अफवाहों की अनदेखी
यह बात गाँठ बांध लें कि किसी तरह की अफवाहों या अचानक घटी घटनाओं पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देना है।
इन अफवाहों में शेयर बाजार के धराशायी होने से लेकर किसी वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता की वजह से मची अफरातफरी जैसे वाकये हो सकते हैं, जो निवेशकों को शायद खतरनाक लगें। हालाँकि इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बाजार में गिरावट से शेयर की कीमतों में गिरावट आ सकती है, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि बाजार में सुधार भी नहीं होगा। बाजार में उतार-चढ़ाव बेहद आम हैं। ऐसे हंगामों के मूल में मुख्यत: अफवाहें ही होती हैं, जिन्हें पूरी तरह नजरअंदाज करने की ही जरूरत है। ये अफवाहें एक जाल की तरह होती हैं, जिनमें फँस कर न केवल आप नुकसान पर आमादा हो सकते हैं, बल्कि अपने वित्तीय लक्ष्य से भी भटक जायेंगे। फिर भी कभी लगे कि ऐसी अफवाहें कुछ ज्यादा ही प्रभावी हो रही हैं तो आप वित्तीय सलाहकार से संपर्क कर अपनी भ्रांतियों को दूर कर सकते हैं।
अनुशासन और धैर्य
म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए निवेशक का अनुशासित एवं धैर्यवान होना जरूरी होता है, क्योंकि इनसे वित्तीय लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलती है। नियमित और अपनी गुंजाइश के मुताबिक निवेश करने से निवेशक के भीतर अनुशासन का भाव विकसित होता है। हालाँकि जरूरी नहीं है, लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि नये निवेशक एकमुश्त राशि से निवेश की शुरुआत करते हैं और बाद में उनके लिए शायद यह मुश्किल हो जाता है, जिससे आखिरकार वे निवेश करना बंद भी कर सकते हैं। सुनियोजित निवेश योजना या सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) निवेशकों के लिए ऐसी ही सुविधा है, जिसमें वे नियमित रूप से किसी म्यूचुअल फंड में एक नियत राशि का निवेश कर सकते हैं। इससे उन्हें अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी। निवेशकों को यह ध्यान रखने की दरकार है कि संपदा सृजन समय लेनी वाली प्रक्रिया है और ऐसा रातो-रात संभव नहीं होता। अगर निवेशक बाजार के अस्थिर हालात को लेकर सशंकित हैं तो वे इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) में निवेश कर सकते हैं। इसमें न्यूनतम तीन साल के लिए निवेश होता है जिसमें धारा 80सी के तहत कर छूट का लाभ मिलता है। इससे निवेशक हड़बड़ी से बचते हुए कर बचत का भी फायदा भी उठाता है।
मुश्किल है संभालना
कल्पना कीजिये कि एक साथ दस थैले संभालना कितना मुश्किल काम है। इसी तरह पोर्टफोलिओ में एक साथ काफी शेयर भी आपकी वित्तीय सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। ऐसे में केंद्रित पोर्टफोलियो की सलाह दी जाती है, जो कम हिचकोले खाये। इसी तरह बहुत ज्यादा फंडों में भी निवेश कारगर नहीं होता, क्योंकि उससे अति-विविधीकरण का जोखिम बढऩे के साथ ही उनके प्रदर्शन पर नजर रखने की चुनौती बढ़ जाती है। ऐसा अक्सर उन निवेशकों के मामले में देखने को मिलता है, जो समय के साथ अधीर हो जाते हैं और तमाम म्यूचुअल फंडों में निवेश कर देते हैं।
फंडों का दोहराव
अक्सर ऐसा होता है कि जब निवेशक एक ही श्रेणी के दो फंडों में निवेश करते हैं। इसमें वह गलत धारणा भी असर दिखाती है कि अगर एक फंड का प्रदर्शन बढिय़ा नहीं हुआ तो दूसरा फंड उनकी नैया पार लगा देगा।
अतीत के अंधानुकरण से बचें
निवेशकों को ध्यान रखने की जरूरत है कि पुराने प्रतिफल को देखते हुए वे किसी खास फंड में ही अपना सारा पैसा न लगा दें। पुराने नतीजे हमेशा कारगर नहीं होते। इसके बजाय निवेशक अपने वित्तीय लक्ष्य और जोखिम लेने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए किसी पेशेवर की सलाह से व्यापक विश्लेषण के बाद ही फंड का चयन करें।
(स्रोत : मोतीलाल ओसवाल म्यूचुअल फंड)
आशीष कुमार चौहान, एमडी एवं सीईओ, बीएसई :
घटना चाहिए म्यूचुअल फंडों का व्यय अनुपात
शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड दोनों के लिए बड़ा मुद्दा यह है कि हम ज्यादा लोगों तक नहीं पहुँच पाये हैं। हमें निवेश के लिए भी एक जन-धन योजना की जरूरत है। आप चाहे शेयर बाजार में व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या देखें, म्यूचुअल फंडों में निवेशकों की वास्तविक संख्या देखें, तो यह डेढ़-दो करोड़ से ज्यादा नहीं होगी। लोग किसी पर्ल एग्रो या शारदा जैसे किसी चिट फंड पर भरोसा कर लेते हैं, पर वे म्यूचुअल फंड में निवेश नहीं करते हैं। ऐसा क्यों है, यह पूछने की जरूरत है।
शेयर बाजार में 1992 में ब्रोकिंग दरें कितनी थीं? कम-से-कम 2% लगता था। अब यह घट कर 0.01% से 0.05% तक रह गया है। ऐसा क्यों हुआ? प्रतिस्पर्धा और स्वचालन (ऑटोमेशन) के चलते। लेकिन वैसी प्रतिस्पर्धा म्यूचुअल फंड उद्योग में नहीं हुई है। इसलिए व्यय अनुपात (एक्सपेंस रेश्यो) अब भी उतना ही है, जितना 90 के दशक में था। वे विशेषज्ञ हैं, पर एक विशेषज्ञ को वेतन के रूप में कितना चाहिए? उनको एक लाख करोड़ रुपये का 2% मतलब 2,000 करोड़ थोड़े ही चाहिए।
ब्रोकिंग उद्योग की दरें इसलिए नहीं घटीं कि ब्रोकर इसे घटाना चाहते थे। नियामक और प्रतिस्पर्धा ने यह काम किया और स्वचालन ने इसमें मदद की। म्यूचुअल फंड उद्योग एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ), जैसे सेंसेक्स की प्रतिकृति वाले फंड का उतना प्रचार-प्रसार क्यों नहीं कर रहा है? उसमें विशेषज्ञ की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि उसमें आप केवल सेंसेक्स वाले शेयरों को बिल्कुल सेंसेक्स के जैसे अनुपात में लेते हैं। इसकी लागत कितनी होनी चाहिए?
जो फंड समय के साथ बड़े हो गये हैं, उन्होंने अपना बड़ा वितरण चैनल बना लिया है। किसी के 60,000 एजेंट हैं, तो किसी के एक लाख। उसमें प्रदर्शन का मतलब नहीं रहता। जिसके पास बड़ा वितरण नेटवर्क है, वह ज्यादा बड़ा हो जाता है। इस उद्योग की संरचना ऐसी बनी है, जिसमें लागत का बड़ा हिस्सा वितरण का है। बहुत कम खर्च फंड मैनेजर पर होता है, जो आपको प्रतिफल (रिटर्न) देता है।
स्वचालन के इस युग में कोष जुटाने में उतना पैसा नहीं लगता है। पर आप म्यूचुअल फंड में एक लाख रुपये डालें तो आपको पता नहीं चलता कि उसमें से हर साल 2,000 रुपये खर्च हो जाने वाले हैं। संचयी निवेश होने के कारण आपको यह दिखता नहीं है। अगर हम भरोसे और कम लागत वाला ढाँचा बना सकेंगे, तभी ज्यादा लोगों तक पहुँचेंगे। अगर आपको 30 साल तक 2% ज्यादा प्रतिफल मिले, तो सोचें कि वह चक्रवृद्धि (कंपाउंडिंग) से कितना हो जायेगा। अगर 30 साल बाद 300 गुना प्रतिफल मिलने वाला हो तो उसके बदले संभवत: 400 गुना मिलेगा।
अमित प्रधान, क्षेत्रीय निदेशक, सेबी :
जागरूकता कार्यक्रमों को उत्पाद निरपेक्ष रखें
निवेशकों को जागरूक करने के बारे में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) हमेशा प्रतिबद्ध है। जागरूकता के बिना बाजार में निवेशक नहीं होंगे। चाहे म्यूचुअल फंड हो या कोई और क्षेत्र, जागरूकता जरूरी है। सेबी ने निवेशकों का जोखिम नियंत्रित रखने के लिए कई कदम उठाये हैं। म्यूचुअल फंड उत्पादों के लिए जोखिम स्तर का लेबल बताना जरूरी कर दिया गया है। इसमें जोखिम की पाँच श्रेणियाँ रखी गयी हैं - लो रिस्क यानी पूँजी पर कम जोखिम, मॉडरेटली लो रिस्क यानी मध्यम से कम जोखिम, मॉडरेट रिस्क यानी मध्यम जोखिम, मॉडरेटली हाई यानी मध्यम से उच्च जोखिम और फिर हाई रिस्क यानी उच्च जोखिम। इनको देख कर जाना जा सकता है कि कौन-सा उत्पाद किस व्यक्ति के लिए उपयुक्त है। सेबी ने सीएएस या कंसोलिडेटेड एकाउंट स्टेटमेंट की भी व्यवस्था शुरू करायी है। इसे शुरू हुए कुछ समय हो गया है, पर लोगों को इसके बारे में जानना चाहिए। सीएएस सुविधा से निवेशकों को अपने निवेश के आँकड़े नियमित रूप से मिलते रहते हैं, जिसमें म्यूचुअल फंडों में उनकी यूनिट संख्या का विवरण रहता है। यह विवरण म्यूचुअल फंड की दखल के बिना सीधे एनएसडीएल से आ जाता है।
सेबी ने अभी हाल में ही ई-वैलेट से सालाना 50,000 रुपये तक के निवेश की अनुमति भी दी है। हालाँकि इस नीति को सफल बनाने के लिए अभी कुछ और भी कदम उठाने की जरूरत हो सकती है। सेबी ने म्यूचुअल फंडों को रीट (रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) और इन्विट (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) में निवेश करने की भी अनुमति दे दी है।
वित्तीय साक्षरता के लिए सेबी प्रतिबद्ध है। मैं उत्तरी क्षेत्र के आँकड़े बता सकता हूँ कि हमने अपनी रिसोर्स पर्सन प्रणाली के तहत 7,000 से ज्यादा वित्तीय साक्षरता कार्यशालाएँ आयोजित की हैं। अन्य सहभागियों, जैसे स्टॉक एक्सचेंज, एन्मी या अन्य संगठनों के साथ मिल कर 150 से ज्यादा जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित हुए हैं। पूरे देश में अगर देखें तो पिछले पाँच साल में संभवत: 50,000 की संख्या पार हो गयी है। म्यूचुअल फंड उद्योग और एम्फी (एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया) को भी पूरी शक्ति से म्यूचुअल फंड और सामान्यत: पूँजी बाजार के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आगे आना चाहिए। अगर एम्फी ऐसे जागरूकता कार्यक्रम करता है तो उसका तरीका ज्यादा संगठित और एकरूप होगा और वह किसी खास उत्पाद को बढ़ावा देने वाला नहीं होगा। पर इसका मतलब यह नहीं है कि म्यूचुअल फंड कंपनियों या फंड मैनेजरों को अपने जागरूकता कार्यक्रम नहीं करने चाहिए। पर मेरा आग्रह यही होगा कि वे इसे उत्पाद निरपेक्ष (प्रोडक्ट न्यूट्रल) रखें।
(निवेश मंथन, जून 2017)