डॉ. शिल्पी झा :
दुनिया भर के राजनेताओं से गर्मजोशी से गले मिलना हो, विदेशी मीडिया में प्रमुखता से मिली कवरेज़ हो या फिर देश से ज्यादा समय विदेश में बिताने के आरोप,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राएँ कभी सुर्खियों से बाहर नहीं होतीं। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव जीतते ही ये अटकलें तेज हो गयी थीं कि बराक ओबामा के समय में बने दोस्ताना संबंध क्या ट्रंप के आने के बाद भी जारी रह सकेंगे?
इस अमेरिका यात्रा के पहले दिन मोदी की अमेरिकी कंपनी प्रमुखों के साथ बैठक हुई तो दूसरे दिन का आधा वक्त व्हाइट हाउस में ही बीता। प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वाले कंपनी प्रमुखों की सूची तकनीक, रिटेल, टेलीकॉम और मैन्युफैक्चरिंग समेत अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम जरूरी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती दिखी। भारतीय मूल के कंपनी प्रमुखों की सूची में इस हालाँकि इस बार माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला और पेप्सीको की इंद्रा नूई का नाम नजऱ नहीं आया, लेकिन गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, मास्टरकार्ड के प्रमुख अजय बंगा, एडोबी के अध्यक्ष शांतनु नारायण, डेलाइट के ग्लोबल सीईओ पुनीत रंजन और अमेरिका-भारत व्यापार संघ (यूएसआईबीसी) के अध्यक्ष मुकेश अघी ने बैठक में शिरकत की। हाल ही में टाटा के साथ रक्षा उपकरण बनाने के करार के लिए चर्चा में आए लॉकहीड मार्टिन की अध्यक्ष मैरीलिन ह्यूसन भी बैठक में शामिल थीं।
इस बैठक के दौरान एक ओर जहाँ प्रधानमंत्री मोदी जीएसटी को लेकर कंपनी प्रमुखों को आश्वस्त करते दिखे, वहीं मुलाकातियों को ओर से सामने रखे गये मुद्दों में अफसरशाही और लालफीतेशाही के चलते भारत में अभी भी व्यापार कर सकने में आ रही दिक्कतें प्रमुखता से उभर कर आयीं। कुल मिला कर अमेरिकी व्यापार जगत की भारतीय प्रधानमंत्री से मुलाकात सकारात्मक रही। बैठक के तुरंत बाद जहाँ अमेजन के सीईओ जेफरी बेजोस ने ट्वीट कर मोदी की तारीफों के पुल बाँधे, वहीं वॉलमार्ट के डग मैकमिलन ने मोदी से अकेले मिलने का समय भी माँगा।
अमेरिकी मीडिया ने बैठक के बाद जारी की गयी आधिकारिक तस्वीर में हँसते मुस्कुराते चेहरों की तुलना व्हाइट हाउस से पिछले हफ्ते जारी इससे मिलती-जुलती तस्वीर से भी की। दरअसल, मोदी के अमेरिका दौरे के चंद रोज पहले ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की थी। उस बैठक की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, जिसमें ट्रंप के अगल-बगल बैठे ऐप्पल के सीईओ टिम कुक, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला और अमेजन के सीईओ जेफरी बेजोस के उतरे हुए चेहरे साफ नजर आ रहे थे।
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रोजगार के नये अवसर पैदा करना है। विदेशी निवेश में इजाफे और महँगाई पर लगाम कसने के बावजूद पिछले तीन सालों में बेरोजगारी जस-की-तस बनी हुई है। मोदी के कार्यकाल के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 2013-14 के 36 अरब डॉलर से बढ़ कर 2016-17 में 60 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। लेकिन कंपनियाँ घरेलू बाजार में जरूरत के मुताबिक नयी नौकरियाँ नहीं दे पा रहीं। आईफोन और आईपैड की निर्माता कंपनी ऐप्पल ने रिटेल एफडीआई की घोषणा तो की, लेकिन साथ में रिटेल में निवेश के लिए 30% माल घरेलू बाजार से लेने की जरूरी शर्त से तीन साल के लिए छूट की माँग भी मनवा ली। ऐसे में जरूरी है कि सरकार विदेशी निवेशकों को देश में उत्पादन की सहूलियत देने के साथ रोजगार पैदा करने के लिए भी बाध्य करे।
सोमवार 26 जून की दोपहर से लेकर रात के भोजन तक का समय मोदी ने व्हाइट हाउस में बिताया। पहले दोनों राष्ट्र प्रमुखों की मुलाकात हुई, फिर दोनों अपने-अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ दोबारा मिले और आखिर में रात का भोजन साथ में किया। इस बैठक की सबसे ज्यादा चर्चा मोदी के ट्रंप को गले लगाने और हिजबुल मुजाहिद्दीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को अमेरिका द्वारा आतंकवादी घोषित किये जाने की वजह से हुई।
इस बैठक को दोनों नेताओं के लिए ‘वॉर्मिंग अप’ के तौर पर ही देखा जा रहा था, इसलिए एच1बी वीजा जैसे जटिल मुद्दे नहीं उठाये गये। बड़े फैसलों की किसी को उम्मीद भी नहीं थी। इस लिहाज से नतीजा सकारात्मक ही कहा जाना चाहिए। बैठक तीन अहम मुद्दों - आंतकवाद, रक्षा और व्यापार पर केंद्रित रही। अपनी ओर से ट्रंप ने स्पाइसजेट के 100 बोइंग विमान खरीदने के दस अरब डॉलर के करार की तारीफ की और भारतीय नौसेना को 2 अरब की लागत में 22 समुद्री ड्रोन बेचने का ऐलान भी किया। फिर भी सरकार को अमेरिका के साथ अपनी अर्थनीति और आयात-निर्यात के समीकरणों को लेकर चौकस रहने की ज़रूरत है। भारत अमेरिका से आयात कम करता है और निर्यात ज्यादा, जो ट्रंप को पसंद नहीं।
मोदी सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ और ट्रंप की ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीतियाँ एक दूसरे की विरोधाभासी हैं। ट्रंप को सौदों में बराबरी का लेन-देन पसंद है और वे किसी भी देश के लिए चैरिटी या दान में विश्वास नहीं करते। दूसरी ओर, मोदी को भी कभी घाटे का सौदा नहीं करने वाले व्यापारी के तौर पर देखे जाने से कोई गुरेज नहीं। ऐसे में आगे भी दोनों राष्ट्राध्यक्षों की कोशिश पलड़ा अपनी ओर झुकाने की ही रहेगी।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)