राजीव रंजन झा :
जीएसटी को लेकर बहुत-सी बातें साफ हो गयी हैं, मगर इसके अमल को लेकर अब भी बहुत सारे सवाल बाकी हैं।
उम्मीद थी कि ऐसे काफी सवालों का जवाब आगामी बजट में मिल सकता है, लेकिन बजट में जीएसटी को कोई खास नयी बात नहीं कही गयी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण में कहा कि जीएसटी लागू होने से कर का दायरा फैलेगा और केंद्र एवं राज्य सरकारों, दोनों को ज्यादा कर प्राप्त होगा। उन्होंने आगे कहा कि सरकार एक अप्रैल से व्यापार और उद्योग जगत तक पहुँच कर नयी कर प्रणाली के बारे में सबको जानकारी देगी।
ऐसी अपेक्षा थी कि इस बजट में तमाम अप्रत्यक्ष करों को जीएसटी संरचना के करीब ले जाया जायेगा और सेवा कर (सर्विस टैक्स) में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन वित्त मंत्री ने अप्रत्यक्ष करों को लगभग जस-का-तस रहने दिया। हालाँकि बजट के बाद की चर्चाओं में वित्त मंत्रालय की ओर से यही संकेत मिले हैं कि जब जीएसटी लागू होगा तो सेवाओं पर जीएसटी दर मौजूदा 15% सेवा कर से ज्यादा हो सकती है। मंत्रालय की ओर से स्पष्ट किया गया कि बजट में इसे नहीं बढ़ाया गया क्योंकि अभी इसे बढ़ाने पर सेवा प्रदाता कंपनियों पर कर का बोझ तो बढ़ जाता, लेकिन उन्हें इसकी भरपाई के लिए वैट का इनपुट क्रेडिट नहीं मिल पाता।
हाल में 16 जनवरी को हुई जीएसटी काउंसिल की अपनी नौवीं बैठक में बहुत-से अटके हुए मुद्दों को सुलझाया गया है। खास कर जीएसटी में करदाताओं पर प्रशासनिक अधिकार के मुद्दे पर सहमति बनी। इस बैठक के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी परिषद के इस फैसले की जानकारी दी कि 1.5 करोड़ रुपये की सीमा तक के सालाना कारोबार वाले 90% करदाता राज्यों के अधीन रहेंगे, जबकि 1.5 करोड़ रुपये से कम सालाना कारोबार वाले बाकी 10% करदाता केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार में होंगे।
इस बैठक के बाद प. बंगाल के वित्त मंत्री डॉ. अमित मित्रा ने स्पष्ट किया कि सेवा क्षेत्र वाले 10% करदाता केंद्र के अधीन होंगे। हालाँकि इस पर उन्हें आपत्ति थी, क्योंकि वे चाहते थे कि 1.5 करोड़ रुपये तक की सीमा वाले सभी करदाता राज्यों के अधीन हों। वहीं 1.5 करोड़ रुपये से अधिक कारोबार वाले करदाताओं में से 50% करदाता केंद्र के क्षेत्राधिकार में और बाकी 50% राज्यों के क्षेत्राधिकार में होंगे। इसके साथ ही जेटली ने यह भी संकेत दे दिया कि जीएसटी लागू करने की व्यावहारिक तिथि 1 जुलाई 2017 हो सकती है, यानी उन्होंने मान लिया कि 1 अप्रैल 2017 से इसे लागू करना संभव नहीं लग रहा है।
अभी तो डॉ. अमित मित्रा समेत कई लोगों को संशय है कि 1 जुलाई 2017 से भी जीएसटी लागू हो सकेगा या नहीं। हालाँकि जेटली ने बजट भाषण में कहा कि केंद्र सरकार सीबीईसी के माध्यम से जीएसटी को समय पर लागू करने का लक्ष्य हासिल करने प्रयत्न करेगी। गौरतलब है कि जीएसटी लागू करने के लिए पिछले साल जो 122वाँ संविधान संशोधन अधिनियम संसद में पारित हुआ है, उसके अनुसार सरकार इस साल 16 सितंबर तक जीएसटी लागू करने के लिए बाध्य है। फिलहाल, 16 जनवरी की बैठक में स्वीकृत प्रस्तावों को जीएसटी के मसौदा कानूनों में शामिल करके जीएसटी परिषद की 18 फरवरी को होने वाली अगली बैठक में रखा जायेगा।
हालाँकि क्षेत्राधिकार के इस सरल वितरण के बाद कुछ जानकारों का मानना है कि अभी इस बारे में काफी बातों पर बारीकी से विचार करके नियम बनाने की जरूरत होगी। मिसाल के तौर पर, अगर कर चोरी के मामले सामने आते हैं, तो उनमें क्षेत्राधिकार कैसे तय किया जायेगा? कर चोरी रोकने की प्राथमिक जिम्मेदारी किसकी होगी? इस बारे में प्रक्रियाओं और नियमों को तय करना होगा। सवाल यह भी उठता है कि दो राज्यों के बीच वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति में अगर कर चोरी हो रही हो, तो उस पर स्रोत राज्य का जीएसटी प्राधिकरण कार्रवाई करेगा या गंतव्य राज्य का, या फिर आईजीएसटी/सीजीएसटी प्राधिकरण का?
जीएसटी परिषद ने 5%, 12%, 18% और 28% जीएसटी दर की चार श्रेणियों को स्वीकृति दी है। इनमें से मानक दर 12% और 18% की होगी। वहीं कुछ आवश्यक वस्तुओं को शून्य दर पर भी रखा जायेगा, जबकि विलासिता या हानिकारक वस्तुओं पर 28% जीएसटी दर के अलावा भी अतिरिक्त सेस लगेगा। मगर किस चीज पर कितनी दर लगेगी, इसकी सूची अभी घोषित नहीं हुई है। अब जीएसटी के संबंध में सबसे प्रतीक्षित पहलू यही जान पड़ता है। संभवत: 18 फरवरी को जीएसटी परिषद की अगली बैठक में इसका मसौदा रखा जायेगा।
जीएसटी लागू करने का एक मुख्य उद्देश्य कर ढाँचे को सरल बनाना है। लिहाजा इस बात पर भी नजर रहेगी कि कपड़ा, सीमेंट, ऑटो जैसे विभिन्न उद्योगों में कच्चे माल, उद्योग के आकार आदि पैमानों पर अलग-अलग उत्पाद शुल्कों की जो व्यवस्था बनी हुई है, उसे किस हद तक एकरूप बनाया जाता है। जीएसटी का एक असर यह भी होगा कि बहुत-सी मौजूदा रियायतें खत्म की जा सकती हैं। जीएसटी व्यवस्था का मतलब होगा न्यूनतम रियायतें।
(निवेश मंथन, फरवरी 2017)