प्रदीप गुप्ता, वाइस चेयरमैन, आनंद राठी फाइनेंशियल :
पिछले तीन वर्षों में बाजार की धारणा में दूसरी बार जो परिवर्तन दिख रहा है, वह नकदी (लिक्विडिटी) की वजह से है।
यह नकदी इसी वजह से आ रही है कि बाजार की धारणा पहले से बेहतर हुई है। यह सकारात्मक धारणा इस बात से बनी है कि सरकार बहुत सारे सुधार कर रही है और उन सुधारों पर अमल होने के बाद काफी अच्छा प्रभाव देखने को मिलेगा। अगले डेढ़-दो सालों में धीरे-धीरे यह सब दिखेगा। एक बड़ी चुनौती जीएसटी को लागू करने की थी। यह चुनौती अब खत्म होने जा रही है। जीएसटी अब हकीकत बन गया है।
एनपीए से जुड़ी जितनी भी तकलीफें थीं, उन्हें सरकार ने धीरे-धीरे सुलटाना शुरू कर दिया है। जो नियम-कानून बन रहे हैं, वे निवेशकों के अनुकूल हैं। बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में जितनी भी तकलीफें थीं, वे धीरे-धीरे दूर होने लगी हैं। बिजली में तो अब लगभग तयशुदा कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र की समस्याएँ खत्म सी हो गयी हैं। बिजली उत्पादन की स्थिति काफी तेजी से ठीक होने लगी है।
अब ऐसा लग रहा है कि 2020 तक सभी जगह बिजली की कमी खत्म हो जायेगी। हम इस समय ही बिजली का निर्यात भी करने लगे हैं। यह इस क्षेत्र के लिए काफी अच्छा संकेत है। हम बिजली की अधिकता वाला देश बनने जा रहे हैं। यह अब काफी संभव लग रहा है। इसी तरह सड़कों का विकास भी काफी तेज गति से हो रहा है। इसलिए कह सकते हैं कि बुनियादी ढाँचा क्षेत्र में सरकार जितना पैसा लगा सकती थी, उतना इसने लगाया है।
निजी निवेश बढ़ाने की चुनौती
अभी केवल यही मुद्दा बाकी है कि निजी कंपनियों या उद्योगों को जो निवेश करना था, निजी पूँजीगत व्यय अभी भी जोर नहीं पकड़ पाया है। इसका कारण यह है कि माँग बनने और पूरी उत्पादन क्षमता का उपयोग होने के संबंध में अभी भी कई उद्योगों में चुनौतियाँ बाकी हैं। हालाँकि कुछ उद्योगों ने हाल में क्षमता विस्तार किया है। कपड़ा (टेक्सटाइल) उद्योग में कई कंपनियों ने विस्तार किया है। इसी तरह ऑटो क्षेत्र में चीजें अच्छी दिशा में बढ़ती दिख रही हैं।
इन तीन वर्षों में सुधारों की प्रक्रिया काफी हद तक आगे बढ़ी है और उद्योगों की स्थिति सँभलनी शुरू हो गयी है। अगले दो साल बहुत महत्वपूर्ण होंगे। मुझे विश्वास है कि अगले दो वर्षों में जमीनी स्तर पर बदलाव होंगे। कंपनियों की आमदनी और क्षमता उपयोग के स्तरों में सुधार होगा, जिससे पूँजीगत व्यय का चक्र शुरू होगा।
दिखे हैं जमीनी बदलाव
बीते तीन वर्षों में भी जमीनी स्तर पर कई बदलाव साफ तौर पर दिख ही रहे हैं। सरकारी पैसा लोगों तक पहुँचने में जो रिसाव हो रहा था, उसमें डिजिटलीकरण के चलते बहुत फायदा हुआ है। बैंक खातों से सब्सिडी भुगतान की जो शुरुआत हुई है, उसका बड़ा फायदा यह देखने को मिल रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में माँग लगातार बरकरार रही है। वहाँ इन वर्षों में माँग में कमी नहीं आयी। मैं यह नहीं कहूँगा कि जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ है। बेशक, नोटबंदी का कुछ असर तो देखने को मिला ही है और दो-तीन महीने सभी के लिए बहुत संघर्ष वाले रहे। अभी तक 20-25% बदलाव दिखना शुरू हो गया है, बाकी बदलाव आगे दिखना शुरू होगा।
जैसे ही जीएसटी पर अमल होगा, तो हो सकता है कि लागू करने के समय कुछ चुनौतियाँ आयें और लोग उसके चलते कुछ परेशान हों, लेकिन मेरा यह मानना है कि छह-आठ महीने में जब लोग स्थिर हो जायेंगे तो एकदम से बहुत बड़ा बदलाव दिखेगा। उनका असर नीचे तक आने में थोड़ा समय लगेगा।
आगे सुधरेंगे तिमाही नतीजे
अगर कंपनियों के लिहाज से देखें तो चौथी तिमाही के कारोबारी नतीजे कोई खराब नहीं हैं। ये नतीजे अनुमानों के मुताबिक या उनसे बेहतर ही हैं। इस तिमाही में चुनिंदा क्षेत्रों और कंपनियों का प्रदर्शन अलग-अलग रहा है। कुछ कंपनियों ने काफी अच्छे नतीजे दिये हैं। जैसे लार्सन ऐंड टुब्रो की बात करें तो उम्मीद से बहुत बेहतर परिणाम दिखाया। कुछ कंपनियों ने इस तिमाही में भी संघर्ष किया है या अनुमानों के मुताबिक ही नतीजे दिये हैं।
आगे आने वाला समय बेहतर होगा। कुछ लोग कह रहे हैं कि जीएसटी की वजह से व्यवधान आयेगा। लेकिन ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। जुलाई में जीएसटी लागू होगा। यह व्यवधान का एक कारण बन सकता है। पर मेरे विचार से तीन से छह महीनों में वृद्धि नजर आने लगेगी। कारोबारी आत्मविश्वास बहुत सकारात्मक होना अपने-आप में इसे दिखाता है। किसी भी व्यवसायी से बात करें तो वह कहता है कि अभी तक जो है वह ठीक है, पर आने वाला समय अच्छा लग रहा है।
निर्यात को देखें तो वहाँ वृद्धि हुई है। कपड़ा क्षेत्र में इस दौरान हमें गिरावट नहीं दिखी है। अलग-अलग हिस्सों में चीजें सुधर रही हैं। इस्पात (स्टील) क्षेत्र में भी पिछले डेढ़-दो महीनों में काफी अच्छा काम हुआ है। अभी मैंने एलऐंडटी का जिक्र किया, वह बुनियादी ढाँचा और इंजीनियरिंग क्षेत्र से है। उसने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। अब चीजें सही दिशा में आगे बढऩे लगी हैं।
मुझे विश्वास है कि चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2017) की तुलना में पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2017) कुछ बेहतर रहने वाली है। आज जो दिख रहा है उसकी तुलना में दूसरी तिमाही कहीं और ज्यादा बेहतर रहने वाली है। हर कोई इस बात पर ध्यान दे रहा है कि निवेश माँग कैसे निकलेगी। निवेश माँग दो तरीके से आने वाली है। एक तो जैसे-जैसे क्षमता उपयोग का स्तर बढ़ेगा और उद्योग जगत का आत्मविश्वास बढ़ेगा, वैसे-वैसे लोग क्षमता विस्तार के लिए निवेश शुरू करेंगे।
दूसरी बात यह है कि पिछले पाँच साल में बहुत कम उद्योगों ने मशीनों और पुर्जों को बदलने (रिप्लेसमेंट) पर निवेश किया है। वह माँग भी उभरने वाली है। धीरे-धीरे एनपीए संबंधित नीतियों पर सरकार का रुख ज्यादा-से-ज्यादा स्पष्ट हो जायेगा कि सरकार कैसे इस समस्या पर नियंत्रण करेगी और निपटेगी। इससे लोगों में यह भरोसा बनेगा कि थोड़ा आगे-पीछे चीजें सही दिशा में चलने लगेंगी।
बाजार मूल्यांकन पर चिंता
बाजार की नजर से देखें तो अभी सरकार के कामकाज से कोई बड़ा असंतोष नहीं है। बाजार में अभी मोटे तौर पर जो चर्चा हो रही है, वह मूल्यांकन को लेकर है। बाजार में जिस तरह से काफी तेजी आ गयी है और बाजार जिन स्तरों पर आ गया है, उसके चलते यह एक गंभीर चिंता है कि क्या बाजार इस तरह के मूल्यांकन पर टिक सकेगा? मेरा मानना है कि यह अलग-अलग कंपनियों पर निर्भर है।
जिन कंपनियों में बुनियादी मजबूती कम होगी, वहाँ संभव है कि उसके शेयर में थकावट हो या मुनाफावसूली हो। जहाँ भी मूल्यांकन ज्यादा हो गया है और कंपनी की बुनियादी स्थिति उस मूल्यांकन को उचित नहीं ठहरा पा रही है, वहाँ यह तर्क सही है। लेकिन अब भी ऐसे बहुत-से क्षेत्र और बहुत-सी कंपनियाँ ऐसी हैं, जहाँ मूल्यांकन बुनियादी स्थिति के अनुरूप चल रहा है और उनकी बुनियादी स्थिति में सुधार होने की भी संभावनाएँ हैं। ऐसी कंपनियों का मूल्यांकन आज थोड़ा महँगा भी लग रहा हो तो आय में सुधार होने पर लोगों की धारणा बदल जायेगी।
कुछ जगहों पर मूल्यांकन जरूर काफी ऊँचे हो गये हैं। बहुत-सी कंपनियों का नये सिरे से मूल्यांकन भी होगा। अगर वृद्धि दर तेज होगी तो छोटी और मँझोली कंपनियों में भी ज्यादा वृद्धि होगी। मैं उनकी बात नहीं करता जिनमें कुछ भी हुआ नहीं है, जो बिना किसी बुनियादी मजबूती के और बिना किसी कारण के बहुत उछल गयी हैं। पर जो छोटी-मँझोली कंपनियाँ अच्छा कर रही हैं, जिनका प्रबंधन अच्छा है और जो सही तरीके से व्यवहार करती हैं, उनकी बात करें तो ऐसी बहुत-सी कंपनियाँ हैं, जिनमें वृद्धि होने वाली है।
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि छोटे-मँझोले सूचकांकों का मूल्यांकन बहुत ऊँचा हो जाने से कुछ बुलबुले वाले क्षेत्र भी बने होंगे। मैं मानता हूँ कि उन में गिरावट आयेगी। लेकिन पूरे बाजार का परिदृश्य देखें तो दिग्गज (लार्जकैप) कंपनियों में भी ऐसे काफी नाम हैं, जिनमें निवेश करने की गुंजाइश बनती है। मँझोले शेयरों में भी ऐसे कई नाम मिलेंगे। छोटे शेयरों में भी कुछ कंपनियाँ मिल सकती हैं।
अभी बाजार ऐसा है, जिसमें आपको चुनिंदा ढंग से सावधानी से ऐसी कंपनियों में निवेश करना है जहाँ आप अपने मन में बहुत स्पष्ट हों कि इनमें वृद्धि आने वाली है। यह ऐसा बाजार नहीं है, जिसमें आप जा कर किसी भी कंपनी में पैसा लगा दें और आपको फायदा मिल जाये। ऐसा करने से आप अपना पैसा गँवा देंगे। एक-डेढ़ साल पहले बाजार सस्ता था, इसलिए आप कहीं भी निवेश कर देते तो बाजार सकारात्मक रहने से कुछ-न-कुछ तो फायदा मिलेगा। अब ऐसा समय नहीं है कि आपको हर निवेश में फायदा मिल जाये।
छोटे-मँझोले शेयरों में मुनाफावसूली
इस समय बहुत स्पष्ट रणनीति यह है कि छोटे-मँझोले शेयरों में से मुनाफा निकाल कर दिग्गज शेयरों में पैसा लगाया जाये। वित्तीय योजना के तहत आपको अपने पोर्टफोलिओ में संतुलन बनाते रहना पड़ता है, चाहे वह अलग-अलग संपदा वर्गों (एसेट क्लास) में हो या एक ही संपदा वर्ग के अंदर। यह फिर से संतुलन बनाने का समय है, क्योंकि दिग्गज शेयरों की तुलना में छोटे शेयर ज्यादा बढ़ गये हैं। ऐसी ही रणनीति आपको अपने म्यूचुअल फंड निवेश में भी अपनानी होगी।
मान लीजिए आपने पहले तय किया था कि मुझे दिग्गज शेयरों में 60% निवेश रखना है और 40% छोटे-मँझोले शेयरों में। आज की तारीख में बाजार में बढ़त के चलते हो सकता है कि छोटे-मँझोले शेयरों की हिस्सेदारी भाव बढऩे के कारण 40% से बढ़ कर 60% हो गयी हो और दिग्गज शेयरों का हिस्सा 60% से घट कर 40% रह गया हो। ऐसे में अपने संपदा आवंटन को पुराने स्तर पर लौटाने के लिए आपको छोटे-मँझोले शेयरों में 20% मुनाफावसूली करनी होगी और उस पैसे का निवेश दिग्गज शेयरों में करना होगा। मैं यह नहीं कह रहा कि आपको छोटे-मँझोले शेयरों से पूरी तरह बाहर निकल जाना है।
(निवेश मंथन, जून 2017)