दिनेश ठक्कर, सीएमडी, एंजेल ब्रोकिंग :
जीडीपी और कॉरपोरेट लाभ वृद्धि में लंबे समय के दौरान एक कारणात्मक संबंध होता है,
पर विभिन्न कारणों से वे छोटी से मध्यम अवधि में अलग-अलग हो सकते हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में जीडीपी वृद्धि आक्रामक सरकारी खर्च और ग्रामीण व्यय के कारण हुई। संभव है कि यह अल्पावधि में लाभ के रूप में नजर नहीं आये। इसके अलावा, कई उद्योगों में उस क्षेत्र-विशेष से जुड़े कुछ मुद्दे हैं। आईटी क्षेत्र इस समय आईटी खर्च में बदलाव और कड़े वीजा नियमों का दबाव महसूस कर रहा है। दवा क्षेत्र भी विनिर्माण और परीक्षण के संदर्भ में कड़े एफडीए नियमों के अनुपालन का दबाव महसूस कर रहा है। पीएसयू बैंकों को फँसे हुए ऋणों की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जबकि इस्पात और बुनियादी ढाँचा जैसे क्षेत्र अत्यधिक कर्ज की मार से ग्रस्त हैं। हाल में रिलायंस जियो की आक्रामक मूल्य रणनीति के कारण टेलीकॉम कंपनियों का लाभ गिरा है। इन क्षेत्र-विशेष वाले कारकों को सामान्य होने में कुछ और समय लग सकता है।
आईटी, टेलीकॉम, बिजली जैसे क्षेत्रों को छोड़ कर निकट भविष्य में आय में मजबूत वृद्धि की संभावना है। बैंकिंग में आय बढ़ेगी, क्योंकि एनपीए की पहचान लगभग पूरी हो चुकी है। अगली दो-तीन तिमाहियों में कॉर्पोरेट आय में सार्थक उछाल की उम्मीद है। कई बातें सकारात्मक भूमिका निभाने वाली हैं, जो सकारात्मक जनांकिकी और अर्थव्यवस्था की स्थिति अनुकूल रहने के कारण होंगी। कच्चे तेल की सस्ती कीमतों का लाभ भी भारत के लिए जारी रहेगा। हमें क्षेत्रवार आय वृद्धि को भी देखने की जरूरत है। मुझे जीएसटी के क्रियान्वयन से भी भारतीय कंपनियों की आय में वृद्धि होने की उम्मीद है।
निजी निवेश चक्र में सुस्ती
निजी निवेश चक्र अर्थव्यवस्था में क्षमता उपयोग के स्तर पर निर्भर है। भारतीय कंपनियों ने 2003 से 2008 के बीच व्यापक क्षमता विस्तार किया था, जो शेयर बाजार में उस समय की तेजी के अनुरूप भी था। मगर उसके बाद आज भी अधिकांश उद्योग 73% क्षमता उपयोग पर चल रहे हैं। इसलिए निजी निवेश चक्र में तेजी आने में समय लग सकता है। हाल में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) का रुझान भी बताता है कि पूँजीगत वस्तु (कैपिटल गुड्स) के उपयोगकर्ता उद्योगों का आईआईपी नकारात्मक रहना जारी है। हालाँकि, सरकार अपनी ओर से पूँजीगत निवेश में तेजी लाने की पहल कर रही है। सरकारी तेल कंपनियों की ओर से बड़ा निवेश इसका एक उदाहरण है।
बुनियादी ढाँचे पर बहुत जोर
पिछले तीन वर्षों में सरकार ने बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता को बढ़ाने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान के लिए प्रयास किये हैं। इस सरकार के सत्ता में आने के बाद से राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण का औसत (किलोमीटर प्रति दिन) तेजी से बढ़ा है। पिछले दो आम बजटों में सरकार ने ग्रामीण बुनियादी ढाँचा, स्मार्ट सिटी और फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढाँचे पर बहुत जोर दिया है। इन सबका भारत के संपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर कई गुणा वृद्धि वाला प्रभाव पडऩे की संभावना है।
सरकार ने विधायी मोर्चे पर भी बहुत से कदम उठाये हैं। सस्ते आवास को बुनियादी ढाँचे का दर्जा देना खेल बदल देने वाला एक कदम साबित हो सकता है। दूसरे, सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की अड़चनों को दूर किया है, जो भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी के कारण अटकी हुई थीं। हाल में बुनियादी ढाँचा निवेश ट्रस्ट (इन्विट) पर जोर दिया गया है, जिससे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का मौद्रिक लाभ लेने और उनके परिचालन को स्वामित्व से अलग करने में काफी मदद मिलेगी।
एनपीए पर संतोषजनक प्रयास
पिछले तीन वर्षों में मोदी सरकार द्वारा बैंकों के फँसे ऋणों या एनपीए के मोर्चे पर किये गये प्रयास संतोषजनक हैं। एनपीए मुख्यत: इस्पात, बिजली, बुनियादी ढाँचा और टेलीकॉम के क्षेत्रों में केंद्रित है। सरकार ने इस्पात उद्योग की मदद के लिए बड़े प्रयास किये हैं। डिफॉल्टरों की संपत्ति जब्ती के रास्ते में कानूनी अड़चनों को दूर करने के लिए सरकार ने प्रक्रिया को आसान करने वाले कानून बनाये हैं। बैंक एनपीए के मामले में पारदर्शी हुए और उन्होंने इसके लिए पर्याप्त प्रावधान किये। बीती तिमाही के नतीजों से संकेत मिलता है कि बैंकों पर दबाव कम हो रहा है।
तेजी बनी रहेगी शेयर बाजार में
भारतीय बाजार में अभी री-रेटिंग यानी नये सिरे से मूल्यांकन चल रहा है। इसके तीन कारण हैं। पहला, 7.5% से अधिक की जीडीपी वृद्धि के साथ भारत एफडीआई और एफआईआई निवेश के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहेगा। दूसरे, भारतीय बाजार घरेलू उपभोग से संचालित रहने वाला है। इससे वैश्विक जोखिमों का बहुत असर नहीं होगा, तीसरे, कंपनियों की आय वृद्धि (अर्निंग ग्रोथ) दर पिछले सात वर्षों से इकाई अंक के निम्न स्तर पर रही है, पर अब यह दो अंकों की ओर जाती दिख रही है। इससे मूल्यांकन को लेकर भारत काफी आकर्षक बन जायेगा।
अन्य संपदा श्रेणियों में उतार-चढ़ाव भरा प्रतिफल रहने और सावधि जमा (एफडी) पर कम ब्याज दरें मिलने से इक्विटी निवेश के लिए मजबूत तर्क बनेगा। इसके चलते शेयर सूचकांक अगले कुछ वर्षों तक उच्च प्रतिफल दे सकते हैं। साथ ही, पिछले दो वर्षों में शेयर बाजारों में भारी मात्रा में घरेलू निवेश हुआ है।
निम्न ब्याज दर के मौजूदा वातावरण और निवेशकों की जोखिम लेने की इच्छा में उल्लेखनीय बदलाव के कारण यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है। विदेशी निवेशकों ने भी रुपये में मजबूती आने के बीच बाजार में विश्वास जताया है। इसलिए यह मानने के मजबूत आधार हैं कि बाजार में तेजी जारी रहेगी।
(निवेश मंथन, जून 2017)