यह सर्वज्ञात है कि बेनामी संपत्तियाँ काले धन को खपाने और छिपाने का एक बड़ा माध्यम हैं। नोटबंदी की एक बड़ी आलोचना यह भी रही है कि ज्यादातर काला धन तो जमीन-जायदाद, सोना आदि अन्य तरह की संपत्तियों के रूप में होता है।
लेकिन नोटबंदी के जरिये काली नकदी को एक झटके में बैंकिंग प्रणाली के अंदर ले आने के तुरंत बाद अगर जमीन-जायदाद में छिपे काले धन को बाहर निकालने पर सरकार असरदार कार्रवाई करे तो यह कदम काली अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ सकता है।
बीते दिनों में प्रधानमंत्री मोदी ने कई भाषणों में बहुत साफ कहा है कि सरकार बेनामी संपत्तियों पर हमला बोलने वाली है। उन्होंने 25 दिसंबर को ‘मन की बात’ में कहा, ‘आपको मालूम होगा हमारे देश में ‘बेनामी संपत्ति’ का एक कानून है। उन्नीस सौ अठासी में बना था, लेकिन कभी भी न उसके नियम बने, उसको अधिसूचित नहीं किया, ऐसे ही वह ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। हमने उसको निकाला है और बड़ा धारदार बेनामी संपत्ति का कानून हमने बनाया है। आने वाले दिनों में वह कानून भी अपना काम करेगा।' मगर विडंबना यही है कि कानून को जिस तंत्र के जरिये काम करना है, खुद वही तंत्र खुद कानून को तोडऩे-मरोडऩे के लिए इस्तेमाल होता रहा है। जब सारा तंत्र खुद भ्रष्टाचार के कैंसर से ग्रस्त हो, तो कोई कानून अपने-आप में नतीजे नहीं दे सकता है। यदि मोदी सरकार वास्तव में इस लड़ाई को किसी परिणाम तक पहुँचाना चाहती है तो उसे इस तंत्र की भी अंदर से सफाई करनी होगी।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)