एसटीटी चुकता किये बिना पूँजीगत लाभ कर से छूट
इक्विटी सौदों पर लागू पूँजीगत लाभ कर के मामले में केंद्रीय बजट 2017-18 के प्रस्ताव से उत्पन्न चिंताओं से वास्तविक निवेशकों को राहत दे दी गयी है।
आयकर विभाग ने प्रतिभूति लेनदेन कर या सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) के भुगतान के बिना होने वाले कुछ प्रकार के इक्विटी निवेश पर पूँजीगत लाभ कर से छूट के लिए कर नियमों को जून के पहले हफ्ते में एक अधिसूचना के जरिये स्पष्ट किया है। अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किन-किन सौदों पर पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन्स टैक्स) की छूट हासिल करने के लिए एसटीटी का भुगतान करना अनिवार्य होगा और एसटीटी भुगतान नहीं होने पर पूँजीगत लाभ कर चुकाना होगा। यह अधिसूचना 1 अप्रैल 2018 से प्रभावी होगी और आकलन वर्ष (एसेसमेंट ईयर) 2018-19 से यानी वित्त वर्ष 2017-18 से लागू होगी।
क्यों हुआ संशोधन
पूर्व में चुकता एसटीटी वाले इक्विटी और म्यूचुअल फंड जैसे दीर्घकालिक पूंजीगत संपदा के हस्तांतरण से प्राप्त आय के लिए धारा 10 (38) के तहत पूंजीगत लाभ कर से छूट थी। केंद्रीय बजट 2017-18 में सरकार ने इस छूट का दुरुपयोग होने का उल्लेख किया था। आय कर विभाग के संज्ञान में आया था कि जाली सौदों के जरिये छद्म कंपनियाँ बनायी जा रही थीं और दीर्घकालिक पूँजीगत लाभ कर का छूट लेने के लिए अघोषित आय इन कंपनियों में डाली जा रही थी। बजट में इस दुरुपयोग को रोकने के लिए धारा 10(38) में संशोधन का प्रस्ताव किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक 1 अक्टूबर, 2004 को या इसके बाद अधिग्रहीत इक्विटी शेयर के हस्तांतरण से मिलने वाली आय के लिए इस धारा के तहत छूट केवल तभी उपलब्ध होगी, जब शेयर के अधिग्रहण पर वित्त (नं. 2) अधिनियम, 2004 के अध्याय 8 के तहत प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) लगाया गया हो। आय कर विभाग ने अप्रैल में एक मसौदा अधिसूचना जारी की थी, जिसमें एसटीटी का भुगतान किये बगैर पूँजीगत लाभ कर से छूट के योग्य कुछ प्रकार के सौदों का उल्लेख था। आय कर विभाग ने जनता से इन मसौदे पर टिप्पणियाँ माँगी थीं। इस प्रस्ताव से प्रभावित वर्गों में यह चिंता फैली कि बहुत सारे असली अधिग्रहण भी इसके दायरे में आ जायेंगे। कुछ जानकारों ने इसे दीर्घावधि पूँजीगत लाभ कर में छूट को पिछले दरवाजे से वापस लेने जैसा कदम बताया। खास कर इंप्लॉयी स्टॉक ऑप्शन योजनाओं और एफडीआई के संदर्भ में काफी चिंताएँ उत्पन्न हुई थीं। मगर अब 5 जून को जारी अधिसूचना में आय कर विभाग ने ऐसे उचित सौदों को अपवादों की सूची में डाला है, जिन पर कर छूट जारी रहेगी।
इन्हें मिलेगी छूट
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा अधिसूचित नियमों के मुताबिक रिजर्व बैंक, सेबी, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट और एनसीएलएटी द्वारा मान्य ऑफ-मार्केट सौदों, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, कर्मचारी हिस्सेदारी विकल्प और वेंचर कैपिटल या निवेश फंडों द्वारा अधिग्रहीत इक्विटी शेयरों पर पूँजीगत लाभ कर नहीं लगेगा, भले ही उन पर एसटीटी चुकता न किया गया हो। इसके अलावा सरकार ने सूचीबद्ध कंपनी द्वारा जारी प्राथमिक सार्वजनिक प्रस्ताव (आईपीओ), बोनस शेयर या राइट इश्यू के जरिये वास्तविक इक्विटी निवेशों को भी दीर्घकालिक पूँजीगत लाभ कर से मुक्त रखा है, भले ही इन शेयरों के हस्तांतरण पर एसटीटी का भुगतान न हुआ हो। होल्डिंग-सब्सिडियरी सौदों या विलय/विलगाव से जुड़े सौदों, एफडीआई नियमों के तहत अप्रवासियों द्वारा किये गये इक्विटी निवेश और शेयर के रूप में दिये गये उपहारों को भी दीर्घकालिक पूँजीगत लाभ कर से छूट दी गयी है। यह अधिसूचना 1 अप्रैल, 2018 से प्रभावी होगी।
इन पर लगेगा कर
आय कर विभाग ने वास्तविक निवेशकों को राहत देते हुए अब अधिसूचित किया है कि नये नियमों के तहत पूँजीगत लाभ कर केवल तीन किस्म के सौदों पर लागू होंगे। पहला, जब किसी ऐसी सूचीबद्ध कंपनी के इक्विटी शेयर का अधिग्रहण प्रेफेरेंशियल इश्यू के जरिये होता है, जिसकी खरीद-फरोख्त मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में लगातार नहीं होती है। दूसरे, ऐसे अधिग्रहण जिसमें सूचीबद्ध शेयर की खरीद मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज से नहीं की गयी हो। तीसरे, वह अधिग्रहण, जो कंपनी की डीलिस्टिंग अवधि के दौरान किया गया हो। इन तीनों श्रेणियों में हरेक के लिए पूँजीगत लाभ कर से छूट का लाभ उठाने के लिए एसटीटी का भुगतान आवश्यक होगा। बंधक व्यवस्था के तहत किये गये इक्विटी शेयरों का हस्तांतरण (स्टॉक एक्सचेंज से बाहर) खरीदार को छूट का लाभ नहीं देगा।
इसी तरह उचित मूल्य पर किये गये निजी पारिवारिक सौदों में भी इस छूट का लाभ नहीं मिलेगा। अंतिम अधिसूचना स्वेट इक्विटी योजना के तहत इक्विटी शेयर जारी करने को भी सुरक्षा नहीं देती। किसी निजी कंपनी द्वारा ऋण के समायोजन के तहत किये गये इक्विटी शेयरों के अधिग्रहण पर भी यह छूट नहीं मिलेगी। कर विशेषज्ञों का कहना है कि मसौदा नियमों के जारी होने पर उठी तमाम चिंताओं का ध्यान अंतिम अधिसूचना में रखा गया है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)