अगर 1964 में बने यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) को अलग रख दें, तो देश के सबसे पुराने म्यूचुअल फंड, एसबीआई म्यूचुअल फंड ने 29 जून 2017 को अपने 30 साल पूरे कर लिये हैं।
इसका गठन जून 1987 में हुआ था। यूटीआई का फरवरी 2003 में विभाजन हो गया था। इस लिहाज से कह सकते हैं कि वर्तमान म्यूचुअल फंडों में एसबीआई म्यूचुअल फंड ही सबसे पुराना है।
एसबीआई म्यूचुअल फंड के ये 30 साल एक तरह से भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग के विकास के तीन दशक हैं, जिसमें खास कर पिछला एक दशक काफी तेज वृद्धि का रहा है। भारतीय म्यूचुअल फंड उद्योग की कुल प्रबंधन अधीन संपदा (एयूएम) 31 मार्च 2007 को 3,260 अरब रुपये की थी, जो 31 मार्च 2017 को बढ़ कर 19,040 अरब रुपये पर पहुँच गयी। यानी इन 10 वर्षों में इसमें लगभग छह गुणा की वृद्धि हुई। इस उद्योग में एसबीआई एमएफ अभी 9.14% बाजार हिस्सेदारी के साथ पाँचवें स्थान पर है। एसबीआई एमएफ का औसत एयूएम 31 मार्च 2017 को 1,57,860 करोड़ रुपये का था। एसबीआई म्यूचुअल फंड को संचालित करने वाली कंपनी एसबीआई फंड्स मैनेजमेंट में देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और विश्व की एक प्रमुख फंड मैनेजमेंट कंपनी अमुंडी (फ्रांस) की साझेदारी है।
एसबीआई एमएफ की एमडी एवं सीईओ अनुराधा राव कहती हैं कि इन वर्षों में कंपनी ने खुदरा निवेशकों की बड़ी संख्या को निवेश के समाधान उपलब्ध कराये हैं और 30,000 से अधिक स्वतंत्र वित्तीय सलाहकारों (आईएफए) का भरोसा जीता है। इसके ईडी और सीआईओ नवनीत मुनोट कहते हैं, %भारतीय अर्थव्यवस्था, पूँजी बाजार और म्यूचुअल फंड पिछले तीन दशकों में काफी विकसित हुए हैं और एसबीआई एमएफ ने इस दौरान खुदरा निवेशकों की बचत को वित्तीय संपदाओं की ओर आकर्षित करने में अग्रणी भूमिका निभायी है।Ó वे कहते हैं कि तेज वृद्धि के बीज डाले जा चुके हैं और अगले तीन दशक कहीं ज्यादा उत्साहजनक होने की आशा है।
एसबीआई एमएफ के ईडी और सीएमओ डी. पी. सिंह इन 30 वर्षों में हासिल वृद्धि का श्रेय कंपनी के वितरण नेटवर्क और साझेदारों से मजबूत संबंधों को देते हैं। वे कहते हैं कि इन वर्षों के दौरान एसबीआई एमएफ ने तकनीक का इस्तेमाल करके अपनी सेवाओं का कायापलट कर दिया है ताकि निवेशक और साझेदार एक बेहतर अनुभव पा सकें।
अगर एयूएम के लिहाज से एसबीआई एमएफ की बड़ी योजनाओं को देखें, तो एसबीआई ईटीएफ निफ्टी 50 हाल में 20,000 करोड़ के एयूएम को पार करके देश में सबसे बड़ा इक्विटी फंड बन गया। एसबीआई ब्लूचिप फंड और एसबीआई मैग्नम बैलेंस्ड फंड दोनों का एयूएम 10,000 करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है।
अभी एसबीआई एमएफ के पास इन पूरे 30 वर्षों से चला आ रहा कोई फंड तो नहीं है, मगर इसके एसबीआई मैग्नम इक्विटी फंड ने 26 साल जरूर पूरे कर लिये हैं। इसकी शुरुआत 1 जनवरी 1991 को हुई थी और इसका पुराना नाम मैग्नम मल्टीप्लायर प्लस Ó90 था। इसे जनवरी 1998 में खुली अवधि वाला (ओपेन एंडेड) फंड बनाया गया। एसबीआई मैग्नम टैक्सगेन का आरंभ 31 मार्च 1993 को हुआ था, जिसने 10 लाख निवेशकों की संख्या पार कर ली है। एसबीआई मैग्नम बैलेंस्ड भी 21 साल से अधिक का हो चुका है। इसका आरंभ 31 दिसंबर 1995 को हुआ था।
अगर आपने अब से 20 साल पहले एसबीआई मैग्नम इक्विटी फंड (ग्रोथ) में एक लाख रुपये लगाये होते, तो इस समय उसका मूल्य लगभग 20 लाख रुपये होता। इसी तरह अगर आपने 20 साल पहले एसबीआई मैग्नम टैक्स गेन में एक लाख रुपये लगाये होते, तो अभी उसकी कीमत 43 लाख रुपये से अधिक हो चुकी होती। एसबीआई मैग्नम बैलेंस्ड फंड ने भी बीते दो दशकों में इसी तरह का प्रदर्शन किया है। इसकी तुलना में अगर इन 20 वर्षों में सेंसेक्स की वृद्धि देखें, तो यह लगभग 7.3 गुणा हुआ है। यानी अगर इक्विटी लंबी अवधि में संपदा निर्माण का अच्छा जरिया बना है तो इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने इक्विटी के मानक सूचकांकों से भी तेज संपदा निर्माण का इतिहास दिखाया है।
पिछले 15 वर्षों में इन तीन फंडों का प्रदर्शन देखें, तो एसबीआई मैग्नम इक्विटी ने 20%, एसबीआई मैग्नम टैक्सगेन ने 24.7% और एसबीआई मैग्नम बैलेंस्ड ने भी 20% औसत वार्षिक चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़त दर्ज की है। इतनी लंबी अवधि में इस तरह का ऊँचा प्रतिफल (रिटर्न) यह दर्शाता है कि इक्विटी निवेश में सही चयन करने और धैर्य बनाये रखने से काफी बेहतर परिणाम पाये जा सकते हैं।
हालाँकि जैसा कि अक्सर वैधानिक अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) में कहा जाता है, पिछला प्रदर्शन भविष्य में जारी रह भी सकता है और नहीं भी। मगर एसबीआई म्यूचुअल फंड के तीन दशकों के बहाने से अगर भारतीय म्यूचुअल फंडों के इतिहास की समीक्षा की जाये, तो प्रदर्शन के मामले में इस क्षेत्र ने निवेशकों को निराश नहीं किया है। हाल के वर्षों में निवेशकों ने सीधे इक्विटी में निवेश करने के बदले म्यूचुअल फंडों के रास्ते से इक्विटी में निवेश करने का चलन अपनाया है, जिसका कारण भी यही है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)