ए. के. प्रभाकर, रिसर्च प्रमुख, आईडीबीआई कैपिटल :
बाजार मध्यम अवधि के लिए कमजोरी के दौर में प्रवेश कर चुका है। 6-7 महीनों में बाजार में बड़ी गिरावट आ सकती है।
छह महीने में सेंसेक्स 24,000 और निफ्टी 7330 की ओर बढ़ सकता है, जबकि साल भर बाद सेंसेक्स 25,000 और निफ्टी 7,650 के पास रहने की उम्मीद है। नोटबंदी के चलते अगले छह महीने का समय शेयर बाजार के लिए काफी बुरा या साल 2008 के सबसे बुरे दौर जैसा हो सकता है।
नोटबंदी का असर लंबी अवधि में अच्छा
अमरजीत सिंह, सीईओ, अमर ग्लोबल इन्वेस्टमेंट
अभी नोटबंदी और आर्थिक धीमेपन, जीएसटी पर अमल, डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति पर चिंताएँ हैं। यह उम्मीद है कि इस साल के बजट में कर ढाँचे को तार्किक बनाया जायेगा और अच्छी नीतिगत घोषणाएँ की जायेंगी। नोटबंदी का असर छोटी अवधि के लिहाज से खराब है, पर लंबी अवधि में अच्छा है। सेंसेक्स साल 2018 में फिर से 30,000 का स्तर छू सकता है, जबकि 2025 तक यह 40,000 पर जा सकता है।
नोटबंदी का असर है बाजार की मुख्य चिंता
अमित खुराना, इक्विटी प्रमुख, दौलत कैपिटल
बाजार की मुख्य चिंताएँ हैं नोटबंदी का उपभोग और पूँजीगत व्यय के चक्र पर असर। जीएसटी लागू होने के दौरान पुरानी से नयी व्यवस्था में जाने के दौरान होने वाले असर और उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों पर भी बाजार की नजर रहेगी। सकारात्मक यह है कि व्यापक आर्थिक संकेतक अच्छे हैं। साथ ही निकट भविष्य के कुछ मुद्दों को छोड़ दें तो एफआईआई की भारत में अच्छी दिलचस्पी बनी हुई है।
एफआईआई बिकवाली पर है चिंता
अनीता गांधी, निदेशक, अरिहंत कैपिटल मार्केट्स
उभरते देशों में भारत अब भी सितारा बना हुआ है। यदि सभी दल यह सुनिश्चित करें कि भारत की संपदा भारत में ही रहे, तो देश पीछे मुड़ कर नहीं देखेगा। अभी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली चिंताजनक है। नोटबंदी के चलते छह महीने के लिए धीमापन रहेगा। बहुत से लोग बेरोजगार हो रहे हैं। अगले छह महीनों में सबसे अहम पहलू यही है कि भारत की विकास दर कितनी रहती है।
निवेश के अन्य विकल्पों की कमी
अशोक अग्रवाल, निदेशक, एस्कॉट्र्स सिक्योरिटीज
विकास दर, कंपनियों की आय, रुपये की मजबूती, महँगाई दर और ब्याज दरों को लेकर कुछ स्थानीय और वैश्विक चिंताएँ हैं। घरेलू पैसों की उपलब्धता और साथ में एफआईआई निवेश के चलते बाजार छोटी से मध्यम अवधि में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। छोटी अवधि में नोटबंदी के चलते काफी उद्योगों में माँग नष्ट होगी। शेयर बाजार पर इसका असर सकारात्मक होगा, क्योंकि निवेश के अन्य विकल्पों की कमी है।
तीसरी तिमाही में रहेगी नकारात्मक वृद्धि
ऑनाली रूपानी, निदेशक, एआरएम रिसर्च
अभी मैं बाजार में तेजी की उम्मीद कर रहा हूँ, पर सावधान हूँ। बाजार की मुख्य चिंता अभी तीसरी तिमाही के नतीजे और नोटबंदी के असर को लेकर है। अमेरिका और यूरोप में सुधार आना सकारात्मक है। नोटबंदी तीसरी और चौथी तिमाही के लिए नकारात्मक है, पर 2017-18 की पहली तिमाही से इसके सकारात्मक असर होंगे। तीसरी तिमाही में नकारात्मक वृद्धि दिख सकती है।
बेनामी पर चोट से मिलेगा असली फायदा
अरविंद पृथी, संस्थापक, एंडरसन कैपिटल एडवाइजर्स
यह साल बाजार के लिए मुश्किलों भरा रहने वाला है। फेडरल ब्याज दरें भारतीय बाजार के लिए एक बड़ी चिंता हैं। चुनावी नतीजे भाजपा के विरुद्ध रहने पर बाजार पर नकारात्मक असर होगा। नोटबंदी के बाद अगर सुधारों को लागू किया जाये और सोने एवं रियल एस्टेट में बेनामी निवेश पर अंकुश लगा कर नोटबंदी के उद्देश्यों को तार्किक अंजाम दिया जाये, तो यह सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू बन सकता है।
निफ्टी के लिए 7,200 का स्तर सबसे अहम
अनिल मंगनानी, निदेशक, मॉडर्न शेयर्स
निकट भविष्य बाजार के लिए अभी कुछ और दर्द बाकी है। निफ्टी नीचे 7600 या 7200 तक जा सकता है। निफ्टी के लिए 7,200 का स्तर अहम है और उसे यह स्तर जरूर बचा कर रखना चाहिए। किसी गिरावट में जब तक निफ्टी 7,200 बचा कर रखे, तब तक लंबी अवधि का रुझान सुरक्षित रहेगा, लेकिन इसके नीचे जाने पर बाजार के लिए एक बड़ी समस्या पैदा हो सकती है।
आकर्षक मूल्यांकन पर है बाजार
अमित भागचंदका, ग्रुप सीईओ, आर.के. ग्लोबल
मौजूदा मूल्यांकन पर भारतीय बाजार आकर्षक लग रहा है। बाजार में एक बड़ी तेजी का दौर आने वाला है। सेंसेक्स अगले छह महीने में 28,300 और साल भर में 29,000 पर पहुँच सकता है। साल 2018 में सेंसेक्स फिर से 30,000 पर पहुँचने की उम्मीद होगी। अभी मुख्य चिंता जीएसटी और अन्य नीतियों के लागू होने को लेकर है। अगले छह महीनों में विकास दर कितनी रहती है, यह बाजार के लिए अहम कारक होगा।
2017-18 की पहली तिमाही से विकास में तेजी
अजय बग्गा, कार्यकारी चेयरमैन, ओपीसी एसेट सॉल्यूशंस
नोटबंदी, विदेशी निवेशकों की बिकवाली, कच्चे तेल और कमोडिटी भावों में तेजी और डॉलर की मजबूती इस समय मुख्य चिंताएँ हैं। सकारात्मक पहलुओं में निचले आधार (लो बेस) का असर, कम महँगाई दर और ब्याज दरों में कटौती की संभावना को गिना जा सकता है। वर्ष 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाहियों में अर्थव्यवस्था धीमी पड़ेगी, और इसके बाद 2017-18 की पहली तिमाही में यह फिर से तेज होने लगेगी।
निवेश के लिए यह उपयुक्त समय
अविनाश गोरक्षकर, रिसर्च प्रमुख, मनीलिशियस
एफआईआई बिकवाली, रुपये की कमजोरी और डॉलर की मजबूती, कच्चे तेल की उच्च कीमतें और 2017-18 की पहली छमाही में कंपनियों की आय में सुस्ती मुख्य चिंताएँ हैं। पर गिरती ब्याज दरों के कारण डेब्ट के मुकाबले इक्विटी सर्वश्रेष्ठ संपदा श्रेणी बनी रहेगी। निम्न महँगाई दर बाजार के लिए अच्छी है। सभी क्षेत्रों में मूल्याँकन सस्ते और आकर्षक हो गये हैं। निवेश शुरू करने के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है।
2020 तक सेंसेक्स 50,000 पर
गौरव दुआ, रिसर्च प्रमुख, शेयरखान
इक्विटी इस समय भारत में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला संपदा वर्ग है। सेंसेक्स साल 2017 में ही 30000 को फिर से छू सकता है, जबकि साल 2018 तक यह 40,000 पर जा सकता है और साल 2020 तक यह 50,000 पर पहुँच सकता है। अभी वैश्विक परेशानियाँ और भारतीय अर्थव्यवस्था में धीमा सुधार मुख्य चिंताएँ हैं। लेकिन बाजार का मूल्यांकन उचित है और 2017 में मजबूत वापसी की उम्मीद है।
निफ्टी फिसल सकता है 6800-6600 तक
हितेंद्र वासुदेव, तकनीकी विश्लेषक
साल 2016 में दोजी कैंडल बनी है, जो दिखाती है कि दायरे में ऊपर-नीचे होते हुए ठहराव जारी रह सकता है। निफ्टी 6,800 या 6,600 तक भी फिसल सकता है। बाद में यह सँभलेगा और 9,119 से 6,600 के बीच जमेगा। अभी तात्कालिक सहारा 7,900 पर है। इसके नीचे जाने पर 7,641-7,500 तक की गिरावट आ सकती है। लेकिन अगर यह 8,300 के ऊपर बंद हो तो एक नयी ऊपरी चाल शुरू हो सकती है।
मजबूत कंपनियाँ बढ़ सकती हैं कई गुना
जितेंद्र पांडा, एमडी एवं सीईओ, पीयरलेस सिक्योरिटीज
साल 2016 में ठहराव के बाद हम तार्किक मूल्यांकन पर हैं, जहाँ से नये शिखर तक की उछाल शुरू हो सकती है। नोटबंदी से झटका लगा है, जिसका असर ज्यादा-से-ज्यादा एक तिमाही तक रहेगा। मगर इससे जो सफाई हुई है, उससे 3-4 तिमाहियों बाद बाजार पर बड़ा सकारात्मक असर होगा। कॉर्पोरेट प्रशासन में मजबूत कंपनियाँ कई गुना वृद्धि हासिल कर सकेंगी, जबकि कमजोर कंपनियाँ नष्ट हो सकती हैं।
नीचे 7,200 तक जा सकता है निफ्टी
मानस जायसवाल, तकनीकी विश्लेषक
निफ्टी 200 दिनों के ईएमए (अभी 8,300 के पास) के नीचे चल रहा है और जब तक यह इसके नीचे है, तब तक कोई भी तेजी खरीदारी सौदों से बाहर निकलने का अच्छा मौका है। नीचे 7,850 से 7,900 का दायरा अहम सहारा है, लेकिन चार्ट संरचना को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि यह इस सहारे को तोड़ सकता है। निफ्टी का साल 2017 का दायरा ऊपर 8,300 से नीचे 7,200 के बीच का रह सकता है।
पूँजीगत खर्च का चक्र होगा तेज
मोनल देसाई, वीपी, कोजेंसिस
बुनियादी ढाँचे पर सरकारी खर्च बढऩे और व्यापार सुगमता बढऩे से पूँजीगत व्यय चक्र में तेजी आने की उम्मीद है। अगर ऐसा हो तो हम बाजार में अच्छी बढ़त देखेंगे। नोटबंदी के चलते बाजार का संवेग टूटा है। लेकिन नोटबंदी ही बाजार के लिए सकारात्मक पहलू भी बन सकती है, अगर इसके पूरा हो जाने के बाद नीतियों और कानूनों पर सही तरीके से अमल हो। ऐसा नहीं होने पर इसका काफी बुरा असर होगा।
बाजार पर नोटबंदी का असर ज्यादा नहीं
कुणाल सरावगी, सीईओ, इक्विटीरश
निफ्टी जून 2017 में 8,500 और साल 2017 के अंत में 9,000 के पास होगा। अमेरिका में जहाँ ब्याज दरें बढ़ेंगी, वहीं भारत में दरें घट रही हैं। बजट के बाद बाजार में एक तेजी आ सकती है। नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों को माँग में कमी का सामना करना होगा। पर अन्य हिस्से इससे तुलनात्मक रूप से अप्रभावित रहेंगे। शेयर बाजार पर इसका असर कम ही रहेगा, और जो असर हो सकता था वह हो चुका है।
निवेश पर सालाना 20% लाभ की आशा
जगदीश ठक्कर, निदेशक, फॉच्र्यून फिस्कल
जो निवेशक तीन साल या इससे अधिक की अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए अभी सर्वोत्तम अवसर है। तीन साल की बात करें तो उन्हें लगभग 20त्न वार्षिक चक्रवृद्धि दर से लाभ मिल सकता है। हालाँकि अभी कई चिंताएँ हैं। बाजार की नजर है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति 20 जनवरी या इसके बाद कैसी घोषणाएँ करते हैं। नोटबंदी के बाद कंपनियों की तीसरी और चौथी तिमाही की आय पर असर होगा।
गिरावट आने पर अच्छा लगेगा बाजार
हेमेन कपाडिय़ा, सीईओ, चार्टपंडित
मुझे लगता है कि कुछ गिरावट आने पर बाजार अच्छा हो जायेगा। अगले छह महीनों में भारत की विकास दर ही बाजार के लिए सबसे अहम कारक है। इस समय बाजार के लिए राजनीति सबसे चिंताजनक पहलू है, जबकि कोई खास सकारात्मक पहलू दिख नहीं रहा है। नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होने वाला है। तीसरी तिमाही के नतीजों में 0-5त्न के बीच की धीमी वृद्धि दिख सकती है।
गिरावट आने पर खरीदारी की सलाह
दिलीप भट्ट, जेएमडी, प्रभुदास लीलाधर
निवेशकों को इस बाजार में गिरावट आने पर खरीदारी करनी चाहिए। अभी वैश्विक और अमेरिकी बाजार से जुड़े पहलू चिंता पैदा कर रहे हैं। एफआईआई की बिकवाली भी हो रही है। अर्थव्यवस्था सँभलने और पूँजीगत खर्च में सुधार को लेकर भी चिंता है। वहीं कच्चे तेल के भाव बढ़ रहे हैं और कंपनियों के आय के अनुमान घटाये जा रहे हैं। पर इन स्थितियों में भी भारत की विकास दर विश्व में सर्वोत्तम बनी हुई है।
(निवेश मंथन, जनवरी 2017)