात करेंगे और हम विकास की रफ्तार बढ़ाने पर ध्यान देंगे।
लेकिन अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात के बारे में आपका अपना आकलन क्या है?
- मैं अपना आकलन रखने के बदले यह बताना चाहता हूँ कि सीआईआई का अभी एजेंडा क्या है। अर्थव्यवस्था के हालात के बारे में सबको पता है कि विकास दर कितनी है। इसमें सुधार कैसे हो, यह सोचने की बात है।
अभी भारतीय अर्थव्यवस्था को सबसे ज्यादा दिक्कत किस बात से है?
- मैं ऐसे सामान्य बयान नहीं देना चाहता। पर मैं समझता हूँ कि अगर सुधार और प्रशासन बेहतर करने पर ध्यान देंगे तो विकास दर में तेजी आयेगी।
कुछ समय से लोग भारत के विकास की कहानी पर ही सवाल उठाने लगे हैं। क्या आपको लगता है कि यह कहानी कहीं अटक गयी है?
- नहीं। मैं समझता हूँ विकास की कहानी फिर बहाल करने के बहुत मौके हैं। अगर गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स यानी जीएसटी लागू हो जाये तो उसी से जीडीपी की विकास दर में डेढ़ से दो प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, विपक्ष और सीआईआई के बीच सहयोग हो और सुधार कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जाये तो विकास की रफ्तार को वापस पटरी पर लाने के बहुत मौके हैं।
लेकिन हाल में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने कहा कि 2014 तक कोई बड़ा आर्थिक सुधार नहीं होगा।
- नहीं, नहीं। उन्होंने कहाँ ऐसा कहा? पत्रकारों ने उनकी बात का गलत मतलब निकाला। उन्होंने तो कहा है कि अगले 6 महीने में बड़े सुधार होंगे।
यानी आपको पूरी उम्मीद है कि सुधारों की प्रक्रिया सुस्त नहीं पड़ेगी?
- मुझे पूरी उम्मीद है। हमारे सामने मौके हैं।
अभी ब्याज दरों में थोड़़ी कमी आयी है। इससे क्या उद्योग को मदद मिलेगी।
- ब्याज दरों को घटाने की जरूरत है, क्योंकि इनके ज्यादा होने से निवेश कम होता है। खास कर उपभोक्ता ऋणों पर निर्भर रहने वाले रियल्टी और ऑटो जैसे क्षेत्रों की वृद्धि दर कम हो जाती है। इसलिए रेपो दर में आधा फीसदी अंक की जो कटौती हुई है, वह अच्छी बात है। मैं आशा करता हूँ कि आगे और भी कटौती होगी।
लेकिन आरबीआई गवर्नर ने तो कह दिया है कि आगे कटौती की गुंजाइश बहुत कम है।
- नहीं, उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा है। उन्होंने कहा है कि वो कुछ वादा नहीं कर रहे हैं।
लेकिन आप उनका बयान देखें, जिसमें उन्होंने सीमित गुंजाइश की बात कही है।
- मैंने तो ऐसा कुछ नहीं पढ़ा है। आप जो सबका नकारात्मक विचार ले रहे हैं, उससे मैं सहमत नहीं हूँ। सकारात्मक तरीके से सोचना चाहिए। भारत के हित में है कि मीडिया समेत सभी लोग सकारात्मक तरीके से सोचें। सब साथ काम करें जिससे विकास बढ़े।
आपने हाल में एक बयान दिया था कि लोगों की धारणा (सेंटिमेंट) जितनी खराब हो गयी है, जमीनी वास्तविकता उतनी बुरी नहीं है।
- मैं समझता हूँ कि वास्तविकता लोगों की धारणा से बेहतर है। वास्तविकता में सुधार तो होना ही चाहिए, लेकिन लोगों की धारणा में कुछ ज्यादा सुधार होना चाहिए।
सामान्य तौर पर मैं समझता हूँ कि नकारात्मक सोच नहीं होनी चाहिए। जैसे आप सारे नकारात्मक सवाल पूछ रहे हैं, सकारात्मक नहीं पूछ रहे हैं। यह अच्छा नहीं है। मैं समझता हूँ कि सबको सकारात्मक रहना चाहिए। सबको अवसरों और देश की उन्नति पर ध्यान देना चाहिए।
हम सकारात्मक पहलू भी देख रहे हैं। एक तरफ उद्योग जगत बुनियादी ढाँचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) और पूँजीगत सामानों (कैपिटल गुड्स) को लेकर चिंतित नजर आ रहा है। दूसरी ओर व्यावसायिक वाहनों की बिक्री अपने उच्चतम स्तर पर है। यह एक विरोधाभासी स्थिति है। बतौर मीडिया हमारे सामने जो आँकड़े आ रहे हैं, वे दो अलग-अलग तस्वीरें दिखा रहे हैं। व्यावसायिक वाहनों की बिक्री के आँकड़ों से तो यही लगता है कि उद्योग की हालत इतनी खस्ता नहीं हो सकती।
- मेरा कहना है कि उद्योग की हालत बेहतर करने पर ध्यान देना चाहिए। स्पष्ट तौर पर आईआईपी में धीमापन आया है, जिसे वापस पटरी पर लाना चाहिए। विकास दर कैसे वापस 9-10% पर लाया जाये, इस पर ध्यान देना चाहिए।
आजकल गठबंधन सरकार की मजबूरियों की बहुत चर्चा हो रही है। लेकिन यूपीए के पहले कार्यकाल में वाम दलों के दबाव की वजह से राजनीतिक मजबूरियाँ ज्यादा थीं। इसके बावजूद आज लोग यूपीए के दूसरे कार्यकाल से ज्यादा निराश हैं। उद्योग जगत भी इस बारे में खुल कर बोल रहा है।
- यह गठबंधन सरकार की दिक्कत नहीं है। गठबंधन की सरकारें तो पिछले 15 सालों से हैं। सबसे ज्यादा आर्थिक सुधार 1991 में हुए थे, जो एक अल्पमत सरकार थी। यह गठबंधन सरकार की नहीं, बल्कि संयुक्त प्रयास नहीं होने की दिक्कत है।
यूपीए के दूसरे कार्यकाल में कहाँ चीजें गड़बड़ा गयीं?
- मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता। मैं केवल यह सोचता हूँ कि क्या बेहतर हो सकता है।
अब सीआईआई अध्यक्ष के रूप में उद्योग जगत की जिम्मेदारी आपका काफी समय लेगी। इसे ध्यान में रख कर आपने गोदरेज समूह में अपनी कुछ जिम्मेदारियाँ क्या अन्य लोगों को बाँटी हैं?
- सब बहुत अच्छा चल रहा है। यह हमारा आंतरिक मामला है। इन बातों पर हम सार्वजनिक चर्चा नहीं करते।
गोदरेज प्रॉपर्टीज में आपके बेटे फिरोज गोदरेज ने एमडी और सीईओ के रूप में इसी अप्रैल से कार्यभार सँभाला है। क्या आपने उन्हें कोई लक्ष्य दिया है?
- लक्ष्य तो जरूर होता है। जो भी लक्ष्य है, वो हमारे समूह का लक्ष्य है। हमारे समूह का लक्ष्य है कि 10 साल में 10 गुना बढ़त होनी चाहिए। लेकिन मैंने फिरोज को कोई निर्देश या लक्ष्य नहीं दिया है। उन्हें इस कंपनी का नेतृत्व करने के लिए चुना गया है। वे अपनी योजनाएँ बोर्ड के सामने रखेंगे, जो उन योजनाओं को अपनी मंजूरी देगा।
आपके समूह की दूसरी कंपनियों में अपने परिवार की नयी पीढ़ी या पेशेवर प्रबंधन में से किस पर ज्यादा ध्यान देंगे?
- दोनों पर, और दोनों अलग नहीं है। पेशेवर लोग ही समूह का प्रबंधन कर रहे हैं। अगर कोई पेशेवर न हो तो समूह में प्रवेश ही नहीं करने देते। सभी योग्य पेशेवर हैं, इसलिए उनका और समूह दोनों का विकास होगा। मेरी दो बेटियाँ हैं और दोनों पेशेवर हैं, तानिया दबास और निशा गोदरेज। दोनों हाल ही में गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट के बोर्ड में शामिल हुईं हैं।
गोदरेज समूह के चेयरमैन अदि गोदरेज ने हाल ही में प्रमुख उद्योग संगठन कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के अध्यक्ष बने। अर्थव्यवस्था को लेकर मौजूदा चिंताओं पर उनकी सोच और सरकार से उनकी उम्मीदों पर पेश है निवेश मंथन से उनकी खास बातचीत
(निवेश मंथन, मई 2012)