प्रणव :
वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी कानून के पारित होने की जितनी उत्सुकता थी,
उससे कहीं ज्यादा इस बात की थी कि जीएसटी दरें क्या होंगी। यह स्वाभाविक भी था। अब जीएसटी दरें मोटे तौर पर घोषित कर दी गयी हैं और काफी हद तक तस्वीर साफ हो गयी है कि जीएसटी का आम आदमी से लेकर सरकार और समूची अर्थव्यवस्था पर किस तरह से प्रभाव होगा। जीएसटी के फायदों को लेकर पहले ही काफी चर्चा हो चुकी है। ऐसे में अब यही देखना होगा कि जीएसटी में वस्तुओं और सेवाओं के लिए घोषित की गयी दरें उपभोक्ताओं की जेब से लेकर कंपनियों के बही-खातों और सरकारी खजाने को किस तरह प्रभावित करेंगी।
इसमें भी जहाँ तक सरकार का सवाल है तो कर दायरे के विस्तार और कर अनुपालन की प्रक्रिया आसान होने से उसके राजस्व में बढ़ोतरी होने में ज्यादा संदेह नहीं है। इसी तरह, समूचे देश में कर व्यवस्था एक समान होने से सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में भी उछाल आने से होने वाला लाभ भी स्वाभाविक रूप से सरकारी खजाने को मिलेगा। इस तरह देखा जाये तो जीएसटी के बाद सरकार की पाँचों अंगुलियाँ घी में हैं। अब बड़ा सवाल यही बचता है कि उपभोक्ताओं और कंपनियों पर इसका कैसा और कितना असर पड़ेगा।
महँगाई पर असर
इस नयी कर व्यवस्था के आने से सबसे ज्यादा नजरें इसी बात पर लगी हैं कि क्या जीएसटी महँगाई को बढ़ाने वाला साबित होगा। मलेशिया, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई देशों में जीएसटी लागू होने के बाद वहाँ महँगाई ने अपना असर दिखाया। यह भी महज एक संयोग ही है कि जिन अधिकांश देशों में सरकारों ने जीएसटी को लागू किया, वे सत्ता में अपनी वापसी नहीं कर सकीं। जानकार इन दोनों पहलुओं को जोड़ कर देखते हैं कि जीएसटी से महँगाई बढऩे के कारण वे सरकारें अपने देशों में अलोकप्रिय हो गयीं। ऐसे में जीएसटी दरें तय करने के दौरान मोदी सरकार का सतर्क रहना लाजिमी ही था। शायद इसी कारण राजस्व सचिव हसमुख अढिय़ा दावा कर रहे हैं कि जुलाई में जीएसटी लागू होने के बाद साल के अंत तक महँगाई दर में 2% की कमी आ जायेगी। इस दावे की पड़ताल करना जरूरी लगता है कि आखिर सरकार जीएसटी से महँगाई में इतनी कमी आने को लेकर कैसे इतनी आश्वस्त है।
इस सवाल का जवाब भी जीएसटी की दरों में ही छिपा है। असल में जीएसटी में आम जरूरत की चीजों को या तो कर-मुक्त रखा गया है या उन पर कर की दर न्यूनतम तय की गयी है। महँगाई का थर्मामीटर माने जाने वाले उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) से ही इसका आकलन करें तो उसमें 46% भारांश खाद्य उत्पादों का है। इनमें से भी अनाज, फल-सब्जियों और दूध जैसे उत्पादों की ही तकरीबन 25% हिस्सेदारी है। इन्हें जीएसटी में भी कर-मुक्त रखा गया है। साथ ही इस साल बेहतर मॉनसून के चलते इन उत्पादों की आपूर्ति भी बेहतर रहने के ही आसार हैं। लिहाजा महँगाई के इतने बड़े मोर्चे पर कुछ राहत की उम्मीद की जा सकती है। जहाँ तक सेवाओं की बात है तो सीपीआई में लगभग 11% का भारांश रखने वाली स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को भी पूर तरह कर से छूट दी गयी है। यानी इनसे भी किसी तरह को बोझ नहीं पडऩे वाला। सेवाओं में ही 1,000 रुपये के कम किराये वाले होटलों को कर-मुक्त रख कर मध्यम वर्ग और छोटे कारोबारियों को बड़ी राहत दी गयी है।
दरों का दायरा
जीएसटी दरों की चार श्रेणियों में पहला स्तर 5% का है। इसमें चाय पत्ती, कॉफी, मसाले, दवाएँ और दूध पाउडर जैसी वस्तुएँ शामिल की गयी हैं। हालाँकि पेट्रोलियम उत्पाद जैसे ईंधन जीएसटी के दायरे से बाहर हैं, लेकिन जीएसटी में शामिल कोयला और केरोसिन जैसे ईंधनों पर 5त्न का ही कर लगाया गया है। इसी तरह रेलवे, हवाई टिकट और छोटे रेस्टोरेंट पर भी 5% जीएसटी लागू होगा।
इसके बाद 12% का प्रावधान है। इसमें फ्रूट जूस, नमकीन, सूखे मेवे, आयुर्वेदिक दवाएँ, अगरबत्ती, सिलाई मशीन और सेलफोन जैसी तमाम वस्तुएँ शामिल हैं। इसमें भी खास बात यही है कि अधिकांश वस्तुएँ रोजमर्रा काम में आने वाली हैं और इनमें से तमाम वस्तुओं पर मौजूदा व्यवस्था में इससे कहीं ज्यादा ही कर लगता है। ऐसे में इन उत्पादों से जुड़ी कंपनियों और उपभोक्ताओं के लिए राहत की ही बात कही जा सकती है। 12% की इस श्रेणी में वातानुकूलित होटल, उर्वरक और बिजनेस क्लास हवाई टिकट को भी शामिल किया गया है। आवास क्षेत्र पर भी जीएसटी की यही दर लागू होगी, जिससे कई लोगों के लिए अपने आशियाने का सपना पूरा करना कुछ आसान होगा, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में बहुस्तरीय कर लागू होने से इस क्षेत्र पर कर की प्रभावी दर कहीं ज्यादा हो जाती है। ऐसे में मुश्किल में फँसे रियल एस्टेट क्षेत्र के दिन बहुरने की आस जगी है।
तीसरी श्रेणी 18% की है। इसमें अधिकांश बेकरी निर्मित वस्तुएँ, आइसक्रीम, मिनरल वॉटर, इस्पात उत्पाद, कैमरा और इंस्टैंट फूड मिक्स सरीखी वस्तुएँ शामिल है। मगर इस श्रेणी में सेवाओं पर सबसे ज्यादा निगाहें लगी हुई हैं, क्योंकि इसमें बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने वाली दूरसंचार और वित्तीय सेवाएँ शामिल हैं। फिलहाल दूरसंचार सेवाओं पर 15% सेवा कर लागू है। ऐसे में नयी व्यवस्था में यह खर्च बढऩा स्वाभाविक है। हालाँकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि दूरसंचार कंपनियाँ इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठा कर उपभोक्ताओं को उसका फायदा हस्तांतिरत कर सकती हैं, जिससे प्रभावी कर की दर कुछ कम हो जायेगी। मदिरा परोसने वाले वातानुकूलित होटल, आईटी सेवाओं और ब्रांडेड परिधानों पर भी यही दर लागू होगी।
जीएसटी की अंतिम और सबसे ऊँची दर 28% है। इसमें पान मसाला, शेविंग क्रीम, सनस्क्रीन और डियोडरेंड जैसे तमाम सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद, सेरामिक टाइल, वॉशिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर और वाहन जैसे उत्पाद शामिल किये गये हैं। इसी तरह पांच सितारा होटल और सिनेमाघर जैसी सेवाएँ भी इसमें शामिल हैं। गौर से देखें तो इनमें से अधिकांश उत्पादों का उपभोग मध्यम वर्ग या उच्च मध्यम वर्ग करता है। इसका भी मिश्रित प्रभाव ही देखने को मिलेगा।
जहाँ तक टिकाऊ उपभोक्ता सामान यानी कंज्यूमर ड्यूरेबल्स उत्पादों की बात है तो मौजूदा व्यवस्था की तुलना में उन पर कर की दर कुछ बढ़ी है, ऐसे में उनके उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी होना लाजिमी है। हालाँकि सिनेमा की टिकट दरों पर कर जरूर बढ़ाया गया है, लेकिन मनोरंजन कर को खत्म भी कर दिया गया है, जो कई मामलों में 100% तक होता था। हालाँकि इसमें राज्यों को कर लगाने के कुछ और अधिकार दिये जाने से सिनेमा टिकटों का सस्ता होना कुछ लटक भी सकता है। परिवहन सेवाओं पर भी मौजूदा 29% के बजाय 28% का ही कर लगेगा। इससे परिवहन और ढुलाई सेवाओं के कुछ सस्ता होने की उम्मीद बंधी है।
किस पर कितना असर
प्लाईबोर्ड और महँगी सेरामिक टाइल बनाने वाली कंपनियों को उम्मीद थी कि इन उत्पादों पर 18% जीएसटी लागू होगा। लेकिन इन्हें 28% की सबसे ऊँची श्रेणी में डाला गया है, जिससे इस क्षेत्र की कंपनियों पर असर पड़ेगा, जिसका भार उन्हें ग्राहकों पर डालना होगा। इसी तरह एफएमसीजी और आयुर्वेदिक उत्पादों के लिए मिली-जुली दरें भी इस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के लिए फायदेमंद मानी जा रही हैं। जैसे साबुन, टूथपेस्ट और नूडल्स पर कर की दर कम रखी गयी है, लेकिन शैंपू और डिटर्जेंट पर बढ़ा दी गयी है। वाहन क्षेत्र पर भी अलग-अलग करों की दर भी मिश्रित प्रभाव वाली है, जहाँ एसयूवी पर 28% कर के साथ ही 15% उपकर भी लगेगा, जबकि अभी तक इन पर 54% कर देना पड़ता था। हालाँकि ट्रैक्टरों पर कर की दर में कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी है। वहीं छोटी पेट्रोल कारों पर कर मामूली रूप से कम हुआ है तो छोटी डीजल कारों पर कर कुछ बढ़ जायेगा।
सोने के मामले में सरकार ने सबसे आखिर में जाकर अपने पत्ते खोले। सोने पर 3% जीएसटी तय किया गया है, जिससे इस मूल्यवान धातु की कीमतों में कुछ इजाफा होने की उम्मीद है, क्योंकि फिलहाल सोने पर 2% से 2.5% कर ही लागू है। हालाँकि सरकार का इरादा सोने पर 5% कर लगाने का था, जिसके पीछे मंशा यही थी कि महज निवेश के लिए इसका रुख करने वाले निवेशकों का इससे कुछ मोहभंग हो सके। मगर भारतीयों की खरीदारी में सोने की अहमियत को देखते हुए केरल को छोड़ कर कोई और राज्य केंद्र के इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुआ।
इसी तरह फुटवियर से लेकर तैयार परिधानों के लिए भी दरें तय करते हुए भी आम आदमी की जेब का पूरा खयाल रखा गया है। जैसे 1,000 रुपये से ज्यादा कीमत के परिधानों पर फाइबर के अनुसार 12% से 18% जीएसटी लगेगा, जबकि इससे कम कीमत वाले परिधानों के लिए 5% जीएसटी ही देना होगा। इसी तरह 500 रुपये से कम वाले फुटवियर पर भी 5% तो उससे महँगे ऐसे उत्पादों पर 18% जीएसटी लगेगा। अभी तक फुटवियर पर 9 से 30% तक का कर लागू था। बड़े पैमाने पर रोजगार देने वाले कपड़ा और चमड़ा उद्योग के लिए यह राहत ही कही जायेगी। इसी तरह बिस्कुटों पर भी मौजूदा 21 से 23% के दायरे में लगने वाले कर की तुलना में अब 18% का एकसमान जीएसटी लागू होगा, जिससे एफएमसीजी कंपनियों की तरह ही बिस्कुट निर्माताओं को भी फायदा होगा। हालाँकि राज्यों के साथ चली लंबी कशमकश के बाद बीड़ी को 28% की सबसे ऊँची श्रेणी में ही रखा गया है।
बहरहाल जीएसटी की सफलता इस बात पर निर्भर होगी कि इसके साथ कितनी जल्दी ताल मिलायी जाती है। लेकिन एक बात तय है कि अर्थव्यवस्था के लिए यह दीर्घावधि में बेहद फायदेमंद रहेगा और अगर उम्मीद के मुताबिक इससे महँगाई नहीं बढ़ती है तो फिर आरबीआई के पास भी ब्याज दरें घटाने की गुंजाइश बनेगी, जो निजी निवेश चक्र को सुधारने के लिए बेहद जरूरी है।
(निवेश मंथन, जून 2017)