तीस मई को मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश के कुछ बड़े बैंकों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की।
इस बैठक में बड़े एनपीए वाले 30 से अधिक खातों पर चर्चा हुई। माना जा रहा है कि इन बैंकों ने आरबीआई से कर्ज के प्रावधान (प्रॉविजनिंग) में छूट माँगी है। दरअसल बैंकों के बढ़ते एनपीए पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने पेश आयी अहम चुनौतियों में शामिल रहे हैं। इसी वजह से पिछले एक-डेढ़ महीनों के दौरान भारत सरकार और आरबीआई ने इस दिशा में तेजी से कई कदम उठाये हैं।
आरबीआई को पता है कि ऋणों के वर्गीकरण के मामले में उसके मानकों का पूरी तरह पालन नहीं किया जा रहा है। इसी कारण उसे 18 अप्रैल को अधिसूचना जारी कर यह कहना पड़ा कि कुछ बैंकों के ऋण के वर्गीकरण और केंद्रीय बैंक के मानकों में काफी अंतर है। आरबीआई की ओर से जारी इस अधिसूचना के बाद तीन निजी बैंकों - आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक और ऐक्सिस बैंक ने यह खुलासा कर सबको हैरान कर दिया कि साल 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट में घोषित किये गये एनपीए के स्तर और आरबीआई के मानक स्तरों में बहुत फर्क है। यस बैंक ने 2015-16 में जो एनपीए घोषित किया था, उसमें आरबीआई के तय मानकों के मुकाबले 4,117 करोड़ रुपये की कमी थी। यह खबर आते ही शेयर बाजार में यस बैंक की धुलाई हो गयी।
दरअसल दिसंबर 2016 तक सरकारी बैंकों का कुल एनपीए बढ़ कर 6.15 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि बैंकों द्वारा दिये गये कुल कर्ज में एनपीए की हिस्सेदारी बढ़ कर 11% हो चुकी है। इसीलिए इस दिशा में काम को तेजी से बढ़ाते हुए भारत सरकार ने तीन मई को बैंकिंग नियमन कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया, ताकि एनपीए के निपटान में हस्तक्षेप के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिक अधिकार हासिल हो सकें। पाँच मई को राष्ट्रपति ने इस अध्यादेश को अपनी मंजूरी दे दी।
इस अध्यादेश के तहत भारतीय रिजर्व बैंक को यह अधिकार दिया गया है कि वह एनपीए खाते की पहचान कर सकता है, समाधान के लिए प्रयास कर सकता है, साथ ही बैंकों को इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के तहत डिफॉल्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है। साथ ही आरबीआई समय-समय पर बैंकों को फँसे हुए कर्ज की समस्या से निबटने के लिए निर्देश जारी कर सकता है और इसके लिए यह एक या अधिक समितियों या प्राधिकरणों का गठन कर सकता है। यह समिति बैंकरों को जाँच एजेंसियों से बचायेगी। इस अध्यादेश का सबसे अहम पहलू यह है कि आरबीआई अब एनपीए के निबटान के लिए समयबद्ध प्रक्रिया तय कर सकता है। पूरी प्रक्रिया को समयबद्ध कर आरबीआई बैंकों और कर्जदारों के बीच एक अनुशासन स्थापित करेगा, ताकि दोनों ही जल्द-से-जल्द किसी समाधान पर पहुँचने का प्रयास करें।
सबसे पहले बातचीत और समझौते की एक कोशिश की जायेगी। उसके बाद आरबीआई एक समिति बनायेगा, जो यह तय करेगी कि बैंक इस मामले में कितनी कर्जमाफी (हेयरकट) कर सकते हैं, इसके बाद यह मामला समाप्त हो जायेगा या किसी एआरसी को दे दिया जायेगा। अगर इन सबके बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आता, तो आरबीआई उस बैंक को इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत डिफॉल्टर के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है।
एनपीए के निबटान के लिए आरबीआई को विभिन्न क्षेत्रों की विशेषज्ञ समितियों का आसरा होगा, क्योंकि ये समितियाँ बैंकों के सामने विभिन्न विकल्पों का आकलन करने में आरबीआई की मदद करेंगी। ये समितियाँ समाधान के विभिन्न तरीकों का स्वॉट यानी गुण-दोष विश्लेषण करेंगी।
अध्यादेश जारी होने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को निर्देश जारी कर कहा कि एनपीए से संबंधित व्यवस्थाओं और समय-सीमाओं का सख्ती से पालन किया जाये, अन्यथा उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है। केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा है कि संयुक्त ऋणदाता (ज्वाइंट लेंडर) फोरम का निर्णय तुरंत लागू किया जाये।
हालाँकि वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि एनपीए निबटान की इस नयी व्यवस्था में कुछ भी नया नहीं है। मूडीज ने एक टिप्पणी में कहा है, ‘इन कदमों में सार्वजनिक बैंकों में पूँजी की कमी के मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया है, जो उन्हें एनपीए को व्यावहारिक तरीके से बट्टे खाते में डालने से रोकता है।' लेकिन मूडीज ने उम्मीद जाहिर की है कि इन कदमों से एनपीए से संबंधित समाधान की व्यवस्था में सुधार होगा।
एंजेल ब्रोकिंग के सीनियर एनालिस्ट सिद्धार्थ पुरोहित का कहना है कि यह अध्यादेश आरबीआई को अधिक अधिकार देगा, जिससे वे बैंकों को परिसंपत्तियों की गुणवत्ता के मसलों को समयबद्ध तरीके से सुलझाने के लिए निर्देशित कर सकेंगे। लेकिन इससे संबंधित कई सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। क्या आरबीआई इन वाणिज्यिक निर्णय प्रक्रियाओं का हिस्सा होगा? सवाल यह भी है कि क्या बैंक इन संभावित कर्जमाफियों (हेयरकट) की स्थिति में हैं? पुरोहित का मानना है कि यह कदम सही है, लेकिन इसके समयबद्ध तरीके से और कम लागत में लागू किये जाने की जरूरत होगी।
(निवेश मंथन, जून 2017)