सेबी ने पार्टिसिपेटरी नोट्स पर फिर से कुछ और शिकंजा कसने वाले प्रस्ताव सामने रखे हैं।
माना जा रहा है कि यह कदम काले धन पर अंकुश के विभिन्न उपायों की ही अगली कड़ी है। सेबी ने 29 मई को जारी एक विचार पत्र (कंसल्टेशन पेपर) में प्रस्ताव रखा है कि 1 अप्रैल 2017 से ओवरसीज डेरिवेटिव इंस्ट्रुमेंट (ओडीआई) जारी करने वाले सभी फॉरेन पोर्टफोलिओ इन्वेस्टर (एफपीआई) पर उसके प्रत्येक पी-नोट ग्राहक या ओडीआई निवेशक के लिए 1,000 डॉलर का शुल्क लगाया जाये। सेबी ने कहा है कि ओडीआई जारी करने वालों की ओर से दाखिल मासिक विवरणों से यह दिखता है कि कई ओडीआई ग्राहक बहुत सारे ओडीआई जारी करने वालों के माध्यम से निवेश करते हैं। सेबी का मानना है कि यह शुल्क लगाये जाने से ओडीआई निवेशक ओडीआई या पी-नोट्स का रास्ता अपनाने के प्रति हतोत्साहित होंगे और वे सीधे ही एक एफपीआई के रूप में सेबी में अपना पंजीकरण करायेंगे।
इस विचार पत्र में सेबी ने यह भी कहा है कि पी-नोट्स का उपयोग केवल हेजिंग के उद्देश्य से होना चाहिए। एफपीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि सटोरिया उद्देश्य से पी-नोट्स जारी न हों और इसके लिए जरूरी प्रणाली अपने यहाँ रखनी होगी। इसके मुताबिक डेरिवेटिव के लिए जारी जो ओडीआई हेजिंग के उद्देश्य से नहीं हैं, उन्हें निपटाने के लिए सेबी की ओर से 31 दिसंबर 2020 तक का समय दिया जायेगा। इन प्रस्तावों पर 12 जून 2017 तक लोगों से प्रतिक्रियाएँ माँगी गयी हैं। पिछले कुछ समय से पी-नोट्स का प्रतिशत लगातार घटा है। जनवरी 2016 में यह कुल एफपीआई संपत्तियों का 10.5% था, जो क्रमश: घटते हुए जुलाई 2016 में 8.4%, जनवरी 2017 में 7.1% और अप्रैल 2017 में 6% पर आ गया।
स्टार्टअप की बदली परिभाषा, सात साल तक लाभ
केंद्र सरकार ने नवांकुर या स्टार्टअप की परिभाषा में कई बदलाव किये हैं। अब किसी भी उद्यम को पंजीकरण की तारीख से 5 साल की जगह 7 साल तक %स्टार्टअप इंडिया ऐक्शन प्लानÓ के फायदे प्राप्त होंगे। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने कहा है कि इन बदलावों के जरिये स्टार्टअप परिवेश को बढ़ावा देने के लिए नये व्यवसाय शुरू करने में सरलता सुनिश्चित की जायेगी और रोजगार खोजने के बजाय रोजगार पैदा करने वाले राष्ट्र का निर्माण होगा। स्टार्ट-अप की परिभाषा का दायरा भी बढ़ाते हुए अब इसमें किसी उद्यम के कारोबारी मॉडल में विस्तार की संभावना और रोजगार या संपदा सृजन की क्षमता को भी शामिल किया गया है।
स्टार्ट-अप की पिछली परिभाषा काफी हद तक उन्हीं उद्यमों को शामिल करती थी जो तकनीक केंद्रित हों। इसके अलावा नयी परिभाषा के अनुसार अब 25 करोड़ रुपये से कम व्यापार करने वाली उस कंपनी को भी स्टार्टअप माना जायेगा, जो पंजीकरण की तिथि से 7 साल पुरानी न होने के साथ ही अपरिवर्तित रही हो। हालाँकि जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के स्टार्टअप के लिए यह समयावधि 10 वर्ष होगी। कर लाभ प्राप्त करने के लिए किसी स्टार्टअप को इंटर-मिनिस्ट्रियल बोर्ड ऑफ सर्टिफिकेशन से एक पात्र व्यापार होने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। हालाँकि स्टार्टअप के रूप में मान्यता या कर लाभ के लिए किसी भी इनक्यूबेटर/उद्योग संघ से सिफारिशी पत्र की आवश्यकता अब नहीं होगी। इससे पहले कुछ वर्गों ने पुरानी परिभाषा की आलोचना करते हुए कहा था कि 5 साल से कम पुरानी कंपनियों को ही स्टार्टअप मानना सही नहीं है। स्टार्टअप की पिछली परिभाषा और कड़ी शर्तों के कारण स्टार्टअप योजना के पहले वर्ष में इसका लाभ उठाने के लिए केवल 142 आवेदन आये और उनमें से केवल 10 उद्यम ही कर छूट का लाभ उठा सके।
(निवेश मंथन, जून 2017)