अरुण पांडेय :
टैक्स को टैक्स या कर को भी एक राष्ट्रीय उत्सव बना देने की कला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खूब आती है!
यही वजह है कि जीएसटी के विरोध में देश भर में छोटे कारोबारी हड़ताल कर विरोध जता रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीएसटी पर पूरी बहस ही ईमानदारी और अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरा करने की तरफ मोड़ दी है।
पहले 30 जुलाई की आधी रात को भव्य अंदाज में गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स का आरंभ। फिर अगले दिन चार्टर्ड अकाउंटेंट समुदाय को ईमानदारी की हिदायत। इन बातों से साफ है प्रधानमंत्री ने बेहद चतुर तरीके से चर्चा ईमानदार बनाम बेईमान की तरफ घुमा दी है। कांग्रेस ने इस उम्मीद में जीएसटी आरंभ के समारोह का बहिष्कार किया कि इस तरीके से वह जीएसटी का विरोध करने वाले कारोबारियों और छोटे व्यापारियों को अपनी तरफ खींच पायेगी। लेकिन मोदी ने इस चर्चा को कच्चे और पक्के की बहस में तब्दील कर दिया है।
मोदी और कांग्रेस दोनों ने जोखिम लिया
जीएसटी पर अब तीन मोर्चों पर काम चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ईमानदारी और कर प्रणाली में पारदर्शिता की मुहिम करार दिया है। देश भर में छोटे कारोबारी और व्यापारी इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस ने इनके समर्थन की उम्मीद में संसद में जीएसटी समारोह का बहिष्कार किया। लेकिन विपक्ष की दूसरी पार्टियों ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। जेडीयू, एनसीपी, एसपी, बीएसपी ने इसमें शिरकत करके विपक्षी की एकता का गुब्बारा फूलने ही नहीं दिया। लेकिन ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस, आरजेडी, डीएमके और वामपंथी दलों ने कांग्रेस का साथ दिया।
कारोबारियों के समर्थन की चाह के बावजूद कांग्रेस और दूसरी पार्टियाँ जीएसटी का खुल कर विरोध करने से बच रही हैं। वे अभी हालात पर नजर बनाये हुए हैं। अगर जीएसटी सफल रहा तो वे कह सकती हैं कि जीएसटी लागू कराने में उनका भी योगदान है। अगर जीएसटी के अमल में दिक्कत आती है तो उनका रुख बदल सकता है। लेकिन मोदी के रुख ने विपक्ष को परेशानी में डाल दिया है, क्योंकि अब इसके विरोध का मतलब ईमानदारी और अर्थव्यवस्था को साफ-सुथरा रखने के अभियान का विरोध करना हो जायेगा।
क्या अर्थव्यवस्था मजबूत होगी?
क्या जीएसटी से अर्थव्यवस्था सुधरेगी? क्या इससे काली अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी कम होगी? इसकी सफलता अमल के तरीकों पर निर्भर करती है। दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों में जीएसटी लागू हुए कई साल हो चुके हैं। इनमें ज्यादातर देशों का अनुभव काफी बेहतर रहा है। लेकिन भारत और विकसित देशों के जीएसटी मॉडल में सबसे ज्यादा अंतर है कर की दर का। ज्यादातर देशों में कर की दरें दो या तीन से अधिक नहीं हैं, लेकिन भारत में टैक्स रेट छह हैं। साथ ही सेस भी दस के करीब हैं। ये बातें भारतीय जीएसटी सिस्टम को थोड़ा-सा जटिल बनाती हैं।
उद्योग संगठन जीएसटी के साथ
उद्योग संगठनों ने जीएसटी को सफल बनाने के लिए सरकार को पूरी मदद देने का भरोसा दिलाया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी के मुताबिक भारतीय जीएसटी का मॉडल दुनिया में अनोखा है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए बहुत अहम होगा। सीआईआई का मानना है कि जीएसटी से महँगाई कम होगी, क्योंकि ढेरों टैक्स को हटा कर सिर्फ एक टैक्स रह जायेगा। इससे सरकार की कमाई में काफी बढ़ोतरी होगी और सरकारी घाटा (फिस्कल डेफिसिट) काफी हद तक नियंत्रण में रहेगा।
दूसरे प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की ने भी वादा किया है कि जीएसटी को सफल बनाने के लिए वह सरकार के साथ मिल कर काम करेगा। छोटे कारोबारी और व्यापारी जीएसटी नेटवर्क में फाइलिंग की प्रणाली जटिल होने का आरोप लगा रहे हैं। लेकिन फिक्की का कहना है कि जीएसटी नेटवर्क में पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन), वापसी (रिफंड) और कर भुगतान बहुत आसान हैं। इससे कर प्रणाली में मानवीय दखल बहुत कम हो जायेगा। फिक्की ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि जीएसटी से काले धन और समानांतर अर्थव्यवस्था की समस्या खत्म करने में बहुत मदद मिलेगी।
रिटर्न से घबरायें नहीं रिटेलर : अधिया
अधिकतर खुदरा व्यापारी (रिटेलर) इस बात से चिंतित हैं कि उन्हें अब हर महीने रिटर्न दाखिल करना होगा। मगर सरकार कहना है कि खुदरा व्यापारी बेकार में रिटर्न को जंजाल समझ बैठे हैं। राजस्व सचिव हसमुख अधिया के मुताबिक हर महीने सिर्फ एक ही रिटर्न भरना होगा। उनके मुताबिक 80% से ज्यादा कारोबारी इसी दायरे में आयेंगे। अधिया का कहना है कि कारोबारी जीएसटी को पूरी तरह समझे बिना बेकार में घबरा रहे हैं, क्योंकि जीएसटी में रिटर्न दाखिल करना बहुत आसान है और पूरा काम सॉफ्टवेयर करेगा। अधिया ने कारोबारियों को भरोसा दिलाया है कि खुदरा व्यापारियों और डीलरों को हर महीने तीन रिटर्न नहीं भरने होंगे।
ट्रेडर्स के राष्ट्रीय एसोसिएशन सीएआईटी ने भी माना है कि देश के ज्यादातर व्यापारी दरअसल जीएसटी के मुख्य नियमों से अनजान हैं और इसीलिए वे इससे घबरा रहे हैं। जीएसटी श्वेत पत्र में सीएआईटी के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने बताया कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से जीएसटी पर अमल मुश्किल नहीं है, लेकिन बहुत-से व्यापारियों की घबराहट की वजह भी तकनीक और कंप्यूटर ही है। एसोसिएशन के मुताबिक जीएसटी नकदी-रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में बहुत कारगर साबित होगी।
तमाम उद्योग संगठनों के मुताबिक एक बार जीएसटी सही तरह से लागू हो जाने पर जीएसटी में लेन-देन की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी।
जीएसटी में हर महीने 320 करोड़ लेन-देन
अनुमान है कि करीब 80 लाख व्यवसाय जीएसटी नेटवर्क में लेन-देन के विवरण अपलोड करेंगे। जीएसटी नेटवर्क का दावा है कि इसमें हर महीने 320 करोड़ लेन-देन करने की क्षमता है। इस नेटवर्क में सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियों की हिस्सेदारी है। जीएसटीएन कंपनी में एचडीएफसी बैंक, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक, एनएसई स्ट्रैटेजिक इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन की 10-10% और एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी की 11% हिस्सेदारी है। इसके अलावा केंद्र की 24.5% और राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों की मिलाकर 24.5% हिस्सेदारी है।
जीएसटी नेटवर्क में हर सेकेंड 1.2 लाख लेन-देन
जीएसटी नेटवर्क में इनवॉयस अपलोड करने की सुविधा 16 जुलाई से शुरू हो जायेगी। इसके लिए एक्सेल फॉर्म होगा, जिसे डाउनलोड किया जा सकता है। 5 अगस्त को जीएसटी परिषद जीएसटी लागू होने के 1 महीने के अनुभव और नेटवर्क के कामकाज की समीक्षा करेगी। लेकिन नेटवर्क का असली इम्तिहान सितंबर से शुरू होगा जब जीएसटी में अमल पूरी तरह शुरू हो जाएगा और रोजाना लाखों ट्रांजैक्शन अपलोड होने लगेंगे।
(निवेश मंथन, जुलाई 2017)