जीएसटी लागू तो हो गया है। लेकिन जिन्हें जीएसटी देना हैं ऐसे बहुत से लोग अभी भी नियम कानून खंगालने में जुटे हैं।
खास तौर पर छोटे कारोबारियों को जीएसटी से अभी भी कई शिकायतें हैं। हालाँकि ज्यादातर बड़ी कंपनियों का दावा है कि वे जीएसटी के लिए तैयार हैं। लेकिन जीएसटी को लेकर ज्यादातर लोगों की परेशानी की वजह जानकारी की कमी है।
नियम को समझे बगैर अमल
दरअसल नियमों के फेर में कंपनियों और लोगों ने खुद को इतना उलझा लिया है कि सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा है। सरकार ने अपनी तरफ से हर माध्यम से पहेली सुलझाने की कोशिश की है। पर खास तौर पर छोटे कारोबारी उम्मीद के बजाय आगे की आशंकाओं से ज्यादा परेशान हैं। इन दोनों मामलों से हालात समझें।
1. जयपुर में छोटे पब्लिशिंग हाउस इन्फोलिमर मीडिया के प्रोपराइटर नलिन कुमार की किताबों की बिक्री 15 दिन से ठप है। नलिन अपनी किताबें फ्लिपकार्ट और अमेजन के जरिये ऑनलाइन बेचते हैं। लेकिन एक दिन अचानक दोनों ई-कॉमर्स कंपनियों ने उनका अकाउंट निलंबित कर दिया और जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर मांग लिया। नलिन ने उन्हें बताया कि उनका सालाना कारोबार मुश्किल से 10 लाख रुपये है, और जीएसटी के लिए सीमा 20 लाख रुपये है, फिर भी उनसे जीएसटीएन नंबर मांगा जा रहा है।
2. दिल्ली के झंडेवालान मार्केट में छोटी इंडस्ट्री और होलसेलर एक जगह बैठ कर इसी बात पर घंटों माथापच्ची करते रहे कि उधार में दिये गये माल पर भी उन्हें इनवॉयस की एंट्री करते ही टैक्स भरना होगा। एक कारोबारी के मुताबिक उनका पेमेंट आने में छह महीने तक लग जाते हैं, पर जीएसटी में तो इनवॉयस की एंट्री करने के महीने भर में टैक्स देना होगा। ऐसे में उन्हें वर्किंग कैपिटल से टैक्स भरना होगा।
3. कई इसी बात से चिंतित हैं कि टैक्स भरने के लिए कहीं लोन लेने की नौबत ना आ जाये।
सवाल सबके पास हैं
छोटे कारोबारियों और छोटी इंडस्ट्री के लोगों की फिक्र जायज है। इनका इन्फ्रास्ट्रक्चर बड़े कॉरपोरेट घरानों जैसा मजबूत नहीं है। सरकार की तरफ से समझाये जाने के बावजूद बहुत-से छोटे कारोबारियों के पास सवालों का अंबार है, जैसे
1. दिल्ली का ड्रिस्ट्रीब्यूटर अगर महाराष्ट्र में बना उत्पाद आंध्र प्रदेश में बेचता है, और अगर 28% जीएसटी है, तो इन्पुट टैक्स क्रेडिट कैसे मिलेगा?
2. कंसल्टेंट, जो अभी 15% सर्विस टैक्स देता है, वो जानना चाहता है कि जीएसटी लागू होने के बाद उसे कितना टैक्स देना होगा?
3. उपभोक्ता जानना चाहता है कि कौन-से मोबाइल फोन और टीवी सस्ते होंगे?
4. सब्जियों का होलसेल डीलर, जिसका कारोबार एक करोड़ रुपये का है, वह जानना चाहता है कि क्या उसे भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा, क्योंकि सब्जियाँ तो जीएसटी के दायरे से बाहर हैं?
इनमें ज्यादातर सवालों के जवाब बहुत आसान और सीधे हैं, लेकिन जीएसटी को समंदर समझ कर लोग डुबकी लगाने से ही डर रहे हैं।
जीएसटी के अमल में चुनौतियाँ रहेंगी
एशियन डेवलपमेंट बैंक के प्रेसिडेंट ताकेहीको नकाओ का कहना है जीएसटी के अमल में शुरुआती स्तर पर कुछ चुनौतियाँ जरूर रहेंगी।
उनके मुताबिक सरकार को अमल के दौरान होने वाली दिक्कतों को दूर करने में फुर्ती दिखानी होगी। तमाम विदेशी और भारतीय अर्थशास्त्री मानते हैं कि छह तरह की टैक्स दरों ने यहाँ जीएसटी को कुछ जटिल बना दिया है, इसलिए जीएसटी के फायदे दिखने में वक्त लगेगा। लेकिन उनका आकलन है कि लंबी अवधि में इससे बड़ा फायदा होगा।
सही दाम रखना उद्योगों के लिए चुनौती
1. ज्यादा मुनाफे का लालच छोडऩा पड़ेगा
जीएसटी के बाद कई उत्पादों पर टैक्स बढ़ेगा, लेकिन एडीबी के प्रेसिडेंट के मुताबिक अगर कंपनियों ने अपने उत्पादों के सही दाम नहीं रखे तो उनको तगड़ा झटका भी लग सकता है। उनके मुताबिक पूरा देश एक ही बाजार बन जाने से अब प्रतिस्पर्धा तगड़ी होगा और सबको इस प्रतिस्पर्धा में बराबरी का अवसर मिलेगा। ऐसे में जो कंपनियाँ ज्यादा मुनाफे का लालच छोड़ेंगी, वही अस्तित्व बचा पायेंगी।
2. सारा बोझ कंज्यूमर पर थोपेंगे तो फंसेंगे
जानकारों का मानना है कि कई उत्पादों में टैक्स कम होने से दाम कम होंगे। लेकिन कई उत्पादों के दाम टैक्स बढऩे से बढ़ भी जाएंगे। जो कंपनियाँ टैक्स का पूरा बोझ उपभोक्ता पर डालेंगी, उन्हें परेशानी भी हो सकती है।
अधिकारियों और उद्योग के लिए दूसरी बड़ी दिक्कत होगी छह तरह की टैक्स दर। इन्पुट क्रेडिट के लिए कैसे हिसाब-किताब होगा, यह दोनों के सामने बड़ी चुनौती होगी। टैक्स वसूली का दोहरा ढाँचा भी जटिलता पैदा करेगा, क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों के पास जीएसटी वसूली के अधिकार हैं।
जीडीपी बढऩे की ज्यादा उम्मीदें न पालें
पहले अनुमान लगाया गया था कि जीएसटी लागू होने से देश की विकास दर 2% तक बढ़ सकती है। लेकिन अब क्रिसिल, इक्रा और नोमूरा जैसी तमाम रिसर्च एजेंसियाँ विकास दर में वृद्धि को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि ज्यादा टैक्स वसूली से जुड़े बहुत से उत्पाद जीएसटी के दायरे से बाहर हैं।
भारी खपत, लेकिन जीएसटी से बाहर
1. पेट्रोलियम उत्पाद
2. प्राकृतिक गैस
3. एल्कोहल (शराब)
4. बिजली
5. रियल एस्टेट (कंस्ट्रक्शन)
पेट्रोलियम उत्पादों को पाँच साल बाद जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है। रेजिडेंशियल अपार्टमेंट जीएसटी में शामिल हैं, लेकिन ज्यादा टैक्स देने वाले व्यावसायिक निर्माण और फैक्ट्रियाँ इसमें शामिल नहीं हैं।
टैक्स वसूली कम होने का खतरा
इसके साथ ही बहुत-सी कमोडिटी भी इसके दायरे से बाहर हैं, इसलिए टैक्स वसूली में कमी होने का खतरा भी है। जानकार इस बात से चिंतित हैं कि अगर टैक्स वसूली अनुमान से कम हुई तो सारे नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार को करनी होगी। इसकी दो वजहें हैं :
1. एक तो केंद्र का टैक्स वसूली का हिस्सा कम होगा, दूसरे अगर राज्यों की कमाई में सालाना 14% से कम बढ़ोतरी होती है तो उनके नुकसान की भरपाई भी केंद्र को ही करनी होगी। अर्थशाियों के मुताबिक ऐसा होने पर केंद्र का राजकोषीय (फिस्कल) घाटा काफी बढ़ सकता है।
खामियों के बावजूद जीएसटी फायदेमंद
तमाम आशंकाओं के बावजूद अर्थशास्त्री जीएसटी को कई मामलों में देश के लिए फायदेमंद मानते हैं।
1. हर कमोडिटी और सेवा के लिए पूरे देश में एक समान टैक्स होने से कीमतों की असमानता खत्म हो जायेगी।
2. बराबरी का अवसर मिलेगा और घरेलू इंडस्ट्री को फायदा होगा, क्योंकि अब आयातित सामानों के दाम स्थानीय उत्पादों से कम नहीं होंगे।
3. राज्यों की सीमाओं पर लगने वाला वक्त खत्म हो जायेगा, क्योंकि अब पूरा देश एक ही बाजार हो जाएगा।
इंस्पेक्टर राज का खतरा
कारोबारियों और ट्रांसपोर्टरों को सबसे ज्यादा डर इस बात का लग रहा है कि चेकिंग के नाम पर ट्रकों और कारोबारियों को अधिकारी प्रताडि़त कर सकते हैं और भ्रष्टाचार बढ़ सकता है।
जीएसटी कानून के मुताबिक ट्रकों को ई-वे बिल साथ रखना होगा, जिसमें भेजे जा रहे सामान और दिये गये टैक्स का ब्योरा होगा। टैक्स अथॉरिटी के पास कहीं भी ट्रकों की जाँच करने का अधिकार होगा, ऐसे में ट्रांसपोर्टरों को आशंका है कि उन्हें बेवजह परेशान किया जा सकता है।
फुर्ती से कदम उठाना जरूरी
गोदरेज इंडस्ट्री के चेयरमैन अदि गोदरेज के मुताबिक शुरुआत में जीएसटी के अमल में दिक्कतें आयेंगी। लेकिन उनको फटाफट हल करने से ही बात बनेगी। जीएसटी को असली सफलता तभी मिलेगी, जब दिक्कतों से सख्ती के बजाय लचीले रुख के जरिये निपटा जायेगा।
योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी मानते हैं कि कोई भी नयी व्यवस्था निर्दोष नहीं होती, इसलिए अभी जीएसटी परिषद को हर वक्त ऐक्शन मोड में रहना होगा।
जीएसटी को लेकर तमाम आपत्तियाँ और आशंकाएँ कितनी वाजिब हैं, इसका पता जल्दी ही चलने लगेगा। ऐसे में सरकार और जीएसटी काउंसिल को फिलहाल बहुत सावधान रह कर काम करना होगा, तभी इसकी सफलता सुनिश्चित की जा सकती है।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)