आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल टॉप 100 फंड पिछले एक साल में दिग्गज शेयरों वाले या लार्जकैप फंड की श्रेणी के अंदर तेजी से ऊपरी पायदानों की ओर चढ़ा है।
इस फंड की रणनीति और निवेश के फलसफे को समझने के लिए निवेश मंथन ने बातचीत की आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के ईडी और सीआईओ एस. नरेन से।
इस फंड की निवेश रणनीति क्या है? किस तरह के निवेशक को इसमें पैसा लगाना चाहिए?
इसमें किसी चक्र के विपरीत जा कर निवेश करने की रणनीति रखी जाती है। ऐसे क्षेत्रों और शेयरों को चुना जाता है, जिन्होंने कामकाज के स्तर पर और शेयर भावों में भी हाल के समय में कमजोर प्रदर्शन किया हो। जैसे अभी हम टेलीकॉम, दवा (फार्मा) क्षेत्र में ओवरवेट हैं। कुछ साल पहले हमने धातु (मेटल) क्षेत्र को निवेश के लिए चुना था। इसके पीछे सोच यह है कि उस क्षेत्र में एक गिरावट आयी हो,
इसे आप कॉन्ट्रा फंड कहेंगे या वैल्यू इन्वेस्टिंग फंड की श्रेणी में रखेंगे?
कॉन्ट्रा यानी धारा के विपरीत निवेश करना भी वैल्यू इन्वेस्टिंग यानी सस्ते मूल्यांकन को देख कर निवेश करने की रणनीति का एक भाग है। हमारे इस फंड में मुख्य रूप से कॉन्ट्रा निवेश किया जाता है।
अभी अपने टॉप 100 फंड के प्रदर्शन को आप मानदंड सूचकांक या समकक्ष फंडों की तुलना में किस तरह से देखते हैं?
पिछले एक साल में इस फंड ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसने 7% अल्फा दिया है, जिससे हम संतुष्ट हैं। हम इसमें 5% से 7% अल्फा हासिल करने की रणनीति के साथ चल रहे हैं।
पाँच साल और तीन साल के प्रदर्शन में यह फंड शीर्ष चतुर्थक (क्वार्टाइल) में नहीं है, लेकिन एक साल के प्रदर्शन में यह पहले चतुर्थक में आ गया है। ऐसा निवेश रणनीति में बदलाव से हुआ है, या पहले जिस चक्रीय उतार-चढ़ाव पर आपने दाँव लगाया था, उनके नतीजे अब दिख रहे हैं?
जिन चक्रों पर हमने दाँव लगाया था, उनके नतीजे अब आ रहे हैं। जैसे, हमने 2013 और 2014 में यूटिलिटी क्षेत्र पर बड़ा दाँव लगाया था। इस क्षेत्र ने इस साल बाजार से बेहतर प्रदर्शन किया है। मोटे तौर पर, हमने पहले जो निवेश किये थे उनका प्रतिफल (रिटर्न) अब मिल रहा है।
आपके पोर्टफोलिओ में सबसे ऊपर एक प्राइवेट बैंक है। इसके साथ आपके पोर्टफोलिओ में एक दिग्गज टेलीकॉम कंपनी की बड़ी हिस्सेदारी है। साथ ही, इस्पात (स्टील) की एक बड़ी कंपनी है। ये सब ऐसे नाम हैं, जिनमें हाल में दबाव रहा है।
आज हम बड़ा दाँव लगा रहे हैं टेलीकॉम क्षेत्र और ऐसे बैंकों पर, जिन्होंने कॉर्पोरेट क्षेत्र को काफी ऋण दे रखे हैं। धातु (मेटल) में पहले हमारे पास एक जिंक कंपनी थी, जिसे बदल कर हमने इस्पात और एल्युमीनियम शेयर खरीदे। टेलीकॉम क्षेत्र आपूर्ति के लिहाज से ठोस होने (कंसोलिडेशन) के एक बड़े दौर से गुजर रहा है, खास कर अक्टूबर में रिलायंस जियो की सेवाएँ शुरू होने के बाद से। वहीं इसमें माँग तो मजबूत बनी हुई ही है। डेटा का उपयोग बढऩे वाला ही है। जो भी उद्योग ठोस होने की प्रक्रिया से गुजरता है, उसमें 12 से 18 महीनों के अंदर फिर से मूल्य-निर्धारण की क्षमता (प्राइसिंग पावर) आ जाती है। जिस कंपनी में हमारा निवेश है, वह इस बाजार की अग्रणी कंपनी है, जिसे मूल्य क्षमता वापस लौटने का फायदा मिलेगा।
हमारी रणनीति चक्र के विपरीत जा कर निवेश करने की है। बैंकिंग में काफी बैंकों के मूल्यांकन सहज नहीं हैं। वे 2.5 से ले कर 4 तक के प्राइस बुक वैल्यू अनुपात के मूल्यांकन पर हैं। हम इस मूल्यांकन को सहज नहीं ले पा रहे हैं। अभी खुदरा ग्राहकों को ऋण देने वाले बैंकों की ओर रुझान है, लेकिन आगे जा कर इन ऋणों पर दबाव आ सकता है। दूसरी ओर कॉर्पोरेट ऋणों पर ज्यादा जोर रखने वाले बैंक अपने चक्र के निचले छोर पर हैं। कॉर्पोरेट ऋणों की वृद्धि दर केवल 3-4% रह गयी है। इससे बुरी स्थिति नहीं आ सकती। संपत्ति गुणवत्ता के मोर्चे पर बैंकों ने एनपीए की पहचान कर ली है। छह महीने में इनके प्रावधान करने का काम भी हो जायेगा।
इस्पात क्षेत्र को लें तो उसमें दो-तीन कंपनियाँ ही कुछ ठीक स्थिति में हैं, वरना पूरा क्षेत्र बहुत खराब हालत में है। सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि यह क्षेत्र बचा रहे। सरकार ने न्यूनतम आयात मूल्य 485 डॉलर कर दिया है। इससे आयातित इस्पात की डंपिंग नहीं होगी। इस फैसले से कंपनियों को एक सुरक्षा मिली है।
आगे आपकी निवेश रणनीति कैसी रहेगी?
अभी हमारा जो क्षेत्रवार आवंटन है, मोटे तौर पर उसको बनाये रखेंगे। पर साथ में निकट भविष्य में दवा क्षेत्र और तेल-गैस क्षेत्र भी चक्र के विपरीत निवेश की रणनीति में सटीक बैठ रहे हैं। शेयर भाव कैसे रहते हैं, इसके आधार पर हम इनमें निवेश बढ़ाने के बारे में सोचेंगे। दवा क्षेत्र पिछले दो सालों से ठंडा है और इस क्षेत्र के लिए जो भी बुरा हो सकता है, वह हो चुका है। जैसे कि रुपये में मजबूती आ चुकी है, एफडीए के मुद्दे आ चुके हैं, घरेलू बिक्री में जीएसटी के चलते स्टॉक घटाने का रुझान पूरा हो गया है, और साथ ही मूल्यांकन भी नीचे आ चुके हैं। अच्छे आरओई वाली कंपनियों के शेयर 16-17 पीई मूल्यांकन पर मिल रहे हैं। चक्रीय लिहाज से यह क्षेत्र काफी दिलचस्प हो गया है।
तेल-गैस क्षेत्र में हम खनन (अपस्ट्रीम) कंपनियों पर खास ध्यान देंगे और साथ ही मिडस्ट्रीम पर भी, जैसे कि पाइपलाइन कंपनी, या टर्मिनल का स्वामित्व रखने वाली कंपनी।
एसडब्लूपी : नियमित आय के साथ कम टैक्स
सबसे पहले आप यह बात फिर से समझ लें कि जिस तरह सुनियोजित निवेश योजना या सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) अपने-आप में कोई म्यूचुअल फंड योजना नहीं है, बल्कि योजना में निवेश करने का एक अनुशासित तरीका है, उसी तरह सुनियोजित निकासी योजना या सिस्टेमैटिक विदड्रॉअल प्लान (एसडब्लूपी) भी किसी म्यूचुअल फंड योजना से नियमित और अनुशासित रूप से अपने निवेश को वापस निकालने का तरीका ही है। इसलिए कर संबंधी प्रावधान इस बात पर ज्यादा निर्भर करते हैं कि मूलत: निवेश किस तरह के फंड में किया गया है। अगर एसडब्लूपी के लिए आपने निवेश किसी डेब्ट फंड में किया है, तो डेब्ट फंडों वाले कर प्रावधान ही आपके एसडब्लूपी के तहत निकाली गयी रकम पर भी लागू होंगे। वहीं अगर आपका निवेश मूलत: इक्विटी फंडों में है, तो अल्पावधि पूँजीगत लाभ (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स) या दीर्घावधि पूँजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स) का निर्णय भी इक्विटी फंडों से संबंधित नियमों के अनुसार ही होंगे।
कर बचत की दृष्टि से यदि सबसे प्रभावी एसडब्लूपी तैयार करना हो तो बेहतर यह है कि आप इसके लिए एकमुश्त राशि का निवेश इक्विटी फंडों में करें और निवेश की तिथि से एक साल बाद एसडब्लूपी के तहत निकासी शुरू करें। ऐसा करने से इस निकासी पर लगने वाले पूँजीगत लाभ कर (कैपिटल गेन्स टैक्स) की दर शून्य हो जायेगी। हालाँकि अगर आप इक्विटी फंडों में निवेश करने के तुरंत बाद ही एसडब्लूपी के तहत निकासी शुरू कर भी देते हैं, तो शुरुआती महीनों में आप लाभ नहीं बल्कि अधिकांशत: अपनी मूल पूँजी को ही वापस निकाल रहे होंगे, लिहाजा उस पर कर देनदारी नहीं होगी या बहुत सीमित होगी। हालाँकि वैसी स्थिति में आपको पेशेवर विशेषज्ञ की सलाह से कर देनदारी की गणना करा लेनी चाहिए। जो संतुलित फंड इक्विटी और डेब्ट में कम-से-कम 65:35 का अनुपात लगातार बनाये रखते हैं, उनमें किये गये निवेश पर भी आपको शुद्ध इक्विटी फंड की तरह से कर छूट के लाभ मिलेंगे।
जो लोग सेवानिवृत्त हो चुके हैं या इक्विटी निवेश में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचना चाहते हैं, वे डेब्ट फंड में निवेश करके एसडब्लूपी का फायदा उठा सकते हैं। हालाँकि ध्यान रखें कि तीन साल से कम समय तक के निवेश में से की गयी निकासी पर आपकी आय कर श्रेणी के आधार पर तय दर से अल्पावधि पूँजीगत लाभ कर (एसटीसीजी) चुकाना होगा। तीन साल के बाद इस पर दीर्घावधि पूँजीगत लाभ कर (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स) लागू होगा, जो 20% की दर से होगा, मगर उसमें इंडेक्सेशन का लाभ मिलेगा यानी उस अवधि में आपके प्रतिफल की दर में से महँगाई दर को घटाने के बाद जितना प्रतिफल बचेगा, उसी पर कर चुकाना होगा। यानी अगर तीन वर्षों के दौरान आपको डेब्ट फंड से मिला प्रतिफल 9% की दर से हो और इस दौरान महँगाई दर 5% हो तो आपको केवल 4% के अतिरिक्त प्रतिफल पर ही कर चुकाना होगा।
उदाहरण के लिए, अगर आप एक बैंक एफडी में 30 लाख रुपये जमा कर दें और इस पर आपको 8% ब्याज मिल रहा हो तो आपको इससे मासिक 20,000 रुपये का ब्याज मिलेगा। लेकिन 30% आय कर श्रेणी में होने पर इस ब्याज में से 6,000 रुपये तो आय कर के ही कट जायेंगे, यानी आपके पास बचे केवल 14,000 रुपये। लेकिन अगर आप इतनी ही राशि डेब्ट म्यूचुअल फंडों में लगायें और उससे नियमित निकासी के लिए एसडब्लूपी करा लें तो आपकी कर देनदारी बहुत कम होगी, यानी कर चुकाने के बाद आपके हाथ में बची रकम ज्यादा होगी।
अगर कैपिटल एप्रिसिएशन यानी पूँजी अभिवृद्धि की निकासी का विकल्प चुना जाये तो हर महीने या तीन महीने पर आप एसडब्लूपी के तहत उतनी राशि निकाल सकते हैं, जितनी आपकी पूँजी में अभिवृद्धि हुई है। इस तरह की निकासी से कर गणना भी बहुत आसान हो जाती है। हालाँकि इसमें आमदनी कुछ अनियमित हो जा सकती है, इसलिए जो लोग अपने नियमित मासिक खर्चों के लिए एसडब्लूपी कराना चाहते हैं, उनके लिए यह असुविधाजनक हो सकता है।
अपनी जोखिम क्षमता के अनुसार आप चाहे इक्विटी फंड में एसडब्लूपी करायें या डेब्ट फंडों में, अगर पहले से योजना बना कर चलें आपका एसडब्लूपी कर बचत के लिहाज से ज्यादा प्रभावी हो सकता है। मान लें कि आप 60 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उसी समय से एसडब्लूपी के माध्यम से एक नियमित आय चाहते हैं, तो इक्विटी फंड के एसडब्लूपी के लिए आप 59वें वर्ष में ही एकमुश्त राशि का निवेश कर दें। एक साल तक उससे कोई निकासी नहीं करें, और एसडब्लूपी की निकासी 60वें वर्ष से शुरू करें।
वहीं अगर डेब्ट फंड में निवेश के जरिये एसडब्लूपी कराना हो, तो 57वे वर्ष में ही एकमुश्त निवेश कर दें। तीन साल तक उससे निकासी नहीं करें और 60 वर्ष के होने पर एसडब्लूपी से निकासी शुरू करें, ताकि उस पर आपको कम कर चुकाना पड़े।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)