आईसीआईसीआई डायरेक्ट ने फरवरी के तीसरे सप्ताह में म्यूचुअल फंड उद्योग पर जारी अपनी रिपोर्ट में पूर्ववर्ती माह की सलाहों में मामूली परिवर्तन किया है।
ब्रोकिंग फर्म ने इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड, इक्विटी इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड, इक्विटी बैंकिंग फंड, इक्विटी एफएमसीजी और बैलेंस्ड फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए सकारात्मक सलाह दी है। ब्रोकिंग फर्म ने इन्कम फंड के लिए अल्पकाल में सकारात्मक सलाह और अति अल्पकाल में उदासीन सलाह बरकरार रखी है, लेकिन दीर्घकाल के लिए उदासीन सलाह दी है। इसी तरह इक्विटी फार्मा फंड और मंथली इन्कम प्लान (एमआईपी) के लिए अल्पकाल में उदासीन और दीर्घकाल में सकारात्मक सलाह बरकरार रखी है। ब्रोकिंग फर्म ने इक्विटी टेक्नोलॉजी फंड, आर्बिट्राज फंड, लिक्विड फंड एवं गिल्ट फंड के लिए अल्पकाल एवं दीर्घकाल, दोनों अवधियों के लिए उदासीन सलाह दी है।
इक्विटी बाजार
बजट से पूर्व भारतीय शेयर बाजार ने जनवरी 2017 में उम्मीद से बेहतर कॉरपोरेट नतीजों से उत्साहित हो कर 4% बढ़त हासिल की थी। केंद्रीय बजट के बाद भी बाजारों में एक राहत भरी तेजी थी, क्योंकि पूँजी बाजारों के अनुमानों के विपरीत इसमें पूँजीगत लाभ कर की संरचना में कोई बदलाव नहीं किया गया था। वैश्विक बाजार में धातु (मेटल) की कीमतों के मजबूत आधार का अनुसरण करते हुए धातु और खनन क्षेत्र के शेयरों में उछाल से भी बाजार को समर्थन मिला था।
ऊँचे अनुमानों और उम्मीदों के बीच केंद्रीय बजट 2017 ने वित्तीय समझदारी की राह पर सफलतापूर्वक कदम आगे बढ़ाये, जबकि मुख्य आर्थिक क्षेत्रों को पर्याप्त भरोसा उपलब्ध कराया और अर्थव्यवस्था के आधार क्षेत्रों पर ध्यान बनाये रखा। जैसी कि उम्मीद थी, बजट ने राजकोषीय अनुशासन बनाये रखते हुए कृषि, रोजगार सृजन, बुनियादी ढाँचा, सभी के लिए आवास और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया। उपभोग के मोर्चे पर ग्रामीण बुनियादी ढाँचे और सामाजिक योजनाओं पर जारी खर्च मुख्य सुचालक बनेगा। इसी तरह, सड़क, रेलवे, ऊर्जा एवं ब्रॉडबैंड के बुनियादी ढाँचे पर बढ़े हुए आवंटन से देश में बुनियादी ढाँचे के विकास की कहानी संचालित होने की संभावना है।
परिदृश्य
वित्त वर्ष 2016-17 की तीसरी तिमाही के लिए अब तक घोषित नतीजे संकेत देते हैं कि विमुद्रीकरण का असर बाजार के अनुमानों से कहीं कम था। एफएमसीजी, पेंट और कंज्यूमर ड्यूरेबल जैसे उपभोक्ता उन्मुख क्षेत्रों की कंपनियों ने विमुद्रीकरण की आँधी का सामना विवेकपूर्ण प्रोत्साहन खर्चों और व्यापार श्रृंखला हिस्सेदारों की क्रेडिट अवधि बढ़ा कर किया। ऑटो क्षेत्र में दोपहिया क्षेत्र को छोड़ कर अन्य श्रेणियों में माँग में पहले ही सुधार आ चुका है। दोपहिया कंपनियों ने निकट अवधि में मंद परिदृश्य रहने की संभावना जता रखी है। कुल मिला कर मध्यम अवधि के लिए परिदृश्य सकारात्मक बना हुआ है। बैंकों को भी अनुमानों के विपरीत एमएसएमई क्षेत्र से ज्यादा स्लिपेज नहीं देखना पड़ा है।
इन सबके चलते तिमाही नतीजों के मौसम की शुरुआत से ही बाजार को सँभलते जाने में मदद मिली है। ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि सितंबर से दिसंबर 2016 के बीच चार महीनों के दौरान सूचकांक में गिरावट का एक स्वस्थ चरण पूरा हो गया और वर्ष 2017 के प्रारंभ से इसने फिर से ऊपर चढऩे का रुख अपना लिया है। इसलिए, ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि इस तेजी के दौरान आने वाली किसी भी गिरावट का उपयोग अपनी खरीदारी को बढ़ाने के अवसर के रूप में करना चाहिए।
आईसीआईसीआई डायरेक्ट का मानना है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत सीमित प्रभाव होगा। यह कुल मिला कर सकारात्मक है, क्योंकि इस घटनाक्रम के नतीजे का सुरूर अब बचा नहीं है। वैश्विक बाजारों ने डोनाल्ड ट्रंप की अप्रत्याशित जीत पर शुरुआत में नकारात्मक प्रतिक्रिया देने के बाद नये घटनाक्रम से आगे बढ़ते हुए पूरी तरह वापसी कर ली। अधिकांश वैश्विक बाजारों में वापसी संकेत देती है कि नये राष्ट्रपति द्वारा नीतिगत निर्णयों में बदलाव या कथित नकारात्मकता उतना गंभीर नहीं हो सकता, जितना पहले सोचा गया।
एमएफ उद्योग सार
म्यूचुअल फंडों ने पिछले तीन वर्ष में मजबूत निवेश देखा है, जिससे म्यूचुअल फंडों की कुल प्रबंधन अधीन संपदा (एयूएम) में भारी वृद्धि हुई। म्यूचुअल फंडों की कुल एयूएम जनवरी 2017 में सालाना आधार पर 36% बढ़ कर 17.37 लाख करोड़ के शिखर तक पहुँच गयी, जिसमें से इन्कम फंडों की हिस्सेदारी 45% और इक्विटी एवं ईएलएसएस फंडों की हिस्सेदारी 28% है।
वित्त वर्ष 2016-17 के आरंभिक नौ महीनों में भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग में 367,659 करोड़ रुपये का नया निवेश आया। इस कुल निवेश में से 55,689 करोड़ रुपये इक्विटी एवं ईएलएसएस फंडों में आये। शेयर बाजार में अस्थिरता के बावजूद इक्विटी म्यूचुअल फंडों में निवेश स्थिर बना रहा। यह रुझान म्यूचुअल फंडों में निवेशकों की बढ़ी हुई भागीदारी और गिरावट को पूँजी लगाने के अवसर के रूप में उपयोग करने की प्रवृत्ति को दिखाता है।
(निवेश मंथन, मार्च 2017)