राजीव रंजन झा
सोना भारतीयों की कमजोरी भी है और मजबूती भी। दोनों एक साथ कैसे? आइए समझते हैं।
आप राम की कल्पना करें या कृष्ण की, स्वर्ण मुकुट ध्यान में जरूर आयेगा। राजसी वैभव की कल्पना स्वर्णाभूषणों के बिना नहीं हो सकती। और केवल राजाओं के लिए ही नहीं, गरीबों के लिए भी सुख-दुख का साथी रहा है सोना। भारतीयों के मन में यह सोच सहस्राब्दियों से बैठी हुई है। और जब पूरे देश का संकट टालना था 1991 में, तो भारत सरकार को भी अपने स्वर्ण भंडार का ही सहारा मिला।
पर आधुनिक सोच कहती है कि सोना केवल मूल्य संरक्षण के काम आ सकता है, यह उत्पादक निवेश नहीं है। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए, क्योंकि यह शेयर, बॉन्ड या रियल एस्टेट जैसे निवेशों की तरह कोई आय या नकद प्रवाह (कैश फ्लो) उत्पन्न नहीं करता है। शेयरों में जब कोई निवेश किया जाता है, तो इसका मतलब होता है किसी कंपनी में स्वामित्व का एक अंश लेना। चूँकि वह कंपनी कारोबार करती है, उससे लाभ उत्पन्न होता है, जिससे निवेश का मूल्य बढ़ता है। बांड में ब्याज का भुगतान होता है, रियल एस्टेट में किराये की आय मिलती है। इन सबके विपरीत सोना कोई ऐसी उत्पादक गतिविधि नहीं करता है, जिससे कोई आय हो और निवेश का मूल्य बढ़े, या लाभांश मिले।
पर सोने की कीमत बढ़ती है ही। आम धारणा है कि इसकी कीमत लगातार बढ़ती है, बाकी किसी चीज में नुकसान हो सकता है पर सोने में लगाये हुए पैसे पर नुकसान नहीं होगा। यह धारणा सत्य नहीं है। किसी भी अन्य कमोडिटी की तरह सोने की कीमतें भी ऊपर-नीचे होती हैं, और अच्छी-खासी ऊपर-नीचे होती हैं। फिर भी, यदि बहुत लंबे समय की बात करें तो यह दिखता है कि कीमतें ऊपर जाती रहती हैं। तो फिर यह कीमत कैसे बढ़ती है, जब सोना किसी उत्पादक गतिविधि का हिस्सा नहीं बनता और किसी भंडार में चुपचाप पड़ा रहता है – वह भारत सरकार का स्वर्ण भंडार हो या आपके बैंक का लॉकर?
सोने की कीमत बढ़ती है महँगाई के सापेक्ष। मोटे तौर पर यह समझें कि लंबे समय में औसत महँगाई जितनी बढ़ती है, लगभग उतनी ही सोने की कीमत भी बढ़ती है। तो फिर सोने से वास्तविक लाभ या प्रतिफल (रिटर्न) कितना मिला? लगभग शून्य, क्योंकि वास्तविक लाभ होता है खरीद-बिक्री के मूल्य में से महँगाई का असर काटने के बाद बचा पैसा।
बीते 100 साल में सोने की कीमतें देखें, तो 1923 में 10 ग्राम सोना मिलता था 18.35 रुपये का। अभी इसकी कीमत पहुँच गयी है लगभग 62,000 रुपये पर। इसकी औसत वार्षिक चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) निकालें, तो लगभग 8.46% बैठती है। पिछले 30 साल में 9.44%, पिछले 20 साल में 12.77%, पिछले 10 साल में 7.67% और पिछले 5 साल में 14.53% की औसत वृद्धि रही है।
एक सरल उदाहरण लेते हैं। आपने बैंक में साल भर पहले एक लाख रुपये डाले, अब ब्याज मिला कर उसका मूल्य हो गया एक लाख आठ हजार रुपये। तो आपको लगेगा कि आपका लाभ आठ हजार रुपये है। पर वास्तविक लाभ कितना है? यह प्रश्न इसलिए, कि इसी एक साल में महँगाई भी तो बढ़ी है। महँगाई के चलते आप साल भर पहले एक लाख रुपये में जितने सामान खरीद पाते थे, क्या उतना ही सामान अब खरीद सकेंगे? नहीं। तकरीबन हर चीज पहले से कुछ महँगी मिलेगी। कहीं दाम कम बढ़े होंगे, कहीं ज्यादा। इन सबका एक औसत निकालते हैं तो हमें मुद्रास्फीति या महँगाई दर पता चलती है।
तो हमें वास्तविक लाभ समझने के लिए हासिल ब्याज में से महँगाई का असर घटाना होगा। ऊपर के उदाहरण में अगर ब्याज दर 8% लें, और इस एक साल में महँगाई दर 6% रही, तो वास्तविक लाभ केवल 2% का होगा, मतलब केवल 2,000 रुपये का, न कि 8,000 रुपये का। वहीं अगर साल भर पहले आपने एक लाख रुपये बैंक में एफडी करने के बदले कहीं घर की अलमारी में रख छोड़े होते, तो क्या होता? आपके पास नोट तो एक लाख रुपये के ही रखे होते, पर उनका वास्तविक मूल्य साल भर में 6% घट गया होता। मतलब आपके पास जो एक लाख रुपये पड़े हैं, उनका वास्तविक मोल उतना ही है, जितना साल भर पहले 94,000 रुपये का होता।
अब चूँकि सोने की कीमत लगभग उतनी ही बढ़ती है, जितनी महँगाई बढ़ी हो, तो इसे दो तरह से देखा जा सकता है। पहला यह कि इसने आपको महँगाई से सुरक्षा दी। आप 10 साल तक आप अपनी अलमारी में या बैंक के लॉकर में एक लाख रुपये नकद रखे रहें, तो 10 साल में इसकी असली कीमत काफी घट जायेगी। लेकिन 10 साल तक आप सोना रखे रहें, तो इसकी असली कीमत नहीं घटेगी।
मगर दूसरी बात यह है कि 10 साल तक आप किसी उत्पादक संपत्ति में निवेश करके रखें, तो उसकी तुलना में सोने की कीमत में हुई वृद्धि कम ही रहेगी। कोई उत्पादक निवेश हमेशा महँगाई दर से कहीं ऊँचा लाभ दिलायेगा, जबकि सोना आपको महँगाई दर के बराबर ही निवेश दिलायेगा। पर उत्पादक निवेश में एक जोखिम है। मान लीजिए जिस कंपनी के शेयर में आपने पैसा लगाया, वह कंपनी नहीं चली तो आपके पैसे एकदम डूब भी सकते हैं। ऐसा खतरा सोने में बहुत कम रहेगा।
पर ऐसा भी नहीं होता कि कभी भी पाँच साल या 10 साल का समय ले लें, तो उस बीच सोने की कीमत औसत रूप से बढ़ेगी ही। इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव के बहुत लंबे चक्र होते हैं। कभी कोई 10 साल ऐसे बीत सकते हैं जब इसकी कीमत न बहुत बढ़े न बहुत घटे। कभी कुछ साल ऐसे हो सकते हैं, जब इसकी कीमतें घटती चली जायें। और ऐसे ठहराव या नुकसान की भरपाई करने के लिए कभी-कभी इसकी कीमतें बहुत तेजी से ऊपर जाती दिखती हैं। जैसे 1923 से 1931 तक इसकी कीमतें मोटे तौर पर 18 से 19 रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच लटकी रहीं। 1992 से 2002 तक यह करीब 4,000 से 5,000 के बीच ही ऊपर-नीचे होता रहा।
अगर कोई सोचता है कि सोने की कीमत घटती ही नहीं, तो ध्यान रखना चाहिए कि नवंबर 2012 में करीब 32,000 रुपये से घट कर यह अप्रैल 2013 में ही लगभग 25,000 पर आ गया था। सितंबर 2013 के करीब 34,000 से अगस्त 2015 तक घटते-घटते 24,000 के पास आ गया था। हाल में अगस्त 2020 के लगभग 55,000 के भाव मार्च 2021 तक घट कर 43,000 के पास चले आये थे। अगर आपने 2012 में सोना 30-32 हजार रुपये के भाव पर खरीदा होता तो सात साल बाद 2019 तक भी आपको लगभग उतने ही भाव नजर आ रहे होते, बीच में आपने 24-25 हजार रुपये का भाव भी देखा होता। तो सोने में कीमतें बढ़ने का चक्र काफी लंबे समय में काम करता है।
तो सोने में निवेश करना चाहिए या नहीं? मोटे तौर पर इसमें उतना ही निवेश करना चाहिए जितना आपातकालीन धन रखना जरूरी लगता हो। किसी भी व्यवसाय, जमीन-जायदाद, नकदी आदि के साथ जुड़े अलग-अलग जोखिमों को ध्यान में रखते हुए इससे कुछ और अधिक निवेश भी सोने में रखा जा सकता है। पर ध्यान रखें कि सोना आपके लिए संपत्ति को बचाने का काम करेगा, कमाने का नहीं। कमाने वाला, यानी उत्पादक निवेश करना है तो दूसरे विकल्पों पर ज्यादा ध्यान दें। (निवेश मंथन, अप्रैल 2023)