काशिद हुसैन :
पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के संदर्भ में दिये गये तर्कों में से एक तर्क यह था कि यह डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देगा, जिससे कर चोरी और भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जा सकेगी।
नोटबंदी के समय पूरे देश में करीब 90% लेन-देन नकद होती थीं। मगर मोतीलाल ओसवाल सिक्योरिटीज (एमओएसएल) ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आँकड़ों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि मई 2017 तक के आँकड़ों के आधार पर अर्थव्यवस्था में डिजिटलाइजेशन बढऩे को लेकर एक संदेह होता है।
एमओएसएल की रिपोर्ट के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली (ईपीएस) से होने वाले लेन-देन की कुल राशि नोटबंदी के बाद से लगभग स्थिर रही है, सिवाय मार्च 2017 में एक मौसमी उछाल के। ईपीएस में आरटीजीएस, एनईएफटी, सीटीएस, आईएमपीएस, एनएसीएच, यूपीआई, पीओएस (डेबिट/क्रेडिट कार्ड) और पीपीआई के 8 तरीकों को शामिल किया गया है। हालाँकि लेन-देन की संख्या (वॉल्यूम) के लिहाज से नोटबंदी के बाद से एक टिकाऊ बढ़त दिख रही है। इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि डिजिटल भुगतान के तरीकों का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है।
पर आरबीआई के ही आँकड़ों का प्रयोग करते हुए नीति आयोग ने अपने विश्लेषण में बताया है कि जहाँ 2015-16 में समाप्त पाँच वर्षों की अवधि में डिजिटल भुगतान की मात्रा (वॉल्यूम) में 28% वार्षिक औसत वृद्धि हुई, वहीं साल 2016-17 में इसकी वृद्धि दर एकदम उछल कर 55% हो गयी। मूल्य (वैल्यू) के आधार पर भी 2016-17 में डिजिटल भुगतान में 24.2% वृद्धि हुई। अप्रैल 2017 के महीने में भी अप्रैल 2016 के मुकाबले डिजिटल भुगतान में अच्छी बढ़त दिखी है। इस तरह नीति आयोग ने आरबीआई के आँकड़ों से निकाले जा रहे इस निष्कर्ष को नकारा है कि नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान में आयी उछाल केवल तात्कालिक थी, क्योंकि उस समय नकदी उपलब्ध नहीं थी।
डिजिटल भुगतान के चलन में वृद्धि की बात वित्तीय सेवा प्रौद्योगिकी प्रदान करने वाली कंपनी एफआईएस ने हाल में अपने एक सर्वेक्षण के आधार पर भी सामने रखी है। इसके अनुसार नोटबंदी के बाद से मोबाइल बैंकिंग और डि़जिटल माध्यमों का इस्तेमाल करने वालों की तादाद में इजाफा हुआ है। पहले की तुलना में करीब 5% अधिक लोगों ने बिल का भुगतान, खाते से रकम का हस्तांतरण और दूसरी बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाया। वहीं सर्वे में शामिल हुए 60% से अधिक लोगों ने बैंक अकाउंट की जानकारी अपने मोबाइल पर ही प्राप्त करने की बात कही।
खुदरा लेन-देन के आँकड़ों में भी यह दिखता है कि नोटबंदी के बाद खुदरा डिजिटल लेन-देन में मूल्य और मात्रा दोनों के लिहाज से काफी वृद्धि हुई और अब ये आँकड़े उन ऊपरी स्तरों पर स्थिर हो गये हैं। पीओएस (क्रेडिट/डेबिट कार्ड), पीपीआई, आईएमपीएस और यूपीआई के चार डिजिटल खुदरा लेन-देन की कुल मासिक संख्या नोटबंदी से पहले जहाँ साल 2016 के मध्य में लगभग 30 करोड़ की थी, वह नवंबर 2016 में बढ़ कर करीब 50 करोड़ और दिसंबर 2016 में करीब 85 करोड़ पर पहुँच गयी। इसके बाद जनवरी से मई 2017 के महीनों में यह संख्या मोटे तौर पर 70-80 करोड़ के बीच चल रही है। मई में यह संख्या 83 करोड़ की रही है।
इन आँकड़ों के आधार पर एमओएसएल रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल खुदरा लेन-देन की संख्या 85 करोड़ के ऊपर जाने में मुश्किल हो रही है। मगर इन आँकड़ों से यह भी समझा जा सकता है कि जिन लोगों ने नोटबंदी के समय खुदरा लेन-देन के लिए डिजिटल भुगतान करना शुरू किया, वे अब इसे नियमित आदत के रूप में अपना रहे हैं। ऐसा नहीं होता तो नकदी की उपलब्ध सामान्य हो जाने के बाद डिजिटल लेन-देन की संख्या घट कर नोटबंदी से पहले के स्तरों के आसपास लौट जानी चाहिए थी।
हाल में सरकार ने पिछले साल 30 दिसंबर को शुरू हुए भीम ऐप्प के माध्यम से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) को भी काफी बढ़ावा दिया है। यूपीआई को संचालित करने वाली कंपनी नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) के आँकड़ों के मुताबिक जून 2017 के महीने में यूपीआई से लेन-देन की संख्या 1 करोड़ को पार कर गयी है।
मगर नकदी का उपयोग जरूर नोटबंदी से पहले के स्तरों पर लौट गया है। नोटंबदी से पहले एटीएम से रोजाना 7,000 करोड़ रुपये से अधिक निकासी होती थी, जो दिसंबर में 2,700 करोड़ रुपये रह गयी थी। अब यह आँकड़ा वापस 7,200 करोड़ रुपये प्रति दिन पर पहुँच गया है।
इऩ आँकड़ों से दिखता है कि नोटबंदी ने डिजिटल भुगतान में एकबारगी उछाल ला दी, खास कर खुदरा लेन-देन में। मगर आगे इसमें निरंतर वृद्धि के लिए प्रोत्साहनों की जरूरत होगी। इसके विपरीत विभिन्न बैंक और इस क्षेत्र के अन्य खिलाड़ी भुगतान पर शुल्क लगा रहे हैं या इस बारे में विचार कर रहे हैं। जानकारों ने चिंता जतायी है कि ऐसे शुल्क लोगों को डिजिटल भुगतान से फिर से दूर कर सकते हैं।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)