आखिरकार केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग में भत्तों को लेकर चले ऊहापोह के दौर पर विराम लगा दिया है।
इस सरकारी सौगात से लगभग 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को 1 जुलाई से बढ़े हुए भत्तों की राशि मिलेगी। इससे सरकारी खजाने पर लगभग 31,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। सरकार ने वेतन आयोग की सिफारिशें तो पहले ही लागू कर दी थीं, लेकिन मकान किराया भत्ता (एचआरए) सहित अन्य भत्तों पर बात अटकी हुई थी। इसका समाधान निकालने के लिए गठित अशोक लवासा समिति की संस्तुतियों के बाद इसे हरी झंडी दिखा दी गयी।
मूल वेतन के प्रतिशत के रूप में एचआरए की दर एक्स श्रेणी (50 लाख या इससे अधिक आबादी) वाले शहरों में 24%, वाई श्रेणी (5 से 50 लाख आबादी) वाले शहरों में 16% और जेड श्रेणी (5 लाख से कम आबादी) वाले शहरों में 8% तय की गयी है। एचआरए भुगतान की न्यूनतम राशि एक्स श्रेणी के लिए 5,400 रुपये, वाई श्रेणी के लिए 3,600 रुपये और जेड श्रेणी के लिए 1,800 रुपये तय की गयी है, यानी मूल वेतन के प्रतिशत के आधार पर इससे कम राशि बैठने पर भी कम-से-कम इतनी राशि दी जायेगी।
भविष्य में डीए यानी महँगाई भत्ता बढ़ कर 50% हो जाने पर एचआरए भी क्रमश: 27%, 18% और 9% हो जायेगा। इसी तरह 100% डीए हो जाने की स्थिति में ये दरें 30%, 20% और 10% हो जायेंगी। सियाचिन में तैनात सैन्य अधिकारियों को मिलने वाला 21,000 रुपये मासिक का भत्ता भी बढ़ा कर 42,500 रुपये कर दिया गया है। इसी तरह जवानों और जेसीओ के लिए सियाचिन भत्ता 14,000 रुपये प्रति माह से बढ़ा कर 30,000 रुपये कर दिया गया है।
सातवें वेतन आयोग से पहले लगभग 196 भत्ते चलन में थे, लेकिन अब उनमें से तमाम को खत्म कर दिया गया है तो कई का विलय कर दिया गया है। इस तरह उनकी संख्या घटा कर अब 55 कर दी गयी है। लेकिन इतना तय है कि केंद्रीय कर्मियों की जेब में ज्यादा पैसा आना तय है। केंद्रीय कर्मियों की जेब में ज्यादा पैसा आने से बाजार का झूमना भी स्वाभाविक है, क्योंकि उनके पास खर्च करने योग्य आमदनी भी बढ़ जाती है।
जब भी केंद्रीय कर्मियों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी होती है तो उनके खर्च में एक खास तरह का रुझान भी देखा जाता है। मसलन वे रियल एस्टेट, वाहन, टिकाऊ उपभोक्ता और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की खरीदारी को तरजीह देते हैं।
आखिरकार एयर इंडिया के विनिवेश का फैसला
कुछ दिनों पहले नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू से जब एयर इंडिया में विनिवेश के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने जवाब में कहा कि एयर इंडिया के लिए ‘बकरा’ तलाशना खासा मुश्किल काम होगा। अमूमन कोई प्रवर्तक अपनी कंपनी के बारे में ऐसा नहीं कहता, लेकिन स्वयं मंत्री का यह बयान इस सरकारी कंपनी की खस्ता हालत बयान करने के लिए काफी है। अब आखिरकार सरकार ने महाराजा के विशेषण से मशहूर इस कंपनी में विनिवेश का फैसला किया है।
तमाम जानकार और यहाँ तक कि सरकारी नीति आयोग भी यही हिमायत करते आये हैं कि एयर इंडिया के कायाकल्प का इकलौता रास्ता उसका विनिवेश ही है। आखिर करदाताओं की जेब से इस खस्ताहाल कंपनी को चलाये रखने की क्या तुक है। ऐसा नहीं है कि इसे पटरी पर लाने के लिए सरकार ने प्रयास नहीं किये। चाहे तकरीबन 30,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज देना हो या प्रबंधन में बेहतरीन अधिकरियों को लाना, या फिर इंडियन एयरलाइंस में उसके विलय का फैसला। इनमें से कोई भी फैसला अपेक्षित असर नहीं दिखा पाया। नतीजतन पिछले एक दशक से यह कंपनी लाभ अर्जित करने में नाकाम रही है। साथ ही उसके बहीखातों में 52,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम कर्ज भी दर्ज है। वैसे भी सरकार के लिए यह उचित नहीं मान जाता कि वह उसी क्षेत्र में संचालन भी करे, जिसके लिए नीति-निर्माण और नियमन का जिम्मा भी उसके पास हो।
बहरहाल, इंडिगो और टाटा समूह ने एयर इंडिया को खरीदने में दिलचस्पी दिखायी है। इससे से साबित होता है कि कंपनी की हालत बुरी जरूर है, लेकिन उसके हालात सुधार कर उसमें नया दम-खम भरा जा सकता है। एयर इंडिया के पास मूल्यवान भूसंपत्तियाँ (रियल एस्टेट) हैं। विमानन बाजार में इसकी 17% हिस्सेदारी है। इसके पास 118 विमानों का दमदार बेड़ा है, जिसके बारे में सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कंपनी ने बेड़े के विमानों का उचित रूप से इस्तेमाल नहीं किया।
आया मॉनसून, मौसम विभाग ने दोहराया अनुमान
इस साल जून के अंत मॉनसून लगभग सारे देश में सक्रिय हो गया है। साथ ही, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने अपने पिछले आकलन को फिर से दोहराया है कि इस साल मॉनसून के दौरान लंबी अवधि के औसत की तुलना में 98% बारिश होगी। दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी जून के अंत या जुलाई के पहले हफ्ते तक मॉनसून के प्रवेश कर जाने की खबरें हैं। मौसम विभाग के अनुसार देश के अधिकांश भागों में अच्छी वर्षा दर्ज की गयी है।
जून 2017 के अंतिम सप्ताह तक देश के 79% भाग से अधिक क्षेत्र में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गयी। मौसम विभाग के अनुसार जुलाई में मध्य भारत और आस-पास के इलाकों में औसतन 96% वर्षा होने का अनुमान है। दूसरी ओर हिमालय के आस-पास के क्षेत्र, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और अरुणाचल प्रदेश आदि में अब तक अनुमान के मुकाबले वर्षा की मामूली कमी दर्ज की गयी है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)